कहने को तो बड़े लोग कह गए हैं की नाम में कुछ रखा नहीं , पर नाम जाने बिना काम चलता भी कहाँ है | जैसे चेहरा पहचानने से ज़्यादा अंतर भेदने के काम आता है, कुछ कुछ वैसा ही नाम के साथ है | नाम ऐसी बला है जो है तो आपकी पर उसका उपयोग सबसे ज्यादा दूसरे करते हैं , जैसे रिक्शेवाले का रिक्शा हो : होता रिक्शेवाले का है पर बैठते और लोग ही हैं |
इसलिए नाम की महिमा अपरम्पार न भी हो तो अपार तो है ही...
तो , अब तक की कहानी में ( मने भूमिका की भी भूमिका में ) आपने जाना कालोनी , घर और हमारे अब तक के तीन पात्रों के बारे में | अब चूँकि ये तीनों काफी दूर तक जायेंगे तो इनके नाम भी पता होने ज़रूरी हैं | चीज़ों का आईडिया रहेगा |
नायकों को नाम देना उतना ही मुश्किल काम है मेरे लिए जितना कोई एक कहानी कह पाना | इसलिए नाम अप्रसांगिक लगें तो गलती मेरी होगी |
ये कहना मुश्किल है की तीनों में कहानी का मुख्य पात्र कौन सा है इसलिए परिचय एक बार फिर कालोनी के भूगोल के आधार पर कराने की कोशिश कर रहा हूँ |
दो दोस्तों के घर की दीवारें कॉमन नहीं हैं पर कोने कॉमन हैं | उसमे से एक का नाम शिव और एक का नाम शेखर है |शेखर को घर में शेखू भी कहते हैं | शिव के पिताजी शहर के नामचीन दवाइयों के सप्लयार हैं | शेखर का अपना घरेलू व्यापार है, घरों के रख रखाव के सामान का | तीसरे दोस्त रवि का घर भौगोलिक रूप से डिस्कनेक्टेड है बाकी दोनों से | शिव और रवि की गली एक है पर घर डायगोनली अपोजिट | रवि के बगल वाला घर शिव के घर के ठीक सामने है और अभी तक "तालायमान" है |
शेखू छत फांद कर अक्सर शिव के घर आ जाता है और चूँकि शिव की पढाई का कमरा ऊपर ही है , इसलिए अक्सर वहीँ पाया जाता है | शेखू का पढ़ाई से नाता बहुत दूर के फूफा के पड़ोसी जैसा है | शिव को पढाई में इंटरेस्ट है या नहीं, इस पर विद्वानों में मतभेद है , क्यूंकि वो उनके साथ भी रहता है जिनको पढाई में इंटरेस्ट है ( जैसे रवि) और उनके साथ भी , जिनको इससे कुछ लेना देना नहीं है ( जैसे अपना शेखू ) | शिव अपने ऊपर डॉक्टर या इंजिनियर बनने का सामाजिक दबाव महसूस करता है , और चूंकि अब वो नौवीं में आ गया हैं इसलिए अत्यधित ऊंचाई ज्यादा दबाव डाल रही है |
बात जहाँ तक रवि की है , तो उसका मामला क्लियर है , उसे न डॉक्टर बनना है और ना इंजिनियर , क्यूंकि पिताजी डॉक्टर हैं और माँ इंजिनियर रह चुकी हैं | वो आर्मी में जाना चाहता है , पढ़ने का शौक है उसे |
कहानी पढ़ाई पर आकर अटक गयी , इसलिये थोड़ा भटका जाए |
शिव के मामा , जो कहीं बाहर सेटल हो गए हैं , गर्मियों की छुट्टियों में उसके लिए वीडियो गेम लेकर आये , पर उस पर एकक्षत्र साम्राज्य शेखू का है , खासकर मारिओ और डकहंट पर उसका हाथ काफी साफ है | रवि को टैंक और टेनिस पसंद है | शिव मोरल सपोर्ट देने में विश्वास रखता है |
