शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

ज़िन्दगी की एक शाम और मुक़र्रर मौत का इंतज़ार


कभी हुआ है यूँ , की बस पता हो की फलाने दिन , फलाने वक़्त पर मौत मुक़र्रर है |  और मौत भी कोई ऐसी नहीं, जिस्म  ख़त्म होना तो दूर की बात है, एक खरोंच भी नहीं आनी है | और उस मौत के बाद जिंदा रहने के लिए अगर कुछ मारना है तो खुद की रूह को |
एक बड़े दार्शनिक की तरह हर आने वाले दिन को ख़ुशी-ख़ुशी जीते चलो पर मुकर्रर दिन ठीक एक दिन पहले की रात को एक कंपकंपी उठे, दिल ज़ोरों से धड़कने लगे , आँखों के सामने अँधेरा छा जाए | ज़िंदगी के नूर की एक-एक बूँद के लिए प्यास बढ़ने लगे |
और फिर एक आस,  की कुछ वक़्त को ही सही, वो नूर दिखेगा तुम्हे कल | तृप्त कर लेना अपनी आत्मा को, आँखों में बसा लेना उस नूर को और लौट जाना | कुछ पलों के लिए ही सही, मौत का दर्द कम होता लगे |  गिने-चुने लम्हों के लिए नींद अपनी बाहों में सुला ले |
जब आँख खुले तो सबसे पहले वो  आस टूट जाए | और फिर पता चले की इस आखिरी दिन भी मोक्ष मिलना मुमकिन नहीं | साँसे भारी हो जाएं | इसके बाद बची ज़िन्दगी भी क्या ख़ाक ज़िन्दगी है ??
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बाहर आसमान में पिछले कई दिनों से बादल लटके हैं,  ना उड़ जा रहे हैं , ना बरस रहे हैं | शाम का वक़्त है | ऑफिस की खिड़की से बाहर उन्ही बादलों को देख रहा हूँ |  सामने सड़क है | दौडती गाड़ियाँ ना जाने किस मकाम को जाना चाहती हैं |

ज़िन्दगी की सबसे मुश्किल शाम है ये , मुक़र्रर वक़्त में कुछ आधे घंटे से भी कम का वक़्त रह गया है |  सोच रहा हूँ क्या करूँ ? मन करता है की सारे दरवाज़े तोड़ दूं, और आज़ाद कर दूं इस रूह को | पर कायर हूँ , ये नहीं कर सकता |  या रोक लूं उस नूर को आँखों से ओझल होने से , पर वो अब नहीं हो सकता , इसे मजबूरी कहूं या एक बार फिर खुद को कायर , ज्यादा फर्क नहीं है दोनों में ही |
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कल दोस्त ने सेलिन डियोन का ये गाना सुनने को बोला था , सुबह से लगातार सुने जा रहा हूँ…

When life is empty with no tomorrow
And loneliness starts to call
Baby, don't worry, forget your sorrow
'Cause love's gonna conquer it all, all

When you want it the most there's no easy way out
When you're ready to go and your heart's left in doubt
Don't give up on your faith
Love comes to those who believe it
And that's the way it is

-- देवांशु

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