दुनिया में एक तो कन्फ्यूजन वैसे ही कम नहीं था | धरती गोल है या सपाट | एक कोई महानुभाव आये बोले “गोल है”..सबने मान लिया | फिर आया कन्फ्यूजन कि चलता कौन है..सूरज या पृथ्वी…सब बोले पृथ्वी चलती है (हर किसी को लगता है कि वो चल रहा है बाकी दुनिया जड़ है) सूरज रुका हुआ है…एक बार दुनिया ने फिर हामी भर दी | फिर एक और आये साइंटिस्ट, बोले कि देखो दोनों चलते हैं…सूरज और पृथ्वी…दुनिया बोली “ना !!! हम ना मानेंगे" …तो वैज्ञानिक बोले “आओ बैठो बांचते हैं तुम्हे ज्ञान | थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी |” जनता बोली समझने से बढ़िया हाँ बोल दो | काम खतम पैसा हजम |
कुछ लोगो के पास केवल एक ही काम होता है, वो हर चीज़ को रिकार्ड करते रहते हैं, घटना, सुघटना, दुर्घटना, खेल, खिलाडी, अनाड़ी, कबाड़ी | जहाँ जिसके बारे में कुछ मिला रिकार्ड कर लिया | ऐसे लोग समाज के दुश्मन होते हैं| कुछ ऐसे ही लोगो की वजह से ऊपर दिए गए सारे कन्फ्यूजन रिकार्ड हो गये….जिसको ये सब समझ में आता है वो सब विज्ञान बोलते हैं और बाकी सब नौटंकी…
और ऐसे ही समाज के द्रोहियों के लफड़े में पड़कर कुछ लोगो ने “पढाई-लिखाई" जैसी काली करतूत को जनम दिया…सोचो अगर पढ़ना लिखना बुरी बात डिक्लेयर की गयी होती तो? किताबे बेचना कानून के खिलाफ (कानून की भी कोई किताब नहीं, जिसका जो मन आया वो क़ानून, पर किताब रखना सबके लिए गैर कानूनी) |
पता चला कोई नया सिनेमा आता, हीरो बागी है, माँ-बाप की नहीं सुनता, किताबें पढता है, हिरोइनी भी बागिन (अब बागी का स्त्रीलिंग तो बागिन ही समझ में आया अपनी) , वो लिखती है!!! | मुंबई की कहानी है, बड़ा शहर है, पढ़ना लिखना खुले आम होता है, दोनों भाग के शादी करते हैं, जीवन सुख से बीतने लगता है, कहानी खतम होती है, पिक्चर का नाम है “जब दोनों लिखे-पढ़े"|
पहले तो पिक्चर की शूटिंग नहीं हो पाती….गंगा किनारे का सीन है कि हीरो हिरोइनी को छुप के किताब देने आया है | शुरू ही हुई शूटिंग, कि आ गए कुछ लोग | “गंगा के किनारे इतना अपवित्र काम, पढाई???? ई बरस फिर सूखा पढ़ेगा, कल्मुहे और करमजली , गंगा किनारे किताब, घोर कलजुग" | दो चार लोग सेट तोड़ देते, कुछ डायरेक्टर को रपटा लेते, कोई प्रोडूसर को पीट देता | एक तरफ कोने में म्यूजिक डायरेक्टर बज रहे हैं| गीतकार के कपड़े फाड़ दिए गए हैं, झोला फाड़ के काफिया मिलाया जा रहा है|
