पिछले दिनों घर जाना हुआ | एक शाम पंकज के पापा घर पर मिलने आये | उनसे बात करते करते पता चला कि अगले दिन वो अपने गाँव जाने का प्रोग्राम बना चुके हैं | पंकज और हमारा गाँव भी एक ही है | हमने भी जाने का प्रोग्राम बना लिया | भाई को भी तैयार कर लिए |
अगले दिन का पहला टास्क था, बाइक की सफाई | पापा के जाने के बाद से वो कमरे में पड़ी धूल खाती रहती है | झाड़-पोंछ के रेडी की गयी | काम भर का पेट्रोल भी डाला गया जिससे पेट्रोल पम्प तक पहुंचा जा सके | फिर बाइक के कागज़ ढूंढें गए जिससे कोई लफड़ा-लोचा हो तो निपटा जा सके | आजकल गुस्सा काफी आने लगा है सो एक दो बार चिल्लाये भी सबपर कि कोई भी सामान ठीक से नहीं रखता है | स्टेटमेंट की रेंज में हम भी आते थे तो सबने सारी जिम्मेदारी हमपर भी डाली और हमारा गुस्सा अपने आप शांत हो गया |
फिर हेलमेट पहन के एक दम तैनात हो गए | छोटे भाई ने पीछे की सीट का कार्यभार संभाल लिया | घर से निकलते ही फोटू खिचवाये | हेलमेट पहनकर और बाइक पर बैठकर | उसके बाद आगे बढे |
जब यात्रा शुरू हुई तो पहला पड़ाव था , पेट्रोल पम्प | जाकर पेट्रोल भरवाया गया | थोड़ी दूर गाड़ी चली तो “कड़-कड़" की आवाज़ के साथ बंद हो गयी | तब पता चला कि इंजन-आयल भी खतम हो गया है | अगले पेट्रोल पम्प तक कोई तरह पहुंचे फिर इंजन-आयल भी डलवाया | फिर थोड़ी बहुत परेशानी देते हुए चलती ही रही बाइक |
मेरा शहर , उत्तर-प्रदेश के तराई एरिया में आता है , जिसे गांजर भी कहते हैं | इसका कारण वो तमाम छोटी-छोटी नदियाँ हैं, जो वहाँ पर जाल की तरह फैली हुई हैं | दो मुख्य नदियाँ घाघरा और शारदा हैं |साथ में गोमती और सरयू नदी भी हैं | घाघरा नेपाल से बह कर आती है | शारदा नदी का उद्गम पूर्णागिरी की पहाड़ियों में हैं | उस अंचल में पूर्णागिरी माता की महत्ता वैष्णों देवी जैसी ही है | बचपन में एक बार वहाँ भी जाने का मौका मिला है | बड़ी अच्छी जगह है | घाघरा नदी का बहाव बहुत तेज है और शारदा नदी से वो थोड़ा ऊँचाई पर बहती है | लखीमपुर के बाहर निकलने के थोड़ी दूर पर ही ( शायद बहराइच जिले में) ये दोनों नदियाँ मिल जाती हैं | इस वजह से घाघरा का ढलान वाला बहाव है और वो बहुत तबाही मचाती है | तबाही मचाने के मामले में शारदा नदी घाघरा से भी आगे है | छोटे भाई ने बताया कि उत्तर-प्रदेश में शारदा नदी सबसे ज्यादा तबाही मचाती है | लखीमपुर जिला इसकी बहुत मार झेलता है | शारदा की कई सहायक नदियाँ भी है जिसमे कंडवा और उल्ल नदी प्रमुख हैं | इन नदियों के बारे में ज्यादा कुछ मिलता नहीं | उल्ल नदी का एक घाट मेरे घर से १ किमी की दूरी पर ही है |
इन्ही नदियों के पास कई सारे छोटे-बड़े मंदिर भी हैं | जिसमे से एक “लिलौटीनाथ” बहुत प्रसिद्द हैं | ये उल्ल नदी के तट पर बना है | एक किवदंती के अनुसार अमर योद्धा “आल्हा" और “ऊदल" आजकल इसी क्षेत्र में रहते हैं , छुपकर | बरसात के मौसम में यहाँ आल्हा भी गाया जाता है | आल्हा “जगनिक" के द्वारा लिखा गया एक आदिकालीन काव्य “आल्ह-खंड" के हिस्से हैं | यहाँ इसे ढोलक की थाप पर गया जाता है | एक हिस्सा जो मुझे याद है :
