याद है सत्ते पे सत्ता का वो सीन जिसमे अमिताभ बच्चन “दारू पीने से साला लीवर खराब हो जाता है" कहते सुने जाते हैं | सीन में उनके साथ अमज़द खान भी हैं |
दर-असल अपनी हिंदी फिल्मों में इस तरह के सीन पुरुषों के खाते में ही आते रहे हैं | पर कुछ दिनों पहले रिलीज़ हुई “विकी डोनर - लाखों में एक” में इस तरह का एक सीन गया है दो महिला किरदारों के खाते में | जहाँ आमतौर पर सास -बहु लड़ते झगड़ते दिखाई देती हैं , यहाँ साथ में बैठ के “ड्रिंक" कर रही हैं | बहु प्यार से पेग बना रही है | सास पी रही है | बहु भी पी रही है | अपने दुःख दर्द बाँट रही हैं दोनों | पर ये भी एहसास है कि कल जब दोनों की "उतर" जायेगी तो फिर लड़ाई शुरू होगी |
पिछले कुछ सालों में दिल्ली कई फिल्मों में दिखी है | “ओए लकी, लकी ओए", “लव आजकल",“दो दूनी चार", “प्यार का पंचनामा", ”राकस्टार" जैसी कई फ़िल्में दिल्ली और आसपास के इलाकों के इर्द-गिर्द बुनी गयी हैं | “विकी डोनर" भी उसी श्रृंखला में आती है | दिल्ली का वो कल्चर जिसमें “पंजाबी" तड़का लगा होता है, इन सभी फिल्मों में देखा जा सकता है | खासकर दिल्ली की शादियों में कार की डिक्की में रखकर दारू की बोतलें खोलना
तो हाँ , ऊपर जिस सीन की बात कर रहा था, वो विकी (आयुष्मान) की दादी (कमलेश गिल) और माँ (डॉली अहलुवालिया) पर फिल्माया गया है | दोनों पंजाबी वाली अंग्रेजी में बात कर रही हैं | हॉल में तालियाँ बज रही हैं हर डायलोग पे | तभी मेरे रूम-मेट , जो बंगाल से आते हैं (यहाँ पर बंगाल पे ध्यान देना ज़रूरी है), मेरे कान में एक पुराने लतीफे का सार सुना देते हैं “सबसे ज्यादा अंग्रेजी पंजाब में रात ८ बजे के बाद बोली जाती है” | सभी हंस रहे हैं , हम भी हंसते हैं |
पर ये बंगाली-पंजाबी लड़ाई थोड़ी देर में परदे पर दिखती है | अरे नहीं नहीं, कोई खून खराबा टाइप नहीं है | एक दम मस्त, बिंदास | हीरो यानी विकी ,पंजाबी है जबकी हिरोइन यानी आशिमा (यामी गौतम) बंगाली हैं | दोनों दिल्ली में रहते हैं | विकी “स्पर्म डोनर" है और आशिमा “बैंकर" है | दोनों में प्यार हो जाता है | शादी को लेकर दो राज्यों को लेकर लड़ाई के जो सीन लिखे गए हैं, उसमे आप पेट पकड़ पकड़ के हंसोगे , पक्का | विकी आशिमा को “फिश" बोलता है तो आशिमा विकी को “बटर चिकन" |
“एमटीवी रोडीज़" से आये चंडीगढ़ के आयुष्मान, वाकई में एक दिल्ली वाले लड़के लगे हैं | और चंडीगढ़ से ही आयी यामी, एक दम बंगाली बाला | आयुष्मान ने बढ़िया अभिनय किया है | बातों से नहले पे दहला मारता हुआ, एकदम दिल्ली का लड़का | अगर एक सीन को छोड़ दें , जिसमे नायिका नायक से नाराज़ होती है, तो यामी ने भी बढ़िया एक्टिंग करी है | बस एक उसी सीन में वो चीखती हुई ज्यादा नज़र आयी मुझे |
