जुगलबंदी तो सुनी ही होगी...क्या कहा , नहीं सुनी ? अरे पक्का सुनी होगी...भले ही क़ुबूल ना करो !!!
जुगल ( हंसराज ) पर अगर अभिनय और निर्देशन करने की "बंदी" लगा दी जाये तो इसे ही "जुगलबंदी" नहीं कहते, अपितु जब दो सूरमा आपस में बैठते हैं तो उनके बीच की फ्रेंडली झड़प को जुगलबंदी कहते हैं |
जैसे दो तबलावादक अक्सर इस टाइप की झड़प करते हैं |
तबलावादक १ : "ता धिन धिन न, न धिन तिन न"
तबलावादक २: "ता धिन धिन न, न धिन तिन न, तगड़-धगड़"
तबलावादक १: "ता धिन धिन न, न धिन तिन न, तगड़-धगड़,झगड़-तगड़-पकड़, कूट-पीट-भाग"
और दर्शक वाह वाह करते हैं | जर्नली अईसे प्रोग्राम्स के बाद पार्टी रखी जाती है, जिसमे ड्रिंक्स के साथ जुगलबंदी की बातें होती हैं :
क्रिटिक १ : "यार उसने तीन ताल सही नहीं बजाई, थोड़ा भटक गया"
क्रिटिक २ : "अरे क्या बात कर रहे हैं आप जनाब , बिलकुल सही बजाई, आपने ध्यान नहीं दिया शायद"
फिर क्रिटिक २ अपने हाथ की एक उंगली, क्रिकेट अम्पायर की तरह आउट देने कि इस्टाइल में उठाता है , और लहराते हुए एक ताल को मन ही मन पढता है और बुदबुदाने की एक्टिंग करता है :
"झागड़-तागड़, धिनक तुन-तुन, तिनक धुन-धुन , ता दा धा धा धिन"
और फिर बोलता है "सही कह रहे हैं आप, एक ताल मिस कर गया वो, मान गए आपकी पकड़"
क्रिटिक २ एक कुटिल मुस्कान फरमाते हैं और मन ही मन कहते हैं "मैं न कहता था "
जुगल ( हंसराज ) पर अगर अभिनय और निर्देशन करने की "बंदी" लगा दी जाये तो इसे ही "जुगलबंदी" नहीं कहते, अपितु जब दो सूरमा आपस में बैठते हैं तो उनके बीच की फ्रेंडली झड़प को जुगलबंदी कहते हैं |
जैसे दो तबलावादक अक्सर इस टाइप की झड़प करते हैं |
तबलावादक १ : "ता धिन धिन न, न धिन तिन न"
तबलावादक २: "ता धिन धिन न, न धिन तिन न, तगड़-धगड़"
तबलावादक १: "ता धिन धिन न, न धिन तिन न, तगड़-धगड़,झगड़-तगड़-पकड़, कूट-पीट-भाग"
और दर्शक वाह वाह करते हैं | जर्नली अईसे प्रोग्राम्स के बाद पार्टी रखी जाती है, जिसमे ड्रिंक्स के साथ जुगलबंदी की बातें होती हैं :
क्रिटिक १ : "यार उसने तीन ताल सही नहीं बजाई, थोड़ा भटक गया"
क्रिटिक २ : "अरे क्या बात कर रहे हैं आप जनाब , बिलकुल सही बजाई, आपने ध्यान नहीं दिया शायद"
फिर क्रिटिक २ अपने हाथ की एक उंगली, क्रिकेट अम्पायर की तरह आउट देने कि इस्टाइल में उठाता है , और लहराते हुए एक ताल को मन ही मन पढता है और बुदबुदाने की एक्टिंग करता है :
"झागड़-तागड़, धिनक तुन-तुन, तिनक धुन-धुन , ता दा धा धा धिन"
और फिर बोलता है "सही कह रहे हैं आप, एक ताल मिस कर गया वो, मान गए आपकी पकड़"
क्रिटिक २ एक कुटिल मुस्कान फरमाते हैं और मन ही मन कहते हैं "मैं न कहता था "
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खैर !!! ये तो थी रेगुलर बकवास , अब मुद्दे की बात | दरसल जुगलबंदी में पार्टिसिपेट करने वाले मुझे शिकारी टाइप लगते हैं | जिनके शिकार उनके श्रोता होते हैं | मुझे एक "एक तीर से दो शिकार" की उलट बात लगती है ये | आखिर शिकार तो जनता का ही होता है |
वैसे जुगलबंदी कई टाइप की होती है , कुछ बजा के जुगलबंदी करते हैं, कुछ गा के करते हैं | कवि लोग भी लग लेते हैं जुगलबंदी में, ये एक कविता, ये दूसरी और ये दोनों पर भारी तीसरी | नेता-फेता भी घोटालों-फोटालों की जुगलबंदी करते अक्सर सुने जाते हैं |