तीनों अपने घरवालों की नज़रों में शिव के कमरे में मिलते हैं और पढ़ते हैं , बाकी का आईडिया आप लोगों को लग गया होगा | इसके आलावा तीनों के मिलने की एक और ख़ुफ़िया जगह है | और इस जगह पर मिलकर बैठने की ज़रुरत उसी लिए है जो नौवीं के लड़कों को अक्सर होती है |
अरे भावनाओं में बहकर आप भी ना जाने क्या क्या सोचने लगे | अरे लड़कों ने केवल दो कामों के लिए वो ख़ुफ़िया जगह बनायी है , एक तो पेपर में आने वाले साप्ताहिक "रंगायन" के इम्पोर्टेन्ट नोट्स इकट्ठे कर लें ( "रंगायन" का आईडिया आपको अगर नहीं है तो बता दूँ वो महिला सशक्तिकरण वाला अखबार है जिसमें फोटो और कंटेंट दोनों में प्राथमिकता महिलाओं को दी जाती है ) | दूसरा काम है , बिजली के तारों और बल्बों से खुराफात | इसी ख़ुफ़िया जगह पर ही पिछली दीवाली तीनों को शानदार आईडिया आया था की क्यों ना पूरी कालोनी की झालरों को आपस में जोड़कर ऐसे सिंक किया जाए की सारे झालरें एक साथ जलें और बुझें | टेस्टिंग भी इसी जगह की गयी | बस हाँ, पूरी कालोनी ने दिवाली दिए जलाकर मनाई , वो बात अलग है | मामला एको -फ्रेंडली रहा | तीनों के घरों के फ्यूज़ बल्ब यहाँ पाए जा सकते हैं जिनको दुबारा जलाकर थॉमस अल्वा एडिसन की आत्मा को ठंडक पहुंचाई जाती है और असफल होने पर , रंग बिरंगा पानी भरकर बल्बों को लटका दिया जाता है |
खैर , अब आते हैं की ये ख़ुफ़िया जगह है कहाँ | तो ये जगह है शिव के घर के ठीक सामने वाले "तालायमान" घर में | जिसकी छत रवि की छत से मिलती है और वहां पहुँचने का जरिया भी वही छत है | बिजली का कनेक्शन भी तार के ज़रिये रवि के घर से पहुँचाया गया है |
इस जगह के खोजे जाने की भी एक छोटी सी कहानी है | दरसल एक बार रवि और शिव ने मिलकर शेखू को चैलेन्ज दिया था की इस घर में घुसकर दिखाओ , रात में १२ बजे | शेखू जय बजरंगबली करता घुस गया, छत के रास्ते | पीछे बाकी दोनों भी पहुँच गए | एक कमरा जो थोड़ा अलग सा पड़ता था , और जिसकी खिड़की से केवल शिव की खिड़की दिखती थी, वो तीनो को पसंद आ गया , नाम दिया गया "प्रयोगशाला" | बाकी जुगाड़ भी सेट कर लिए गए |
वर्तमान में , कमरे की दीवारों पर "रंगायन" के नोट्स चस्पा हैं | चित्रों को प्राथमिकता दी गयी है और सिर्फ उन्हीं से कमरा सुसज्जित है | लाखों के दिलों की धड़कन , "ममता कुलकर्णी" का एक बड़ा चित्र है | जिसे बीचों बीच जगह मिली है | बाकी दीवारों पर या तो तार हैं या बल्ब |
तीनों खाना खाने के बाद अक्सर यहाँ मिलते हैं | क्यूंकि इस टाइम तीनों , ऑफिशियली पढ़ने की समय सीमा से बाहर होते हैं |
इसलिए नाम की महिमा अपरम्पार न भी हो तो अपार तो है ही...