फिल्म का सबसे असर-दार कैरेक्टर हैं अन्नू कपूर, जिन्होंने डॉ. चड्ढा का रोल प्ले किया है | वे एक मंझे हुए कलाकार हैं, और वो साफ़ झलकता है | फिल्म की बैक-बोन हैं डॉ. चड्ढा | विकी उन्ही की क्लिनिक में स्पर्म डोनेट करता है | कई जगह तो अन्नू कपूर ने अपनी भाव भंगिमा और डायलोग डिलीवरी से सीन में हंसी का फव्वारा छोड़ दिया है | मसलन स्पर्म बोलते वक्त अपनी दो उँगलियों को हवा में लहराना | लोग हॉल में ही उसे कॉपी करने लगे थे |
फिल्म में बाकी भी कई किरदार हैं, जैसे आशिमा के पिता और बुआ, जो बोलते बोलते बंगाली शब्दों का प्रयोग करते हैं और सीन देखने लायक बन जाता है | विकी के दोस्त और रिश्तेदार भी हैं, जो जगह जगह पे अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं | पूरी फिल्म में जिसको जितना भी रोल मिला है , सभी ने तरीके से निभाया है |
तकनीकी पक्ष में, फिल्म की कहानी अच्छी है और स्क्रीनप्ले चुस्त-दुरुस्त | “स्पर्म डोनर" का सब्जेक्ट बहुत सेंसिटिव था और कहानी या स्क्रीन-प्ले में थोड़ी सी भी ढील उसे बेहद बेहूदा बना सकती थी, पर ऐसा नहीं हुआ | संगीत की खास बात ये है कि अलग से घुसेड़ा हुआ नहीं लगता | खुद आयुष्मान ने भी एक गाना गाया है | फिल्म एक भावनात्मक मोड़ पे खतम होती है, फिर भी हॉल से जॉन अब्राहम को परदे पर देखे बिना आप नहीं निकलोगे |
कुल मिला के मुझे फिल्म बढ़िया लगी | हॉल में खूब ताली बजाई, जोरजोर से हँसे | विकी, डॉ. चड्ढा , मिसेज़ खुराना , विकी की दादी और फिल्म के डायलोग के चलते फिल्म को दुबारा भी देखा जा सकता है | दुबारा देखने पर भी हंसी आने की पूरी संभावनाएं हैं |
-- देवांशु
पूरी समीक्षा नहीं पढ़ी,हाँ फिल्म की तारीफ ज़रूर सुनी है.फिल्म देखने के बाद ही इसे पढूंगा !
जवाब देंहटाएंDVD का जुगाड़ किया जाये, यहाँ तो थियेटर में आने से रही।
जवाब देंहटाएंउडती नजर से पढ़ ली है समीक्षा क्योंकि फिल्म देखनी है अभी...फिर उसके बद आकर दुबारा पढेंगे.
जवाब देंहटाएंहम भी डीवीडी के भरोसे है ... यहाँ के सिनेमा घर जाने लायक नहीं रहे ...
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - लीजिये पेश है एक फटफटिया ब्लॉग बुलेटिन
hum to do baar dekh chuke, ek baar forum aur ek baar gopalan... mast film hai... :)
जवाब देंहटाएंअच्छा है भईया अब मैं भी देखूँगा .........अभी तक नहीं देख पाया हूँ .....पढके लग रहा है की देखनी चाहिए ....
जवाब देंहटाएंआज या कल देखने जा रहा हूँ ये फिल्म :)
जवाब देंहटाएंaur jis gaane ka jikr tumne kiya hai, wo ayushmaan ne sirf gaaya hi nahin balki likha aur music bhi khud hi diya hai... he is quite a talent... :)
जवाब देंहटाएंकुल मिला के आप पिक्चर दिखा के ही छोडोगे ...
जवाब देंहटाएंचलो अब इस कमाल की समीक्षा के लिए ही सही ... देखेंगे ...
हम तो देख के आये पिछले ही अत्तवार को ए वाला सिनेमा। मजा आया। जो इधर-उधर हो गया था वो इस समीक्षा से समझ में आ गया। :)
जवाब देंहटाएंआपकी रिकमेन्डेशन है तो आज ही पता करते हैं
जवाब देंहटाएंअमां ये मंझे हुए है या मजे हुए ?