अगले दिन का पहला टास्क था, बाइक की सफाई | पापा के जाने के बाद से वो कमरे में पड़ी धूल खाती रहती है | झाड़-पोंछ के रेडी की गयी | काम भर का पेट्रोल भी डाला गया जिससे पेट्रोल पम्प तक पहुंचा जा सके | फिर बाइक के कागज़ ढूंढें गए जिससे कोई लफड़ा-लोचा हो तो निपटा जा सके | आजकल गुस्सा काफी आने लगा है सो एक दो बार चिल्लाये भी सबपर कि कोई भी सामान ठीक से नहीं रखता है | स्टेटमेंट की रेंज में हम भी आते थे तो सबने सारी जिम्मेदारी हमपर भी डाली और हमारा गुस्सा अपने आप शांत हो गया |
फिर हेलमेट पहन के एक दम तैनात हो गए | छोटे भाई ने पीछे की सीट का कार्यभार संभाल लिया | घर से निकलते ही फोटू खिचवाये | हेलमेट पहनकर और बाइक पर बैठकर | उसके बाद आगे बढे |
जब यात्रा शुरू हुई तो पहला पड़ाव था , पेट्रोल पम्प | जाकर पेट्रोल भरवाया गया | थोड़ी दूर गाड़ी चली तो “कड़-कड़" की आवाज़ के साथ बंद हो गयी | तब पता चला कि इंजन-आयल भी खतम हो गया है | अगले पेट्रोल पम्प तक कोई तरह पहुंचे फिर इंजन-आयल भी डलवाया | फिर थोड़ी बहुत परेशानी देते हुए चलती ही रही बाइक |
मेरा शहर , उत्तर-प्रदेश के तराई एरिया में आता है , जिसे गांजर भी कहते हैं | इसका कारण वो तमाम छोटी-छोटी नदियाँ हैं, जो वहाँ पर जाल की तरह फैली हुई हैं | दो मुख्य नदियाँ घाघरा और शारदा हैं |साथ में गोमती और सरयू नदी भी हैं | घाघरा नेपाल से बह कर आती है | शारदा नदी का उद्गम पूर्णागिरी की पहाड़ियों में हैं | उस अंचल में पूर्णागिरी माता की महत्ता वैष्णों देवी जैसी ही है | बचपन में एक बार वहाँ भी जाने का मौका मिला है | बड़ी अच्छी जगह है | घाघरा नदी का बहाव बहुत तेज है और शारदा नदी से वो थोड़ा ऊँचाई पर बहती है | लखीमपुर के बाहर निकलने के थोड़ी दूर पर ही ( शायद बहराइच जिले में) ये दोनों नदियाँ मिल जाती हैं | इस वजह से घाघरा का ढलान वाला बहाव है और वो बहुत तबाही मचाती है | तबाही मचाने के मामले में शारदा नदी घाघरा से भी आगे है | छोटे भाई ने बताया कि उत्तर-प्रदेश में शारदा नदी सबसे ज्यादा तबाही मचाती है | लखीमपुर जिला इसकी बहुत मार झेलता है | शारदा की कई सहायक नदियाँ भी है जिसमे कंडवा और उल्ल नदी प्रमुख हैं | इन नदियों के बारे में ज्यादा कुछ मिलता नहीं | उल्ल नदी का एक घाट मेरे घर से १ किमी की दूरी पर ही है |
इन्ही नदियों के पास कई सारे छोटे-बड़े मंदिर भी हैं | जिसमे से एक “लिलौटीनाथ” बहुत प्रसिद्द हैं | ये उल्ल नदी के तट पर बना है | एक किवदंती के अनुसार अमर योद्धा “आल्हा" और “ऊदल" आजकल इसी क्षेत्र में रहते हैं , छुपकर | बरसात के मौसम में यहाँ आल्हा भी गाया जाता है | आल्हा “जगनिक" के द्वारा लिखा गया एक आदिकालीन काव्य “आल्ह-खंड" के हिस्से हैं | यहाँ इसे ढोलक की थाप पर गया जाता है | एक हिस्सा जो मुझे याद है :
जाकर बिटिया क्यारही देखीं, ताघर जाय धरें तलवार | औ नौ मन सेंदुर गर्दा ह्वैगा, तब चुटकी भर चढा लिलार |
संगीत की जानकारी बहुत तो नहीं है पर फिल्म “मंगल पांडे” का गीत “मंगल-मंगल" की धुन भी कुछ-कुछ इसी तरह की लगती है मुझे | बचपन में एक कहानी ये भी सुनी थी कि लिलौटीनाथ के दर्शन किसी भी समय करने जाओ, वहाँ पर हमेशा ताज़े फूल ही चढ़े मिलते हैं | पर इस तरह कि किवदंतियां लगभग हर जगह से सुनने को मिलती हैं |
