बुधवार, 30 दिसंबर 2020

दो कदम आगे - तीन कदम पीछे

 “अरी कौन साला विस नहीं किया” एक कड़कती सी आवाज़ ने नींद से बोझिल हो चुकी आँखों को झकझोर दिया ।

सवेरे के साढ़े तीन बज रहे थे और पिछले साढ़े चार घंटे से जारी रैगिंग अपनी आज की सभा के आख़िरी चरण में पहुँच चुकी थी । मसला ये था कि किसी एक जूनियर ने किसी एक सीनियर को विश नहीं किया था । विश मतलब सीनियर दिखते ही हर जूनियर  को अपनी कमर को एक समकोण यानी ९० डिग्री पर झुकाना और एक विशेष प्रकार से “सलाम” करना होता । और ऐसा ना करने पर दंड संहिता में अलग अलग दंडों का प्रावधान था । संहिता कहीं थी नहीं वो बात अलग है । 

पर आज किसी ने ये मिस कर दिया था और शिव के साथ उसके सारे बैचमेट की क्लास लगी हुई थी । 

“जिसने नहीं किया हो वो आगे आए , वरना साला सबको २ घंटा एक्स्ट्रा यहीं खड़ा रहना पड़ेगा” फिर से वही कड़क आवाज़ गूंजी ।

रैगिंग का ये पाँचवाँ दिन था । अब तक आदत तो पड़ चुकी थी पर फिर भी कभी कभी रोना निकल जाता था , सब मजबूत नहीं हुए थे । शिव को अचानक याद आया कि आज जब दोपहर को वो पानी भरने गया था तब दोनों हाथ में बॉटल होने की वजह से एक सीनियर को विश नहीं कर पाया था । उसने हाथ खड़ा कर दिया की मैंने विश नहीं किया है । 

बस , फिर क्या बाक़ियों को जाने दिया गया और उसे रोक लिया गया । क़रीबन १०-१५ सीनियर्स होंगे ।

“अच्छा तो तू था” एक आवाज़ आयी ।

“नाम पता है कि किस सीनियर को विश नहीं किया” दूसरी आवाज़ आयी । 

“सर , चेहरा नहीं देख पाया , सर झुका हुआ था” शिव बोला ।

“अबे , चप्पल तो देखी होगी ना , उससे पहचान” एक और आवाज़ आयी ।

“चप्पल से?” शिव ने पूछा ।

“हाँ , चप्पल से , कल तक सब सीनियर्स की चप्पल याद कर लो , ये असाइनमेंट है तुम्हारा” उन्हीं में से कोई एक बोला । 

“चल अब जा , कल से विश करना ना भूल जाना” एक और आवाज़ आयी ।

शिव चल दिया । थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि ऐसा लगा कोई पीछे पीछे आ रहा है । रुककर विश किया ।

“साला रहने दे , सबको विस किया कर” ये वही पहले वाले सीनियर की आवाज़ थी ।

“जी सर” शिव बोला ।

“मेरा रूम पता है ?”

“नहीं”

“तो चप्पल याद करने से पहले सारे सीनियर का रूम नम्बर पता कर” 

“जी”

“और जब मेरा पता चल जाए तो रूम पर आ जाना , ड्राफ़्टर और किताबें पड़ी हैं , ले जाना । नयी मत लेना । कैल्क्युलेटर के अलावा कुछ भी मत ख़रीदना , समझा”

“जी सर”

“और साला पूरे जूनियर में दसियों लड़का लोग सब विस नहीं नहीं किया होगा , तुम साला अकेला काहे ऐक्सेप्ट कर लिया”

“जी , मैंने ही विश नहीं किया था ,  सब मेरी वजह से खड़े रहते”

“अरे महान आत्मा , ये रैगिंग है , कोई पुण्य काम नहीं जो इत्ता सच्चा बन रहा है , जब तक बच सकता है बच”

शिव को पहली बार अपनेपन की फ़ीलिंग आयी । उसने सर उठाकर कहा : जी सर।

“साला ज़्यादा कमफरटेबल होनी की ज़रूरत नहीं , आँख नीचे” सीनियर ने डाँट दिया । शिव ने फिर सर नीचे कर लिया ।

“अऊर , गर्लफ़्रेंड है”

“नहीं सर”

“नहीं है तो बना ले , हाँ बस रैगिंग तक किसी के साथ घूमता या बात करता दिख गया तो ख़ैर नहीं , अब जा पाँच बज रहा है , नौ बजे लेक्चर में पहुँचना है , भाग और पीछे वाले रास्ते से मत जाना उधर कोई और पकड़ लेगा”

****

पूरे दो साल तैयारी के बाद इंजीनियरिंग में हो गया था शिव का । दिल्ली से सटे नॉएडा में था कॉलेज । घरवाले आए थे छोड़ने । तब कई सीनियर्स मिले थे जो ऐसे बात कर रहे थे कि उनसे अच्छा कोई नहीं पर सबके जाते ही टूट पड़े । सुबह नाश्ते से शाम की चाय तक कॉलेज , फिर हॉस्टल । ६ बजे से रैगिंग का पहला दौर और डिनर के बाद ११ बजे से दूसरा । डिनर और ११ बजे का टाइम घर वालों से बात करने के लिए था । ११ बजे से सुबह ४-५ बजे तक असेम्बली मतलब रैगिंग की क्लास । 

