इश्क और रोग मे बहुत समानताएं होती हैं । रोग के लक्षण साफ दिखने पर भी तसल्ली के लिए मेडिकल टेस्ट होना बहुत जरूरी होता है । उसी तरह इश्क मे भी जब तक “हाँ” वाला स्पष्टीकरण नया मिल जाए , मामला लटका ही रहता है , फिर चाहे “सिग्नल” साफ मिल रहे हों ।
मसलन , शिव और शालिनी की नजरें मिल चुकी थीं । शालिनी मुस्कुरा भी चुकी थी । पर शिव को अभी भी ये सब “महज एक इत्तेफाक” वाली फीलिंग ही देता था ।
अब शालिनी की तरफ की बात जान लेते हैं । शिव उसे अच्छा लगने लगा था और शिव को बीते दो बार मिलने के बाद हद से ज्यादा नर्वस देखा था तो शक यकीन मे बदलना तो चाहता था , पर फिर वही इकरार होने तक इनकार हो जाने की संभावना थी । इसीलिए उसने पढ़ने का बहाना भी बनाया था पर वहाँ पर अंग्रेजी बीच मे आ गई थी । वैसे उसे खास फरक पड़ता नहीं पर शिव की मम्मी के सामने दुबारा जाने की हिम्मत भी नहीं हुई । कई बार छत के चक्कर लगाए पर शिव को देखते ही वो वहाँ से हट जाती ।
बस उस शाम ऐसा नहीं हुआ था । उसके बाद बहुत कुछ बदल गया था । ये वो उम्र थी जब इश्क मे इंसान खोया खोया रहता है । सबसे बड़ी बात ये होती है की आपको लगता है कि आपके खोए होने का इल्म किसी को नहीं होगा , पर आप ये भूल चुके होते हैं की आपसे बड़ा हर इंसान इस उम्र से गुज़रा होता है । हाँ, इश्क होना या नया होना , ये जरूरी नहीं । शालिनी की मम्मी को सब समझ आ चुका था पर वो कुछ कहती नहीं थीं । वर्मा जी को भी सुगबुगाहट हो चली थी । इसमें तड़का इस बात का भी लगा था की शालिनी की डायरी उनके हत्थे चढ़ गई थी । वैसे तो साहित्यिक आदमी थे पर ये कविताएं थोड़ा चुभ सी रहीं थीं ।
“थोड़ा पढ़ाई पर ध्यान दो” ये हिदायत देकर मामले को रफादफा किया गया था ।
शिव और शालिनी के घर आमने सामने थे और उनके अपने कमरे भी । पर कोई खिड़की या दरवाजा होने की बजाय , एक रोशनदान आमने सामने था । ज़माना इतना आगे भी नहीं था कि प्रीतम आन मिलो की तर्ज पर इशारे हो पाएं । धीरे धीरे एक सिग्नल फिट बैठ गया था : कमरे की लाइट । जिसके जलने -बुझने को “मिस्ड कॉल” “गुड नाइट” की मान्यता प्राप्त थी ।
ये सिलसिला बोर्ड के इग्ज़ैम तक चला । शिव इम्प्रेशन ठीक करने की फिराक मे ठीक ठाक नंबर ले आया । इश्क ने झटका दिया शालिनी को ( हाँ , कभी कभी ऐसा भी हो जाता है ) । रवि इन दोनों से बेहतर नंबर लाया था और वर्मा जी उस पर काफी खुश थे । भले ही कन्फर्म ना हो , पर आपकी “पॉसिबल” गर्लफ्रेंड के पिता आपके दोस्त पर लट्टू हो जाएँ , तो दिल दुखेगा ही । रवि ने पहले ही अपनी सफाई शिव को दे दी थी पर शिव बेचैन था ( आदतन ) ।
शालिनी ने अपने मीडीअम को बदलकर हिन्दी करने का प्रस्ताव रखा था जो मान लिया गया था । इसके दो फायदे हुए थे , एक तो नंबर कम आने का ठीकरा अंग्रेजी पर फोड़ दिया था और दूसरा अब कुछ ट्यूशन शिव के साथ होने की संभावना बन चुकी थी । इस बात की खुशी थी जिसे फिलहाल छुपाकर रखा गया था ।
कुल मिलकर एक तनाव था माहौल मे , जिसमें सबसे ज्यादा मजे शेखू के हो रखे थे । वो सबके मजे ले रहा था । वो अकेला था जो हर घर मे जाता था । सबकी खबर उसे थी ।
धीरे धीरे नए क्लास की ट्यूशन शुरू हो गयीं । शिव और शालिनी की सिर्फ एक ट्यूशन साथ थी : रसायन विज्ञान । पर वो ना तो साथ आते ना साथ जाते । वहाँ भी बात होने का कोई जुगाड़ नहीं । अलग अलग सीटें थीं , लड़के और लड़कियों की । सारा कम्यूनिकेशन सिर्फ कमरे की लाइट से होता । इस बीच रवि के जन्मदिन पर एक बार मौका था बात करने का, पर दोनों उस मौके को चूक गए थे । इस सबमे दो साल कब निकले पता ही नहीं चल पाया । इग्ज़ैम भी हो गए फिर से । शालिनी, रवि और शिव ने प्रतियोगी परीक्षाएं भी दे दीं । शालिनी का मेडिकल मे और रवि का इंजीनियरिंग मे हो भी गया । शालिनी दिल्ली चली गई और रवि बैंगलोर । और बचे रह गए , शिव और शेखू । शिव अभी भी तैयारी मे लगा था । शालिनी साल मे दो-तीन बार आई पर अब शिव उससे कटने सा लगा था ।
इस बीच शेखू ने भी 12 वीं पास कर ली और शहर के ही कालेज मे भर्ती हो लिया । शिव इस साल भी अपने पसंद के कालेज नहीं पा पाया और उसने एक साल और तैयारी करने का सोचा । और अब वो शेखू से भी नहीं मिलता ।
मोहल्ले मे वैसे तो कुछ नहीं बदला था क्यूंकी शरारतों की नई पीढ़ी आ चुकी थी । पर शिव को सब कुछ काटने को दौड़ता । घर मे सब उसे इन्करेज ही करते थे । पर वो कहीं दूर जाना चाहता था , पर दूर जाने की कोई वजह नहीं मिल रही थी । इश्क (जो ना तो कन्फर्म था और फिलहाल बचता भी दिख नहीं रहा था ) ने अजीब सी नाव की सवारी कर ली थी , जो किसी भी ओर बहने को तैयार नहीं थी ।
कहानी ठहर गई थी ।
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