गुरुवार, 13 सितंबर 2012

एक वेल्ला दिन !!!

 आज हम काफी वेल्ले रहे, मतबल खाली रहे | नहीं ऐसी बात नहीं है कि और दिन नहीं रहते हैं, और दिन भी रहते ही हैं, बस आज कुछ ज्यादा खाली रहे | रोज कम से कम सुबह ९ से शाम ६ बजे तक “बिजी" होने का नाटक बिना अटके हुए खटाखट करते रहते हैं | उसमे हमारा “लैपटपवा” हमारी भरपूर मदद करता है | 

पर आज सुबह अचानक “लैपटॉप" साहब के मिजाज़ बिगड गए | लाईट सारी जला रहे पर दर्शन न दे रहे | हम परेशान हो लिए | तुरत-फुरत ऑफिस भागे | कम्प्लेंट डाल दिए दन्न से | फोन पर उस तरफ से आ रही बहुत ही मधुर आवाज़ में कन्या ने कहा कि सर्विस इंजीनियर आपको थोड़ी देर में काल करेंगे |

अब हम पूरे ऑफिस में खाली बैठे थे | सोच रहे थे कि का करें | ध्यान आया कि बड़े दिन हुए बंगलौर वाले अपने पुराने रूममेट से बात नहीं किये | उनको फोनिया दिए | उनकी “काइनेटिक" ने भी उन्हें सुबह सुबह धोखा दे दिया था | ऑटो से ऑफिस जा रहे थे | बहुत ज्यादा शोर के बीच में हमने कुछ बातें एक्सचेंज की | तभी सर्विस इंजिनियर का फोन आ गया | हमने अपने मित्र से कहा तुम उधर निपटो, हम इधर निपटते हैं |

सर्विस इंजीनियर ने कहा कि मय लैपटॉप हमारी डेस्क पर आ जाओ | हमने डेस्क नंबर पूछ लिया पर फ्लोर नंबर पूछना भूल गए | कॉल बैक कर नहीं सकते थे क्यूंकि “ऑफिस" के नम्बर से फोन आया था जो रिसेप्शन पर जा रहा था | हमने उन्हें सबसे पहले फर्स्ट फ्लोर पर ढूँढा | भगवान के फज़ल से वहाँ पर पता चला कि वो साहब थर्ड फ्लोर पर बैठते हैं | हम उनके पास दनदनाते पहुँच गए |

इंजिनियर साहब अपने डेस्कटॉप की स्क्रीन से चिपके हुए थे | चैट विंडो खुली हुई थी , किसी कन्या की फोटो दिख रही थी | आगे पढ़ना हमने उचित न समझा | वो मुस्कुरा मुस्कुरा कर चैटियाये जा रहे थे | कुछ ५-७ मिनट हम खड़े रहे उनके पास | फिर हम बोल दिए “एक्सक्यूज मी”| उन्होंने उसी मुस्कान के साथ हमें “एक्सक्यूज" कर दिया |  (चेहरे पर मुस्कान थी पर मन ही मन तो गरिया ही रहे होंगे )

उन्होंने कुछ देर लैपटॉप घुमा फिराकर देखा | चेहरे पर कुटिल मुस्कान चालू थी उनके | हमको लगा कि कहीं ये न कह दें कि लैपटॉप के आगे कान पकड़ के उठक बैठक लगाओ अपने आप चलने लगेगा | जैसे “पंचलाईट” में रेणु जी ने लिखा था | पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा | बोले सर्विस सेंटर वाले देखेंगे | और उन्होंने एक मेल डाल दी सर्विस सेंटर को | “चार घंटे बाद आकर टिकट नंबर ले जाना” ऐसा कह कर उन्होंने हमें विदा किया और लग गए चैटियाने -मुस्कियाने |

अब समस्या ये आ गयी कि चार घंटे क्या किया जाये | सोचा कि लोगो को फोन करके परेशान किया जाये पर ऑफिस का समय था हमने किसी को डिस्टर्ब करना उचित न समझा | 