मोबाइल पर तब तक इंकमिंग फ़्री नहीं थी और ज़्यादातर  केवल लड़कियों के पास ही थे मोबाइल । लड़कों के हॉस्टल में गार्ड रूम में कई सारे फ़ोन थे , जिसपर घरवाले फ़ोन करके रूम नम्बर और नाम बता देते थे । फिर एक गार्ड बुलाकर लाता था फिर दुबारा फ़ोन आने पर बात होती  । कभी कभी लम्बा वेट भी करना पड़ता और इस तरह ये हंटिंग ग्राउंड था सीनियर्स के लिए । बचने के लिए सबने टाइम तय करके घर वालों को बता दिए थे ,  उसी टाइम पर जाकर बात करके , फटाफट रूम पर वापस हो लेते थे । 

एक रोज़ शिव अपने घर पर बात करके वापस आ ही रहा था की पीछे से गार्ड की आवाज़ आयी ।

“शिव , तुम्हारा फिर से फ़ोन है”

वो बूथ पर वापस गया । १५ मिनट बाद वापस से फ़ोन आया ।

“शिव” उधर से आवाज़ आयी ।

“हाँ”

“शालिनी बोल रही हूँ , कैसे हो”

“शालिनी” बोलने के बाद शिव ने इधर उधर देखा और फिर धीमी आवाज़ में बोला :

“शालिनी , मैं ठीक हूँ और तुम?”

“मैं भी ठीक हूँ, सुनो मैं दिल्ली में ही हूँ”

“पता है” शिव बोला ।

“सुनो , बहुत बातें यहाँ नहीं हो पाएँगी , सैटर्डे मैं नॉएडा आ रही हूँ , वहाँ अट्टा चौक के पास मैकडॉनल्ड है , २ बजे वहाँ मिल सकते हो” 

“मैं अभी तक हॉस्टल से नहीं निकला हूँ”

“तो क्या कभी नहीं निकलोगे, तुम्हारे यहाँ से रिक्शा मिल जाएगा , सीधा वहीं उतारेगा , आ जाना , अभी रखती हूँ ,बाय”

“बाय”

वैसे तो कुछ मिनटों की भी बात नहीं थी ये पर शायद अब तक की सबसे लम्बी बातचीत थी । शिव को लगा था कि वो कहानी वहीं ख़त्म हो चुकी थी क्यूँकि शालिनी के जाने के बाद सिवाय एक दो बार दिखने के ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था कि जिससे कुछ भी बाक़ी रहने की उम्मीद हो । पर आज उसके फ़ोन ने दिल की घंटी बजा दी थी । अब सैटर्डे का इंतेज़ार था जो वैसे तो ३ दिन बाद था पर लग रहा था की कम से कम ८-१० दिन और हैं अभी उसके आने में । 

अब ज़रा सिचूएशन को और क़रीब से देखते हैं । फ़ोन पर बात उसकी और शालिनी की हुई है पर बूथ से निकलते हुए उसे ऐसा लग रहा है कि ये बातचीत FM पर गाना सुनने की फ़रमाइश के लिए हुई है जिसे अभी अभी सबने सुना है । झुकी नज़रों के बावजूद २-४ चेहरे जो उसे दिख रहे हैं , ऐसा लग रहा है कि एक कुटिल मुस्कान से उसे देख रहे हैं । जैसे हर कोई जान गया हो कि उसके दिल में क्या चल रहा है । वो भाग के अपने रूम में पहुँचना चाह रहा है पर ऐसा लग रहा है कि क़िलोमीटरों का फ़ासला है , रास्ते में घुमाव हैं सो अलग। कहीं कोई सीनियर ना रोक ले । क्या आज रात ११ बजे की असेम्बली कैन्सल नहीं हो सकती । बारिश ही हो जाए तो बहाना मार दूँगा कि भीग गया था । 

यही सब उधेड़बुन में वो चला जा रहा था कि अचानक से हॉस्टल का मेन गेट खुला और दो पुलिस की गाड़ियाँ आकर रुकीं । कई पुलिसवाले उतरे और सीटी मार मार कर सब लड़कों को इकट्ठा करवाया । सारा खुमार टूट चुका था । पता चला कि नए आए जूनियर में कोई एक बड़े अधिकारी का सुपुत्र था जिसने रैगिंग की बात अपने घर में बता दी थी । और उस शिकायत पर ही पुलिस हॉस्टल में आयी थी । पूरी रात छानबीन के बाद अगले दिन सुबह सारे सीनियर्स को इकट्ठा कर सब-इंस्पेक्टर ने समझाते हुए कहा : बालकों , पढ़ने आए हो पढ़ाई करो , समझे । ये रैगिंग - फैगिंग में कुछ ना धरा । कम्पलेंट काफ़ी ऊपर तक हुई है पर हो सब अपने बालक , तो केवल समझाने का आदेश है , तो वही कर रहे हैं । सुना जबतक फ़्रेशर बालकन को पार्टी ना दे दोगे तब तक ये नाटक चलता रहेगा । तो इस शनिवार पार्टी वार्टी करो और मामला खतम करो ।”

सीनियर्स ने भी सहमति दिखा दी । सारे जूनियर ख़ुश पर शनिवार का नाम सुनते ही शिव की हालत ख़राब हो गयी । उसके पास तो शालिनी का नम्बर भी नहीं कि उसे बता दे कि वो नहीं आ पाएगा । बचे २ दिन उसके लिए दिक़्क़त भरे होने वाले थे । 

कहानी २ कदम बढ़कर ३ कदम पीछे जाती दिख रही थी !!

