शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

नखलऊ


इस वीकेंड हमें थोड़े काम से घर जाना पड़ा |  घर पड़ता है लखीमपुर-खीरी में | दिल्ली से वहाँ जाना एकदम आसान नहीं है |


एक तो छोटी लाइन है वहाँ पर, मीटर गेज़ बोलते हैं जिसे | तो कोई कनेक्टिविटी भी नहीं मिलती | या तो बरेली होकर जाओ (हाँ वही जहाँ काफी पहले झुमका गिरने वाली घटना हुई थी ) या फिर लखनऊ होकर जाओ (मुस्कुराइए की आप लखनऊ में हैं, वही वाला लखनऊ) |  मम्मी जी कानपुर से आ रही थी तो हम लखनऊ वाले रूट से निकले लखीमपुर के लिए |


लखनऊ मेल , दिल्ली-लखनऊ के लिए सबसे शानदार ट्रेन्स में से एक है, हम भी वही पकड़े | ट्रेन एक दम ठीक टाइम पर ५ मिनट की देरी से स्टार्ट हो गयी | हम भी अपनी सीट पे चौड़े होकर लेट गए |


अपना रिज़र्वेशन कन्फर्म हो तो आर-ए-सी वालों के देखकर बड़ा सुकून मिलता है |  खाना खाने के बाद नींद आयी तो हमने उन्ही तरसती निगाहों वाले “आर-ए-सी” और “वेटिंग" टिकट वालों की तरफ अंगडाई लेते हुए कहा “ज़ोरों की नींद आ रही है सोया जाये" और लुढ़क गए अपनी अपर बर्थ पर |


नींद खुली तो पाया कि हम पूरे डिब्बे में अकेले हैं, सोते सोते लखनऊ आ गया | सुबह का अर्ली मार्निंग साढ़े ६ बज रहा था | ट्रेन से बाहर आये, एक कप चाय गटके और वेटिंग रूम की तरफ निकल लिए | मम्मी को अभी लखनऊ पहुँचाने में कुछ टाइम था |


वेटिंग रूम , मोबाइल चार्जिंग रूम बना पड़ा था | मानो करेंट की गंगा बह रही है, सब अपने अपने हिस्से का रसास्वादन कर रहे हैं, बड़ी तल्लीनता से | कुछ अपने पात्र लिए खड़े हैं कि कब मैया कि किरपा हो जाये | कटोरा अपना भी खाली ही था, हम भी भक्तों में शामिल हो गए |


वहीं वेटिंग रूम में एक सज्जन मिल गए, बंगाल प्रांत से थे, इलाज़ के सिलसिले में लखनऊ आये थे | हमसे बोले:
“आप यहाँ का लोकाल है?”  (६ महीने कोलकाता रहे इसलिए समझ गए आसानी से)
“नहीं, पर बताइए कि क्या पता करना है, शायद हेल्प कर सकूं"
“हमको आलमबाग जाना है, ऑटो कहाँ से मिलेगी”
“बाहर निकलिएगा और जो ऑटो लेफ्ट को जा रहे , सब आलमबाग जा रहे होंगे"


हमको लगा हमने किसी की तो हेल्प की | पर जल्दी ही उनका अगला सवाल आ गया |
“ये लाखनाऊ कैसा स्टेशोन है ?”
हमने घूर के उनकी तरफ देखा, पर इससे पहले कि हम कुछ बोले वे ही बोल दिए “ मतलब की हावड़ा जैसा है कि उससे खराब"


अब मैं ये सोच रहा था कि या तो हावड़ा अपने आप में कोई रेफेरेंस पॉइंट है जिसके बारे में सारा हिंदुस्तान जानता है, या मेरे चेहरे पर लिखा है कि मैं हावड़ा जा चुका हूँ |
“हावड़ा जैसा बड़ा तो नहीं है, हाँ पर ठीक है” हमने जवाब से मामला सुलटाने की कोशिश की |
“खाने को मिलता है इधर, भात?? हावड़ा में २५ रुपये में भेजिटेबल और ३५ रुपये में फीश देता है, इधर देता है क्या??”

