कहानी…अगर सोंचे तो कहानी किसी न किसी की जिंदगी में होने वाली वो घटना है जिसे वो किसी को बता सकता है…वो घटना जिसे वो किसी को नहीं बताता कभी कहानी के रूप में आ ही नहीं सकती…
तो क्या जो कहानी लिखी जाती हैं…वो किसी न किसी कि जिंदगी में हुई हों ऐसा ज़रूरी है क्या?
मसलन…आज की ही बात …बात हुई कुत्ते वाली कहानी की ..एक कुत्ता जो अपने मुह में रोटी दबा के कहीं जा रहा था…रस्ते में उसे नदी मिली..नदी में अपनी परछाई देख के वो उसपे भोंकने लगा कि उसे दूसरी रोटी भी मिल जाये..और उसकी अपनी रोटी भी गिर गयी…इस कहानी से शिक्षा मिलाती है कि लालच करना गन्दी बात है…
सवाल? ? सवाल वो होता है कि जो आपके दिमाग में तब आये जब आपको कुछ समझ न आये…खराब सवाल वो होता है जिसका जवाब सामने वाले को न पता हो…सिर्फ सवाल वो होता है जिसका जवाब सामने वाला आसानी से दे दे और बढ़िया सवाल वो जिसकी वो तैयारी कर के आया हो…कुल मिला के सवाल कि कोटि पूंछने वाले पे नहीं बताने वाले पे निर्भर है…
हाँ तों कहानी का सवाल….कुत्ता रोटी ले के कहाँ जा रहा था? और वो जा ही क्यूँ रहा था..कहीं बैठ के रोटी खाता आराम से? उसने ये बात किसे और कब बताई?? या कोई था जो उस “सेलिब्रिटी" कुत्ते के पीछे भाग रहा था..जैसे कुछ लोग आज “फेमस" लोगो के पीछे भागा करते हैं..
कुत्ता…कुत्ता बहुत वफादार होता है…वफादार होना गाली होती है…जैसे गधा…गधा बहुत सीधा होता है…सीधा होना भी गाली होती है…सीधा और वफादार होना वैसा ही है जैसे कुत्ते और गधे का “हाइब्रिड" होना..
ठीक…तो कुत्ते की कहानी का सवाल…वो वहीँ का वहीँ है…कुत्ते ने रोटी क्यूँ नहीं खायी?…अरे भाई खा लेता तो कहानी कैसे बनती? फिर से एक सवाल..इस बार कहानी पे ही सवाल….
नदी…एक आइना है…जो एक जगह से शुरू होती है और दूसरी जगह पे खतम हो जाती है…पर हर कदम पे आने जाने वाले को आईने कि तरह सच्चाई बताती रहती है…कम से कम पाप तो धो ही देती है…और हम नदी को ही गन्दा कर देते हैं…
रोटी…वो तो हर किसी को खानी है…किसी को वातानुकूलित घर में और किसी को खुले आसमान के नीचे…किसी को रोटी के साथ सब्जी भी है तों किसी को सिर्फ रोटी…किसी किसी को तो कुछ भी नहीं…
एक बार फिर…रोटी लिए हुए कुत्ते कि कहानी जिसमे नदी है…फिर सवाल.. कि अब ये क्या है? यही तों जिंदगी है प्यारे…ध्यान से सोचो …क्या ऐसा नहीं लगता कि उस कुत्ते को भूक नहीं थी? अगर होती तो वो रोटी खा नहीं लेता? जबकि नदी भी उसे बता रही थी कि तुम्हारे पास रोटी है..जिंदगी भी ऐसी ही कहानी है…जो है नहीं वो चाहिए..और जो नहीं है…उसके पीछे जो है उसे भी खो देना…
कभी सोचता हूँ कि मैं भी तो वही कुत्ता हूँ…जो पास में है वो दिखता नहीं…और अगर नदी देखता हूँ तों दूसरों के पास भी वही दिखता है जो मेरे पास है फिर भी लगता है मेरे पास ही कुछ नहीं है…
इंसान थोडा चालाक हो गया है…अब अपनी रोटी साइड में रख के नदी पे भौंकता है…पर जब देखता है कि सामने वाले के पास भी रोटी नहीं है तों बोलता है “रेसेशन" आ गया है…
अक्सर ऐसा लगता है कि बचपन कि इन्ही छोटी छोटी कहानी को तब ही समझ लेते तो जिंदगी आज कितनी सुकून भरी होती…पर फिर एक सवाल उठता है कि क्या हम वाकई इतने नासमझ थे? पर आज तों समझदार होने का दम भरते हैं फिर भी इस कहानी की सीख नहीं समझ पा रहे….और पूंछ रहे हैं तों केवल सवाल…नदी..रोटी..कुता….और कहानी…
तो क्या जो कहानी लिखी जाती हैं…वो किसी न किसी कि जिंदगी में हुई हों ऐसा ज़रूरी है क्या?
