कलाकारी बहुत ज़रूरी चीज़ है | अब देखो जो कलाकार है वही “भाउक” हो सकता है| इन चलचित्रों पे गौर फरमाएं :
१. दिल चाहता है
२. तारे ज़मीन पर
३. जाने तू या जाने ना
४. धोबी घाट
इन सबमे कलाकारी , बोले तो “चित्रकारी" की महत्ता का विषद वर्णन किया गया है | एक में तीन खुराफाती दोस्तों में सबसे शांत धीर-गंभीर वो था जो पेंटिंग करता था| दूसरी के बारे में तो आप से क्या कहें, उसमे तो हर कोई पेंटिंग करता था| तीसरी में नायिका अपने भाई के बारे में तब तक नहीं जान पाती जब तक वो उसका पेंटिंग से भरा कमरा नहीं देख लेती | यही हालत चौथी में भी है | मतलब कुल मिलाके पेंटिंग का बोल बाला है हर तरफ | और दीगर बात ये भी है की इन सबमे कहीं ना कहीं आमिर साहब इन्वोल्व्ड हैं|
वैसे उन्होंने चित्रकारी गजनी में भी की थी, पर वहाँ “चित्रकारी" की “कल्पना” अलग थी| चित्रकार तो मिया मजनू भी थे फिल्म वेलकम में और साथ ही चित्रकार जिनेलिया भी थी फिल्म लाइफ पार्टनर में | वैसे लाइफ पार्टनर में जिनेलिया एक गायिका और लेखिका भी थी| पर यहाँ मुद्दा चित्रकारी का है तो उसी की बात करते हैं|
तो किसी भी टाइप की चित्रकारी करने से इंसान की वैलू बढ़ जाती है | तो हमने भी सोचा क्यूँ ना चित्रकारी पे अपने हाथ आज़माए जाएँ…और पिछले साल नवंबर के महीने में अपने आई टी इंडस्ट्री करियर के ५ साल पूरे होने की खुशी में, इन ५ सालों में हमारी दुःख-दुःख
की साथी काफ़ी के मग पे हमने अपनी चित्रकारी का नमूना बना डाला…गौर फरमाएं…
फिर ध्यान आया की ये चित्रकारी का शौक तो हमें बचपन से है| हम इतने होनहार रहे चित्रकारी में की पूंछो मत | मारे डर के चित्रकला की क्लास से भगे रहे | बोले की उद्यान विभाग में हैं, पेड़ों को पानी देना है (ये क्लास ४ या ५ की बात है) टीचर ये नहीं समझ पाए कि ऐसा कौन सा पौधा है जिसे शाम को ठीक तीन बजे पानी देना होता है ? और वो भी रोज, वो आज भी यही कहते होंगे कि लड़का पेड़ पौधों से लगाव रखता है|
चित्रकारी बड़ी फेमस है हमारी, हमारे घर में, हमको छोड़ के सब का हाथ ठीक ठाक है | पापा जी का और भाई का तो सुपर-डुपर एक दम | तो लताड़े भी बहुत गए हैं| ड्राइंग का पेपर हमें दुनिया के सबसे घृणित पेपर्स में से एक लगता था | उसकी एक दम कदर नहीं करते थे | एक दिन ऐसे ही पहुँच गए पेपर देने | सवाल आया “एक अमरुद का चित्र बनायें और उसे उचित रंगों से सजाएँ" | अब हम तो एक पेन्सिल ढंग से ना ले गए थे | बस ये पता था अमरुद गोल होता है और मेरे दोस्त का कड़ा भी गोल है | उससे पेन्सिल भी मांगे और कड़ा भी | बना दिए एक दम गोल गोल , ताज़ा-फ्रेश अमरुद | अब आयी बात उसे “उचित" रंगों से सजाने की तो ये काम हम कैसे कर सकते थे, रंग लाना तो हम ऐसे ही भूल गए थे | बगल में मेरा एक सीनियर बड़े मन