मान लो छुप छुपा के किसी तरह पिक्चर पूरी हो गयी | रिलीज़ से पहले सेंसर बोर्ड आ जाता| देखो वो जहाँ जहाँ किताब दिखी है उसे धुंधला कर दो, जहाँ जहाँ पढाई लिखाई बोला गया हैं वहाँ “टूऊँ” डालो, और ये जो एक सीन है ना जहाँ पुस्तकालय दिखाया है, इसे तो भाई काटना पड़ेगा, नहीं तो पिक्चर पास नहीं होगी | और वो जो एक सीन है जिसमे नदी किनारे हीरो हिरोइनी को किताब देता है , इसकी वजह से पिक्चर एडल्ट घोषित की जाती है|
पिक्चर रिलीज़ होते ही कोहराम, जगह जगह पिक्चर के प्रिंट जलाये जाते, पिक्चर के पोस्टर जिन गलियों में लगते वहाँ बच्चे माँ बाप से नज़रें छुपा के जाते….”सोनू अरे ऊ समोसे की दुकान के पीछे वाली गली के आखिर में वो जो बंसी की किराने की दुकान के सामने जो पोस्टर लगा है उ देखा? जे मोटी मोटी किताब दिखाई है” “अबे चुप हरामखोर धीरे बोल, पिता जी सुन लिए तो पोस्टर बाद में फटेगा, टांग पहले तोड़ दी जाई”|
ऐसी फिल्मे छुप छुप के चलती | कल्लू के हाते में रात को सनीमा चलेगा १२ से ३ के बीच में, दीवाली के बहाने निकल लेना, बोलना होलिका दहन करने जा रहे हैं, कोई जान नहीं पायेगा|
तब कुछ पढाकू लोग वैसे पढते जैसे आज छोटे शहरों के लडके छुप छुप के दारू-सुट्टा पीते हैं| “सुनो रेल की पटरी के पास वो जो खंडहर है, आज शाम वहाँ १५-२० किताबे लाई जाएँगी, सब इकठ्ठा हो जाना, २-४ सुना है कविताओं की भी किताबें हैं, सब पढेंगे | और देखो एक झटके में पढ़ना, जादा देर चहलकदमी हुई तो पकडे जाओगे, और भाई पढ़ते पकड़े गए तो सुनीता-अनीता सब गयी हाथ से, शहर छोड़ना पड़ेगा|”
तब किताबों के छोटे छोटे हिस्से किये जाते| सब आपस में बाटते और “चियर्स" बोलके जल्दी जल्दी पढते| लौटते वक्त सब अपनी ऑंखें धो लेते “कुछ शब्द आँखों में छप जो जाते हैं"| पकडे जाने का खतरा रहता|
छोटा भाई, बड़े भाई की शिकायत करता पिताजी से “पापा मिंटू दादा किताब पढ़ रहे हैं" पिताजी छोटू को तो दो टाफी देते, मिंटू कूट दिए जाते…
सुबह उठे तो स्कूल की बजाय जंगल चल दिए, शाम को होमवर्क नहीं है, मस्ती से बैठे, आग जला रहे हैं | होनहार होने कि कसौटियां बदल जातीं, महेशवा की लड़की कितनी होनहार है, चीते जैसी भागती है, और ऊ बिरेंदर गिल्ली डंडा का हीरो बन गया है, शादी हो जायेगी अब दोनों की |
वहीँ किसी के घर में तार आता “माँ मैं पढाई करने शहर भाग आया हूँ, परेशान मत होना” | और घर में कोहराम मच जाता…..
