ये कविता सबसे पहले १९३२ में एक कागज के थैले पे लिखी गयी…और लेखिका के कुछ परिचित लोग ही इसे जानते थे…पर धीरे धीरे ये लोगो में फैलती गयी ..पर लेखिका का नाम कहीं गुम हो गया..
करीबन ७० साल तक लोग इसे पढते रहे..१९९५ में बीबीसी के एक सर्वेक्षण में ये ब्रिटेन की सबसे पसंदीदा कविता भी चुनी गयी…उसके कुछ दिनों बाद इसकी लेखिका की जानकारी एक पत्रकार ने दुनिया को मुहैया कराई….
पहले कविता अंग्रेजी में…
DO NOT STAND AT MY
GRAVE AND WEEP
Do not stand at my grave and weep,
I am not there, I do not sleep.
I am a thousand winds that blow.
I am the diamond glint on snow.
I am the sunlight on ripened grain.
I am the gentle autumn rain.
When you wake in the morning hush,
I am the swift, uplifting rush
Of quiet birds in circling flight.
I am the soft starlight at night.
Do not stand at my grave and weep.
I am not there, I do not sleep.
Do not stand at my grave and cry.
I am not there, I did not die!
Do not stand at my grave and weep.
I am not there, I do not sleep.
I am the song that will never end.
I am the love of family and friend.
I am the child who has come to rest
In the arms of the Father
who knows him best.
When you see the sunset fair,
I am the scented evening air.
I am the joy of a task well done.
I am the glow of the setting sun.
Do not stand at my grave and weep.
I am not there, I do not sleep.
Do not stand at my grave and cry.
I am not there, I did not die!
--- Mary Elizabeth Frye
कुछ ऐसा शामिल हूँ मै तुझमे,
मेरी रूह भी रहेगी तेरे साथ सदा|
वो हवा बन आऊंगा जो तेरे करीब से गुजरेगी,
बन जाऊंगा वो चमक जो तेरी नजर में निखरेगी,
जब दिखे रंगत पीली सरसों की तो मुझे देखना,
मिलूँगा उस बारिश की बूंद में जो तुम पे ठहरेगी |
अल-सुबह जब तुम अपनी उनींदी आंखे खोलोगे,
एक खूबसूरत समां बन तुझको जगाऊंगा,
कभी उड़ती चिड़ियों के झुण्ड बन गुजरूँगा तेरे करीब से,
अँधेरी रात में जुगनू बन तुझको रिझाऊंगा…
मौत तो सिर्फ जिस्म गुमा सकती है,
तुझको मुझसे न कर सकती जुदा,
कुछ ऐसा शामिल हूँ मै तुझमे,
मेरी रूह भी रहेगी तेरे साथ सदा|
एक साज़ हूँ, जो सुन सकते हो तुम,
एक शख्स हूँ, जिसके बन सकते हो तुम,
एक पेड़ हूँ दूर तक फैला सा,
आँख मूँद दो घड़ी, सो सकते हो तुम!!!
किसी शोहरत को पाकर जब तुम,
बैठ देखोगे ढलते सूरज को,
एक मीठी महक बन आऊंगा,
दिन की आखिरी किरन में घुल जाऊंगा…
गैर हाज़िर हूँ खुद की कब्र से मै,
रहा बाकी बहुत जो करना है अदा,
कुछ ऐसा शामिल हूँ मै तुझमे,
मेरी रूह भी रहेगी तेरे साथ सदा|
-देवांशु
-देवांशु
“शब्दों का अनुवाद हो सकता है भावनाओं का नहीं और न ही उसकी कोशिश है”
Malik kaha se laate ho.......
जवाब देंहटाएंBahut bahut shandaar hai
वाह...यकीन नहीं होता.कविता जितना ही सुन्दर अनुवाद..
जवाब देंहटाएंha yahi to kamal h
हटाएंबहुत खूब! सुन्दर कविता, अच्छा भावानुवाद! :)
जवाब देंहटाएंawesome!
जवाब देंहटाएं