से ड्राइंग बना रहा था | उसे हमने बोला कि हमें भी स्केच दे दो हम भूल गए हैं | उसने बोला दे तो देंगे पर वही देंगे जो खाली होगा सब नहीं दे पाएंगे | अंधा क्या चाहे दो आँखें | हमने हामी भर दी | बस सवाल थोड़ा सा बदल के समझना पड़ा “एक अमरुद का चित्र बनायें और उसे उपलब्ध रंगों से सजाएँ"| अब वो पेज तो मेरे पास नहीं है पर यही तो कलाकार की सबसे बड़ी खासियत है कि वो उसे दुबारा भी बना देता है | ये लीजिए हमने अपनी शानदार पेंटिंग फिर बना डाली एम एस पेंट पे…
रूम से बहार निकल कर जब अपने बैग में संभाल के अपना पेपर रखने लगे तो दिखा मम्मी ने कलर का डिब्बा रख कर दिया था पर हमें इन चीज़ों से कहाँ वास्ता था | खैर घर आये किसी को कुछ नहीं बताये | कुछ दिनों बाद जब घर पे दिखाने के लिए कॉपी मिली तो बड़ा सा क्रोस बना हुआ था | नंबर मिले थे १० में से ० और लिखा था “क्या अमरुद इस रंग का होता है” | बहुत लताड़े गए | भाई के ड्राइंग में फोड़ू नंबर आते थे | तो और लताड़े गए |
खैर इतना अपमान सहने के बाद बारी आयी पोस्टर बनाने की | विषय मिला “व्यायाम करो" | एक फोटो बनाये , एक लड़का वेट लिफ्टिंग के वेट्स उठाये ऊपर में तन के खड़ा है | बस खुपड़िया बनाने की जगह नहीं बची | हमने “एड्जस्टिंग नेचर” का परिचय देते हुए हलकी सी टेढ़ी बना दी, बाईं तरफ झुकी हुई| स्कूल में टीचर ने और घर में पापा ने फिर हड़काया | “ऐसे गर्दन बनती है?”| अब उन्हें कौन बताये जब वेट ज्यादा हो जाता है तो उसे ऊपर उठाने के लिए गर्दन टेढी करनी ही पड़ती है| खैर वो सब लोग तो नासमझ हैं, एक अकेला मैं ही समझदार हूँ |
ऐसा नहीं है कि मै अकेला इंसान हूँ इस टाइप का, मेरे सबसे जिगरी दोस्त, शुशांत भाई भी चित्रकारी के पारखी हैं | एक बार उनके ड्राइंग में अच्छे नंबर आ गए तो घर वाले दौड़ के गए ये देखने कि ड्राइंग में कैसे आ गए नंबर | हुआ यूँ कि सवाल आया था निम्न में से कोई एक चित्र बनाये | भाई ने उठाया राजहंस | उस ज़माने में पेन्सिल से शेड देने का चस्का सबको चढा हुआ था | उन्होंने भी दे डाला | पर जब कॉपी चेक हुई तो टीचर ने उन्हें पूरे नम्बर दे दिए क्यूंकि दूसरा ऑप्शन कौवा बनाने का था | आजतक वो ये सोच के खुश हैं कि उन्होंने लिखा नहीं था कि ये राजहंस है|
खैर कहानियाँ तो और भी हैं, एक बार हमने एक फूल का फोटो बनाया, उसे उचित रंगों से सजाया और जब वो अनुचित बन गया तो किसी बड़े आर्टिस्ट कि तरह उसपे अपने नाम की जगह अपनी सिस्टर का नाम डाल दिया |
अभी लेटेस्ट एक और चित्रकारी किये हैं, आप भी देखो …
आपको क्या लगता है कि इस फोटो को मैं अगर कांटेस्ट के लिए भेजूं तो मुझे अर्थशास्त्र का ऑस्कर पुरस्कार मिल सकता है क्या??
(ये लास्ट लाइन का आइडिया हमें अभिषेक बाबू के लव लेटर से आया है )
नमस्ते !!!!
