पूरी-पूरी रात तन्हाईयाँ काटते हुए जब मन बोझिल सा हो जाता है तो एक आवाज़ आती है की "रात भर सर्द हवा चलती रही रात भर हमने अलाव तापा" | लगता है जैसे कोई अपनी बात बहुत करीब से कह रहा है |
या रहीमदास जी के कहे दोहे से इतर सोचते हुए एक जुलाहे से रिश्ते बचाने की कवायद कोई सुझाता है "जब कोई तागा ख़त्म हुआ या टूट गया" |
या है कोई जो खुदा से कह सकता है की "पूरे का पूरे आकाश घुमाकर अब तुम देखो बाज़ी"|
जो "मौत को नज़्म" कहता है | मरने के बाद "रोशन खामोशी के वाले कमरे" में जाना चाहता है क्यूंकि "मकां की दूसरी मंजिल पर अब कोई नहीं रहता" |
या फिर जब सिनेमा की बात आती है तो उसने पीढियां देख डाली हैं | अनेक किस्से हैं , "कल तुम टाइम्स ऑफ़ इंडिया की कटिंग ले आओगे तो क्या मैं उस पर भी धुन बनाऊंगा" सुनने के बाद एक कालजयी गीत बनता है "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है" | या सिर्फ एक लाइन "चप्पा-चप्पा चरखा चले" पर पूरी फिल्म का संगीत बन जाता है | मेरे जैसे ना जाने कितने लोगो का बचपन “चड्ढी पहन के फूल खिला है” देख-सुन के बीता है | जो आइटम नंबर भी लिखता है तो उसमे "किवाम की खुशबू" डाल देता है | "जय हो” पर पूरी दुनिया झूम उठती है | और जो चुटकी लेने पर भी नहीं चूकता "बाद मुद्दत के मिली हो तुम, ये जो थोड़ा सा भर गयी हो तुम , ये वज़न तुम पर अच्छा लगता है "
कुछ ऐसा ही है वो शख्श , ना जाने कितनी पीढियां , हर पीढी के ना जाने कितने शायर , ढेरों पढ़ने-लिखने और सुनने वाले , उससे इंस्पायर हुए हैं | एक "कैफियत" हुआ करती थी | अब "गुल्ज़ारियत" भी होती है | "त्रिवेणी" लेकर वो ही आये हैं "कल का अखबार था, पढ़ भी लिया रख भी दिया" |
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हमेशा इंसान ही सम्मानित नहीं होते पुरस्कार पाकर, कुछ पुरस्कार इस बात से भी सम्मानित हो जाते हैं की वो किसे दिए जा रहे हैं |
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थैंक यू गुलज़ार आज आपके चक्कर में इस बंदे ने कुछ लिखा तो सही......
जवाब देंहटाएंअगर इस सबको लिखना कहें तो लिखने की शुरुआत ही दोस्त गुलज़ार साहब को पढ़-सुन कर ही हुई थी | उनका शुक्रिया तो हमेशा रहेगा |
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जलियाँवाला बाग़ हत्याकाण्ड की ९५ वीं बरसी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह, प्रेरक व्यक्तित्व की छाप, इस पोस्ट पर।
जवाब देंहटाएंहमने देखि है उन आँखों की महकती खुशबू :)
जवाब देंहटाएंमुबारक गुलज़ार साहब.
Wow
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