कुछ लोगो के पास केवल एक ही काम होता है, वो हर चीज़ को रिकार्ड करते रहते हैं, घटना, सुघटना, दुर्घटना, खेल, खिलाडी, अनाड़ी, कबाड़ी | जहाँ जिसके बारे में कुछ मिला रिकार्ड कर लिया | ऐसे लोग समाज के दुश्मन होते हैं| कुछ ऐसे ही लोगो की वजह से ऊपर दिए गए सारे कन्फ्यूजन रिकार्ड हो गये….जिसको ये सब समझ में आता है वो सब विज्ञान बोलते हैं और बाकी सब नौटंकी…
और ऐसे ही समाज के द्रोहियों के लफड़े में पड़कर कुछ लोगो ने “पढाई-लिखाई" जैसी काली करतूत को जनम दिया…सोचो अगर पढ़ना लिखना बुरी बात डिक्लेयर की गयी होती तो? किताबे बेचना कानून के खिलाफ (कानून की भी कोई किताब नहीं, जिसका जो मन आया वो क़ानून, पर किताब रखना सबके लिए गैर कानूनी) |
पता चला कोई नया सिनेमा आता, हीरो बागी है, माँ-बाप की नहीं सुनता, किताबें पढता है, हिरोइनी भी बागिन (अब बागी का स्त्रीलिंग तो बागिन ही समझ में आया अपनी) , वो लिखती है!!! | मुंबई की कहानी है, बड़ा शहर है, पढ़ना लिखना खुले आम होता है, दोनों भाग के शादी करते हैं, जीवन सुख से बीतने लगता है, कहानी खतम होती है, पिक्चर का नाम है “जब दोनों लिखे-पढ़े"|
पहले तो पिक्चर की शूटिंग नहीं हो पाती….गंगा किनारे का सीन है कि हीरो हिरोइनी को छुप के किताब देने आया है | शुरू ही हुई शूटिंग, कि आ गए कुछ लोग | “गंगा के किनारे इतना अपवित्र काम, पढाई???? ई बरस फिर सूखा पढ़ेगा, कल्मुहे और करमजली , गंगा किनारे किताब, घोर कलजुग" | दो चार लोग सेट तोड़ देते, कुछ डायरेक्टर को रपटा लेते, कोई प्रोडूसर को पीट देता | एक तरफ कोने में म्यूजिक डायरेक्टर बज रहे हैं| गीतकार के कपड़े फाड़ दिए गए हैं, झोला फाड़ के काफिया मिलाया जा रहा है|
मान लो छुप छुपा के किसी तरह पिक्चर पूरी हो गयी | रिलीज़ से पहले सेंसर बोर्ड आ जाता| देखो वो जहाँ जहाँ किताब दिखी है उसे धुंधला कर दो, जहाँ जहाँ पढाई लिखाई बोला गया हैं वहाँ “टूऊँ” डालो, और ये जो एक सीन है ना जहाँ पुस्तकालय दिखाया है, इसे तो भाई काटना पड़ेगा, नहीं तो पिक्चर पास नहीं होगी | और वो जो एक सीन है जिसमे नदी किनारे हीरो हिरोइनी को किताब देता है , इसकी वजह से पिक्चर एडल्ट घोषित की जाती है|
पिक्चर रिलीज़ होते ही कोहराम, जगह जगह पिक्चर के प्रिंट जलाये जाते, पिक्चर के पोस्टर जिन गलियों में लगते वहाँ बच्चे माँ बाप से नज़रें छुपा के जाते….”सोनू अरे ऊ समोसे की दुकान के पीछे वाली गली के आखिर में वो जो बंसी की किराने की दुकान के सामने जो पोस्टर लगा है उ देखा? जे मोटी मोटी किताब दिखाई है” “अबे चुप हरामखोर धीरे बोल, पिता जी सुन लिए तो पोस्टर बाद में फटेगा, टांग पहले तोड़ दी जाई”|
ऐसी फिल्मे छुप छुप के चलती | कल्लू के हाते में रात को सनीमा चलेगा १२ से ३ के बीच में, दीवाली के बहाने निकल लेना, बोलना होलिका दहन करने जा रहे हैं, कोई जान नहीं पायेगा|
तब कुछ पढाकू लोग वैसे पढते जैसे आज छोटे शहरों के लडके छुप छुप के दारू-सुट्टा पीते हैं| “सुनो रेल की पटरी के पास वो जो खंडहर है, आज शाम वहाँ १५-२० किताबे लाई जाएँगी, सब इकठ्ठा हो जाना, २-४ सुना है कविताओं की भी किताबें हैं, सब पढेंगे | और देखो एक झटके में पढ़ना, जादा देर चहलकदमी हुई तो पकडे जाओगे, और भाई पढ़ते पकड़े गए तो सुनीता-अनीता सब गयी हाथ से, शहर छोड़ना पड़ेगा|”
तब किताबों के छोटे छोटे हिस्से किये जाते| सब आपस में बाटते और “चियर्स" बोलके जल्दी जल्दी पढते| लौटते वक्त सब अपनी ऑंखें धो लेते “कुछ शब्द आँखों में छप जो जाते हैं"| पकडे जाने का खतरा रहता|
छोटा भाई, बड़े भाई की शिकायत करता पिताजी से “पापा मिंटू दादा किताब पढ़ रहे हैं" पिताजी छोटू को तो दो टाफी देते, मिंटू कूट दिए जाते…
सुबह उठे तो स्कूल की बजाय जंगल चल दिए, शाम को होमवर्क नहीं है, मस्ती से बैठे, आग जला रहे हैं | होनहार होने कि कसौटियां बदल जातीं, महेशवा की लड़की कितनी होनहार है, चीते जैसी भागती है, और ऊ बिरेंदर गिल्ली डंडा का हीरो बन गया है, शादी हो जायेगी अब दोनों की |
वहीँ किसी के घर में तार आता “माँ मैं पढाई करने शहर भाग आया हूँ, परेशान मत होना” | और घर में कोहराम मच जाता…..