१. दिल चाहता है
२. तारे ज़मीन पर
३. जाने तू या जाने ना
४. धोबी घाट
इन सबमे कलाकारी , बोले तो “चित्रकारी" की महत्ता का विषद वर्णन किया गया है | एक में तीन खुराफाती दोस्तों में सबसे शांत धीर-गंभीर वो था जो पेंटिंग करता था| दूसरी के बारे में तो आप से क्या कहें, उसमे तो हर कोई पेंटिंग करता था| तीसरी में नायिका अपने भाई के बारे में तब तक नहीं जान पाती जब तक वो उसका पेंटिंग से भरा कमरा नहीं देख लेती | यही हालत चौथी में भी है | मतलब कुल मिलाके पेंटिंग का बोल बाला है हर तरफ | और दीगर बात ये भी है की इन सबमे कहीं ना कहीं आमिर साहब इन्वोल्व्ड हैं|
वैसे उन्होंने चित्रकारी गजनी में भी की थी, पर वहाँ “चित्रकारी" की “कल्पना” अलग थी| चित्रकार तो मिया मजनू भी थे फिल्म वेलकम में और साथ ही चित्रकार जिनेलिया भी थी फिल्म लाइफ पार्टनर में | वैसे लाइफ पार्टनर में जिनेलिया एक गायिका और लेखिका भी थी| पर यहाँ मुद्दा चित्रकारी का है तो उसी की बात करते हैं|
तो किसी भी टाइप की चित्रकारी करने से इंसान की वैलू बढ़ जाती है | तो हमने भी सोचा क्यूँ ना चित्रकारी पे अपने हाथ आज़माए जाएँ…और पिछले साल नवंबर के महीने में अपने आई टी इंडस्ट्री करियर के ५ साल पूरे होने की खुशी में, इन ५ सालों में हमारी दुःख-दुःख
फिर ध्यान आया की ये चित्रकारी का शौक तो हमें बचपन से है| हम इतने होनहार रहे चित्रकारी में की पूंछो मत | मारे डर के चित्रकला की क्लास से भगे रहे | बोले की उद्यान विभाग में हैं, पेड़ों को पानी देना है (ये क्लास ४ या ५ की बात है) टीचर ये नहीं समझ पाए कि ऐसा कौन सा पौधा है जिसे शाम को ठीक तीन बजे पानी देना होता है ? और वो भी रोज, वो आज भी यही कहते होंगे कि लड़का पेड़ पौधों से लगाव रखता है|
चित्रकारी बड़ी फेमस है हमारी, हमारे घर में, हमको छोड़ के सब का हाथ ठीक ठाक है | पापा जी का और भाई का तो सुपर-डुपर एक दम | तो लताड़े भी बहुत गए हैं| ड्राइंग का पेपर हमें दुनिया के सबसे घृणित पेपर्स में से एक लगता था | उसकी एक दम कदर नहीं करते थे | एक दिन ऐसे ही पहुँच गए पेपर देने | सवाल आया “एक अमरुद का चित्र बनायें और उसे उचित रंगों से सजाएँ" | अब हम तो एक पेन्सिल ढंग से ना ले गए थे | बस ये पता था अमरुद गोल होता है और मेरे दोस्त का कड़ा भी गोल है | उससे पेन्सिल भी मांगे और कड़ा भी | बना दिए एक दम गोल गोल , ताज़ा-फ्रेश अमरुद | अब आयी बात उसे “उचित" रंगों से सजाने की तो ये काम हम कैसे कर सकते थे, रंग लाना तो हम ऐसे ही भूल गए थे | बगल में मेरा एक सीनियर बड़े मन से ड्राइंग बना रहा था | उसे हमने बोला कि हमें भी स्केच दे दो हम भूल गए हैं | उसने बोला दे तो देंगे पर वही देंगे जो खाली होगा सब नहीं दे पाएंगे | अंधा क्या चाहे दो आँखें | हमने हामी भर दी | बस सवाल थोड़ा सा बदल के समझना पड़ा “एक अमरुद का चित्र बनायें और उसे उपलब्ध रंगों से सजाएँ"| अब वो पेज तो मेरे पास नहीं है पर यही तो कलाकार की सबसे बड़ी खासियत है कि वो उसे दुबारा भी बना देता है | ये लीजिए हमने अपनी शानदार पेंटिंग फिर बना डाली एम एस पेंट पे…