पंकज के पापा भी शारदा नदी के किनारे बने एक मंदिर बाबा गुप्तिनाथ के यहाँ यज्ञ में जा रहे थे | “गुप्तिनाथ" शंकर जी हैं और एक पीपल के पेड़ की जड़ में निवास करते हैं | गुप्त तरीके से | इसीलिए उनका ये नाम है | एक केले के पेड़ की नाली बनाकर बाबा पर जल चढ़ाया जाता है | आसपास के लोगो में इनकी काफी महत्ता है | मंदिर तो हालांकि काफी पुराना है पर उसकी एक इंटरेस्टिंग बात वहाँ के कुछ लोगो ने हमें बताई:
दो साल पहले शारदा में बहुत भयंकर बाढ़ आयी थी | कई गाँव बह गए थे | बढ़ते बढ़ते नदी मंदिर की तरफ भी आ गयी थी | मंदिर के पास एक दुमंजिला धर्मशाला भी बना हुआ था | नदी का पानी उसके चारों ओर भर गया और वो ज़मीन के अंदर धंस गयी | उसका कोइ नाम-ओ-निशान नहीं दिखता वहाँ पर | पर नदी जब मंदिर की ओर बढ़ी तो बस मंदिर को छू कर वापस लौट गयी | मानो बाबा के पैर छूने आई हो और वापस लौट गयी हो |तबसे मंदिर की बहुत महत्ता बढ़ गयी |
किसी की धार्मिक भावना को ठेस न पहुचाते हुए और किसी भगवान का अनादर ना करते हुए , एरिया के आस-पास देखने से मुझे ऐसा लगा कि नदी के पानी के वापस लौटने का एक कारण उस पीपल के पेड़ की जड़ें भी रही होंगी जिसकी वजह से ज़मीन का कटान रुक गया होगा | भगवान के साथ-साथ पीपल की पूजा भी की ही जाती है |आजकल नदी में पानी कम है | करीब डेढ़ किमी पीछे खिसक गयी है | उसकी एक छोटी सी धारा वहाँ से बहती है आजकल , इसे वहाँ “सुतिया" बोलते हैं | वहीँ चाय-नाश्ता किया गया | बाद में भंडारा हुआ तो खाना भी खाया | मंदिर की, पेड़ की , पत्तियों की फोटू भी ली | सुतिया की भी फोटो ली गयी थोड़ी दूर से |
मंदिर पर लोग मन्नतें माँगते हैं | पूरी हो जाने पर घंटी बाँध जाते हैं | हमने भी कुछ मांग लिया | बताएँगे नहीं अभी की क्या माँगा , क्यूंकि ऐसा करने से माना किया जाता है | पूरी हो गयी तो घंटी बांधने जायेंगे तो इस पोस्ट का पार्ट-२ लिखा जायेगा |
उसके बाद हम अपने गाँव की ओर चल दिए |
हमारा गाँव शारदा नदी के किनारे बसा हुआ है | काफी समय तक तो ज़मीन नदी के अंदर ही थी | कुछ सालों पहले नदी ने दिशा बदली तो ज़मीन बाहर आयी है | तब से खेती होती है | मुख्य रूप से गन्ना ( शुगर-केन) और गेंहू की खेती होती है | हमारे खेत में गन्ना बोया गया था , जो काटा जा चुका है | मिल को भेजा जा चुका है | मिल मालिकों ने अभी भुगतान नहीं किया है | पड़ोस के खेत में गेंहू बोया गया है | खेत गाँव से कुछ २ किमी की दूरी पर था | रास्ता बालू से भरा हुआ था | सुतिया भी पड़ती है | तो हमें खेत ले गए पापा के दोस्त “देशराज" , अपनी बाइक पर | हम तो अपनी से ना जा पाते | पता नहीं इतने एक जैसे दिखते खेतों के बीच वो अपने खेत को कैसे पहचान पाये | पड़ोस के खेत से एक गेंहू की बाली तोड़ी और हाथ पर रगड़ कर उससे गेंहू के दाने निकाले | दाने बहुत पतले थे | वो सूखकर और पतले हो जायेंगे | इस प्रकार इस बार इस बार गेंहू की फसल के अच्छा ना होने की बात भी बताई उन्होंने |