अकेले निपटेंगे इस वेल्लेपन से” कहकर  हम  सबसे पहले “पैंट्री" गए | वहाँ थोड़ी फिसलन सी लग रही थी फर्श पर | “फैसिलिटी" को फोन करके बोले साफ़ करो आकर | और जब तक सफाई नहीं हो गयी वहीँ खड़े रहे | देख -रेख करते रहे |

फिर “टपरी" पर चाय पीने गए | चाय वाले ने देखते ही बोला “आज जल्दी आ गए ऑफिस सर" |  तब पता चला कि अपनी इमेज काफी दूर तक खराब है | दो चार और जान पहचान के लोग पहली बार चाय पीते मिल गए | एक ने सिगरेट ऑफर करते हुए बोला “डू यू स्मोक" | इससे पहले की हम कुछ बोलें चाय वाले भाईसाहब ने ही बोल दिया “सर जी सिगरेट नहीं पीते" | बाकी सबने घूर के मेरी तरफ देखा और हमने फ़ोकट में मिली चाय की ओर , जिसके पैसे बाकी लोगो में से किसी एक ने दिए |

अब दिमाग में ये विचार आने लगे कि और क्या क्या किया जा सकता है | तो निम्नलिखित खुराफातें कर डाली | आप अगर कभी वेल्ले हो तो ये सब अपने रिस्क पर करना :

१. सबसे पहले हमने गिना कि कितनी अलमारियाँ है | टोटल निकली ६४ | जिसमे ४० सेक्योर एरिया में हैं | फिर हमने अलमारियों के दरवाजे गिने | निकले १२८ | और इस तरह हमें पता चला कि अलमारियों में २ दरवाजे होते हैं |

२.  ये भी पता लगा सकते हो कि ऑफिस में कितने फ्लोर हैं | किस किस फ्लोर पर आपको जाना अलाउड है | जैसे हमारे यहाँ ७ फ्लोर हैं और हम सातों पर बेरोकटोक जा सकते हैं |

३. लिफ्ट में घुस गए , ग्राउंड फ्लोर पर ही | अकेले ही थे तो सारे फ्लोर के बटन दबा दिए | हर फ्लोर पर रुक रुक कर सातवें फ्लोर पहुचे | बीच बीच में लोग आते जाते रहे , सब पता नही क्यूँ हमें घूर रहे थे | इतने भी स्मार्ट नहीं हैं हम | लोग भी ना |
 
४. सातवें फ्लोर पर दिखा काफी लोग अंदर आने लगे लिफ्ट में, तो हम बाहर निकल लिए | कुछ ८-१० मिनट वेट करने के बाद हमें फिर मौका मिला अकेले लिफ्ट में जाने का | फिर सारे फ्लोर के बटन दबा दिए | १० मिनट में भला कहीं स्मार्टनेस कम होती है | लोग अभी भी हमें घूरे जा रहे थे , जो भी आ जा रहे थे |

५. ये भी पता किया कि किस किस फ्लोर का स्ट्रक्चर सेम है, किसका डिफरेंट | 

६. फिर अपने फ्लोर पर वापस पहुँच गए और ये देखने लगे कि कौन क्या कर रहा है | ज्यादातर लड़कियों को हमने काम करते पाया | लड़कों की स्क्रीन्स काम और फेसबुक के बीच डोल रही थी |

७. कुछ लोग काल्स पर भी थे | उनकी काल्स सुनने की भी कोशिश की | सुनते पहले भी थे पर कभी समझने की कोशिश नहीं की | आज की भी, तो भी कुछ न समझ आया | लगा कि क्या बकवास करते रहते हैं कॉल पर | फिर सोचा हम भी तो अक्सर कॉल पर रहते हैं ये लोग भी ऐसे ही सोचते होंगे हमारे बारे में |