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

इस मोड़ से जाते हैं ( इश्क वाली कहानी , भाग ५ )

 इश्क और रोग मे बहुत समानताएं होती हैं । रोग के लक्षण साफ दिखने पर भी तसल्ली के लिए मेडिकल टेस्ट होना बहुत जरूरी होता है । उसी तरह इश्क मे भी जब तक “हाँ” वाला स्पष्टीकरण नया मिल जाए , मामला लटका ही रहता है ,  फिर चाहे “सिग्नल” साफ मिल रहे हों ।

मसलन , शिव और शालिनी की नजरें मिल चुकी थीं । शालिनी मुस्कुरा भी चुकी थी । पर शिव को अभी भी ये सब “महज एक इत्तेफाक” वाली फीलिंग ही देता था ।

अब शालिनी की तरफ की बात जान लेते हैं । शिव उसे अच्छा लगने लगा था और शिव को बीते दो बार मिलने के बाद हद से ज्यादा नर्वस देखा था तो शक यकीन मे बदलना तो चाहता था , पर फिर वही इकरार होने तक इनकार हो जाने की संभावना थी । इसीलिए उसने पढ़ने का बहाना  भी बनाया था पर वहाँ पर अंग्रेजी बीच मे आ गई थी । वैसे उसे खास फरक पड़ता नहीं पर शिव की मम्मी के सामने दुबारा जाने की हिम्मत भी नहीं हुई । कई बार छत के चक्कर लगाए पर शिव को देखते ही वो वहाँ से हट जाती ।

बस उस शाम ऐसा नहीं हुआ था ।  उसके बाद बहुत कुछ बदल गया था । ये वो उम्र थी जब इश्क मे इंसान खोया खोया रहता है । सबसे बड़ी बात ये होती है की आपको लगता है कि  आपके खोए होने का इल्म किसी को नहीं होगा , पर आप ये भूल चुके होते हैं की आपसे बड़ा हर इंसान इस उम्र से गुज़रा होता है । हाँ,  इश्क होना या नया होना , ये जरूरी नहीं । शालिनी की मम्मी को सब समझ आ चुका था पर वो कुछ कहती नहीं थीं । वर्मा जी को भी सुगबुगाहट हो चली थी । इसमें तड़का इस बात का भी लगा था की शालिनी की डायरी उनके हत्थे चढ़ गई थी । वैसे तो साहित्यिक आदमी थे पर ये कविताएं थोड़ा चुभ सी रहीं थीं ।

“थोड़ा पढ़ाई पर ध्यान दो” ये हिदायत देकर मामले को रफादफा किया गया था ।

शिव और शालिनी के घर आमने सामने थे और उनके अपने कमरे भी । पर कोई खिड़की या दरवाजा होने की बजाय , एक रोशनदान आमने सामने था । ज़माना इतना आगे भी नहीं था कि  प्रीतम आन मिलो की तर्ज पर इशारे हो पाएं । धीरे धीरे एक सिग्नल फिट  बैठ गया था : कमरे की लाइट । जिसके जलने -बुझने को “मिस्ड कॉल” “गुड नाइट” की मान्यता प्राप्त थी ।

ये सिलसिला बोर्ड के इग्ज़ैम तक चला । शिव इम्प्रेशन ठीक करने की फिराक मे ठीक ठाक नंबर ले आया । इश्क ने झटका दिया शालिनी को ( हाँ , कभी कभी ऐसा भी हो जाता है ) । रवि इन दोनों से बेहतर नंबर लाया था और वर्मा जी उस पर काफी खुश थे । भले ही कन्फर्म ना हो , पर आपकी “पॉसिबल” गर्लफ्रेंड के पिता आपके दोस्त पर लट्टू हो जाएँ , तो दिल दुखेगा ही । रवि ने पहले ही अपनी सफाई शिव को दे दी थी पर शिव बेचैन था ( आदतन ) ।

शालिनी ने अपने मीडीअम को बदलकर हिन्दी करने का प्रस्ताव रखा  था जो मान  लिया गया था । इसके दो फायदे हुए थे , एक तो नंबर कम आने का ठीकरा अंग्रेजी पर फोड़ दिया था और दूसरा अब कुछ ट्यूशन शिव के साथ होने की संभावना बन चुकी थी । इस बात की खुशी थी जिसे फिलहाल छुपाकर रखा  गया था ।

कुल मिलकर एक तनाव था माहौल मे , जिसमें  सबसे ज्यादा मजे शेखू के हो रखे थे । वो सबके मजे ले रहा था । वो अकेला था जो हर घर मे जाता था । सबकी खबर उसे थी ।