मैंने मन में सोचा की बोल दूं कि भाई ये यूपी है, यहाँ बता देंगे कि सब्जी महंगी है इसलिए ५० रुपये, और चूंकि मछली नहीं है इस लिए साठ रुपये दाम है एक प्लेट का | पर हमने वहाँ से कट लेना बेहतर समझा |


चारबाग स्टेशन से बहार निकले  तो रिक्शे वाले ने ६० रुपये मांग लिए  ऐशबाग जाने के लिए,  क्यूंकि छोटी लाइन की गाड़ियाँ चारबाग से न जाकर  ऐशबाग से जाती हैं  | हमने अपनी व्यवहार कुशलता और बार्गेनिंग पावर दिखाई और बोले ५० रुपये लो, रोज का आना जाना है हमारा | रिक्शे वाले ने घूर के देखा कि सारी दुनिया में ऐशबाग से चारबाग के "डेली" चक्कर लगाने के आलावा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है क्या?? वो मान गया | पर माताश्री अड़ गयीं की १५ रुपये लगते हैं | मामला २० रुपये में सुलटा | फिर हमें दिव्यज्ञान मिल गया, ४० रुपये मेरे ट्राली बैग के थे | माताश्री ने बोला  "एक फटहा झोला साथ लिए होते तो १५ में भी आ जाते" | सब श्रद्धा की बात है | बेढब बनारसी याद आ गए “यहाँ कपड़ा कम पहनो तो जजमान और न पहनो तो देवता बन जाओ" |


ऐशबाग पहुंचकर चिल्लर की दरकार हुई, माताश्री उसी के अरेंजमेंट और टिकेट लेने के लिए निकली तो हमारी नज़र सड़क किनारे बैठे , एक बाबा पर गयी | उनका कहना था कि वो भविष्य बता देते हैं | खुले आम, सरे-स्टेशन| सबका भविष्य बता रहे थे, फीस मात्र २० रुपये | ब्रह्मा-विष्णु-महेश कि सत्ता को चैलेंजिया रहे थे | हमने सोचा चलो भविष्य के बारे में पूंछा जाये, फिर लगा कि मेहनत रिक्शेवाले ने ज्यादा की है | माताश्री ने उसे २० रुपये देकर मामला रफादफा किया |


ऐशबाग स्टेशन १९४० के किसी भी स्टेशन की याद दिला दे P20-08-12_10.47(कृपया इस सेंटेंस से हमारी उम्र का आइडिया न लगाईयेगा, कुछ राज़ पिछले जनम के भी होते हैं) | रेलवे को काफी मशक्कत करनी पड़ी होगी इसे मेंटेन करने में | हाँ एक वाटर कूलर लगा हुआ था , उसकी पॉवर का कनेक्शन कटिया डाल के किया हुआ लग रहा था | हमने फोटो खैंच ली |


चहास लगी तो प्लेटफोर्म पर ही चाय की दुकान से चाय ली | चाय में ऐसा लग रहा था कि कुछ कण तैर रहे हैं | पूछने पर पता चला दूध के कण है | पीने पर उल्टी हो जाने की संभावना दिखी | ऐसा बहुत कम ही होता है पर हमने चाय फेंक दी |


रेलवे इन्क्वायरी से बढ़िया इन्फोर्मेशन चाय वालों के पास होती है ट्रेन्स की आवक-जावक के बारे में | टाइम टेबल कह रहा था कि हमारी ट्रेन १०:५५ पर जायेगी, चाय वाले का कहना था कि ११ बजे जायेगी |

ट्रेन चली तो घड़ी ११ ही बजा रही थी | छोटी लाइन की ट्रेन में बैठना भी आसान नहीं है, एक निश्चित आवृत्ति पर आपको हिलते रहना पड़ता है इससे ट्रेन के साथ आप कदम से कदम मिलाते दिखते हैं |


अपने एरिया में आजकल सलमान भाई की “एक था टाइगर" ने बवाल मचाया हुआ है | और जो एक स्पेशल टाइप का चेक वाला गमछा उन्होंने लपेटा है न गले में , हर दूसरा वही गमछा उसी इश्टाइल में लपेटे दिख रहा है |

एक लड़के को वो गमछा नहीं मिल पाया, उसने वैसा ही रुमाल बाँध के रसम अदा कर ली | उसी ने चिल्लाकर पूंछा “ या टिरेन नखलऊ से आय रही है कि नखलऊवार जाय रही है” | हमने इंज़न की तरफ इशारा करके दिखाया और इनडायरेक्टली कहा कि खुद समझ जाओ | बस ऐसे ही कैरेक्टर्स के साथ लखीमपुर तक का रस्ता कटा | इन कैरेक्टर्स की कहानी फिर कभी !!!

