तुम्हारा नाम ज्योति था , पर हमारे यहाँ तुम निर्भया ही हो । वही रहोगी । तुम्हे ज़बरदस्ती शहीद बनाकर पूजनीय बनाकर अपना पल्ला झाड़ लिया गया है । ये चलता है अपने यहाँ । देखती हो ना उस बिना बाल के चश्मा लगाए ईमानदारी की प्रतिमूर्ति को , हर ऑफिस की दीवारों से लेकर नोट पर उसकी फोटो है और उन्ही फोटो के नीचे उन्ही नोटों के साथ हम ईमानदारी की मैय्यत निकाल देते हैं । हम सुधरने वाले नहीं है । तुम दिल्ली में मारी गयी , हल्ला हो भी गया । ना जाने कितनी और कहाँ मारी जाती होंगी , किसी के कान में जूं ना रेंगती होगी ।
तुम्हारे नाम को लेकर १५ तो सुझाव दिए गए । तुम्हारे माता-पिता में वो साहस है कि उन्होंने तुम्हारा नाम बता दिया । तुमको मारने वाले का नाम हम आजतक गेस करते हैं , हम उस हद तक कायर हैं ।
तुम्हारी मौत पर सबने खूब रोटियां सेंकी थी । इंडिया गेट पर जम के बवाल कटा था । जनता, पत्रकार , नेता सब । जो धरने पर बैठ गए थे वो एक बेसिरपैर की बहस लेकर दूसरे से जवाब मांग रहे हैं । दूसरे जिनपर कानून बनाने का ज़िम्मा है , पहले के सवालों को खारिज कर रहे हैं । तुर्रा ये कि लोकसभा में तो हमने पास कर दिया राज्यसभा में बहुमत नहीं है । किसानों की ज़मीने लेने के लिए आर्डिनेंस ला सकते हैं । तुम्हारे लिए नहीं । सरकार कहीं स्वच्छंद ना हो जाए इसलिए राजयसभा में उसे अल्पमत में रहना लोकतंत्र के लिए अच्छा बताने वाले लोग ही मोमबत्ती लिए जुलूस निकाल रहे थे ।
और उस हंगामे की कवरेज करने वाला मीडिया जो घड़ों आंसू बहाये पड़ा था , किन किन बकवास पर घंटे घंटे डिबेट चला रहा है , तुम्हारे लिए १५ मिनट का बस एक स्लॉट है । उसी में खुश रहो । कल तक थर्मामीटर लिए जगह जगह सहिष्णुता - असहिष्णुता नापने वाला यही मीडिया , पुरस्कार लौटाने वाले बुद्धिजीवी , उनका विरोध करने वाले देशभक्त सबके सरोकार आज बदले हैं । आज देशभक्ति सिर्फ किसी फिल्म का विरोध करने पर निकल रही है । बुद्धिजीविता सरकार को कोसने में । तुम्हारे लिए सबके मुंह पर ताले हैं । तुम अब TRP नहीं रहीं ना । तुम्हारे ऊपर बनी एक डॉक्यूमेंट्री को तुम्हारी खबर से ज्यादा तवज्जो दी जाती रहेगी ।
और हम "दबी-कुचली" होने का सुख लेने वाली जनता जो ये कहकर हर बात पर मट्ठा दाल देते हैं कि हम कर ही क्या सकते हैं , आज ५-७ मिनट आह ओह करेंगे । और लग जायेंगे तेरे नेता की शर्ट मुझसे ज्यादा काली है करने । और तुम बस बैठी देखना ।
कल १९ है । तीसरी जमात वाले कल कोर्ट जाने वाले हैं । सुबह होते ही तुम भुला दी जाओगी । देख लेना ।
तुम मरने लायक ही हो ।
तुम्हारे नाम को लेकर १५ तो सुझाव दिए गए । तुम्हारे माता-पिता में वो साहस है कि उन्होंने तुम्हारा नाम बता दिया । तुमको मारने वाले का नाम हम आजतक गेस करते हैं , हम उस हद तक कायर हैं ।
तुम्हारी मौत पर सबने खूब रोटियां सेंकी थी । इंडिया गेट पर जम के बवाल कटा था । जनता, पत्रकार , नेता सब । जो धरने पर बैठ गए थे वो एक बेसिरपैर की बहस लेकर दूसरे से जवाब मांग रहे हैं । दूसरे जिनपर कानून बनाने का ज़िम्मा है , पहले के सवालों को खारिज कर रहे हैं । तुर्रा ये कि लोकसभा में तो हमने पास कर दिया राज्यसभा में बहुमत नहीं है । किसानों की ज़मीने लेने के लिए आर्डिनेंस ला सकते हैं । तुम्हारे लिए नहीं । सरकार कहीं स्वच्छंद ना हो जाए इसलिए राजयसभा में उसे अल्पमत में रहना लोकतंत्र के लिए अच्छा बताने वाले लोग ही मोमबत्ती लिए जुलूस निकाल रहे थे ।
और उस हंगामे की कवरेज करने वाला मीडिया जो घड़ों आंसू बहाये पड़ा था , किन किन बकवास पर घंटे घंटे डिबेट चला रहा है , तुम्हारे लिए १५ मिनट का बस एक स्लॉट है । उसी में खुश रहो । कल तक थर्मामीटर लिए जगह जगह सहिष्णुता - असहिष्णुता नापने वाला यही मीडिया , पुरस्कार लौटाने वाले बुद्धिजीवी , उनका विरोध करने वाले देशभक्त सबके सरोकार आज बदले हैं । आज देशभक्ति सिर्फ किसी फिल्म का विरोध करने पर निकल रही है । बुद्धिजीविता सरकार को कोसने में । तुम्हारे लिए सबके मुंह पर ताले हैं । तुम अब TRP नहीं रहीं ना । तुम्हारे ऊपर बनी एक डॉक्यूमेंट्री को तुम्हारी खबर से ज्यादा तवज्जो दी जाती रहेगी ।
और हम "दबी-कुचली" होने का सुख लेने वाली जनता जो ये कहकर हर बात पर मट्ठा दाल देते हैं कि हम कर ही क्या सकते हैं , आज ५-७ मिनट आह ओह करेंगे । और लग जायेंगे तेरे नेता की शर्ट मुझसे ज्यादा काली है करने । और तुम बस बैठी देखना ।
कल १९ है । तीसरी जमात वाले कल कोर्ट जाने वाले हैं । सुबह होते ही तुम भुला दी जाओगी । देख लेना ।
तुम मरने लायक ही हो ।
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