धीरे धीरे नए क्लास की ट्यूशन शुरू हो गयीं  । शिव और शालिनी की सिर्फ एक ट्यूशन साथ थी : रसायन विज्ञान । पर वो ना  तो साथ आते ना  साथ जाते । वहाँ भी बात होने का कोई जुगाड़ नहीं । अलग अलग सीटें थीं , लड़के और लड़कियों की । सारा कम्यूनिकेशन सिर्फ कमरे की लाइट से होता । इस बीच रवि के जन्मदिन पर एक बार मौका था बात  करने का,  पर दोनों उस मौके को चूक गए थे । इस सबमे दो साल कब निकले पता ही नहीं चल पाया । इग्ज़ैम भी हो गए फिर से  । शालिनी,  रवि और शिव ने प्रतियोगी परीक्षाएं भी दे दीं  । शालिनी का मेडिकल मे और रवि का इंजीनियरिंग मे हो भी गया । शालिनी दिल्ली चली गई और रवि बैंगलोर । और बचे रह गए , शिव और शेखू । शिव अभी भी तैयारी मे लगा था । शालिनी साल मे दो-तीन बार आई पर अब शिव उससे कटने सा लगा था ।

इस बीच शेखू ने भी 12 वीं पास कर ली और शहर के ही कालेज मे भर्ती हो लिया । शिव इस साल भी अपने पसंद के कालेज नहीं पा पाया और उसने एक साल और तैयारी करने का सोचा । और अब वो शेखू से भी नहीं मिलता ।

मोहल्ले मे वैसे तो कुछ नहीं बदला था क्यूंकी शरारतों की नई पीढ़ी आ चुकी थी । पर शिव को सब कुछ काटने को दौड़ता । घर मे सब उसे इन्करेज ही करते थे । पर वो कहीं दूर जाना चाहता था , पर दूर जाने की कोई वजह नहीं मिल रही थी । इश्क (जो ना तो कन्फर्म था और फिलहाल बचता भी दिख नहीं रहा था ) ने अजीब सी नाव की सवारी कर ली थी , जो किसी भी ओर बहने को तैयार नहीं थी ।

कहानी ठहर गई थी ।

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

दो चार कदम पे तुम थे , दो चार कदम पे हम थे ( इश्क़ वाली कहानी भाग -४ )

 "अबे इतना काहे परेशान हो रहे हो " रवि ने सवाल किया ,  जिसका जवाब ऐसा लग रहा था की शिव के पास  या तो था नहीं या वो देना नहीं चाहता था।  

दरसल हुआ यूं था कि शालिनी जब शिव से मिलने आयी थी , तो उसने तमाम इधर उधर की बातें किये बिना , ये बताया था कि उसे "गणित" में कुछ दिक्कत है और वो शिव से "पाइथागोरस" समझना चाहती है। वैसे तो शिव के लिए ये ज्यादा मुश्किल काम नहीं था और रवि भी था जो उसे मदद कर  सकता था। पर दिल धकाधक किये जा रहा था और दिमाग कुछ समझने में असफल था।  खुद ज्यादा कन्फ्यूज़ न हो जाए इसलिए शेखू को इस बारे में कुछ बताया नहीं था।  

"यार , उसके सामने भूल गया तो ?" पिछले इम्प्रैशन के ख़राब होने की वजह से शिव पर परफॉरमेंस का प्रेशर साफ दिखाई दे रहा था। 

"हो जायेगा बे, कब आ रही है ? " रवि  ने पूछा।  

"कल सुबह" शिव बोले।  

"चुपके चुपके देखी  है ना , वसुधा को पढ़ाने  के लिए बच्चन क्या क्या नहीं करते " रवि ने समझाया।  

"तो" 

"तो ठीक है ना , आज रात घोंट जाओ सब , कल जीवन का सबसे बड़ा वाइवा है तुम्हारा, मैं चलता हूँ , ज़रूरत हो  तो बुला लेना "

कहकर रवि चला गया। 

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अब कहानी की मुख्य ( अब तक की ) नायिका के बारे में जान लेते हैं। 

आकाश वर्मा को हमेशा लगता था की वो आर्मी  के लिए ही बने हैं।  अकेले में  खुद के नाम के आगे कैप्टेन लगाकर चौड़े होते रहते।  दो बार आर्मी का एग्जाम दिया , कभी रिटेन तो कभी फिजिकल में बाहर हो गए। फिर  घर की और समस्याओं   को हल करने की जुगत में आगे की आगे की पढाई पूरी की ।  बच्चों को ट्यूशन तो पढ़ाना  कॉलेज  में ही शुरू  कर दिया था , कालेज से निकलकर एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया , वहीँ से करते करते शहर के कालेज में पहले टेम्पररी और   फिर परमानेण्ट हो गए।  इस बीच शादी भी हो गयी , संध्या से और एक बेटी भी हुई - शालिनी । माली हालत हिली हुई थी   पर तब संध्या ने  घर को संभाला।  क्लासिकल संगीत  की पढ़ाई की थी  , वही बच्चों को सिखाने लगीं।    धीरे धीरे  समय बीता।  आकाश भी  नौकरी में अच्छा करने लगे।  इस सब के  बीच जिस एक चीज़ से समझौता नहीं किया वो था शालिनी की परवरिश । 

शालिनी अकेली बेटी थी तो बहुत ही प्रोटेक्टेड से माहौल में पली-बढ़ी। ज्यादा सहेलियां नहीं थीं और जो  थीं भी वो वर्मा जी के डर  से नदारद रहतीं।  डर  ज्यादा ये था की वो खुद किताब लेकर बैठ जाते।  

अब अगर हमारे सो कॉल्ड "नायक" लोग जवान हो रहे थे तो नायिका भी उसी ओर  बढ़ रही थी।  वर्मा जी साहित्यिक आदमी थे वो गुण  बेटी में भी आये।  और जब से दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे में काजोल की "अनदेखा अंजाना " कविता सुनी थी तो कविता भी लिखने लग पड़ीं थी।  मसलन :

