शनिवार, 19 दिसंबर 2020

दो चार कदम पे तुम थे , दो चार कदम पे हम थे ( इश्क़ वाली कहानी भाग -४ )

 "अबे इतना काहे परेशान हो रहे हो " रवि ने सवाल किया ,  जिसका जवाब ऐसा लग रहा था की शिव के पास  या तो था नहीं या वो देना नहीं चाहता था।  

दरसल हुआ यूं था कि शालिनी जब शिव से मिलने आयी थी , तो उसने तमाम इधर उधर की बातें किये बिना , ये बताया था कि उसे "गणित" में कुछ दिक्कत है और वो शिव से "पाइथागोरस" समझना चाहती है। वैसे तो शिव के लिए ये ज्यादा मुश्किल काम नहीं था और रवि भी था जो उसे मदद कर  सकता था। पर दिल धकाधक किये जा रहा था और दिमाग कुछ समझने में असफल था।  खुद ज्यादा कन्फ्यूज़ न हो जाए इसलिए शेखू को इस बारे में कुछ बताया नहीं था।  

"यार , उसके सामने भूल गया तो ?" पिछले इम्प्रैशन के ख़राब होने की वजह से शिव पर परफॉरमेंस का प्रेशर साफ दिखाई दे रहा था। 

"हो जायेगा बे, कब आ रही है ? " रवि  ने पूछा।  

"कल सुबह" शिव बोले।  

"चुपके चुपके देखी  है ना , वसुधा को पढ़ाने  के लिए बच्चन क्या क्या नहीं करते " रवि ने समझाया।  

"तो" 

"तो ठीक है ना , आज रात घोंट जाओ सब , कल जीवन का सबसे बड़ा वाइवा है तुम्हारा, मैं चलता हूँ , ज़रूरत हो  तो बुला लेना "

कहकर रवि चला गया। 

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अब कहानी की मुख्य ( अब तक की ) नायिका के बारे में जान लेते हैं। 

आकाश वर्मा को हमेशा लगता था की वो आर्मी  के लिए ही बने हैं।  अकेले में  खुद के नाम के आगे कैप्टेन लगाकर चौड़े होते रहते।  दो बार आर्मी का एग्जाम दिया , कभी रिटेन तो कभी फिजिकल में बाहर हो गए। फिर  घर की और समस्याओं   को हल करने की जुगत में आगे की आगे की पढाई पूरी की ।  बच्चों को ट्यूशन तो पढ़ाना  कॉलेज  में ही शुरू  कर दिया था , कालेज से निकलकर एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया , वहीँ से करते करते शहर के कालेज में पहले टेम्पररी और   फिर परमानेण्ट हो गए।  इस बीच शादी भी हो गयी , संध्या से और एक बेटी भी हुई - शालिनी । माली हालत हिली हुई थी   पर तब संध्या ने  घर को संभाला।  क्लासिकल संगीत  की पढ़ाई की थी  , वही बच्चों को सिखाने लगीं।    धीरे धीरे  समय बीता।  आकाश भी  नौकरी में अच्छा करने लगे।  इस सब के  बीच जिस एक चीज़ से समझौता नहीं किया वो था शालिनी की परवरिश । 

शालिनी अकेली बेटी थी तो बहुत ही प्रोटेक्टेड से माहौल में पली-बढ़ी। ज्यादा सहेलियां नहीं थीं और जो  थीं भी वो वर्मा जी के डर  से नदारद रहतीं।  डर  ज्यादा ये था की वो खुद किताब लेकर बैठ जाते।  

अब अगर हमारे सो कॉल्ड "नायक" लोग जवान हो रहे थे तो नायिका भी उसी ओर  बढ़ रही थी।  वर्मा जी साहित्यिक आदमी थे वो गुण  बेटी में भी आये।  और जब से दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे में काजोल की "अनदेखा अंजाना " कविता सुनी थी तो कविता भी लिखने लग पड़ीं थी।  मसलन :

तुम जिस रोज़ इन नज़रों के सामने से गुजरोगे , 

सांसे चलने का बस रिवाज़ निभ रहा होगा उस पल । 

मुझे बचाने भर को ही सही , तुम ठहर जाना , 

कुछ लम्हों के लिए , पल भर के लिए।  

 पर ये सब डायरी में ही था और डायरी को उतनी सुरक्षा दी गयी थी जिसको  कोई भी आर्मी वाला ना भेद पाए। 

नए घर में आने तक वो "अनदेखा अंजाना" मिला नहीं था।  नए घर में सफाई करते वक़्त काफी हद तक बची रह गयीं "ममता कुलकर्णी" को देखकर ये अंदाज़ा लग गया था की घर में घुसपैठ हुई है।  घुसपैठियों की उम्र और हरकतों का भी आईडिया था , और संभावित चेहरे भी दिख ही रहे थे।  