-- देवांशु
Awesome. Awesome. Awesome.
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया पढ़ कर...हाय ऐसी ओरिजिनल थिंकिंग...वाह। पढ़ना न होता तो क्या होता। मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं...हर पंक्ति लाजवाब...गजब लिखे हो देवांशु...एक्दम्मे गजब। ग़दर मचे दिये एकदम!
काश कपिल सिब्बल इस पोस्ट को कभी पढते..
जवाब देंहटाएंवैसे ये सारे किरदार जो ’कूटे’ गये इनके बारे में सोचते हुये ज्यादा मज़ा आया... :) और कूटो सालों को...
छोटा भाई, बड़े भाई की शिकायत करता पिताजी से “पापा मिंटू दादा किताब पढ़ रहे हैं" पिताजी छोटू को तो दो टाफी देते, मिंटू कूट दिए जाते…
जवाब देंहटाएंगदर पोस्ट डाली है गुरू..पेट मे दर्द होने लगा इसे ’पढ़ते-पढ़ते’..इतनी ओरिज्नल थिंकिग पढे-लिखों को तो नही आ सकती कभी..काश ऐसा हो जाता क्या मज़े होते..और फिर पता है शायर लोग क्या कहा करते
ग़ालिब छुटी किताब, पर अब भी कभी कभी
पढ़ता हूँ रोजे-अब्र-शबे-माहताब मे
पहले किताब जीस्त थी, अब जीस्त है किताब
कोई पढ़ा रहा है पढ़े जा रहा हूँ मैं
कर्ज की पढ़ते थे बुक और ये समझते थे कि हाँ
रंग लायेगी हमारी ये पढ़ाई एकदिन
साकिया स्टडी की ताब नही
जहर दे दे अगर किताब नही
एक पन्ने मे बहुत दाग बहक उठते थे
सुना है कि निकाले गये हैं लाइब्रेरी से
:-)
आमीन
nice! I like it :)
जवाब देंहटाएंawesome apoorv...
जवाब देंहटाएंaur devanshu maalik hamara comment google kha gaya lagta hai.. aapke inbox mein pada hoga, fir se daaldene ka kasht karein..
लो जी पंकज बाबू, कमेन्ट जिंदा हो गया है ( ये खुराफाती टिप्स पूजा ने दी थी...)..कमेन्ट डेडली है...
जवाब देंहटाएंअपूर्व भाई का तो जवाब है ही नहीं वाकई में,
"साकिया स्टडी की ताब नही
जहर दे दे अगर किताब नही"
पोस्ट तो एक-दो बार पढ़े थे छापने से पहले, ये कमेन्ट कई बार पढ़ लिए..याद हो जायेगा...