तुम जिस रोज़ इन नज़रों के सामने से गुजरोगे , 

सांसे चलने का बस रिवाज़ निभ रहा होगा उस पल । 

मुझे बचाने भर को ही सही , तुम ठहर जाना , 

कुछ लम्हों के लिए , पल भर के लिए।  

 पर ये सब डायरी में ही था और डायरी को उतनी सुरक्षा दी गयी थी जिसको  कोई भी आर्मी वाला ना भेद पाए। 

नए घर में आने तक वो "अनदेखा अंजाना" मिला नहीं था।  नए घर में सफाई करते वक़्त काफी हद तक बची रह गयीं "ममता कुलकर्णी" को देखकर ये अंदाज़ा लग गया था की घर में घुसपैठ हुई है।  घुसपैठियों की उम्र और हरकतों का भी आईडिया था , और संभावित चेहरे भी दिख ही रहे थे।  

शिव के घर से आने के बाद वर्मा जी का पारा चढ़ा हुआ था।  कारण बता नहीं रहे थे पर सब साफ़ साफ़ समझ आ रहा था।  इस लिए शिव चर्चा का विषय बहुत देर तक बना रहा।  

हाँ , गणित में घर में सबका हाथ तंग था।  डरते डरते , शालिनी ने संध्या से पूछा कि  क्या वो शिव से मिलकर कुछ पढ़ सकती है।  इस हिदायत के साथ की पापा के सामने नहीं जाओगी और आंटी के सामने बैठ के पढ़ोगी ,आज्ञा मिल गयी।  

******

तय वक़्त पर नायक - नायिका बैठक में इकठ्ठा हुए।  शिव की मम्मी वही थीं।  किताबें खुलीं और शिव ने धड़धड़ाते हुए बोला:

"कर्ण  पर बने वर्ग का क्षेत्रफल , लम्ब और आधार पर  बने वर्गों के क्षेत्रफलों  के योग के बराबर होता है"

ख़ामोशी छा गयी।  शालिनी ने एकदम  कंफ्यूज नज़रों से देखा उसे और बोली : मुझे कुछ समझ नहीं आया , अंग्रेजी में बता सकते हो , मैं इंग्लिश मीडियम से हूँ। 

एक पल में पाइथगोरस ने एस्केप वेलोसिटी  पकड़ ली।   आँखों के सामने घनघोर अँधेरा था।  इस सिचुएशन में अंग्रेज़ों और खासकर लार्ड मैकाले की मदर-सिस्टर को याद किया जा सकता था पर सारा गणित विज्ञान धरा रह गया था।  

"कोई बात नहीं , खुद से ट्राई करती हूँ , कुछ होगा तो पूछ लूंगी  " कहकर वो शिव की मम्मी से बात करने लगी।  शिव थोड़ी देर तो वहां बैठा फिर कुछ काम का बहाना बनाकर चला  गया  . कुछ देर में शालिनी भी चली गयी। 

******

"मतलब प्यार के बीच में हिंदी-अंग्रेजी  आ गयी " शेखु ने  पूछा।  

लगातार दो इम्प्रैशन खराब होने से शिव सदमे में था।  कुछ समझ नहीं आ रहा था।  शेखु ने इस बात पर उसको छेड़ने में  कसर नहीं छोड़ी थी।  कई दिन बीते।  शालिनी पल भर को दिखती और काफूर हो जाती।  हफ्ते दस दिन गुज़रे होंगे।  जो "ऑब्वियस्ली" सालों  जैसे लग रहे थे शिव को। 

*****

शाम एकदम वैसी थी जैसी  होनी चाहिए।  छोटे शहरों की शाम जैसी होती है वैसी।  सड़क का शोर थोड़ा दूर होता है , हर घर से खाने की महक आ रही होती है।  कहीं टीवी चल रहा होता है तो कहीं गाने।  शिव अपनी छत पर खड़ा था और नज़रें जहाँ होनी चाहिए थीं वहीँ थीं , मतलब शालिनी के घर की छत के जीने के दरवाज़े पर।  अक्सर उसे लगता था की इससे शालिनी निकलकर उसे देखेगी और फिर ये भी उसे देखेंगे और फिर दोनों एक दूसरे को देखेंगे।  और इस बीच कोई और उन्हें नहीं देखेगा।  ये सब चल ही रहा था दिमाग में की दरवाज़ा खुला।  और इस बात से बेखबर कि  कोई नज़र उस ओर ही है , अपनी डायरी लेकर शालिनी छत पर आयी।  

शिव इससे पहले की कहीं और देखता , शालिनी ने उसे देख लिया।  एक पल के लिए नज़रें मिलीं।  शिव को लगा ये नज़रों के कनेक्शन का सर्किट टूटेगा।  पर ऐसा हुआ नहीं।  कनेक्शन  मिनट भर चल गया होगा।  

और शालिनी  मुस्कुरा दी।  तीसरा इम्प्रैशन ठीक चल गया था।  और नायक सांसे चलते रहने भर रुक भी गया था।  

*****

अब हैडलाइन को जस्टिफाई कर देते हैं।  ये बहुत सिंपल है।  दोनों छतों के बीच की दूरी कुछ मीटर  होगी जिसे २-४ कदम की दूरी माना जा सकता है।  और सिचुएशन को फ़िल्मी बनाने के लिए मान सकते हैं की रवि अपने रिकॉर्डर पर गाना बजा रहा  है : 

दो चार कदम पे तुम थे , दो चार कदम पे हम थे। 

दो चार कदम ये लेकिन सौ मीलों से क्या काम थे। 

माधुरी दीक्षित का क्लास अलग है।  काजोल को मानने वाली नायिका और ममता कुलकर्णी को देखने वाला नायक , माधुरी के गाने सुन रहे थे। 

कहानी अब आगे बढ़ चुकी थी !!!