८. फिर एक रूम दिखा जहाँ श्रेडर मशीन्स खुद के श्रेड किये जाने का वेट कर रही थीं | एक दो बार पहले पर्सनल काल्स लेने के लिए इस रूम में आये थे पर आज पहली बार पता चला काफी ठंडा रहता है वहाँ | पैर फैला कर बैठ गए | इन्फैक्ट लेट गए | 

९. कैंटीन गए , वहाँ सड़क सुरक्षा अभियान का कोई प्रोग्राम चल रहा था | सौरव गांगुली का कोई एक विडियो दिखाया जा रहा था | फिर याद आया दादा तो काफी सुरक्षा के साथ खेलते थे| खैर हमने ज्यादा ध्यान नहीं दिया उनकी बातन पर | एक प्लेट “पास्ता सैलिड” खाया और निकल लिए |

१०. फिर ये देखने गए कि एम्बुलेंस कहाँ खड़ी होती है | ये सब भी पता रहना चाहिए | फायर एक्सिट्स और स्टेयर्स की लोकेशन भी देख डाली |

ये सब करने में कुछ २ ही घंटे बीते | फिर सोचा कि किसी को फोन ही करते हैं | फोनबुक खंगाली |  फिर रुक गए | अपनी डेस्क पर वापस आ गए | आस पड़ोस वालों के साथ बैठकर इधर उधर की बातें की | बंगलोर, पुणे और नॉएडा से टीम के बाकी लोगो की काल्स आती रही | सबकी शंकाओं का समाधान फोन पर ही कर दिया और लगा कि हम तो काफी इंटेलिजेंट भी हैं |

इसी तरह ३ घंटे काटे | बाद में पता चला कि लैपटॉप आज सही नहीं हो पायेगा | कल सुबह ही होगा |  हमने घर वापसी की राह पकड़ी |

रस्ते में सोचा काफी टाइम बर्बाद हो गया आज | बाकी लोगो का भी होना चाहिए और घर आके ये पोस्ट लिख डाली | और देखिये पूरी तरह से सक्सेसफुल रहे | आपका भी टाइम बर्बाद करा ही दिया ना !!!! Smile Smile Smile

अरे बुरा न मानो, भड़ास निकालने के लिए नीचे कमेन्ट बॉक्स है ही और ये गाना भी है सपेशल आपके लिए :

--देवांशु

25 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारी तो ऐसी की तैसी... मूली खा के गंध पोस्ट लिखी है लगता है... हद होती है वेलापंथी की भी... अगर राम गोपाल वर्मा ने ये पोस्ट पढ़ ली तो उसे अपनी आग पर गर्व हो जाएगा.... हरमन बावेजा दोबारा एक्टिंग शुरू कर देगा... कौवे भी कोरस में गाने के लिए ऑडिशन देने लगेंगे... चलो आगे की गंध बाकी के पढने वालों के लिए छोड़ देते हैं...

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    1. चलो पोस्ट लिखना सफल हुआ !!!! मैं अकेला क्यूँ पकूं!!!! सबको पका दूंगा :) :)

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    2. ऑफिस से आने के बाद सबसे पहले तुम्हारी पोस्ट पढ़ी.... अब बताओ भला पूरा मानसिक ******* कर डाला... अब छोडो ज्यादा तारीफ क्या करनी थी.... तुम्हारा हाजमा खराब हो जाता... तो सोचा हम भी कुछ गंध कमेन्ट कर दें, लेकिन फितरत देखो तुम्हारे जैसे लोगों की... ऐसे कमेन्ट में भी खड़े होकर टोपी झुका के एक्सेप्ट कर रहे हैं.... हद है....

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    3. अब क्या बताऊँ शेखू, मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है :)

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    4. दिल तुम्हारा जैसा भी हो, भगवान् जाने दिमाग तुम्हारा कैसा कैसा है जो ऐसी पोस्ट लिख देते हो...