रूम से बहार निकल कर जब अपने बैग में संभाल के अपना पेपर रखने लगे तो दिखा मम्मी ने कलर का डिब्बा रख कर दिया था पर हमें इन चीज़ों से कहाँ वास्ता था | खैर घर आये किसी को कुछ नहीं बताये | कुछ दिनों बाद जब घर पे दिखाने के लिए कॉपी मिली तो बड़ा सा क्रोस बना हुआ था | नंबर मिले थे १० में से ० और लिखा था “क्या अमरुद इस रंग का होता है” | बहुत लताड़े गए | भाई के ड्राइंग में फोड़ू नंबर आते थे | तो और लताड़े गए |
खैर इतना अपमान सहने के बाद बारी आयी पोस्टर बनाने की | विषय मिला “व्यायाम करो" | एक फोटो बनाये , एक लड़का वेट लिफ्टिंग के वेट्स उठाये ऊपर में तन के खड़ा है | बस खुपड़िया बनाने की जगह नहीं बची | हमने “एड्जस्टिंग नेचर” का परिचय देते हुए हलकी सी टेढ़ी बना दी, बाईं तरफ झुकी हुई| स्कूल में टीचर ने और घर में पापा ने फिर हड़काया | “ऐसे गर्दन बनती है?”| अब उन्हें कौन बताये जब वेट ज्यादा हो जाता है तो उसे ऊपर उठाने के लिए गर्दन टेढी करनी ही पड़ती है| खैर वो सब लोग तो नासमझ हैं, एक अकेला मैं ही समझदार हूँ |
ऐसा नहीं है कि मै अकेला इंसान हूँ इस टाइप का, मेरे सबसे जिगरी दोस्त, शुशांत भाई भी चित्रकारी के पारखी हैं | एक बार उनके ड्राइंग में अच्छे नंबर आ गए तो घर वाले दौड़ के गए ये देखने कि ड्राइंग में कैसे आ गए नंबर | हुआ यूँ कि सवाल आया था निम्न में से कोई एक चित्र बनाये | भाई ने उठाया राजहंस | उस ज़माने में पेन्सिल से शेड देने का चस्का सबको चढा हुआ था | उन्होंने भी दे डाला | पर जब कॉपी चेक हुई तो टीचर ने उन्हें पूरे नम्बर दे दिए क्यूंकि दूसरा ऑप्शन कौवा बनाने का था | आजतक वो ये सोच के खुश हैं कि उन्होंने लिखा नहीं था कि ये राजहंस है|
खैर कहानियाँ तो और भी हैं, एक बार हमने एक फूल का फोटो बनाया, उसे उचित रंगों से सजाया और जब वो अनुचित बन गया तो किसी बड़े आर्टिस्ट कि तरह उसपे अपने नाम की जगह अपनी सिस्टर का नाम डाल दिया |
अभी लेटेस्ट एक और चित्रकारी किये हैं, आप भी देखो …
आपको क्या लगता है कि इस फोटो को मैं अगर कांटेस्ट के लिए भेजूं तो मुझे अर्थशास्त्र का ऑस्कर पुरस्कार मिल सकता है क्या??
(ये लास्ट लाइन का आइडिया हमें अभिषेक बाबू के लव लेटर से आया है )
नमस्ते !!!!
--देवांशु
हालांकि ये पोस्ट काफी हलके-फुल्के मूड में लिखी गयी है... लेकिन मेरा अपना मूड इसपर भारी होता दिख रहा है... मुझे पेंटिंग बिलकुल भी नहीं आती, लेकिन इस दिल पर हर कोई अपनी तस्वीर बना जाता है... ये दिलों का कैनवास भी अजीब होता है....
जवाब देंहटाएंशेखर, दिल का कैनवास तो अजीब भी होता है और बड़ा भी| इस पर पेंटिंग करने के लिए किसी चित्रकार कि ज़रूरत नहीं होती, कोई भी कभी भी पेंटिंग कर सकता है|
हटाएंपोस्ट का मूड कैसा भी रहा हो, पढने वाले का मूड हमेशा उस पे भारी हो ही जाता है !!!
kamal ka post...chitrakari ka aisa anubhav pahli baar mila
जवाब देंहटाएंha bhej ya kam se kam ye chitrakari facebook pr share kr do,taki duniya aapki nayi ada se wakif ho sake
जवाब देंहटाएंऔर फ्रैंड लिस्ट से काफी लोग कम भी हो जायेंगे :)
हटाएं'साडी का किनारा', 'आम' आदि चित्रों को स्कूल से बनाते-बनाते हम भी अच्छे-खासे चित्रकार बन गए थे.कभी स्कूटर का तो कभी देवी-देवता का या किसी महापुरुष का चित्र झटपट बना डालते थे.