सोमवार, 23 नवंबर 2020

फिर वही दीपक दूँ मैं बुझाय !!! ( इश्क़ वाली कहानी भाग - ३ )

"बेटा आपके प्लान्स क्या हैं ?" एक बेरुआबदार सा चेहरा , जिसपर मूंछें शायद उगाई  ही इसीलिए गयीं थीं कि रुआब ना सही , रुआब की एक झलक तो दिख ही जाए | 
पर शिव को कहाँ कुछ याद की उसे आगे क्या करना है , वो तो उन आँखों में खोने की कोशिश कर रहा था , जो उसके सामने थीं | इतना लम्बा इंतज़ार जो किया था , इतनी हसरतें , इतने अरमान !!!!

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तीनों को जबसे पता चला था कि पूरा परिवार घर की सफाई के बहाने घर देखने भी आ रहा है , पूरे परिवार को देखने की उन तीनों की हसरत और बढ़ गयी थी , जिसका कारण  पहले बताया जा चुका है | 

स्कूटर के रुकने की आवाज़ के साथ ही शिव और शेखू भागकर छज्जे पर पहुंचे | नीचे देखा | हेलमेट लगाए , एक अंकल टाइप आदमी ड्राइवर की सीट पर विराजमान थे | और पीछे की सीट पर जो था वो ना तो उनकी पत्नी और ना ही बेटी लग रहा था | शेखू  पहचान गया कि ये तो वही है जो दूकान से पेंट का सामान ले गया | स्कूटर चालक ने जिस रुतबे से सामने वाले घर का ताला खोला , उससे उनके मालिक होने का शक , यकीन में तब्दील हो गया | 

मतलब "वो" अभी भी नही आयी | शिव उदास हुआ जो उसका बनता था पर शेखू दनदनाता हुआ नीचे गया , और पीछे रिक्शे पर आये सामान को उतरवाने लगा | शिव ये ऊपर से देख रहा था | जब शेखू की पीठ सामने वाले घर के मालिक ने थपथपाई , शिव को उस मैच में हार जाने की फीलिंग आ गयी जो अभी शुरू भी नहीं हुआ था | 

वो अपने कमरे में जाकर बैठ गया , थोड़ी देर में शेखू  भी आ गया | 

"ये क्या था ?" शिव ने उखड़ते हुए पूछा। 

"कुछ नहीं , होने वाली भाभी के पिताजी  को पटा रहे थे" एकदम बेपरवाही सा जवाब देते हुए शेखू आगे बोला : 

"तुम्हे क्या लगा ? तुम्हारा पत्ता काट दूंगा , नहीं बे ,  कह दिया वो तेरी सेटिंग है , तेरी ही रहेगी "

"देखा तो है नहीं अभी तक"  शिव ने अपना दुखड़ा रोया।  

"अच्छा ,  देखा है नहीं और  मुझे उसके पापा से मिलने से  भी रोक रहे हो ,   सही है बे तुम्हारा।  खैर ये बताओ शाम की महफ़िल में रवि आ रहा है या नहीं " . शेखू ने वीडियो गेम  टटोलते हुए पूछा।  

"आता होगा, तुम बैठो मैं कुछ खाने  का लेकर आता हूँ " कहकर  शिव नीचे गया और वापस खाने और रवि दोनों के साथ आया।  थोड़ी देर और गप्पें चलीं।   रवि और शेखू गेम में लगे थे और बीच  बीच में शिव की टांग खिंचाई चालू थी।  

ये सब में कब शाम हो गयी , पता ही नहीं चला।  शेखू को घर वापस आने का  फरमान हो गया था वो चला गया ।  रवि कुछ देर और रुकने वाला था। शाम को अक्सर लोग शिव पापा से  मिलने आते थे , वो  ऊपर ही रहता ।  उस दिन भी इसी सबका दौर चल रहा था कि  अचानक से उसकी मम्मी ने नीचे आने को कहा।  वो ऐसे ही चला गया।  कमरे में वही स्कूटर चालक बैठे थे जिनका सामने वाला घर है (ये हमारे  नायकों ने  दोपहर  में सिद्ध कर लिया था)।  इस बार पूरे परिवार  साथ आये थे।  

"ये है शिव और ये हैं वर्मा जी , सामने के घर में रहेंगे।  ये सुधा आंटी और ये उनकी बेटी शालिनी। " शिव की मम्मी ने एक सांस में परिचय करवा दिया और फिर अपनी बातों में लग गयीं।  बातों के दौरान डायलॉग क्या साझा हुए , उस पर ना जाते हुए , उनका सारांश समझ लेते हैं।  