तो , अब तक की कहानी में ( मने भूमिका की भी भूमिका में ) आपने जाना कालोनी , घर और हमारे अब तक के तीन पात्रों के बारे में | अब चूँकि ये तीनों काफी दूर तक जायेंगे तो इनके नाम भी पता होने ज़रूरी हैं | चीज़ों का आईडिया रहेगा |
नायकों को नाम देना उतना ही मुश्किल काम है मेरे लिए जितना कोई एक कहानी कह पाना | इसलिए नाम अप्रसांगिक लगें तो गलती मेरी होगी |
ये कहना मुश्किल है की तीनों में कहानी का मुख्य पात्र कौन सा है इसलिए परिचय एक बार फिर कालोनी के भूगोल के आधार पर कराने की कोशिश कर रहा हूँ |
दो दोस्तों के घर की दीवारें कॉमन नहीं हैं पर कोने कॉमन हैं | उसमे से एक का नाम शिव और एक का नाम शेखर है |शेखर को घर में शेखू भी कहते हैं | शिव के पिताजी शहर के नामचीन दवाइयों के सप्लयार हैं | शेखर का अपना घरेलू व्यापार है, घरों के रख रखाव के सामान का | तीसरे दोस्त रवि का घर भौगोलिक रूप से डिस्कनेक्टेड है बाकी दोनों से | शिव और रवि की गली एक है पर घर डायगोनली अपोजिट | रवि के बगल वाला घर शिव के घर के ठीक सामने है और अभी तक "तालायमान" है |
शेखू छत फांद कर अक्सर शिव के घर आ जाता है और चूँकि शिव की पढाई का कमरा ऊपर ही है , इसलिए अक्सर वहीँ पाया जाता है | शेखू का पढ़ाई से नाता बहुत दूर के फूफा के पड़ोसी जैसा है | शिव को पढाई में इंटरेस्ट है या नहीं, इस पर विद्वानों में मतभेद है , क्यूंकि वो उनके साथ भी रहता है जिनको पढाई में इंटरेस्ट है ( जैसे रवि) और उनके साथ भी , जिनको इससे कुछ लेना देना नहीं है ( जैसे अपना शेखू ) | शिव अपने ऊपर डॉक्टर या इंजिनियर बनने का सामाजिक दबाव महसूस करता है , और चूंकि अब वो नौवीं में आ गया हैं इसलिए अत्यधित ऊंचाई ज्यादा दबाव डाल रही है |
बात जहाँ तक रवि की है , तो उसका मामला क्लियर है , उसे न डॉक्टर बनना है और ना इंजिनियर , क्यूंकि पिताजी डॉक्टर हैं और माँ इंजिनियर रह चुकी हैं | वो आर्मी में जाना चाहता है , पढ़ने का शौक है उसे |
कहानी पढ़ाई पर आकर अटक गयी , इसलिये थोड़ा भटका जाए |
शिव के मामा , जो कहीं बाहर सेटल हो गए हैं , गर्मियों की छुट्टियों में उसके लिए वीडियो गेम लेकर आये , पर उस पर एकक्षत्र साम्राज्य शेखू का है , खासकर मारिओ और डकहंट पर उसका हाथ काफी साफ है | रवि को टैंक और टेनिस पसंद है | शिव मोरल सपोर्ट देने में विश्वास रखता है |
तीनों अपने घरवालों की नज़रों में शिव के कमरे में मिलते हैं और पढ़ते हैं , बाकी का आईडिया आप लोगों को लग गया होगा | इसके आलावा तीनों के मिलने की एक और ख़ुफ़िया जगह है | और इस जगह पर मिलकर बैठने की ज़रुरत उसी लिए है जो नौवीं के लड़कों को अक्सर होती है |
अरे भावनाओं में बहकर आप भी ना जाने क्या क्या सोचने लगे | अरे लड़कों ने केवल दो कामों के लिए वो ख़ुफ़िया जगह बनायी है , एक तो पेपर में आने वाले साप्ताहिक "रंगायन" के इम्पोर्टेन्ट नोट्स इकट्ठे कर लें ( "रंगायन" का आईडिया आपको अगर नहीं है तो बता दूँ वो महिला सशक्तिकरण वाला अखबार है जिसमें फोटो और कंटेंट दोनों में प्राथमिकता महिलाओं को दी जाती है ) | दूसरा काम है , बिजली के तारों और बल्बों से खुराफात | इसी ख़ुफ़िया जगह पर ही पिछली दीवाली तीनों को शानदार आईडिया आया था की क्यों ना पूरी कालोनी की झालरों को आपस में जोड़कर ऐसे सिंक किया जाए की सारे झालरें एक साथ जलें और बुझें | टेस्टिंग भी इसी जगह की गयी | बस हाँ, पूरी कालोनी ने दिवाली दिए जलाकर मनाई , वो बात अलग है | मामला एको -फ्रेंडली रहा | तीनों के घरों के फ्यूज़ बल्ब यहाँ पाए जा सकते हैं जिनको दुबारा जलाकर थॉमस अल्वा एडिसन की आत्मा को ठंडक पहुंचाई जाती है और असफल होने पर , रंग बिरंगा पानी भरकर बल्बों को लटका दिया जाता है |