शिव के घर से आने के बाद वर्मा जी का पारा चढ़ा हुआ था।  कारण बता नहीं रहे थे पर सब साफ़ साफ़ समझ आ रहा था।  इस लिए शिव चर्चा का विषय बहुत देर तक बना रहा।  

हाँ , गणित में घर में सबका हाथ तंग था।  डरते डरते , शालिनी ने संध्या से पूछा कि  क्या वो शिव से मिलकर कुछ पढ़ सकती है।  इस हिदायत के साथ की पापा के सामने नहीं जाओगी और आंटी के सामने बैठ के पढ़ोगी ,आज्ञा मिल गयी।  

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तय वक़्त पर नायक - नायिका बैठक में इकठ्ठा हुए।  शिव की मम्मी वही थीं।  किताबें खुलीं और शिव ने धड़धड़ाते हुए बोला:

"कर्ण  पर बने वर्ग का क्षेत्रफल , लम्ब और आधार पर  बने वर्गों के क्षेत्रफलों  के योग के बराबर होता है"

ख़ामोशी छा गयी।  शालिनी ने एकदम  कंफ्यूज नज़रों से देखा उसे और बोली : मुझे कुछ समझ नहीं आया , अंग्रेजी में बता सकते हो , मैं इंग्लिश मीडियम से हूँ। 

एक पल में पाइथगोरस ने एस्केप वेलोसिटी  पकड़ ली।   आँखों के सामने घनघोर अँधेरा था।  इस सिचुएशन में अंग्रेज़ों और खासकर लार्ड मैकाले की मदर-सिस्टर को याद किया जा सकता था पर सारा गणित विज्ञान धरा रह गया था।  

"कोई बात नहीं , खुद से ट्राई करती हूँ , कुछ होगा तो पूछ लूंगी  " कहकर वो शिव की मम्मी से बात करने लगी।  शिव थोड़ी देर तो वहां बैठा फिर कुछ काम का बहाना बनाकर चला  गया  . कुछ देर में शालिनी भी चली गयी। 

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"मतलब प्यार के बीच में हिंदी-अंग्रेजी  आ गयी " शेखु ने  पूछा।  

लगातार दो इम्प्रैशन खराब होने से शिव सदमे में था।  कुछ समझ नहीं आ रहा था।  शेखु ने इस बात पर उसको छेड़ने में  कसर नहीं छोड़ी थी।  कई दिन बीते।  शालिनी पल भर को दिखती और काफूर हो जाती।  हफ्ते दस दिन गुज़रे होंगे।  जो "ऑब्वियस्ली" सालों  जैसे लग रहे थे शिव को। 

*****

शाम एकदम वैसी थी जैसी  होनी चाहिए।  छोटे शहरों की शाम जैसी होती है वैसी।  सड़क का शोर थोड़ा दूर होता है , हर घर से खाने की महक आ रही होती है।  कहीं टीवी चल रहा होता है तो कहीं गाने।  शिव अपनी छत पर खड़ा था और नज़रें जहाँ होनी चाहिए थीं वहीँ थीं , मतलब शालिनी के घर की छत के जीने के दरवाज़े पर।  अक्सर उसे लगता था की इससे शालिनी निकलकर उसे देखेगी और फिर ये भी उसे देखेंगे और फिर दोनों एक दूसरे को देखेंगे।  और इस बीच कोई और उन्हें नहीं देखेगा।  ये सब चल ही रहा था दिमाग में की दरवाज़ा खुला।  और इस बात से बेखबर कि  कोई नज़र उस ओर ही है , अपनी डायरी लेकर शालिनी छत पर आयी।  

शिव इससे पहले की कहीं और देखता , शालिनी ने उसे देख लिया।  एक पल के लिए नज़रें मिलीं।  शिव को लगा ये नज़रों के कनेक्शन का सर्किट टूटेगा।  पर ऐसा हुआ नहीं।  कनेक्शन  मिनट भर चल गया होगा।  

और शालिनी  मुस्कुरा दी।  तीसरा इम्प्रैशन ठीक चल गया था।  और नायक सांसे चलते रहने भर रुक भी गया था।  

*****

अब हैडलाइन को जस्टिफाई कर देते हैं।  ये बहुत सिंपल है।  दोनों छतों के बीच की दूरी कुछ मीटर  होगी जिसे २-४ कदम की दूरी माना जा सकता है।  और सिचुएशन को फ़िल्मी बनाने के लिए मान सकते हैं की रवि अपने रिकॉर्डर पर गाना बजा रहा  है : 

दो चार कदम पे तुम थे , दो चार कदम पे हम थे। 

दो चार कदम ये लेकिन सौ मीलों से क्या काम थे। 

माधुरी दीक्षित का क्लास अलग है।  काजोल को मानने वाली नायिका और ममता कुलकर्णी को देखने वाला नायक , माधुरी के गाने सुन रहे थे। 

कहानी अब आगे बढ़ चुकी थी !!!


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