१६ दिसंबर को इंसानियत की एक बार फिर धुर्रियाँ उड़ जाने के बावजूद और लोगो के भर भर के स्वागत करने के बाद भी, जब २१ दिसंबर को क़यामत नहीं आयी तो लोगो ने इसका जश्न १ जनवरी को हंगामा मचा के किया | इन सब बातों को लेकर सबने खूब अपने विचार व्यक्त किये | वैसे तो अपन टीवी देखना करीब डेढ़ साल से छोड़ चुके हैं, पर फिर भी नेट पर लाइव टीवी पर कुछ खबरें देखनी की कोशिश की गयी | किसी तरह अटक अटक के देख भी लिए | इतनी धर-पटक के बीच हमारे चहेते खिलाड़ी तेंदुलकर साहब ने एक-दिवसीय क्रिकेट को टाटा कह दिया | और हमारी क्रिकेट टीम दौड़ दौड़ के हारी | हारने के मामले में हमने इंग्लैण्ड और पाकिस्तान में कोई अंतर नहीं समझा | कुछ दिन तो लाइव बफरिंग करके मैच देखने की कोशिश की, पर जब ना जीते तो हम देखना ही छोड़ दिए |
जब जब राष्ट्र पर कोई विपदा आयी है, तो हमारे देश के नेतृत्व ने जनता को कोई न कोई नारा देकर उत्साहित किया है | नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने कहा था “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा" | शास्त्री जी ने “जय जवान , जय किसान” का नारा दिया | बाजपेयी जी ने “जय विज्ञान " भी जोड़ दिया | १६ दिसंबर की घटना के बाद लोगो में गुस्सा था ही, प्रधानमंत्री जी ने कहा “ठीक है"| अब इस टाइम वो और क्या उत्साह दिलाते | ठीक ही तो है |
इस बीच शिखा जी ने कहा की लोगो में डर नहीं रह गया इसलिए ये सब हो रहा है | हमें एक बार को तो लगा कि बात एकदम सही है | फिर हमने अपने घुटनों पर बहुत जोर देकर सोचा तो पाया बात तो उनकी एकदम गलत है | कौन कहता है हमें डर नहीं है | मारे डर के हालत खराब है | जाड़े के डर से काँप रहे हैं | कांपेंगे नहीं तो जाड़ा पकड़ लेगा |
सुबह जल्दी उठ जाते हैं, नहीं तो माताश्री से डांट खाने का डर बना रहता है | इसी डर के चलते डेली नहा भी डालते हैं | अमरीका में थे तो सड़क पर कार चलाते टाइम डर लगता था कि कहीं गाड़ी तेज ना चल जाए | यहाँ तो पैदल चलते हैं तो डरते हैं कि कहीं साइड से कोई ठोंक ना जाए | आफिस टाइम पर पहुंचते हैं कि मनेजर ना हड़का दे, इसी बात का डर है | किसी से कोई लफड़ा नहीं करने के अलावा किसी लफड़े में भी नहीं पड़ते , पुलिस का भी काफी डर है | मम्मी कहती हैं, इनसे दोस्ती भी बुरी, दुश्मनी तो खैर !!!कोर्ट-कचहरी का आतंक तो बचपन से देखे हैं , पिताजी कोर्ट में ही थे | वहाँ तबसे जाने में घबड़ाते थे | मारे डर के रेंट-एग्रीमेंट बनवाने तहसील भी नहीं गए पहले, इस बार गए तो सहमे हुए थे|
एक बार वोट डालने गए थे| पता चला हमारा वोट कोई और डाल गया था | हमने शोर मचाना शुरू कर दिया कि ये तो गलत बात है | पड़ोस के ही एक भईया ,जो चुनाव में खड़े थे और जिन्हें लगता था कि हम उन्हें ही वोट देंगे, ये देखकर आगे आये और बोले हाँ हाँ बिलकुल तुम्हारा वोट तो पड़ना चाहिए | वहाँ के पीठासीन अधिकारी साहब को “डर" के मारे पसीना आ गया, काहे की हम आई डी के तौर पर पासपोर्ट ले गए थे, उन्हें लगा कोई लफड़े में पड़ गए वो, बड़े प्यार से बोले, आप किसी और के नाम पर वोट डाल लीजिए | हम मना कर दिए कि "ना, हम तो अपना वोट डालेंगे"| इतनी देर में एक होमगार्ड आ गया | पूरा मामला ध्यान पूर्वक सुनने के बाद उन्होंने लाठी लेकर हमें दौड़ाया और बड़े प्यार से कहा “भाग जाओ, वरना इतना मारेंगे कि सही हो जाओगे, फर्जी वोट डालते हो|” उसी इलेक्शन में मोहल्ले के एक वकील साहब भी खड़े हुए थे | हम उनके पास गए और सब बताये | उन्होंने एक कुटिल मुस्कान को पहना और बोले “अब वोट पड़ गया सो पड़ गया, हमें पता होता कि आप यहीं हो नहीं तो सबेरे ही बुला लेते आपको” | बाद में वही वकील साहब जीते चुनाव | तबसे वोट डालने जाने में भी डर लगने लगा |
कहीं फेल ना हो जाएँ, इस डर से हमेशा पढ़ते रहे | फिर जब पास होने लगे तो खराब मार्क्स ना आ जाएँ इस डर से पढ़ते रहे | जो कुछ समझ पाए समझ लिए , बाकी घोट के रट्टा मार गए, मारे डर के | किसी लड़की के साथ दिख जाने पर घर में कूटे जाने का डर था, तो किसी कन्या से बात करने में डरते रहे | फिर जब से ये सब डर भागे तो और भी डर आ गए | फिलहाल शादी-शुदा लोगो की हालत देख, शादी से भी डर लग रहा है | एक अलग टाइप के डर का बयां तो ये तस्वीर भी कर रही है(इन चार लोगो का डर भी काफी है )
