सोमवार, 3 सितंबर 2012

अजनबी, तुम जाने पहचाने से लगते हो !!!


सीन-१
लड़की बुक फेयर की भीड़ में खोई हुई है | हाथ में किताबों का बोझ है | भीड़ ज्यादा है , तेज चलने में दिक्कत हो रही है | आगे एक स्टाल के बाहर ७-८ लड़कों का हुजूम खड़ा है | सब चिल्ला-चिल्ला कर बातें कर रहे हैं | हा-हा ठी-ठी के दौर चल रहे हैं | वो उनकी तरफ देखे बिना निकल जाना चाहती है |
उसी हुजूम में एक लड़का खड़ा है, लंबी-चौड़ी कद काठी का | वो शायद उसे पहचानती है | पर श्योर नहीं है | वो उससे बात करना चाहती है | पर एक तो भीड़ और फिर ये भी पता नहीं कि ये वही है या नहीं | वो आगे बढ़ती है | जैसे ही उसके पास से गुज़रती है , उसकी आवाज़ उसके कानों में चली जाती है | वो रुक कर बोलती है :
“अभिषेक?? रिमेम्बर, वी मेट समटाइम बैक"
लड़का अजीब से एक्सप्रेसन देता है | डरा सहमा सा | झेंपते हुए बोलता है :
“हाँ , हाँ , याद है , इनसे मिलो, ये सब मेरे दोस्त हैं, ये दो तो ब्लॉगर “भी" हैं !!!”

सीन-२
लड़का अपने दोस्तों के बीच खड़ा है | एक दोस्त की तरफ इशारा करते हुए दूसरे दोस्त से बोलता है :
“मैं इनको जानता ३ साल से जानता हूँ, पर इनसे मिल पहली बार रहा हूँ|”
दूसरा दोस्त : “मिल तो मैं भी पहली बार रहा हूँ, इनको पढ़ा बहुत है, पर आजकल आप लिख नहीं रहे , पिछले डेढ़ साल से कुछ लिखा क्यूँ नहीं ??”
तीसरा दोस्त (वही जो काफी टाइम से लिख नहीं रहा) : “बड़े खाली रहते हो यार, काउंट कर रहे हो कि डेढ़-दो साल से कुछ  नहीं लिखा”|
ठहाकों से पूरा पुस्तक मेला गूँज रहा है |
तभी लड़का एक गुज़रती लड़की की तरफ देखता है |  

ये तो वही है जिसने लास्ट टाइम भरे मॉल में उसे पहचान लिया था | बड़ी टांग खींची गयी थी उसकी | मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करता है कि “हे प्रभु मैंने कभी जिंदगी में कोई एक भी पुण्य का काम किया हो तो ये आज मुझे न पहचाने" |

चेहरे पर सायरन छा जाता है | पर भगवन भी ईसई टाइम पर धोखा दे जाते हैं अक्सर | लड़की कहती है :
“अभिषेक?? रिमेम्बर, वी मेट समटाइम बैक"
लड़का अजीब से एक्सप्रेसन देता है | डरा सहमा सा | झेंपते हुए बोलता है :
“हाँ , हाँ , याद है , इनसे मिलो, ये सब मेरे दोस्त हैं, ये दो तो ब्लॉगर “भी" हैं !!!”
“ओह् नाईस टू मीट आल ऑफ यू, मुझे लगा तुम मुझे नहीं पहचान पाओगे |” लड़की कहती है |
लड़के का चेहरा पीला पड़ने लगा है | उसके वही ब्लॉगर दोस्त , जो काफी टाइम से नहीं लिख रहे हैं कहते हैं:
“नहीं, नहीं, अभिषेक “भी" बहुत अच्छा लिखता है”
इसके आगे लड़के की बहुत खिंचाई होती है | चेहरे पर पसरा सायरन कानों में बजने लगता है और उसे कुछ सुनायी नहीं देता है |