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  2. शुक्र है एक ही वेल्ला दिन था, कहीं २-४ होते तो आज का खाना इस अगड़म बगड़म में स्वाहा था :):).
    वैसे यह मस्त था हा हा -
    और जब तक सफाई नहीं हो गयी वहीँ खड़े रहे | देख -रेख करते रहे |
    १० मिनट में भला कहीं स्मार्टनेस कम होती है | लोग अभी भी हमें घूरे जा रहे थे , जो भी आ जा रहे थे |

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    1. और नहीं तो क्या !!! जिम्मेदार इंसान हैं हम !!! सफाई होने के बाद चल के भी देखे की फिसलन कम हुई कि नहीं, तब ही सफाई वाले को जाने दिया :) :)

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  3. फ़ोनबुक में जहां पहुंचकर रुक गये थे, वहीं फ़ोन घुमा लेते... ये सब ज्यादा एक्टिव होने के नुकसान हैं.. मालिक थोडा आलस लाओ..

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    1. तो मालिक तुम्ही को फोन लग जाता :) हम कहे वैसे भी हमको इतना तो झेलते हो, आगे काहे झेलाया जाये :)

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  4. बहुत सही लिखा है मालिक . अगली बार हम भी ये तरीके अपनाएंगे
    - Praduman

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    1. हाँ ट्राई करना, ऐसे वेल्ले दिन मुश्किल से ही मिलते हैं अपन लोगो को , रोज तो खूब सारा काम रहता है , ये तो आज बाई द ग्रेस ऑफ भगवान हो गया कि लैपटॉप ठीक नहीं हुआ, कई बार से तो १५ मिनट में ठीक हो जा रहा था :) :) :)

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  5. हर फ्लोर पर जाकर जो मुआयना कर के आये हो.. सब पता है हमें.
    और जो एक एक 'आलमारी' का हिसाब कर रहे हो आजकल.. सही जा रहे हो :P लगे रहो :)

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    1. ईसई को अनुभव कहते हैं, हमने कहा (किया) कुछ नहीं , लोग पता नहीं कहाँ कहाँ तक सोच आये !!! :) :) :)

      वैसे अगर वैरीकूल एक दिन के लिए वेल्ला हो तो क्या करेगा ? इसपर टोर्चीआइये (मतबल प्रकाश डालिए ) :) :) :)

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  6. प्रेरक और मुश्किल घड़ी आने पर स्‍मरणीय :-)

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    1. :) फर्स्ट एड टाइप :)
      पोस्ट पसंद आयी आपको, शुक्रिया है जी :)

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  7. " ज्यादातर लड़कियों को हमने काम करते पाया | लड़कों की स्क्रीन्स काम और फेसबुक के बीच डोल रही थी |"
    इतनी अगदम बगड़म पोस्ट के बीच हमारे काम की एक बात निकल ही आई

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    1. अब ये सब कहना पड़ जाता है | बाकी असलियत तो आपसे कहाँ छुपी है :)

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  8. मियाँ तुम हो क्या आखिर -कभी अल्फ्रेड हिचकाक लगते हो कभी मिस्टर बीन तो कभी पूरे चिबिल्ले और कभी अभिषेक ओझा का झलक दिखता है -जो भी हो तुम जुलुम हो देवांशु!

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  9. अभी अभी से भगवान् को प्रार्थना किये हैं की तुमको वेलेपंथी वाले दिन ना दिए जाए और अगर दिए जाए तो उसे लिखने की प्रेरणा तो बिलकुल न दी जाए और अगर गलती से अगर लिख दिया गया हो तो हमारा इन्टरनेट खराब हो जाए और तुम्हारी पोस्ट न झेलनी पढ़े. अपनी पोस्ट के ऊपर preface क्यूँ नहीं लिखते... पढने वाले को खतरे का अंदाजा तो होना चाहिए न भाई. खैर अब यही मानते हैं की तुम्हारा लैपटॉप जल्दी ठीक हो जाए. अब जल्दी से एक अच्छी पोस्ट लिखो हमारी आँखों में अपनी "इज्ज़त" बढ़ाओ.

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  10. पढ चुके थे उसी दिन जब पोस्ट किये थे तुम। आज हमारा ’वेल्ला’ टाइम मिला तो टिपिया रहे हैं। :)

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