वर्मा जी का बड़ा मन था की वो सेना में जाएँ , पर जा ना सके।  वहीँ कालेज में प्रोफेसरी  कर ली।  पर मूछें रखकर रोआब लाने की कोशिश करते रहे ( ऐसा कहा नहीं गया , कुछ तो नायक खुद भी  समझदार है ही )  । धर्मपत्नी जी का पैशन संगीत था , भारतीय क्लासिकल।  तो उसमें पढ़ाई की थी और अब बच्चों को संगीत सिखाती हैं।  

पर ये सब जब बताया जा रहा था , शिव कहीं और खोया हुआ था।  और वो कहाँ खोया था , ये किसी को बताने की ज़रुरत नहीं हैं।  एक संगीतकार जो सबसे बेहतरीन धुन बना सकता है ,सुधा आंटी की यकीनन वो धुन शालिनी थी।  चेहरे पर  आकर्षण था।  चश्मा लगा रखा था पर उसका काला रिम आँखों की  सुंदरता बढ़ा रहा था।  

"हाय शिव" की आवाज़ से वो तंद्रा टूटी जो सिर्फ शिव ही समझ सकता था।  शालिनी ने उसे हाय बोला था पर उसका जवाब क्या दिया जाए ,  उसे समझ नहीं आ रहा था। 

"शालिनी भी नाइंथ में ही है शिव" शिव के मन में विचारों ( अरमानों पढ़ें)  के ज्वार-भाटे  को बिना समझे शिव की मम्मी ने बताया।  शिव की आवाज़ अभी भी  कमरे को अंजान  ही थी।  

शिव  मन  में जो सोच रहा था उससे उसकी उम्र का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।  पर वर्मा जी ने चिर परिचित सवाल  दाग दिया "बेटा  आपके प्लान्स क्या हैं"

शिव  के दिमाग में जो प्लान्स थे अगर वो डिटेल में बता देता तो शायद वर्मा जी आज ही घर बदलने पर  सोचना शुरू कर देते। इसलिए अपनी भावनाओं को लगाम लगाते हुए शिव ने जवाब दिया :

"अंकल इंजिनियर बनने का मन है"  शिव ने जवाब भले अंकल को दिया था पर नज़रें पूरी उनकी तरफ जा नहीं पाईं थीं। 

"शालिनी तो डॉक्टर बनना  चाहती है" अंकल की आवाज़ में बदले की भावना टाइप सुगंध आयी शिव को।  मुरझा गया। 

"पर टेंथ तक तो दोनों के सब्जेक्ट सेम रहेंगे" शिव के पिता जी ने जबरदस्त समर्थन जैसा माहौल दिया शिव  को।   वापस जान आ गयी।  

उसके बाद जो बातें वहां हुईं , उसमें शिव को कुछ  सुनाई नहीं दिया या शायद सुनना भी नहीं चाहा।  उसकी नज़रें बार बार शालिनी पर जा रही थीं और इस हरकत ने माहौल  को अटपटा बना दिया था।  कुछ देर बाद  शिव ने  वापस अपने कमरे   में  जाकर  शेखू को आवाज़ लगाई।  रवि अभी भी वहीं था , इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गयी।  घटना का सविस्तार वर्णन किया गया।  सर्वसम्मति से ये मान लिया गया कि  इम्प्रैशन का कचरा हो गया है,  अब भगवान् के भरोसे है  आगे की  गाड़ी।  

शिव उदास था।  इस उदासी में किसे ध्यान रहता है कि उसके वीडियो गेम पर अब पूरा कब्ज़ा शेखू और रवि का हो चुका था और गलती से कभी कभी उसे खेलने का जो मौका मिल जाता था , वो पिछले तीन दिनों से नहीं आया था।  इस बीच वर्मा जी घर में शिफ्ट हो गए थे।  छत पर टकटकी लगाए शिव के मन में लाइन्स गूंजती थीं हर शाम :

शाम ही से, प्रेम दीपक मैं जलाऊं , फिर वही दीपक , दूँ मैं बुझाय ,
कि मीत ना मिला रे मन का !!!

शाम को दीपक मुरझा कर सो जाता था।  अगले कई दिनों तक हालात ऐसे ही रहे।  फिर एक दिन  शिव को आवाज़ लगाकर नीचे आने को बोला मम्मी ने । 

नीचे आकर उसके पैरों से ज़मीन लगभग खिसक सी गयी । इस बार शालिनी उसी से मिलने आयी थी ..... 

( कहानी तो अब शुरू होगी ) ....  

रविवार, 21 जून 2020

जीरे के मुँह में ऊँट

थोड़ा हॉलीवुड , थोड़ा उसमें प्रॉपगैंडा मिलाकर एक फ़िल्म का माल मसौदा तैयार किया गया  प्लान ये था रही सही कसर कोंट्रोवरसी के तड़के से पूरी कर लेंगे  producer को झाँसा दिया गया की चिंता नक्को , ऐसी जगह शूट करेंगे की शूटिंग का खर्चा बिलकुल कम  
पर बड़े सितारे होंगे , बजट बढ़ जाएगा
ना ना , जो ज़्यादा बड़े सितारे हैं उनको एक producer बना देंगे , जो थोड़े कम बड़े हैं , उनका मेकप ऐसा कर देंगे कि पता ही ना चले की यही  हैं या कोई और , चार सीन कराएँगे , बाक़ी बॉडी डबल से
हंगामा हो जाएगा , फ़िल्म फँसेगी
हाँ , फ़्री में कोंट्रोवरसी मिलेगी