सीन-३
मैं वाणी प्रकाशन के काउंटर पर बुक्स टटोल रहा हूँ | मोबाइल पर कॉल आ रही है | मैं फोन उठाता हूँ | एक बहुत ही सभ्य और शालीन आवाज़ …
“सर कहाँ पर हैं?”
“वाणी के स्टाल में तुम कहाँ हो ?”
“मैं भी वहीं बाहर खड़ा हूँ"
“रुको, मैं आता हूँ”
मैं बाहर जाता हूँ | अभिषेक अपने दोस्तों के साथ खड़े हैं | सबसे परिचय कराते हैं | अगला सवाल :
पंकज भी आये हैं ना"
मैं हामी भरता हूँ और पंकज को फोन करके वहीं बुला लेता हूँ | पंकज का स्वागत बड़ी गर्मजोशी से होता है |
अभिषेक पंकज की ओर देखते हुए अपने दोस्त अन्जुले से बोलते हैं :
“मैं इनको जानता ३ साल से हूँ, पर इनसे मिल पहली बार रहा हूँ|”
अन्जुले : “मिल तो मैं भी पहली बार रहा हूँ, इनको पढ़ा बहुत है, पर आजकल आप लिख नहीं रहे , पिछले डेढ़ साल से कुछ लिखा क्यूँ नहीं ??”
पंकज  : “बड़े खाली रहते हो यार, काउंट कर रहे हो कि डेढ़-दो साल से कुछ नहीं लिखा”|
ठहाकों से पूरा पुस्तक मेला गूँज रहा है |
तभी एक कन्या ने आकर अभिषेक की तरफ इशारा करते हुए कहा :
“अभिषेक?? रिमेम्बर, वी मेट समटाइम बैक"
अभिषेक अजीब से एक्सप्रेसन देता है | डरा सहमा सा | झेंपते हुए बोलता है :
“हाँ , हाँ , याद है , इनसे मिलो, ये सब मेरे दोस्त हैं, ये दो तो ब्लॉगर “भी" हैं !!!”
इन दोनों में एक पंकज और दूसरा मैं हूँ |
पंकज तुरंत बोल देते हैं “नहीं, नहीं, अभिषेक “भी" बहुत अच्छा लिखता है”|
फिर थोड़ी देर तक किताबों के बारे में बातें होती हैं | जो मुझे ज्यादा समझ तो नहीं आती पर मैं मुस्कुराता रहता हूँ | लड़की रुखसत होती है |
थोड़ी देर बाद हम लोग भी जाने की बात करते हैं | अभिषेक की टांग काफी देर से खिंच रही थी तो वो बोलते हैं :
“आप लोग इस तरफ जाओ, हम इस तरफ जाते हैं”
पंकज : “लड़की ने हाय क्या बोल दी, दोस्तों से रास्ता ही  अलग कर लिया तुमने”

सब फिर हँसते हैं | मैं अभिषेक को धमकी देता हूँ कि पोस्ट लिख दूंगा इस घटना पर | वो हमें हलके में ले लेते हैं|

ये पोस्ट बस उसी का बदला है |

डिस्क्लेमर : इस पोस्ट की सभी घटनाएँ, पात्र और जगह, एक दम सच्ची हैं | और प्रशांत प्रियदर्शी की तरह अभिषेक बाबू भी एक अच्छे इंसान हैं | और अभिषेक चाहें तो इस पोस्ट की चर्चा “ब्लॉग-बुलेटिन" पर भी कर सकते हैं |

P.S. : आज का दिन रहा दिल्ली बुक-फेयर के नाम | मम्मी और पंकज के साथ वहाँ गया | अभिषेक और उनके दोस्तों से मुलाकात हुई | कुछ फोटो नीचे हैं |  खरीदी गयी किताबों की फोटो शो-ऑफ के लिए लगाई गयी है |
--देवांशु

43 टिप्‍पणियां:

  1. अब सरकार हम क्या कहें...आपने तो कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा हमें :P

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अरे ऐसा भी क्या बालक। बोल दो :)
      ऐसा भी क्या कर दिये हो ? बोलो बोलो।

      हटाएं
    2. अभिषेक बाबु...यहाँ पर कुछ भी बोलना खतरनाक साबित हो सकता है...देख नहीं रहे पंकज बाबु भी कितने दिनों बाद ब्लॉग-कमेन्ट में दिखाई दिए हैं...हम बोलेंगे, समय आने पर..अपने ब्लॉग पर.... :)

      हटाएं

    3. अब ये सरकारी कमेन्ट न ही किया जाए ... क्यूंकि सरकार आज कल तो न कुछ कहती है और न ही सुनती है...

