बहुतै फेमस गाना !!! एक दम हिट कि रोते हुए आते हैं सब, हँसता हुआ जो जायेगा, वो फलाने का ढीमाका कहलायेगा | समझे |
अपने यहाँ रोना बहुत बुरा माना जाता है | अरे बाहर भी माना जाता है | लोग बहुत कोशिश करते हैं कि ना रोये | और रोके फायदा भी क्या? रोने से कुछ होता है भला?
पर सोचो अगर रोने के पैसे मिलते तो ?आइडिया शानदार है |
लोग-बाग मौका ढूँढते कि कब रोया जाये | किसी ने आपके बारे में कड़वा बोलना तो दूर, जरा सा सोचा भर की आप घडों रो लेते | खुशी के आंसू निकलते तो भी कहते कि भईया हम रो ही रहे हैं |
मुस्कुराना “टाइम वेस्ट" करने जैसा होता | “हाहा-ठीठी बनाये खराब, रोना धोना बनाये नवाब" | घरवाले डांटते “बाहर खड़े खड़े पता नहीं का कर रहे हैं , ये नहीं घर के अंदर आ जाएँ, थोड़ा रो ही लें” |
फिर किसी को भूखे सोना नहीं पड़ता | ५ मिनट रोये रोटी का जुगाड़, ५ मिनट और रोये सब्जी भी हो गयी | ये सब देख के बीवी की आँख में आंसू आ गए | सलाद भी रेडी है जी |
पढाई-लिखाई तो वैसे भी अपने यहाँ हेलमेट की तरह है, ज़रूरी है पर मजबूरी समझी जाती है | पर अगर रोने के पैसे मिलते तो धड़ाधड़ रोने के कॉलेज खुल जाते | डिग्री डिप्लोमा होने लगते | डिग्री वाले कहते डिप्लोमा वाले रोते हैं पर वो क्वालिटी नहीं है | डिप्लोमा वाले समझाते “बेट्टा कह कुछ भी लो, ग्राउंड रियलटी तो हम डिप्लोमा वाले ही जानते हैं” | इस लड़ाई-झगड़े में अगर रोना गाना हो जाता तो उसके पैसे भी सबमें बराबर बांटे जाते |
रोने के साथ साथ रुलाने वालों का भी बोलबाला हो जाता | फलाने मास्टर साहब बड़ी आसानी से रोना सिखाते हैं | पर रोने पर मिली कमाई का तीन चौथाई रख लेते हैं | लालची हैं | मास्टर कहते आप तो अपने बच्चों को कहीं बड़ी जगह पर रोने भेज देंगे हमारे बच्चे क्या करेंगे | पता चला उन्ही मास्टर साहब का बेटा दिल खोल के हँसता | दुनिया कहती चिराग तले अँधेरा |
रोना सोसाइटी में स्टैण्डर्ड समझा जाता | लोग संयुक्त परिवार की तरफ बढ़ते | घर में जितने बर्तन उतना ही बजेंगे | खूब मार-कुटाई होती | खूब आंसू बहते | खूब पैसा आता | कोई तीज-त्यौहार होता, तो बड़े-बड़े परिवारों के लोग आपस में ही रो लेते | न कोई बाहर से आये ना किसी से रूपया बांटना पड़े | “भईया उन केर घर केरी बात अलग आय , इत्ते जने हैं , सब आपसय मा रोय लेत हैं, काहे लगावे लगे बाहेर वालन का”|
तब कवियों का भी उद्धार हो जाता | जो जित्ती रुआंसी कविता लिखता, उसकी डिमांड उत्ती बढ़ जाती | पी बी शेली ने कहा था “our sweetest songs are those, those have the saddest thought” ,तब जमाना इस बात को और अच्छी तरीके से समझता | सेंटी पद्य लिखने वाले भी खूब पूछे जाते | जिसको पढ़ के जितना रोना आये , किताब उतनी महंगी बिकती |
तब न, कॉमेडी फ़िल्में नहीं बना करती | न कोई जॉनी वाकर होता, न जॉनी लीवर | राजू श्रीवास्तव भी ना आये होते | उदय चोपड़ा, उपेन पटेल, फरदीन खान, तुषार कपूर जैसे लोगो का बोलबाला होता | “अंदाज़ अपना अपना” कोई ना पूछता | “टशन", “झूम बराबर झूम", “जोकर" जैसी फिल्मे चल जाती | राजेश खन्ना भी तब कहते “पुष्पा!!!! आई लव टियर्स रे !!!!”