खैर , अब आते हैं की ये ख़ुफ़िया जगह है कहाँ | तो ये जगह है शिव के घर के ठीक सामने वाले "तालायमान" घर में | जिसकी छत रवि की छत से मिलती है और वहां पहुँचने का जरिया भी वही छत है | बिजली का कनेक्शन भी तार के ज़रिये रवि के घर से पहुँचाया गया है |
इस जगह के खोजे जाने की भी एक छोटी सी कहानी है | दरसल एक बार रवि और शिव ने मिलकर शेखू को चैलेन्ज दिया था की इस घर में घुसकर दिखाओ , रात में १२ बजे | शेखू जय बजरंगबली करता घुस गया, छत के रास्ते | पीछे बाकी दोनों भी पहुँच गए | एक कमरा जो थोड़ा अलग सा पड़ता था , और जिसकी खिड़की से केवल शिव की खिड़की दिखती थी, वो तीनो को पसंद आ गया , नाम दिया गया "प्रयोगशाला" | बाकी जुगाड़ भी सेट कर लिए गए |
वर्तमान में , कमरे की दीवारों पर "रंगायन" के नोट्स चस्पा हैं | चित्रों को प्राथमिकता दी गयी है और सिर्फ उन्हीं से कमरा सुसज्जित है | लाखों के दिलों की धड़कन , "ममता कुलकर्णी" का एक बड़ा चित्र है | जिसे बीचों बीच जगह मिली है | बाकी दीवारों पर या तो तार हैं या बल्ब |
तीनों खाना खाने के बाद अक्सर यहाँ मिलते हैं | क्यूंकि इस टाइम तीनों , ऑफिशियली पढ़ने की समय सीमा से बाहर होते हैं |
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आज सुबह एक आदमी बहुत सारा पेंट और बाकी सामान खरीदने शेखू की दूकान पर आया , शेखू वहीँ था और पता कन्फर्म किया तो रवि के घर के सामने वाला घर निकला है | कल से काम शुरू होना है , कोई एक फैमिली शिफ्ट होने जा रही है | तीन लोग हैं , हस्बैंड - वाइफ और एक "लड़की" | कल वो लोग भी घर देखने आ रहे हैं |
शेखु का दिल लड़की सुनकर उछला तो है | पर "प्रयोगशाला" की सफाई ज्यादा ज़रूरी है | बेज्जती ख़राब होने का डर है |
दोपहर में ही रवि और शिव को इत्तिला कर दी गयी | शाम को सफाई के लिए के लिए और प्रयोगशाला को अंतिम विदाई देने के लिए इकठ्ठा हुआ गया | उस वक़्त ना किसी को आना था , ना किसी को जाना | पर पता नहीं किस बात की हड़बड़ी मचाई गयी | सारे तार रवि के घर में , बल्ब उसी घर की छत पर फेंक दिए | नोट्स नोचकर पिछली गली में फेंके गए | सारी दीवारें साफ़ करके जब सेना रवि के घर में राहत की सांस ले ही थी , की तभी कॉमन ख़याल आया की ममता कुलकर्णी तो वहीँ रह गयीं | अब लाइट बची नहीं थी नहीं तो अँधेरे में टटोलते टटोलते , ममता कुलकर्णी को भी उतारा गया और वापस कमरे में पहुँच कर रियलाइज़ हुआ की उनके कुछ विशेष "हिस्से" वहीँ कमरे में रह गए | पर अब वापस जाना किसी को ज़रूरी नहीं लगा |
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तीनों वापस छत पर आ बैठे |
शेखू बोला " हो ना हो यहाँ अपने शिव की सेटिंग हो जाएगी " |
"कैसे" आवाज़ में अजब सी असहिष्णुता थी और आवाज़ रवि की थी |
"अबे मेरा अंदाज़ा है " शेखू बोले |
"देखते हैं" रवि की आवाज़ में इसबार थोड़ी आह थी |
ये हाल तब था , जबकि कड़की "है" के आलावा और कुछ पता भी नहीं था | उस घर के दरवाज़े पर लटके कुए ताले पर प्रेशर बहुत ज्यादा ही बढ़ चुका था |
शेखू ने "किस" शब्द पर जोर देते हुए ये गाना गाया और शिव ब्लश करने लगा...
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