मसलन…आज की ही बात …बात हुई कुत्ते वाली कहानी की ..एक कुत्ता जो अपने मुह में रोटी दबा के कहीं जा रहा था…रस्ते में उसे नदी मिली..नदी में अपनी परछाई देख के वो उसपे भोंकने लगा कि उसे दूसरी रोटी भी मिल जाये..और उसकी अपनी रोटी भी गिर गयी…इस कहानी से शिक्षा मिलाती है कि लालच करना गन्दी बात है…
सवाल? ? सवाल वो होता है कि जो आपके दिमाग में तब आये जब आपको कुछ समझ न आये…खराब सवाल वो होता है जिसका जवाब सामने वाले को न पता हो…सिर्फ सवाल वो होता है जिसका जवाब सामने वाला आसानी से दे दे और बढ़िया सवाल वो जिसकी वो तैयारी कर के आया हो…कुल मिला के सवाल कि कोटि पूंछने वाले पे नहीं बताने वाले पे निर्भर है…
हाँ तों कहानी का सवाल….कुत्ता रोटी ले के कहाँ जा रहा था? और वो जा ही क्यूँ रहा था..कहीं बैठ के रोटी खाता आराम से? उसने ये बात किसे और कब बताई?? या कोई था जो उस “सेलिब्रिटी" कुत्ते के पीछे भाग रहा था..जैसे कुछ लोग आज “फेमस" लोगो के पीछे भागा करते हैं..
कुत्ता…कुत्ता बहुत वफादार होता है…वफादार होना गाली होती है…जैसे गधा…गधा बहुत सीधा होता है…सीधा होना भी गाली होती है…सीधा और वफादार होना वैसा ही है जैसे कुत्ते और गधे का “हाइब्रिड" होना..
ठीक…तो कुत्ते की कहानी का सवाल…वो वहीँ का वहीँ है…कुत्ते ने रोटी क्यूँ नहीं खायी?…अरे भाई खा लेता तो कहानी कैसे बनती? फिर से एक सवाल..इस बार कहानी पे ही सवाल….
नदी…एक आइना है…जो एक जगह से शुरू होती है और दूसरी जगह पे खतम हो जाती है…पर हर कदम पे आने जाने वाले को आईने कि तरह सच्चाई बताती रहती है…कम से कम पाप तो धो ही देती है…और हम नदी को ही गन्दा कर देते हैं…
रोटी…वो तो हर किसी को खानी है…किसी को वातानुकूलित घर में और किसी को खुले आसमान के नीचे…किसी को रोटी के साथ सब्जी भी है तों किसी को सिर्फ रोटी…किसी किसी को तो कुछ भी नहीं…
एक बार फिर…रोटी लिए हुए कुत्ते कि कहानी जिसमे नदी है…फिर सवाल.. कि अब ये क्या है? यही तों जिंदगी है प्यारे…ध्यान से सोचो …क्या ऐसा नहीं लगता कि उस कुत्ते को भूक नहीं थी? अगर होती तो वो रोटी खा नहीं लेता? जबकि नदी भी उसे बता रही थी कि तुम्हारे पास रोटी है..जिंदगी भी ऐसी ही कहानी है…जो है नहीं वो चाहिए..और जो नहीं है…उसके पीछे जो है उसे भी खो देना…
कभी सोचता हूँ कि मैं भी तो वही कुत्ता हूँ…जो पास में है वो दिखता नहीं…और अगर नदी देखता हूँ तों दूसरों के पास भी वही दिखता है जो मेरे पास है फिर भी लगता है मेरे पास ही कुछ नहीं है…
इंसान थोडा चालाक हो गया है…अब अपनी रोटी साइड में रख के नदी पे भौंकता है…पर जब देखता है कि सामने वाले के पास भी रोटी नहीं है तों बोलता है “रेसेशन" आ गया है…
अक्सर ऐसा लगता है कि बचपन कि इन्ही छोटी छोटी कहानी को तब ही समझ लेते तो जिंदगी आज कितनी सुकून भरी होती…पर फिर एक सवाल उठता है कि क्या हम वाकई इतने नासमझ थे? पर आज तों समझदार होने का दम भरते हैं फिर भी इस कहानी की सीख नहीं समझ पा रहे….और पूंछ रहे हैं तों केवल सवाल…नदी..रोटी..कुता….और कहानी…
-- देवांशु
जय हो!! जय हो!! :)
जवाब देंहटाएंBtw, बढ़िया लिखे हो..
i sagadam bagdam me bahut kuch mila devanshui je.... waise bhi ye kahaniyaan sadiyon se isiliye chali aa rahi hain kyunki jeevan ke alag alag samay par inke maayne badalte rahte hain....
जवाब देंहटाएंनदी…एक आइना है…जो एक जगह से शुरू होती है और दूसरी जगह पे खतम हो जाती है…
ye pankti shayad ek chhoti si kavita bhi hai...
shubhkamnayen...
अनूप जी ,पारखी हैं ,एकदम ठीक जगह पर खींच लाए । आपके अनुसरक हुए जा रहे हैं ताकि आगे से उपस्थित सीरीमान एकदम बराबर टैम पर हो सकें ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अजय जी !!!!
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