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पिछले दिनों फेसबुक पर एक फोटो दिख गयी, बड़ी शानदार टाइप फोटो लग रही थी | हम डाउनलोडिया लिए, लगा कि कोई "कालजयी" कविता-कहानी लिखेंगे | पर ध्यान से देखा तो बहुत चीज़ें समझ में आयी फोटो के बारे में | पहले आप फोटो देख लो फिर बतायेंगे कि क्या सोचे हम :
१. पहली चीज़ जो ये समझ में आयी कि ये एक फोटो है |
२. पर इस फोटो में जो घर है वो हवा में कैसे लटका है ? ज़रूर कोई मैग्नेटिक लेविटेशन का फार्मूला लगाया गया होगा, वैसे ही जैसे बुलेट ट्रेन चलती है |
३. पर घर को हवा में लटकाने का फायदा क्या ? घर में तहखाना कैसे बनेगा? पार्किंग की भी जगह नहीं है |
४. मेरे को लगा चाँद से पेड़ फंसा हुआ है , पेड़ से ज़मींन और ज़मीन से घर | इस तरह शायद घर हवा में लटका हुआ नहीं है |
५. ये "दोनों कपल" कौन हैं ? ये कहाँ से आ रहे हैं ?
६. दोनों एक दूसरे की तरफ नहीं देख रहे हैं , इससे लगता है या तो ये शादी-शुदा हैं या तो हिन्दुस्तानी हैं, जिनके घरवाले इनकी शादी के खिलाफ हैं, तो उदास टाइप हैं | बाकी, प्यार में तो लोग एक - दूसरे की तरफ देखते हैं |
७. ऐसा भी हो सकता है सब कुछ ठीक है, पर ऑफिस से वापस आ रहे हों | लड़के को बॉस ने बहुत हड़काया है | लड़की को भी प्रमोशन नहीं मिला है इस बार |
८. पर घर की लाईट क्यूँ जल रही है | शायद जब ये लोग घर से गए हों तो पावर कट हो गया हो , और ट्यूब लाइट खुली भूल गए हों | अब घर जाकर लड़के कि खैर नहीं, "तुमसे एक ट्यूबलाईट भी बंद नहीं की जाती, एकदम ट्यूबलाईट हो"|
९. पर बारिश तो हो नहीं रही | फिर ये घर से पानी क्यूँ गिर रहा है ? लगता है लड़की "किचन" का डायरेक्ट नल बंद करना भूल गयी | चलो अब लड़का बच जायेगा, वो ट्यूबलाईट भूला तो वो भी तो नल चलता छोड़ गयी , हिसाब बराबर |
१०. हो ये भी सकता है कि घर हो तो रेगुलर मोहल्ले में , पर जब पानी बहना शुरू हुआ तो मोहल्ले वालों ने "ब्रह्मा" जी को याद किया | ब्रह्मा जी आ तो गए पर "मास्टर की" लाना भूल गए | वर्ना घर खोल के नल बंद कर देते | उन्होंने उठा के घर को ही समंदर पर लटका दिया, ड्रेनेज का भी लफड़ा नहीं | घर के हवा में लटकने, सीढ़ियों आदि की व्यवस्था विश्वकर्मा जी ने तुरत-फुरत कर दी | वैसे भी विश्वकर्मा जी भारत के बल्लेबाजों की तरह हैं, अंडर प्रेशर अच्छा परफोर्म करते हैं | लंका भी दुबारा से उन्होंने ऐसे ही बनाई थी |
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ये सब हम सोच ही रहे थे कि सोनल जी ने शिखा जी की एक फोटो पर कविता रच डाली | कविता पढने के बाद हमने सोनल जी को ये फोटो भेज दी कि इसपे कुछ लिखा जा सकता है | उन्होंने हामी भरी और ५ मिनट में ये कविता हमें भेज दी :
"लेकर आया था
वो सारे तोहफे
बाँध कर पोटली में
चमकीला सा चाँद
अलसाई सी रात
धुंआ होते बादल
मचलता समंदर
गुनगुनाती हवा
इंतज़ार में घर
सब कुछ था
पर घबराया था
तुम्हे पसंद आएगा
तुमने ही तो
उकेरे थे सभी
नीले कागज़ पर
कहा था काश
सच हो जाए
देखो एक ही
फ्रेम में जड़ दी
उसने जन्नत..."
