पिछले कुछ दिनों से मार्केट में “इस्तीफों" की बड़ी चर्चा है |
एक “सज्जन" थे, उनसे कहा गया की आपके राज-काज में बड़े लफड़े लोचे हुए हैं | तौलिया रख-रख के लोगों ने बड़े-बड़े काण्ड कर दिए, आप इस्तीफ़ा दो | वो नहीं माने | इस चक्कर में कई और लोगों ने इस्तीफ़ा दे डाला | फिर मीटिंग बुलाई गयी | मीटिंग में वो टाइम पर पहुंचे, और टाइमिंग की महिमा देखो, सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी |
इस बीच एक दूसरे सज्जन इस्तीफ़ा दे बैठे | उनसे सबने कहा की वापस लो भाई ये इस्तीफ़ा, ऐसे नहीं चलेगा | कई दिनों तक नहीं माने, बाद में मान गए | बाद में पता चला की पिछले ८ सालों में उन्होंने ये इस्तीफे वाला काण्ड ३ बार किया है |
हमारे प्रधानमंत्री जबसे प्रधानमंत्री बने हैं तबसे इतने “गेट" निकले ( जैसे “कोलगेट" ) की लोगों ने उनसे भी हर दूसरे महीने इस्तीफ़ा मांगना जारी रखा है | हालत तो ये है की अगर उनके अपने घर की बत्ती भी चली जाए तो उन्हें डर लगने लगता है की कहीं उन्ही से इस्तीफ़ा ना मांग लिया जाए |
पर इनलोगों को आइडिया नहीं है की बेचारे “इस्तीफों" की क्या हालत होती होगी ? हम बताते हैं | इस्तीफों में भी जान होती है, हमारी तरफ सोचते-समझते-जानते-बूझते हैं | उनमे फीलिंग्स होती हैं | पर जनता का क्या है , वो समझ नहीं पाती |
इस्तीफों का जनम ज्यादातर ऑफर लेटर्स से होता है | आमतौर पर जब तक कोई दूसरा ऑफर ना हो, लोग इस्तीफ़ा नहीं देते | कभी कभी इस्तीफ़ा देते ही नए ऑफर मिल जाते हैं | पर लोग ऑफर को एक्सेप्ट कर लेते हैं , इस्तीफों को भूल जाते हैं |इस्तीफे कई तरह के होते हैं :
आम इस्तीफे :
इस्तीफों की जनसँख्या में सबसे बड़ी संख्या उन इस्तीफों की है जो आम होते हैं और अक्सर चुपचाप दे दिए और स्वीकार किये जाते हैं | इनके लिए कोई हो हल्ला नहीं होता | ये आम लोगों की होते हैं | चुपचाप लिखे जाते हैं और चुपचाप दे दिए जाते हैं | इतिहास में इनका कोई नाम नहीं होता |
भावखाऊ इस्तीफे :
दूसरे टाइप के इस्तीफे थोड़े भावखाऊ होते हैं | इस तरह के इस्तीफे इसलिए लिखे जाते हैं की ये खुद के एक्सेप्ट होने से पहले भाव खाएं | आई-टी इंडस्ट्री में ऐसे भावखाऊ इस्तीफों की भरमार है | इधर इस टाइप का इस्तीफ़ा दिया गया, उधर बता दिया जाता है की कब ये एक्सेप्ट हो जायेगा, इस बीच में जितना भाव खाना है खा लो | ऐसे इस्तीफे कभी कभी लालची भी होते हैं | कुछ ठीक ठाक सा दिखा झट वापस हो गए | पर वापस होने का प्रतिशत कम रहता है |
ढुलमुल इस्तीफे :
इस तरह के इस्तीफों का उपयोग पिछले दिनों एक पितामह ने किया है | इसमें होता क्या है की इस्तीफ़ा लिखे जाने से पहले जानता है की उसे वापस लिया ही लिया जाना है | इनका उपयोग ज्यादातर लोगो की भद्द पिटाने के लिए, उन्हें औकात पर लाने के लिए किया जाता है | हल्ला इनपर खूब मचता है | मीडिया के लिए तो दुधारू गाय होते हैं ये इस्तीफे |
