“मम्मी ये दादा को कुछ नहीं आता, सब गलत पढ़े बैठा है”
हमारे छोटे भ्राता श्री ने मम्मी को मेरी पढ़ाई के बारे में फीडबैक दे मारा |
छोटे भ्राता श्री
नाम : प्रतीक ( इस्कूल ), बब्बू ( घर ) | महल्ले में ये बचपन से कई नामों से जाने गए | सबसे पहले अपनी चुस्त-मांस रहित काया के लिए “पिद्दी" , फिर “बाबा बंटूनी” | बचपन से जितना इनकी हिन्दी वोकैब तंग थी, उतना ज्यादा लिखने का शौक था इन्हें | सबसे पहले डायरी ही लिखना शुरू किया इन्होने , इसके बारे में बाद में बताते हैं |
पहले अक्षर ज्ञान, तो बात ये रही की हम जाना शुरू कर दिए इस्कूल, ये साहब अभी घर में रहते थे | “हमहू बड़े हुई जाई, गाड़ी बिक्की से इस्कूल जाई” | ये उनके कुछ उदगार थे जिसमे इनके ज्ञान-पिपासु होने का संकेत सबसे पहले हमारे माताश्री और पिताश्री को मिला | इन्हें बोला गया कि दादा पढ़ता है, उसी कि किताब से तब तक पढ़ डालो , फिर जाना इस्कूल | इन्होने शब्द ज्ञान आरम्भ किया |
“च" से “बन्नच"
“छ" से “पिचकल्ली”
“ट" से “मिनाटर”
तो जब हमने इनको कहा कि तुम गलत पढ़ रहे हो तो इनका फीडबैक था शुरुआत में लिखा सेंटेंस , एक तुर्रे के साथ “ मम्मी ये दादा को कुछ नहीं आता, सब गलत पढ़े बैठा है, च से चम्मच कहता है, बन्नच नहीं कहता है”|
इससे कुछ दिनों पहले ही हम इनको सिखाए थे “बब्बू पता है कौन चे इच्कूल में पलते हैं , थल थथी थिथू मंदिल |”
खैर ये सब तो भाषा ज्ञान की शुरुआत थी | धीरे-धीरे इनका शब्दों का पिटारा बढ़ निकला | जब ये स्कूल जाने लगे तो एक दिन पापा जी ने श्रुतलेख (इमला) लिखवाया | शब्द बोले गए “दुर्योधन" और “चंद्रमा" | इन्होने लिखे “दउधन” और “चंडमा" | सूते गए |
फिर जब धीरे धीरे इनका ज्ञान और बढ़ा और एक दिन मम्मी टीवी पर कुछ इंग्लिश में लिखा पढ़ रही थी तो इनके मन में एक जिज्ञासा उठी और पूछ बैठे “मम्मी का आपौ पढ़ी-लिखी हो ??” | सूते गए |
पापा कभी-कभी इन्हें घुमाने नहीं ले जाते थे | एक दिन इन्होने अपना दर्द डायरी के हवाले किया :
“दादा रोज हर बार डगदर बाबू के यहाँ जाता है, हमको कभी नही जाने देता है |”
उसी पन्ने में नीचे इंग्लिश टू हिन्दी ट्रांसलेशन भी था |
“सर कमिनसर"
“मैं अचर जी से पुछता हू की मैं अनदर आ सकता हू |” ( यहाँ अचर जी से तात्पर्य आचार्य जी से है )
कुछ दिनों पहले इस डायरी को ढूँढने की कवायद की गयी | डायरी तो मिल गयी, पर ये पन्ना गायब था |
खैर मुद्दा ये नहीं है | मुद्दा ये है कि इनको हमारी दादी जी से कुछ ज्यादा लगाव था | “हमहू बड़े हुई जाई , दादी का बलब लिए जाई और पान खाय के आई” | यहाँ से इनके “गुलकंड” वाले पान के प्रति असीम लगन का पता भी चला, जनता-जनार्दन को |
फिर एक दिन ये हुआ कि इनसे दादी की रसोई की चाय की पत्ती बिखर गयी | इनको लगा कि ये फिर सूते गए | ये घर से निकल लिए कि माहौल ठंडा हो जाए , फिर वापस आते हैं | काफी देर तक ये नहीं आये वापस तो माताश्री घर के बाहर ढूँढने गयीं | “पच्चासा" उस टाइम का सबसे क्रेज वाला गेम हुआ करता था | मम्मी को लगा कि ये वही खेल रहे होंगे | आवाज़ लगाई गयी | साहब का कोई अता पता नहीं |
महल्ले की एक खासियत है यहाँ हर टाइम कोई ना कोई घूमता टहलता मिल जाता है | गुड्डू उर्फ टोका मास्टर वहीँ घूम रहे थे | बोले “का बात भाभी, कहिका ढूंढ रही हउ” | “बब्बू पता नहीं कहाँ निकल गए हैं , आवाज़ लगा रहे, आ ही नहीं रहे |” शक गया कि दूसरे वाले गुड्डू और मोनू के साथ होंगे | गुड्डू (दूसरे वाले) के घर में ताला लगा था , मोनू भी घर पर नहीं थे | इस बीच राजाराम ज्ञान लेकर आ गए “यार गुड्डू अबहीं एक सार बाबा आवा रहे, भीक मांगे वाला” | इसको सुनते ही मम्मी की हालत खराब | युद्ध स्तर पर सर्च शुरू हुई | अब तक महल्ले के कुछ १५-२० लोग इकठ्ठा हो चुके थे | हर तरफ “बाबा बंटूनी”, “पिद्दी", “बब्बू" की आवाजें लग रही थीं | आधा घंटा बीत गया , बब्बू दादा कि कोई खबर नहीं |
मम्मी ने कहा कि “तुम लोग यहाँ ढूंढो, हम पुलिस में रिपोर्ट लिखा के आते हैं” | बब्बू दादा का एक खूबसूरत सा फोटो भी ढूंढ लिया गया |