पूरी स्कीम समझा के तबेले में शूटिंग शुरू हुई  ऐक्टर्ज़ को बोल दिया गया फ़िल्म में रीऐलिटी टच के लिए डायलोग लिखे नहीं गए हैं , सीन में आप होते तो कैसे बोलते , बस बोलते जाओ  

और नाच-गाना
अरे नहीं , intellectual पिच्चर है , गाने ना रखकर पब्लिक को बताएँगे , बनाए थे पर थीम से नहीं जुड़ रहे तो हटा दिए , भाव बढ़ेगा “

फ़िल्म रेडी हुई  बनायी ही कम थी , ज़्यादा एडिट नहीं करनी पड़ी  फ़र्स्ट कट दिखाया गया  

Producer को काटो तो खून नहीं  रो पड़ा  क्या है ये , इसे तो कोई देखेगा नहीं  

Director मुसकिया दिए  दो नाम लेकर आवाज़ दिए  एक मोटा कुर्ता और बेतरतीबी से उजाड़े गए बालों के साथ झोला धारी अधेड़उम्र के साथ एक गॉगल-टीशर्ट-लैप्टॉप धारी कूल डूड का प्रवेश  दोनों दिग और दिगंत टाइप 

ये कौन - Producer  पूछे 

कुर्ताधारी की ओर देखते हुए director बोले  ये सीन समीक्षक हैं 

सीन समीक्षक , फ़िल्म समीक्षक सुने थे , ये कौन बला ?”

अरे आप समझे नहीं  ये इक्का दुक्का सीन की ऐसी समीक्षा लिखेंगे और इतने ऐंगल से लिखेंगे की आप सोच में पड़ जाओगे की येपिच्चर में है भी क्या ?

ये करेंगे कैसे ये ? Producer फिर पूछे  

डिप्रेशन और डूअल पर्सनालिटी डिसॉर्डर दोनों है इन्हें , तीन ऐंगल तो यही हो गए , डिप्रेशन वाला उच्च्कोटि का रिव्यू माना जाएगा “ 

और फ़ीस - प्रडूसर पूछे 

अरे बिलकुल नहीं  इनके साथ पढ़ने वाले लोग ..”

Producer चौंके - ये पढ़ रहे हैं अभी भी ???

Director बोले - हाँ , अभी तो पढ़ाई का दूसरा साल ही है , अभी तो PHD बाक़ी हैवो छोड़िये , इनके साथी बराती कोई ना कोई मोर्चाखोले बैठे होंगे किसी मुद्दे पर  कोई मुद्दा नहीं होगा तो कोई मुद्दा क्यूँ नहीं है , यही मुद्दा हो जाएगा  बस हमें उसमें अपनी स्टारकास्ट  को भेजना होगा 

Producer दूसरे नमूने की तरफ़ देखते हुए बोले - जे कौन??

ये ऑनलाइन सब मामला देखेंगे  इसके साथी इंटर्व्यू कर लेंगे  फ़ीस थोड़ी है पर बजट में मैनिज हो जाएगी 

ओके  producer बोले 

दोनों काम पर लग गए 

तभी एक कमनीय काया वाली बाला और एक छरहरे बदन वाले बदन वाले लड़के का प्रवेश  

अब ये कौन - producer बोले 

अरे फ़िल्म में दो चार सीन डालना है की नहीं

ज़रूरत है , नायिका को स्ट्रोंग इंडिपेंडेंट दिखाना है तो उसको थोड़ा अड्वान्स दिखाना पड़ेगा , तो ये सीन डाले जाएँगे “

स्कोप है

एक दो का है , बाक़ी जब सेंसर के पास जाएगा तो वो काटेंगे , तो थोड़ा और बवाल मचेगा “

वो सीन भी सूट होकर घुसेड़ दिए गए पिच्चर में 

फ़िल्म बन्ने से पहले ही रिव्यू देखकर producer भौचक्के रह गए  ऑनलाइन टीज़र , प्रीव्यू की बाढ़  चारों तरफ़ बवाल  दो चार वैसेवाले सीन भी ट्रेलर का हिस्सा  और धमाका 

सेंसर बोर्ड ने थोड़ी आँख दिखायी  और बवाल  

फिर मटर पनीर को खाने के मेनू में ना केवल शामिल करने बल्कि दुबारा माँगने पर मना ना करने को लेकर स्टूडेंट union के मोर्चे मेंफ़िल्म  हीरो चले गए  दर भयंकर बवाल  

Producer ने सांकेतिक मटर पनीर दावत दे दी 

अंततः फ़िल्म रिलीज़ हुई  समझ तो किसी को नहीं आयी  कुछ को बोल दिया गया की एक बार में नहीं आएगी , दुबारा देखो  वोदेख आए  

कुछ को बोला गया की कल्ट क्लासिक है , समझने की कोशिश करो  वो समझ गए 

जिन्होंने कूड़ा कहा , उन्हें टेस्टलेस कह दिया गया  

इन सब बवाल में दो हफ़्ते निकले  पिक्चर के पैसे निकाल लिए गए  दो चार अवार्ड जुगाड़ लिए गए और फ़िल्म के TV राइट्स बेचकर मुनाफ़ा  कमा लिया गया 

जैसे उनके दिन बहुरे , वैसे सबके दिन बहुरें !!!

नोट : फ़िल्म में गाली गलौज नहीं है पर साला कोई परस्नलि नहीं लेगा !!