आजकल तो खुद से इतना डरते हैं कि मारे डर के अकेले में खुद से भी नहीं मिलते | भगवान जी से डर लगता है वो अलग |
डर की कहानी बहुत लंबी है | २१ दिसम्बर को जो होने वाला था, उससे सब डरे हुए थे | इसी सन्दर्भ में एक पोस्ट में , समययात्री ने “डर" के पुरातात्विक प्रमाण दिए हैं :
“प्रलय या विनाश से आधुनिक से लेकर प्राचीन सभ्यतायें भी डरतीं रहीं हैं और इस डर का इस्तेमाल समय समय पर सत्ता और अन्य प्रभावशाली गुट अपने हितों के लिये करते रहे हैं। प्राचीन सभ्यताओं में तूफ़ान, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से डर कर मानव ने अपने अपने ईश्वरों की परिकल्पना की। प्राकृतिक आपदाओं से बचाने वाले ईश्वरों के अस्तित्व का प्रमाण लगभग हर सभ्यता में मिलता है, क्योंकि उस समय यही बाढ़ और तूफ़ान जैसी आपदायें भी भारी नुकसान का कारण बनतीं थीं। फिर समय के साथ इन ईश्वरों की शक्ति लगातार बढती गयी। उस समय के ईश्वर सिर्फ़ तूफ़ान से बचाते थे और आज के नाभिकीय हमले से भी बचाने की कुव्वत रखते हैं।”
पोस्ट की निष्पत्ति कुछ इस प्रकार है:
“यह अफ़वाहें मस्तिष्क में डर पैदा करती हैं और आज “डर” बेचना सबसे आसान काम बन चुका है। सपनों,प्यार, सेक्स आदि को बेचने के बाद “डर” एक बेहतरीन विक्रय बढाने वाली दवा के रुप में उभर कर सामने आया है।”
कह तो रहें हैं , बहुत डर भरा है अंदर| मारे डर के रस्ते में पड़े तड़पते-कराहते इंसान की मदद हम नहीं करते | किसी के साथ कोई कुछ गलत कर रहा हो तो भी हम नहीं बोलते | हाँ अगर दो लोग एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चल रहे हों, तो अपनी नज़रें टेढ़ी ज़रूर करते हैं, उसमे “डर” का कोई स्कोप नहीं होता, उलटे समर्थन मिल जाता है |
खैर, चलते हैं अभी, भगवान हम सबके अंदर का डर ऐसे ही बनाये रखे | जबतक ये डर है तब-तक सब ठीक-ठाक है , जिस दिन ये डर चला जाएगा, और इंसानियत का डर आएगा , उस दिन कौन पूछेगा पुलिस को, नेता-फेता, बाबा-टाबा किसको अपने उलटे सीधे बयानों में फसयेंगे ? कौन जायेगा तहसील-कोर्ट-कचहरी ?? कोई खबर ही नहीं होगी तो न्यूज़-पेपर नहीं छपेंगे, न्यूज़-चैनल्स का क्या होगा ?
तब-तक, “डरने" से मत डरो, उसके आदी बनो, ग़ालिब कई और भी डर हैं दुनिया में डराने को |
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डाक्टर्स की दिन रात की कोशिश और करोड़ों लोगो की दुआ भी उस मासूम को तो ना बचा सकी, पर जाते-जाते वो बहादुर, हम सबको सोचने पर ज़रूर मजबूर कर गयी | २ दिन पहले पंकज ने ये विडियो शेयर किया, आप भी ज़रूर सुनें | शायद जो-कुछ हम सबको अपने अंदर बदलना है उसकी एक झलक है इसमें :
--देवांशु
अरे ..तुम तो बड़े डरपोक निकले :) . चलो कोई बात नहीं कुछ डर अच्छे होते हैं :):).
जवाब देंहटाएंडरो मत ! ये सूनो टार्च बेचने वाले - हरिशंकर परसाई
जवाब देंहटाएंतुम्हारा डर तो बड़ा हसीन निकला। न हो तो इसे पेटेन्ट करा लो।
जवाब देंहटाएंबेसी डराओ मत, नहीं तो हम डरा देंगे तुमको.
जवाब देंहटाएंआप चुटीले लेखन की चोटी पर पहुँच गए हैं!
जवाब देंहटाएं-आपने टेंडर वोट क्यों नहीं डाला था ? अगली बार इसे इस्तेमाल में लाये अगर अपना न डाल पायें!
नमसते !देवांशु जी मैनें एक अखबार में आपके बलाग कि तारीफ पढी, कया गजब लिखते हो . हम तो आपके फैन,.पंखा,कूलर एसी सब हो गऐ. कुल मिला कर हम आपके … हो गए!
जवाब देंहटाएंमैं 12वीं मे पढता हूँ. उमर 16साल और आपका सबसे बडा फैन होने का दावा करता हूँ.
´ बलाग बादशाह` की उपाधि गरहण करते हुए हमारा सलाम कबूल करे!
सुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं:D :D
जवाब देंहटाएंडॉ से भी डरते रहना ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
:D
जवाब देंहटाएंAbe hum kuchh din ghar gaye to tum blog badshah ban gaye ;)
suna nahi bhai saheb DAR K AAGE ZEET HAI...
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