आँगन का पीपल , कहता बहुत कुछ है ,
वो दास्ताँ सुनाता है , बीते हुए उस कल की ,
विरासत सिर्फ़ जायदाद की नहीं होती ,
होती है तमाम उन कहानियों की ,
जो बच्चे पोंपले मुँह वाली दादियों - नानियों से सुनते थे ।
होती है दादाओं नानाओं के वो कंधे ,
जिनपर ना जाने कितने मेले ठेले गुज़र गए ।
विरासत होती है घुप्प अमावस की काली रात में ,
तारे गिनने और जोड़ के नाम लिखने की कारगुज़ारी ,
होती है चाँदनी रात में ,
सुइयों के नाके में धागे डालने की जुगत ।
होती है , बहनों की ठिठोलियाँ ,
भाइयों के झगड़े ,बड़ों के तजुरबे ।
विरासत होती है ,
आँगन में घंटों पकती रसदार सब्ज़ी की महक ,
चूल्हों पर सिंकती रोटियों की मिठास ।
होती है आँसू की वो लड़ियाँ ,
जो मीठे भी होते हैं , नमकीन भी और कड़वे भी ।
आँगन का पीपल उस विरासत की आख़िरी गवाही है ,
आख़िरी चश्मदीद,
जिसने देखा था लोटा और चादर लेकर घर से ,
बाहर जाते लड़के को , तब पेड़ सिर्फ़ बीज था ।
उसने देखा था उस लड़के की नयी नवेली दुल्हन को ,
दिवाली की छुट्टियों में घर आते ।
वो कोंपल ही था , नज़र नहीं आया ।
उसने देखा लड़के के बच्चों को बढ़ते हुए ,
पेड़ पौधा हो चुका था और नए बच्चे घर नहीं रुकते थे ,
घर गंदा जो ठहरा ।
उसने सुना उन बच्चों को नौकरी की तलाश में ,
किसी और शहर जाते हुए ।
तब पौधा बड़ा हो रहा था ।
फिर उनके बच्चे जो कभी नहीं आए ,
भी उसके ज़हन में लाए गए ।
पेड़ ने आगन पर क़ब्ज़ा कर लिया था ,
दीवारें ढह रही थी ।
एक दिन घर गिर गया ।
उग आयी खर पतवार ।
अब ना जिसे कोई काटने वाला था ना साफ़ करने वाला ।
पेड़ भी बढ़ते बढ़ते घर की पहचान हो गया ।
अब लोग घर को पेड़ से जानते हैं ।
भूतों की कहानियाँ हैं इसके इर्द गिर्द ।
वो भूत नक़ली नहीं ,
उसी विरासत की भटकती आत्माएँ हैं ।
पेड़ गवाह है , चश्मदीद गवाह !!!
उस बीते हुए कल की ,
जब एक अंधी दौड़ तोड़ रही थी विरासतों का ताना-बाना !!
———
अपने घरों में पीपल उगने मत दीजिए ,
उसे आप काट भी नहीं सकते !!!!
वो दास्ताँ सुनाता है , बीते हुए उस कल की ,
जब एक अंधी दौड़ तोड़ रही थी विरासतों का ताना-बाना !!
विरासत सिर्फ़ जायदाद की नहीं होती ,
होती है तमाम उन कहानियों की ,
जो बच्चे पोंपले मुँह वाली दादियों - नानियों से सुनते थे ।
होती है दादाओं नानाओं के वो कंधे ,
जिनपर ना जाने कितने मेले ठेले गुज़र गए ।
विरासत होती है घुप्प अमावस की काली रात में ,
तारे गिनने और जोड़ के नाम लिखने की कारगुज़ारी ,
होती है चाँदनी रात में ,
सुइयों के नाके में धागे डालने की जुगत ।
होती है , बहनों की ठिठोलियाँ ,
भाइयों के झगड़े ,बड़ों के तजुरबे ।
विरासत होती है ,
आँगन में घंटों पकती रसदार सब्ज़ी की महक ,
चूल्हों पर सिंकती रोटियों की मिठास ।
होती है आँसू की वो लड़ियाँ ,
जो मीठे भी होते हैं , नमकीन भी और कड़वे भी ।
आँगन का पीपल उस विरासत की आख़िरी गवाही है ,
आख़िरी चश्मदीद,
जिसने देखा था लोटा और चादर लेकर घर से ,
बाहर जाते लड़के को , तब पेड़ सिर्फ़ बीज था ।
उसने देखा था उस लड़के की नयी नवेली दुल्हन को ,
दिवाली की छुट्टियों में घर आते ।
वो कोंपल ही था , नज़र नहीं आया ।
उसने देखा लड़के के बच्चों को बढ़ते हुए ,
पेड़ पौधा हो चुका था और नए बच्चे घर नहीं रुकते थे ,
घर गंदा जो ठहरा ।
उसने सुना उन बच्चों को नौकरी की तलाश में ,
किसी और शहर जाते हुए ।
तब पौधा बड़ा हो रहा था ।
फिर उनके बच्चे जो कभी नहीं आए ,
भी उसके ज़हन में लाए गए ।
दीवारें ढह रही थी ।
एक दिन घर गिर गया ।
उग आयी खर पतवार ।
अब ना जिसे कोई काटने वाला था ना साफ़ करने वाला ।
पेड़ भी बढ़ते बढ़ते घर की पहचान हो गया ।
अब लोग घर को पेड़ से जानते हैं ।
भूतों की कहानियाँ हैं इसके इर्द गिर्द ।
वो भूत नक़ली नहीं ,
उसी विरासत की भटकती आत्माएँ हैं ।
पेड़ गवाह है , चश्मदीद गवाह !!!
उस बीते हुए कल की ,
जब एक अंधी दौड़ तोड़ रही थी विरासतों का ताना-बाना !!
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अपने घरों में पीपल उगने मत दीजिए ,
उसे आप काट भी नहीं सकते !!!!
-- देवांशु
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