इस बीच ढूँढने वालों में "दूसरे वाले गुड्डू" की अम्मा भी शामिल हो गयीं | वो किसी के यहाँ बर्तन धोने जा रहीं थीं , रास्ते में गाय ने धक्का दे दिया था तो कीचड़ में गिर गयीं थीं, अपनी धोती बदलने आयीं थी | वो उसी हालत में बब्बू दादा-सर्च अभियान में लग गयीं | इसी दौरान ये बात भी आयी की जब वो घर से निकल रही थीं तो बब्बू दादा उनसे कुछ बात कर रहे थे | अब तक मम्मी तैयार हो गयी थीं पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखवाने जाने के लिए | गुड्डू की अम्मा बोली “ भाभी हमहू चलित है तनी धोती बदल लेई” |
और जैसे ही उन्होंने घर का दरवाज़ा खोला | एक आवाज़ उठी “अरे बंटूनी तो हियाँ बैठे” | बब्बू दादा उन्ही के घर में बंद हो गए थे |
सबसे पहले तो बब्बू दादा को मम्मी-दादी ने गले लगाया, नहलाया-धुलाया ( साहब ज़मीन पर लेटे पाए गए थे ) | फिर सूते गए| हर कोई बधाई देने आने लगा : “बंटूनी मिली गए" |
बाबा बंटूनी का एक संक्षिप्त साक्षात्कार लिया गया जिसमे उन्होंने चाय की पत्ती फ़ैलाने की बात स्वीकारी | उन्होंने ये भी बताया कि जब सब लोग आवाज़ लगा रहे थे तो वो दरवाज़ों के बीच से सब देख रहे थे | कुछ लोगो ने घर के अंदर आवाज़ भी लगाई, पर ये मारे डर के बोले नहीं कि कहीं बाहर निकाल के इन्हें और ना मारा जाए |
इस घटना के बाद से दो बातें हुईं, पहली तो बब्बू दादा महल्ले में और फेमस हो गए, हर कोई इन्हें जानने लगा, एक स्टार वाला रूतबा | दूसरा हम लोगो का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया क्यूंकि घर का वही दरवाज़ा खुला रहता जिसपे या तो दादी का पहरा होता या माता श्री की पैनी निगाह |
उस दिन शाम को जब पापा ऑफिस से घर आये थे तो ये बात खुद बब्बू दादा ने डरते डरते पापा को बताई थी | “पापा आद अम को गए ते” | फिर ये अच्छे से सूते गए |
-- देवांशु
Aise hee soote gaye "talented" bachhe bade hokar naam roshan karte hai :-)
जवाब देंहटाएंहाँ एक दिन बोले थे की अपना नाम बदल के प्रतीक रोशन रख लेते हैं, पूरे खानदान का नाम रोशन हो जायेगा !!!
हटाएंआबे सूंता-सांती कछु जादा ही करने की परम्परा रही है तुम्हरे हियां...
जवाब देंहटाएंख़ैर्. वो सब तो ठीक ही है क्योंकि सुंतने के बाद ऐसे निकले हो तुम लोग तो बिना सुंते जाने कैसे निकलते मगर ये बलब का का मतबल है भाई???
बलब का मतलब बल्ब , नहीं समझी !!!!
हटाएंसुताई होती इतनी नहीं थी, पर बब्बू दादा का सुताई पर कुछ ज्यादा ही प्रेम था, घूम-घूम कर सुतने का जुगाड़ ढूंढ लेते थे :) :)
गज़ब सुताई होती है रे :):)..यानि खूब पक्के हो गए होंगे.
जवाब देंहटाएंअरे सुताई का मतलब दो चार थप्पड़, इसमे कहाँ कुछ होने वाला था :)
हटाएंWo hathipur ki galiyan... Dada... video game pe jo tennis khelte the .. wo bhi to tha :)
जवाब देंहटाएंWaise babbu iika padhiyen to majaa aay jayi :P
“मम्मी ये दादा को कुछ नहीं आता, सब गलत पढ़े बैठा है”
जवाब देंहटाएंहद है यार ... गलत सलत पढ़े तुम ... सूता गए बब्बू भईया जी ... घोर कलयुग है भई !
बांच लिये पूरा। आनंदित हुये। बब्बू के बारे में क्या कहें? कुछ कहेंगे तो बेचारे फ़िर सूते जायेंगे। :)
जवाब देंहटाएंबब्बू का स्टेटमेण्ट पेश किया जाये!
जवाब देंहटाएंजय हो, कम से कम व्यक्त तो कर पा रहे हैं, बहुतै धुरन्दर तो व्यक्त ही नहीं कर पा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 30/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
:):) हर बात पर सुताई ....कुछ ज्यादा हो गया .... तभी न छुप कर बैठे थे बब्बू मियां
जवाब देंहटाएंसूते गए ....
जवाब देंहटाएंपोस्ट बहुत पसंद आया
हार्दिक शुभकामनायें
बढ़ियाहै.....
जवाब देंहटाएंसंस्मरण मोड :-)
जवाब देंहटाएंgerat...fokat me hi hit ho gaye ho....mazak kar raha hu...facebook pe aapke blog ke kashide kadh du kya ?
जवाब देंहटाएं
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