घर पहुंचे तो पुरानी यादें जालों की तरह हर तरह हर तरफ फैली हुई थी | उनमे से कुछ, जो कूड़ा बन चुकी थीं, हमने साफ़ की और अगले २४ घंटे वहाँ रहने के लिए जो कुछ भी ज़रूरी था जुगाड़ कर लिया |
--देवांशु

18 टिप्‍पणियां:

  1. "NAKHLAU " PADHTE HI HUM SAMAJH GAYE KI AAP HAMARE "DEAREST LAKHNAU (LUCKNOW)" KI BAAT KAR RAHE HAIN ...BADA ROCHAK PRASANG HAI ..."NAKHLAU " PADH KAR (KAHASTAUR PAR STATION AUR JAGAHON KE NAAM )HAMAREE BHI KAI SAARI YAADEIN TAZA HO GAYI :) ...VAKAI "NAKHLAU" SE JYADA APANAPAN AB TAK RAHE HUE KISI AUR SHAHAR ME NAHIN DIKHA ..

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  2. :-) meri daadi bhi nakhlau hee kehti thi ... aur wo bhi badi nazakat ke saath

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    1. तहजीब का शहर "लखनऊ".. वो बात अलग है कि अबा वहाँ मूर्तियां ही हैं बस :)

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  3. बहुत दि बाद कोई पोस्ट बांची जिसको बांचकर आनन्दित हुये। भगवान तुम्हारा भला करे और कालजयी कविताओं के कुटेव स बचाये। :)
    जय हो! इकबाल बुलंद रहे।

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    1. अब वापस आ गए हैं, कुछ दिन के लिए कविताओं से दूरी रखेंगे :)

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  4. दि को दिन तो अपने आपई बांच लिये होगे। :)
    स को से भी समझना। :) :)

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  5. हाय नखलऊ! हमारा बचपन उन्नाव में बीता है, इसलिए लखनऊ से पुराना नाता है. ये बात एकदम नयी पता चली कि लखीमपुर खीरी में अभी छोटी लाइन की ट्रेन चलती है. हमने तो सोचा कि ये पूरे देश में बंद हो गयी है. बताओं स्टेशन मासटर की बिटिया होके इत्ता नहीं मालूम.
    संस्मरण बढ़िया है. मेरी एक पोस्ट पढ़ना 'नखलऊवा'
    http://draradhana.wordpress.com/2010/09/28/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%8A%E0%A4%B5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE/

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    1. हमारे यहाँ मीटर गेज़ बंद होने में सदियों लगेंगे :)

      "नखलऊआ" तो पढ़ के मजा आ गया :)

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  6. एक बार पंकज बाबू से ऐसी यात्रा पर बात हुई थी :)
    हमहूँ ऐसे आये गए हैं बहुत. लग रहा है अमेरिका से लौटे हो :-P

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    1. ई साला फिरंगी लोग, इंडिया आते ही ईसई टाइप की पोस्ट लिखता है :)

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  7. त्रेवेलोग हो तो अपने देवांशु भाई की तरह -डूब डूब उतार उतरा कर पढ़ते भये .....बेढब से लेकर बाबा तक ...
    का महराज यहीं बगलिये में ही थे आ गए होते लखनऊ ...तनिक मनसायन हो जाता

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    1. अरे सर हम एक हफ्ते पहले आये थे, पोस्ट लिख भी लिए, पोस्ट करने में अलसिया गए :)

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  8. स्टेशन मास्टर तो कहि रहे है लेकिन हमका नहीं लगत हिया क्रास हुहिये ....

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