वो सारे तोहफे
बाँध कर पोटली में
चमकीला सा चाँद
अलसाई सी रात
धुंआ होते बादल
मचलता समंदर
गुनगुनाती हवा
इंतज़ार में घर
सब कुछ था
पर घबराया था
तुम्हे पसंद आएगा
तुमने ही तो
उकेरे थे सभी
नीले कागज़ पर
कहा था काश
सच हो जाए
देखो एक ही
फ्रेम में जड़ दी
उसने जन्नत..."
कविता बड़ी शानदार लगी , तो हमने सोचा कि ये कविता क्यूँ न हम अपनी पोस्ट पर ठेल दें, सोनल जी ने परमीशन भी दे दी |
( वैसे उन्होंने ये भी बताया कि ध्यान से देखो , चिमनी से धुआं निकल रहा है, शायद सब्जी भी जल गयी होगी, पर प्राइमा-फेसी तो हमें धुआं नहीं दिखा और दूसरा कि ये कि हम ई सब टाइप की गलती नहीं करे कभी, अब जो करेगा वही जानेगा ना :) :) )
( वैसे उन्होंने ये भी बताया कि ध्यान से देखो , चिमनी से धुआं निकल रहा है, शायद सब्जी भी जल गयी होगी, पर प्राइमा-फेसी तो हमें धुआं नहीं दिखा और दूसरा कि ये कि हम ई सब टाइप की गलती नहीं करे कभी, अब जो करेगा वही जानेगा ना :) :) )
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इसी को जुगलबंदी कहते हैं | जुगलबंदी के बारे में ज्यादा जानने के लिए ये पोस्ट ऊपर से पढ़ें :) :) :) | और अगर आपको सब समझ में आ गया हो तो "क्रिटिक" बन जाओ , नीचे कमेन्ट बॉक्स है ही |
नमस्ते !!!!
नमस्ते !!!!
-- देवांशु
"मेरे को लगा चाँद से पेड़ फंसा हुआ है"
जवाब देंहटाएंपर मेरे को तो लग रहा है कि ये दोनों लड़का-लड़की एक-दूसरे से फंसे हुए हैं.
अच्छा , तो ई एंगल से देख रहे हो !!!!
हटाएंजुगलबंदी लाजबाब है। इससे ज्यादा और कुछ कहने में खतरा भले न हो लेकिन ’रिक्स’ है। उधर कविता में आंसू बह रहे हैं इधर चांद को लटका दिया है। पेड़ कहीं किसी ने काट दिया तो चांद लड़खड़ा के गिरेगा आकर नीचे से ऊपर की तरफ़ जाते हुये जोड़े के ऊप्पर। लिये मरहम पट्टी भागते फ़िरेगा फ़िर पोस्ट का रचयिता। :)
जवाब देंहटाएंइसलिए विद्वान् लोग कहते हैं कि पेड़ों को नहीं कटना चाहिए , पता नहीं कौन कहाँ लटका हो :) :) सब देखना पड़ता है | जैसे गैस पाइप लाइन के पास लिखा होता है कि खोदने से पहले निम्न नंबरों पर संपर्क करें, वैसे ही पेड़ों के पास लिख सकते हैं काटने से पहले देख लें कोई लटका न हो :) :) :)
हटाएंबहुत ही रोचक और जबरदस्त जुगलबंदी |फोटो का जो वर्णन आपने किया है वो वाकई शानदार |और सोनल जी ने जो इसके ऊपर कविता लिखी है,,,उसके क्या कहने |
जवाब देंहटाएंकुल मिलाकर आपके ब्लॉग पर आना सार्थक रहा |
सादर नमन |
मंटू जी, ई जो आप नमन किये हैं, उसके लिए शुक्रिया, पर इतना आदर मत दीजिये , हम घबड़ा जाते हैं , अचानक लगता है कि उम्र २०-३० साल आगे निकल गयी :) :) :)
हटाएंसोनल जी की कविता तो एकदम्मै चकाचक है, इसई लिए तो हम फट्ट से मांग लिए कि हम छापेंगे, घने मौकापरस्त हैं हम भी :) :) :)
बेहतरीन जुगलबंदी......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
अनु
धन्यवाद अनु जी !!!!
हटाएंकुछ इधर की,कुछ उधर की ,कुछ सीधे दिल की बातें - जुगलबंदी में मुझे यही समझ आया....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :) :)
हटाएं:) रोचक लगी जुगलबंदी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!!
हटाएंamazing devanshu ..shabd nahi hai..isa post ke liye..
जवाब देंहटाएंThanks Akaksha !!!
हटाएंJaisa k hum pehle bhi kahe the... aane wale samay me "KAMINEPAN" ko "DEVANSHUPAN" k naam se jana jayega :-X
जवाब देंहटाएंThanks for the compliment Monali :)
हटाएंham na sudharne vaale :)