ढीठ इस्तीफे :
तीसरे टाइप के इस्तीफे होते हैं ढीठ इस्तीफे, इनको पता होता है की इनको वापस लेने के लिए बहुत प्रेशर डाला जायेगा | पर ये गदहे की चमड़ी के बने होते हैं , टस से मस नहीं होते | इतिहास गवाह रहा है इस तरह के इस्तीफों ने कई राजा-महाराजा तक के लोगों को नेस्तनाबूत कर दिया है | इसको देने वाला भी कोई बहुत कड़े दिल का होता है | इतिहास इन्हें कई पीढ़ियों तक याद रखता है |
लाचार इस्तीफे :
मुझे सबसे ज्यादा दया इस टाइप के इस्तीफों पर आती है | ये कभी दिए जाने वाले के द्वारा नहीं लिखे जाते | जिसको इन्हें देना होता है उसके अलावा हर कोई इन्हें लिए घूमता है | हर दूसरा आदमी इस तरह के इस्तीफों की मांग करता है, पर जिसे देना होता है वो चुप्पी मार के बैठा रहता है | हमारे प्रधानमंत्री से मांगे जाने वाले इस्तीफे इसी श्रेणी में आते हैं |
मुंह पे दे मारू इस्तीफे :
मेरे हिसाब से इन इस्तीफों के लिए कोई “इस्तीफाधिकार आयोग” बनना चाहिए | इस टाइप के इस्तीफे “ओन द स्पॉट” लिखकर सामने वाले के मुंह पर दे मारे जाते हैं | सामने वाले से पूछा भी नहीं जाता की एक्सेप्ट करोगे या नहीं | बस दे मारा जाता है | इन इस्तीफों को भी काफी चोट लगती होगी, इसलिए इनके अधिकारों की बातें जनता के सामने आनी चाहिए |
इन सब बातों को यहाँ लिखने के दो मकसद हैं : एक तो इस्तीफों के बारे में जनता की जागरूकता बढ़ाना और दूसरा आपका खून पीना | पहले की सफलता तो वक़्त बताएगा पर दूसरे की सफलता की पूरी गारंटी है | इसमें एक्सपर्ट हैं हम |
खैर!!! अभी चलते हैं | फिर मिलेंगे तब तक आप एंटरटेनमेंट नेटवर्क, जिन्हें “न्यूज़ चैनल" कहा जाता है चलती फिरती भाषा में, उनपर इस्तीफ़ा कांडों के मजे लीजिये |
टाटा !!!
--देवांशु
#बहुत दिन हुए बकवास किये हुए
(फोटो गूगल के साभार चुराया)
अरे कहां चले भाई! अभी तो किस्से शुरु ही किये थे इस्तीफ़े के। चल दिये?
जवाब देंहटाएंवाह! हम भी कमेंट कर्म से इस्तीफ़ा देकर निकल लेते हैं।
अथ: श्री इस्तीफा कथा समाप्तम :).
जवाब देंहटाएंत्यागपत्र संदर्भ नाम की पुस्तक रचनी होगी, आगामी पीढ़ी के लिये।
जवाब देंहटाएंवे इस्तीफे कितने भाग्यहीन होते होंगे जो झट से एक्सेप्ट हो जाते हैं :-(
जवाब देंहटाएंभाव दे कोई तो हम भी दे दें :)
जवाब देंहटाएंहमने भी दे दिया है इस्तीफ़ा!
जवाब देंहटाएंढ़
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थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!
आपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए आज 15/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
धन्यवाद!
आप तो ब्लॉग दुनिया के हरीशंकर परशाई हुए जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग....
जवाब देंहटाएं:-D
जवाब देंहटाएंsateek prsatuti...
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