मंगलवार, 1 जनवरी 2013

किरदार ???

मैं सोते से अचानक जग गया | नींद खुल गयी और दुबारा नहीं आ रही थी |  वैसे तो सब मना करते हैं की सपने साझा करने से पूरे नहीं होते, पर जिस सपने से नींद टूटी वो मैं पूरा होने भी नहीं देना चाहता | चलो इसी बहाने ही सही शेयर करने की सोची |

सपना क्या था बस एक पहेली ही थी | ऐसा नहीं की ऐसा सपना पहले कभी किसी को नहीं आया, ज़रूर आया होगा | मुझे भी इस टाइप के सपने अक्सर आते हैं, पर डर पहली बार लगा |

दरअसल सपने में एक लाईट हाउस दिख रहा था |  मुझे लगा कि अभी अभी एक किताब पढी है जिसमे लाईट हाउस की बात है, इस वज़ह से दिख रहा है | पर केवल लाईट हाउस नहीं था | एक नदी भी थी , मेरे और लाईट हाउस के बीच में | मुझे लाईट हाउस तक जाना ही नहीं था , दिख गया तो दिख गया | पर उस चेहरे को कैसे भूलता जो मुझे वहां दिख रहा था , लाईट हॉउस के ठीक नीचे |

वही चेहरा, जिसे मैं भूल नहीं सकता, वही चेहरा |  धुंधला सा ही दिख रहा था वो चेहरा, ऐसा लग रहा था की जैसे अरसे बाद देख रहा हूँ (पर अरसे बाद दिखने पर चेहरे धुंधले नहीं दिखाई देते, पर हो तो ऐसा ही कुछ रहा था)  | मुझे उस तक जाना था |

पर नदी ?? उसका क्या करूं? शुक्र है तैरना आता था, पार कर गया | पर उस किनारे पहुंचा तो लगा की जैसे मेरे पैरों में कीचड़ लग गया है | ध्यान से देखा तो खुद को एक दलदल में पाया | इंसान बहते पानी से तो तैर के निकल जाए पर दलदल से कैसे निकले? और दलदल भी कोई इतना ख़ास नहीं की मुझे खुद में खींचकर मार दे, बस इतना कि ना जीने दे ना मरने दे | मैं बुरी तरह उस तक भागने की कोशिश करता रहा | और तभी नींद खुल गयी!!!!

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पूरे एक घंटे बाद नींद आयी होगी | दूसरा सपना दिखाई दिया | इस बार मैंने खुद को एक पुराने से खंडहर में पाया | फिर वही चेहरा , पर इस बार दोनों के बीच एक दीवार और और उसमे एक झरोखा | मैंने बोला की मैं तुम्हे मिलना चाहता हूँ , कहाँ मिलोगी | जवाब मिला उसी लाईट हाउस पर | मैंने कहा दलदल मुझे लाईट हाउस तक पहुँचने नहीं देता | जवाब था दलदल का मैं कुछ नहीं कर सकती, वो मेरे अपनों ने मेरी हिफाज़त के लिए बनाया है | मैंने पूछा तो तुम तक कैसे पहुंचू ? जवाब में उसने एक किताब दी और साथ में ये बोला की मैं अभी कुछ नहीं बता सकती , इसके बाद तो मैं तुम्हे दिखूंगी भी नहीं , हाँ अगर कभी मेरी ज़रुरत हो तो पेज नंबर १६ खोलना,  वहां एक खिड़की है, उसमे  मेरी आवाज़ सुनायी देगी |  मैं कई बार तक  उस खिड़की से बात करता रहा,  कभी जवाब तुरंत मिला, कभी देर से मिला | फिर एक दिन जवाब आया की अब कुछ भी हो सकता है, मेरी उम्मीद छोड़ दो |

एक अजीब से डर से घिर गया मैं| डर  से बचने के लिए अपने पास एक चाकू रखने लगा, सुना था ऐसा करने से डर नहीं लगता  | पर जैसे जैसे वक़्त बीतता गया, डर  बढ़ता गया | वो चेहरा फिर ना दिखा कभी | मैं खुद को कई बार उस लाईट हाउस तक ले गया | पर हर बार उस दलदल ने मुझे रोक दिया | काफी देर तक उसी एक चेहरे को देखने के लिए नदी के उस पार खड़ा रहा, पर कुछ भी ना हुआ |

फिर वही चाकू मैंने खुद को मार लिया, | उसके बाद  कोई सपना नहीं आया मुझे | ना कोई लाईट हॉउस, न कोई दलदल , न कोई किताब | सब ख़त्म | और क्यूंकि ये सब एक सपने में हुआ था तो उसके बाद मैं फिर कभी नहीं जगा |

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#ये किस्से कहानियों का देश है |  असल बात को घुमा-फिरा के कहने की आदत है हमें !!!!
-- देवांशु

12 टिप्‍पणियां:

  1. नव वर्ष मंगलमय हो,.सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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  2. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    दिनांक 3/1/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. sapne to sapne hote hain ...naye saal men agaaj nai soch ka, nai urzaa ka ..
    shubhmangalam ..

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  4. गज़ब महराज-सपने में खुद को क़त्ल कर लिया और सपना टूट जाने पर जी भी गए -औघड़ के दोनों हाथ में लड्डू!

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  5. बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.

    मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.


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  6. क्या बात है .... क़त्ल भी किया ओर नींद भी खुली ... फिर नींद भी आई पर सपना गुल ...
    २०१३ मंगलमय हो ...

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  7. घुमा-फिरा के कही बात को असल समझने की हमें भी आदत है :)

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  8. नये साल की नई अभिलाषा, रोज एक नई आशा,यही ये जीवन की परिभाषाँ।

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  9. You kill dreams, you kill a part of yourself. Impressive style of writing. :-)

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  10. You kill dreams, you kill a part of yourself. Impressive style of writing. :-)

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