सोमवार, 16 जनवरी 2017

बाकी बहुत कुछ रहता है !!!

बस का सफर मुझे पसंद नहीं था , और रात का तो बिलकुल भी पसंद नहीं । पर नौकरी वाले शहर पहुँचने को अक्सर वही एक ज़रिया बचता । खासकर त्योहारों पर क्योंकि आखिरी वक़्त तक मालूम ना होता की कब जाना है और कब आना है । जब कभी स्लीपर बस मिल जाती तो देर रात तक कुछ पढता रहता और फिर सो जाता , सुबह ८ बजे बस ठहरती आखिरी मंजिल पर , बस वही अपनी मंजिल भी होती ।

उस रोज़ भी बस का वेट कर रहा था । साथ हमेशा की तरह केवल बैग-पैक था । दीवाली के बाद की हलकी ठण्ड थी । बस ठीक वक़्त पर आयी थी और मैं चढ़ कर सीट पर बैग रख दरवाज़े तक वापस आया था पानी लेने । सामने एक कार आकर रुकी  , कार से अपनी बाहों में एक छोटे से बच्चे को लिए एक औरत को उतरते देखा जो बस की तरफ ही आ गयी थी । 

उस चेहरे से पहचान पुरानी थी । मैं नीचे उतर गया और बच्चे को अपने हाथ  लेकर उसे बस पर चढ़ने में मदद की  । मैं उसके लिए भी पानी लेकर वापस आया  । मेरे सामने वाली बर्थ उसी की थी । बच्चा ,जो पहले से सो रहा था उसने उसे लिटा दिया था । मैंने पानी दिया तो बोली :

"थैंक्स , अच्छा हुआ तुम मिल गए , ये इस बार नहीं आ पाए और मुझे वापस भी अकेले जाना पड़ रहा है"

मैंने मुस्कुरा के जवाब दिया "कोई ज़रुरत हो तो बोल देना मैं सामने की  बर्थ पर ही हूँ" ।  मैं कुछ और बोलना चाहता भी नहीं था । अपनी बर्थ पर लेट गया । बस अभी चली नहीं थी । 

"आज चाय नहीं पिलाओगे क्या ?" उसने नीचे से खड़े खड़े ही पूछा । वो सामान लगा रही थी बर्थ पर । 

"तुम्हे पीनी हो तो ला देता हूँ ?"

"तुम नहीं पियोगे क्या ?"

"नहीं , मैं चाय नहीं पीता"

"कबसे " उसने पूछा । मैंने जवाब नहीं दिया और जाकर उसके लिए चाय ले आया । नीचे की बैठने वाली सीटों पर अभी  कोई आया नहीं था । दोनों वहीँ बैठ गए । बात उसी ने फिर से शुरू की । 

"सोचा नहीं था तुमसे यूँ मिलना होगा कभी "

"मैंने भी नहीं"

"इतना फॉर्मल होकर बात करनी है तो रहने दो"वो बोली । 

मैं लगातार बाहर देखे जा रहा था । 

"इनफॉर्मल ज्यादा कुछ है नहीं बात करने को" मैंने जवाब दिया । 

"हम्म , पुरानी बातों को इतना भी क्या दिल से लगाना , तुम भी जानते हो जो होना था वो चुका " 

"कुछ बातों को नहीं भूला जा सकता चाहे वो कितनी भी पुरानी  क्यों ना हो जाएँ । खासकर वो जब आपको पता हो की आप बहुत कुछ होने से रोक सकते थे " मैं इसबार अंदर देख रहा था , पर उसकी ओर  नहीं । 

"कुछ चीज़ें हो जाती हैं क्योंकि उन्हें होना होता है , बाद में उनके बारे में सोचने का कोई फायदा नहीं , भूल जाओ सब"

"सब भूल सकता हूँ पर अपनी वो गलती नहीं भूल सकता , शायद उस वक़्त मुझे इतना कमज़ोर नहीं पड़ना था" पहली बार उसकी ओर देखा । उसकी आँखों में नमी ज़रूर थी । 

"छोड़ो , जाने भी दो ये सब । ताली एक हाँथ से बजती नहीं, यही मान लो । शायद थोड़ा रिलैक्स फील करो । १५ मिनट हुए हैं और एक पल के लिए भी तुम वो नहीं दिख रहे जो हुआ करते थे । " वो बोली । 

"मैं , शायद अब वैसा कभी नहीं बन सकता" । 

"बन जाओगे , वक़्त सब ठीक कर देता है " । चाय का कुल्हड़ उसने मुझे बाहर फेंकने को दिया और बोली "चलो अब मैं सो जाती हूँ , तुम भी सो जाओ "

"सुनो" मैंने कहा । 

"हाँ , बोलो " । 

"विल यू एवर बी एबल टू फॉरगिव मी " मैंने पूछा ।

"तुमसे नाराज़ रहने की भी ज्यादा कोई वजह भी तो नहीं रहती , एक चाय के तो हम कर्ज़दार भी हो गए " । कहकर वो बात जान बूझकर अधूरी छोड़ सोने चली गयी । 

मुझे पूरी रात नींद नहीं आयी । सवेरे जब बस रुकी तो उसके हस्बैंड ने उन्हें आकर रिसीव किया । उसने हमारी पहचान भी कराई , एक पुराना दोस्त बताकर । बच्चा जाग गया था और अपने पेरेंट्स के साथ खुश था । इनफैक्ट तीनों बहुत खुश थे । 

वो थोड़ी देर रुके और "कभी घर आना" कहके चले गए । 


****

हमेशा सोचता था की कभी ज़िन्दगी की किताब दुबारा पलटी तो उसके नाम से सराबोर पन्ने पर आकर रुकुंगा । मेरा सबसे चहेता पन्ना होगा वो । गुज़रे एक बहुत बड़े वक़्त तक वो पन्ना टीस ही देता रहा । पर उस रोज़ उसे अपनी  ज़िन्दगी में यूँ खुश देखकर ना जाने क्या हुआ । मैं उस पन्ने पर फिर से रुकने लगा था क्योंकि किसी के ज़िन्दगी में ना होने के गम से कई गुना बड़ी ख़ुशी वो एक लम्हा रखता है जो उसके साथ गुज़रा होता है । 

बड़ा सेंटिमेंटल लगेगा पर वाकई में मैंने चाय पीनी फिर शुरू कर दी थी । 

****

( एक दोस्त ने करीबन दो साल पहले अपनी ये आपबीती सुनाई थी , मुझे कुछ समझाते हुए । सोच रहा हूँ की हर चीज को डिटेल में पूछने की आदत होने के बावज़ूद मैंने ये नहीं पूछा था कि आप दोनों मिल क्यों नहीं पाए । वजह शायद ज़रूरी नहीं रहती हमेशा । प्यार की दास्ताँ भी तो बस दो लफ़्ज़ों की होती है "मिल गए" या "नहीं मिले" । इसके इतर कुछ नहीं, इसके अलावा भी कुछ नहीं । )

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन और ओपी नैय्यर में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  2. प्यार भरे पलों को भूल जाना आसां नहीं किसी के लिए भी ./..

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  3. बीच बीच में लिखते रहा करो. और दोस्तों से मिलते भी रहा करो. बाकी तो जो है सो है ही :)

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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