      हटाएं
    4. कहता हूँ तुमसे , मेरे जैसे भले लड़कों के साथ रहा करो, अब बोलती तो बंद हो ही जायेगी :)

      हटाएं
    5. @अभिषेक - लड़की मिली नहीं कि दोस्तों से बोलना भी छोड़ दिया?

      हटाएं
  2. अभिषेक बाबू बहुत अच्छे इंसान 'भी' हैं, अच्छा लिखते 'भी' हैं और हम उनसे मिल 'भी' चुके हैं।
    अब एक बात और - तुमसे मिले तो हमें 'अच्छा' डिक्लेयर नहीं करोगे। और पोस्ट नहीं लिखोगे ऐसे सरे आम :)

    नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट साइन करना पड़ेगा तुमसे :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत खतरनाक टाईप इंसान हैं ये.. नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट से कुछ नहीं होगा..

      हटाएं
    2. ये अमरीका वाले एग्रीमेंट पर साइन बहुत कराते हैं :) :)

      और ये इंडिया वाले एक्को एग्रीमेंट नहीं मानते :) , वैसे कब आ रहे हैं गुरुदेव ???

      हटाएं
  3. हमेशा की तरह लिखे शानदार हो मालिक.. :)
    और अभिषेक बाबू कि चेहरे की हवाईयां हमने भी देखी थीं। थोडी देर तो सिर्फ़ ’हैं? क्या?’ वाले मोड में ही रहे थे ये.. कुछ भी इन्हें समझ नहीं आ रहा था..
    पुस्तक मेले वाला प्लॉन बनाने का शुक्रिया.. अच्छा रहा ये दिन भी.. जेब थोडी हल्की हो गयी बस :P

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये तीसरे दोस्त जो बहुत दिनों से नहीं लिख रहे हैं... :-/

      हटाएं
    2. हाँ यार रिश्वत लेकर भी नहीं मान रहे ये तो :)

      हटाएं
    3. एक बात बताएं, फ्लिप्कार्ट का नाम लेकर ६०० रुपये भी तुम्हारे बचवाये थे , भूल गए का मालिक ??

      हटाएं
  4. हमे तो ये समय की तीन धाराएं एक बिंदु पर मिलती हुई सी लग रही हैं. हमारी तारीफ के हकदार हो भाई तुम. ऐसा लग रहा है की लिखाई का ये तुम्हारा नया आयाम है.

    जवाब देंहटाएं
  5. आते-आते रह गया नहीं तो किसी सीन में मैं भी होता !

    जवाब देंहटाएं
  6. हम कुछ कह नहीं रहे हैं सिर्फ़ नोट कर लिये हैं। समय आने पर विचार व्यक्त किये जायेंगे। वैसे अभिषेक बाबू कह सकते थे कि उनकी शराफ़त का नाजायज फ़ायदा उठाया देवांशु ने लेकिन शायद मारे शराफ़त के कह न सके। :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. देख रहे हैं न अनूप जी! किस तरह मेरे शराफत का फायदा उठा रहे हैं ये लेखक साहब :)
      हमने भी वैसे नोट कर लिया है, समय आने पर इनसे पूरा बदला लिया जाएगा!!

      हटाएं
    2. शराफत तो टपक टपक कर बह गयी... :P

      हटाएं
    3. सर अभिषेक बाबू वाकई में काफी शरीफ हैं :)

      हटाएं
    4. मतलब अब हमको भी सावधान रहने की ज़रूरत है, हमारा तो नाम भी नोट हो गया है :) :)

      हटाएं
  7. ये पुस्तकों के मेले... ये पुस्तकों के मेले... दुनिया में कम ना थे... अफ़सोस हम ना थे..

    जवाब देंहटाएं
  8. गौर तलब है कि फोटो में "डेट टेकेन" ३/१४/२०११ दिखा रहा है. सच से पर्दा उठाया जाय .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वैसे तो इसमे गलती कैमरा की है, लेकिन हम डेट की रेस्पोंसिबिलिटी लेने को एकदम तैयार हैं :) ( अब अकेले अभिषेक पर कितना बोझ डालें ) :) :) :)

      हटाएं
    2. दया दरवाजा तोड़ दो.