@पूजा...ग़दर तो अब मचेगा... :)
जवाब देंहटाएंdevanshu रीडिंग देवांशु एंड कमेंटिग ऎज वेल... मालिक ये तरीका भी बढिया है होपफ़ुली पूजा ने न बताया हो. कि अपने ही नाम की एक और प्रोफ़ाईल बनाओ और अपने ही ब्लॉग के कमेंट बढाओ.. गज़ब.. शानदार.. हम भी बनाते हैं एक ठो :)
जवाब देंहटाएंदेखो पंकज, ये सब ट्रेड सीक्रेट लीक मत करो...वैसे भईया देवांशु (इतनी तमीज से हम अपना नाम कभी नहीं लिए हैं ना कोई और लिया है), जो भी हो प्रकट हो जाओ...जनता ऐसे गंभीर आरोप लगा रही है...मेरे पास एक आईडिया है..कई नाम से १५-२० प्रोफाइल बनाओ...और खुद के ब्लॉग पे कमेन्ट कर लो...डॉ पूजा , प्लीज़ अप्रूव करें....
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढता चल रहा हूँ टिप्पणी कर्म भी चालू कर दिया हूँ ..
जवाब देंहटाएंबागिन नहीं एतदर्थ सही शब्द है -बाघिन ....
ये हिरोईनी हीरोईन का सेवन करती है क्या जो नाम से अलग हो गयी है ....
हाते का सिनेमा भी जाते थे का भैया ईहाँ इंडिया में ...
आगे तो काफी नोस्तालजिया है ...
गजब ...... :)
अपने नाम से 15-20 प्रोफाइल बना के कमेंट पोस्ट करना क्लासिक आइडिया है :)
जवाब देंहटाएंपूजा सर्टिफाइड :)
nice! I like it :)
जवाब देंहटाएंNice.. i like it.. :)
जवाब देंहटाएंतुममे हमारे देश के भावी शिक्षा मंत्री बन ने की खुभियाँ कूट कूट कर भरी हुई है. हमे हमारे भावी नेता के विचार काफी ज्वलनशील लगते हैं ... पकोड़ों से भी ज्यादा !! पकोड़ों की चटनी के समान शिक्षा के मूल भूत सिधान्तों का वर्णन काबिले तारीफ़ है. ये एक नयी सोच और नयी राह को जन्म देगा ऐसा हमारे विद्वानों का मानना है. सुना है तुम बड़े होनहार थे पढ़ाई लिखाई में, काफी अछे नंबर से पास भी हुए थे.... such waste ऑफ़ talent .... खैर देर आये दुरुस्त आये... आगे क्या प्लान है ये भी बतादो.
जवाब देंहटाएंछी!! तुम्हारे कारण इस पोस्ट को पढ़ने का घृणित कर्म करना पड़ा.. :-/
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंकोई खज़ाना हाथ लगा है क्या? एक के बाद एक ऐसी कमाल की पोस्ट आ रही है...हंस-हंस के पागल हो गए हम तो..
जवाब देंहटाएंखास कर म्यूजिक डायरेक्टर का बजना बेहद कर्णप्रिय रहा...
ये रिसर्च किसी ने पहले कभी की होती तो हमारी पीढी को तो कम से कम "पढाई-लिखाई" का दुःख-दर्द नहीं झेलना पड़ता...
mast Blog .. its rare very original :)
जवाब देंहटाएंU r an all rounder dev :)
जय हो!
जवाब देंहटाएंमुबारक हो ! आपकी यह पोस्ट आज 'जनसत्ता' के 'समांतर' में आई है !
जवाब देंहटाएंलेओ
जवाब देंहटाएंहमसे पहले तो त्रिवेदी जी बता गए
अब हमें संतोष हुआ कि हमारा काम तो पहले ही हो जाता है
देखना हो तो देख लीजिए इहाँ है ऊ
शुक्रिया आशीष भाई !!! जय हो!!!!
जवाब देंहटाएंसंतोष जी और बी एस पाबला जी, बहुत बहुत धन्यवाद... :)
Unique...
जवाब देंहटाएंहय पढकर तो मजा आ गया। मैं चुपके चुपके से हाँसा। मै पहली बार पढाई की बहुत लाजवाब कहानी थी!
जवाब देंहटाएंi very very enjoy this is story. i never read this story. so fantastic
जवाब देंहटाएं