गाने कैसे बनते :
“थोड़े आंसू तू हमका उधर दइ दे , और बदले में यूपी बिहार लई ले” ,
“रोना, रोना, भर भर के रोना , जब भी टूट जाए कोई खिलौना , लल् ला”
सटायरबाजों और कार्टूनिस्टों की हालत तब भी अब के जैसी ही रहती | जनता उन्हें ठोकने पर उतारू रहती | कार्टून बनाने पर जेल भेज देना तब भी आम बात होती |
पंकज बाबू के हिसाब से सोचना “इंटलेक्चुअल" प्रोपर्टी है | मेरे हिसाब से “रोना" ही “एक्चुअल" प्रोपर्टी होती | तब औरत और मर्द के रोने में भी कोई अंतर ना समझा जाता और शिखा जी को एक पोस्ट नहीं लिखनी पड़ती |
पर हाँ , कोई किसी को फलते - फूलते तब भी न देख सकता | पम्मी आंटी, गुप्ता आंटी को शर्मा आंटी की केवल अच्छी बात ही बताती , कहीं गुप्ता आंटी रो न दें, इस डर से | मेहता साहब के बारे में लोग कहते “मन ही मन तो रोता होगा लेकिन दिखायेगा कि जैसे मनों खुस है , दिल में चोर है उसके” |
लेकिन कुछ भी कहो अगर रोने के पैसे मिलते तो रोना दूभर हो जाता और हर तरफ खुशी ही खुशी फ़ैल जाती !!! है की नहीं ???
खैर, फिलहाल आपको इतना ही रुलाते हैं, फिर कभी खून पियेंगे आपका , तब तक रोते रहिये-रुलाते रहिये , आई मीन खुश रहिये, आबाद रहिये, दिल्ली रहिये या इलाहाबाद रहिये !!!!
खुदा-हाफ़िज़ !!!!!
P.S. : अगर आपको ये सब पढ़ के रोना आ गया हो ( अगर क्या, पक्का आ गया होगा , सेल्फ कांफिडेंस ) तो जो पैसे इकठ्ठा हुए हों उसका हिस्सा हमें भी मिलना चाहिए | पोस्ट का आइडिया तभी आया , जब हम मोनाली की टांग खीच रहे थे कि उसकी पोस्ट बहुत रुलाती हैं | और देखिये उसने कसम खाकर एक हंसती-गुदगुदाती पोस्ट लिख मारी कि कहीं लोग अमीर न हो जाएँ |
--देवांशु
Devansu ji app ne rula diya kasam se,aap bahumukhi pratibha ke dhani hai ..isi tarah naye aur ruchit lekh likhte rahie
जवाब देंहटाएंaur ha maine aap ki machhliyo ko dana khila diya hai
:'( Tears Rolling Arround...
जवाब देंहटाएंहेहेहे!! मैं तो ये सोच के खुश हूं कि तेरा ब्लॉग फेल हो जाता और मेरी रोतली पोस्ट्स जिनकी वज़ह से आज गालियां खाती हूं दोस्तों की, वो सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी सरीखी हो जातीं...
जवाब देंहटाएंफिर शादी का स्टैन्डर्ड इस बात से तय होता कि कित्ती लम्बी विदाई रखी गई है... "अरे फलाना साहब ने तो दिल खोल के खर्चा किया है बेटी की शादी में, बडे आला दर्जे के रोने वाले बुलाये थे" स्पेशल सर्टीफिकेट कोर्स होते शादियों में रोने को ले कर..
इन्कम टैक्स वाले छापा मार के जित्त भी रुलाते सब हाल के हाल वसूल हो जाता...
भई वाह! क्या पोस्ट लिखी है देव बाबू आपने... जी खुश कर दिया.. हमें पता था कि आप इस विषय के साथ उचित न्याय करेंगे...
बस कर भाई हँसाएगा क्या ???
जवाब देंहटाएंगजब की मज़ेदार पोस्ट !
जवाब देंहटाएंहे भगवान ....क्या आइडिया आते हैं तुम्हें भी ..:):).
जवाब देंहटाएंवाह ... जबरदस्त
जवाब देंहटाएंहाहाहा ... भाई पेट पकड़ कर रोने का मन कर रहा है :) ... क्या बात ... ऐसे ही लिखते रहो ...
जवाब देंहटाएंगदर।
जवाब देंहटाएंदुनिया के सबसे सफ़ल आदमी के बारे में लोग कहते कि उसको रोने में महारत (महाभारत) हासिल है। जब कहो रो के दिखा देता है। वे महापुरुष थे। देश को स्वाभाविमान के साथ रोना सिखाया।
वैसे सुनते तो ये भी हैं रोने से आंखे खूबसूरत भी होती हैं।
मज़ा अ गया इस पुसर को बढ़ने के बाद ...
जवाब देंहटाएंयहां भी लाईक का ऑप्शन होना चाहिए था। पोस्ट पर पांच लाईक्स देते और हर कमेंट पर एक-एक। :-)
जवाब देंहटाएंआपने बहुत रुलाया है..क्ररारा जवाब मिलेगा...:))
जवाब देंहटाएंयार केवल रोने की परिभाषा चेंज करोगे तो इम्बैलेंस हो जाएगा :)
जवाब देंहटाएंआपने तो हमेँ हँसतेँ-2 रूला दिया यारोँ
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