      हटाएं
    3. एक बहुत ही पुराना, घटिया, वाहियात, ज़हरीला शेर याद आ गया ...

      "दया के डर से चोर ने दरवाज़ा खुला छोड़ दिया...."

      गौर फरमाएं कि "दया के डर से चोर ने दरवाज़ा खुला छोड़ दिया...."

      "पर दया भी काफी शातिर था, उसने दरवाज़ा बंद करके तोड़ दिया"

      हटाएं
    4. खतरनाक!!! आप ऐसे ऐसे शेर भी लिखते हैं...महराज ये तो बहुत ही लाजवाब शेर है, वाहियात आर घटिया कहाँ? ;)

      हटाएं
    5. ई मेरा नहीं है, चोरी का शेर है :) हमारा लेवल तो और भी गिरा हुआ है :)

      हटाएं
    6. इस पोस्ट को तो सब फेसबुक बना दिया है...सब यहाँ केवल बतियाते जा रहा है ;)

      हटाएं
    7. अभिषेक बाबु, बोलिए तो यह लिंक मैडम को पहुंचा दें? :P

      हटाएं
    8. तुम देवांशु, अभी तक हमको अंग्रेजी में बोल कर नहीं सुनाये? कहीं झुट्ठो का तो नहीं बोले थे कि अमेरिका से आये हो?

      हटाएं
    9. परेसान भैया काहें देवी जी का फालतू में भाव बढाने के फ़िराक में हैं...
      कहीं ऐसा ना हो अगले रोज से देवी जी अभी भैया को कहीं पहचानना ही बंद कर दिया तो.....?

      हटाएं
  9. ब्लॉग बुलेटिन के जिक्र के लिए जनाब आपको बहुत बहुत धन्यवाद ! साथ साथ आपने अभिषेक बाबू को शेक करने का जो मसाला दिया है उसके लिए भी !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लो जी साहब कर दिये चर्चा बुलेटिन पर ... ;-)


      मोहब्बत यह मोहब्बत - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

      हटाएं
  10. हा हा हा हा जे बात । एकदम्मे ठीक किए देवांशु । ई गोलगप्पवा को जब देखो सायरी ,गुलज़ार मिर्ज़ा गालिब के घर द्वारे भटकता रहता था । कहते थे कि अबे अब ई स्टेज़ से बाहर निकलो आ घर गिरहस्ती का शेरो सायरी सीखो पढो वत्स । वही नून तेल वाला साहित्य से भी दिल लगाओ वत्स । उफ़्फ़ किताब मेला में उसका आप लोग ऊ लाला ऊ लाला बना दिए सो अलग आ एन्ने पोस्ट पे ..नाक मुका , नाक मुका करा के टोटल ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का रपट छाप दिए हैं । फ़ौरन पटना भिजवाया जाए ई पोस्ट को छाप के ,ताकि चचा चाची को बताया जा सके कि ई लईका अब बालिग की तरह सरमा सुरमा रहा है बियाह का तैयारी कराया जाए । चाबास जियोह्ह्ह :) :) :) :)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भैया ..गुलज़ार साहब की एक ठो किताब पर उन्हा भी ई लार टपका रहे थे....

      हटाएं
  11. अभिषेक सच में बहुत अच्छा बच्चा है. तुमलोग मिलकर उसको बहुत परेशान किये हो. देखना आने वाले समय में एक-एक कर सब पर पोस्टें लिख देगा. बदला लेगा. छोड़ेगा थोड़े ही ना :)
    मेरा भी तुमलोगों से मिलने का बहुत मन था, पर कमबख्तों तुमने मुझे इन्फोर्म ही नहीं किया. खैर, मैं साथ होती तो शायद 'मैडम' आस-पास फटकती ही ना और तुमलोगों को अभि के साथ हँसी-ठट्ठा करने का मौका ही ना मिलता :)

    जवाब देंहटाएं
  12. हाहाहा... ये तो पूरा फ़िल्मी प्लॉट है.. एकाध गाना भी जोड़ देते यूटयूब से तो पूरा माहौल बन जाता... ;)

    जवाब देंहटाएं