गन्ने का एक पेड़ दो बार फसल देता है | दूसरी बार फसल काटने के बाद खेतों में आग लगा दी जाती है , फिर एक साल के लिए खेत बेकार हो जाता है | गन्ने के पौधों को पानी भी बहुत चाहिए होता है | १० दिन में पानी लगाना होता है | घंटों लग जाते हैं पानी देने में | पर ज़रा सी लापरवाही से हुई पानी लगाने में देरी पूरी फसल चौपट कर देती है | पिछले साल गर्मी बहुत पड़ी थी | करीब ७-१० बार पानी लगाना पड़ा था किसानों को अपने खेतों में |
ये सब पता कर हम अपने गाँव वापस आ गए | तब तक पंकज के पापा भी गाँव के कई लोगो से मिलकर वापस आ गए थे | दोपहर के ढाई बज रहे थे | ५ बजे हमारी भी ट्रेन थी तो फटाफट वहाँ से निकला गया | एक घंटे के अंदर घर भी वापस पहुँच गए | रास्ते में पेड़ों की छाँव ने गर्मी से हमें बचाए रखा | कुछ और फोटो नीचे हैं :
इस फोटो में वही सुतिया है | अपने टाइम पर तो ना जाने कितनो को बहा ले जाती है | आजकल औकात थोड़ी कम है | इसे बाइक से या पैदल भी पार किया जा सकता है | ये दूसरी फोटो में छोटे भाई साहब हेलमेट के साथ फोटो खिचवा रहे हैं | पीछे है नदी का वो हिस्सा जिसने दो साल पहले तबाही मचाई थी | और भी कई फोटो लिए गए | घर पहुँच के पता चला कि ना तो हमने अपना कोई फोटो लिया रस्ते में लिया और ना ही अंकल ( पंकज के पापा) का | कुछ और भी चीज़ें पार्ट-२ के लिए छोड़ देते हैं |
तो बस ऐसे ही बीत गयी ये फटाफट वाली यात्रा , फिर गए तो फिर बताएँगे | तब तक खुश रहिये आबाद रहिये , चाहे गुडगाँव रहिये या इलाहाबाद रहिये !!!! ( ये लास्ट वाली लाइन पंकज के लिए )
नमस्ते !!!!!
--देवांशु
Badhiya... Bhagwaan tumhari manokamna puri kare.. post k dusre part me humari bhi photu chhape (Jaisa ki vaada h ki agli yatra me hum bhi sath rahenge)
जवाब देंहटाएं:)
आमीन !!!! :) :) :)
हटाएंबाकी त सब ठीक है लेकिन कुछ सवाल है:
जवाब देंहटाएं१. देवांशु बाबू को गुस्सा क्यों आता है?
२.पंकज बाबू को इलाहाबाद हमेशा के लिये भेजने की साजिश है क्या?
३.अगर मंशा पूरी ही करनी है तो घंटी एडवांस में काहे नहीं बांध देते?
सवाल और हैं लेकिन वो पार्ट टू के लिये छोड़ दिये।
१. गुस्से के बारे में भी पार्ट-२ में लिखेंगे :)
हटाएं२. नहीं , भेजने की तैयारी नहीं है | बस आप हमें अपने "विश्वस्त-सूत्रों" में से एक समझिये :) :)
३. एडवांस में घंटी बंधवाने का फैशन नहीं है अपने यहाँ , प्रूफ रहता है की इतनी मन्नतें पूरी हो गयी :) :) :)
कुछ और बातें काबिले गौर हैं-
जवाब देंहटाएं- ज्यादातर गाँव के मंदिरों के बारे में ऐसी ही कोई चमत्कारिक कहानी होती है, हालाँकि उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण भी होता होगा.
- मनोकामना के बारे में हम नहीं पूछेंगे क्योंकि समझदार को इशारा ही काफी है, और इतने समझदार तो हम हैं ही :P
- सबसे अहम् बात फटाफट वाली यात्रा में अपने फोटो रह जाते हैं. ध्यान रखना चाहिए :).
बाकी सब बढ़िया है, पार्ट टू का इंतज़ार है.:)
जल्दी ही आयेगी पार्ट - २ !!!!
हटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन दिल दा मामला है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंगाँव की बात ही निराली हैं ...बहुत बढ़िया तस्वीर और प्रस्तुति ....आप गांजर के हैं ..यह जानकर बहुत अच्छा लगा ...मतलब आप हमारे गाँव के पास के हैं ..मेरी चाची सासू माँ भी गांजर की हैं .....
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