जवाब देंहटाएंअब जबसे बड़े और समझदार हो गए हैं,चित्र भूल गए हैं.
एक बात और,आजकल जित्ती न समझ आने वाली कविता लिख लो,उत्ते बड़े कवि और जित्ती गोल-मोल घुमावदार रेखाएं खीच लो,उत्ते बड़े चित्रकार !
आखिर,न समझ पाने की तोहमत कौन अपने सर ले ?
सही बात कही आपने संतोष जी!!!!
हटाएंहेहेहे.. मस्त है रे... हमें भी अपनी कला की कापी याद आ गई जिसके हर पन्ने पर "पुनः बनाओ" चिपका देती थी हमारी नादान टीचर.. उन्हें पता ही नहीं होगा कि यही ट्रेंड है.. खैर...एक बार साइन मिल जाने के बाद हमने कभी पन्ने रंग के पेडों की जान लेने का घ्रणित काम नहीं किया.. आज ये पोस्ट पढ कर ापने साथ साथ तुम पर भी गर्व (चिन्नी-मिन्नी सा) हो रहा है.. चेपते रहो... :D
जवाब देंहटाएंमोनाली, सही कहा है, "पुनः बनाओ" से मेरी कापी भी भरी रहती थी :), वार्षिक परीक्षा होने के बाद उस कापी से खुन्नस निकाली जाती थी :)
हटाएंसब पोस्ट लिखे हो उ तो ठीक है हमको ई बात समझ नहीं आया कि दू ठो फोटो क्या सोच के चिपका दिए...अगर ई सोच के चिपकाये हो कि ब्लॉग पर तो लोग तारीफ करते ही हैं कौन जाने कोई तुम्हारी छुपी प्रतिभा को पहचान ले तब तो तुम्हारे इरादे नेक हैं...मगर अगर हम लोगों को ऐवें ही परेशान करने के लिए चिपकाये हो कि इसमें महानता के छुपे कीटाणू ढूँढें तो हम कहे देते हैं हमको ऐसा कुछो नहीं दिखा.
जवाब देंहटाएंपोस्ट एकदम धुंआधार है...होली के टाइम पर रंगभरी भी है...बस खाली ऐसा फील आ रहा है कि भांग खा के पेंट किये हो...और अपने ई गडबडझाला में अभिषेक बाबु को काहे खींच रहे हो...तुम अपने लिखे और पेंटिंग के जिम्मेदार खुद ही हो...इसके कारण जो नफा-नुक्सान है तुम ही भुगतोगे...every word you say will definitely be used against you. :D
अभी तुम्हारे पोस्ट से इंस्पायर हो कर उ एक आध ठो पेंटिंग चिपका दिया तो देख कर वाह वाही तो हम लोग को करना पड़ेगा...तुम ऐसा सब खतरनाक चीज़ मत पेंट किया करो...इसी में दुनिया का भलाई है :)
इन फोटो के पीछे छुपी महानता ढूँढना ही तो मुद्दे की बात थी, ये एक कांटेस्ट था और बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आप इसमें हार गयी हो :)
हटाएंचाहो तो एक मौका और दिया जा सकता है :)
कल अभिषेक बाबू को बताये की एक लाइन चुरा लिए हैं, वो कहीं बाहर गए हुए हैं तो बोले हैं कि सोमवार को चोरी का हिसाब किया जायेगा :)
यह तुम्हारी विन्रमता ही है देवांशु जो अपनी इतने उंचे दर्जे की पेंटिंग/स्केच को साधारण बता रहे हों। आने वाले दिनों में क्या जाने इस पोस्ट को लोग -"एक महान कलाकार का आत्मकथ्य!" कहते हुये इससे कला की बारीकियां सीखें। :)
जवाब देंहटाएंयही तो सर !!! देखिये जौहरी ही कर सकता है हीरे की परख, आप पहचान गए | :) :) :)
हटाएं...और जो बचपन में कला के कारण मिले कष्ट की बात है तो यही कह सकते हैं कि --महान कलाकारों का बचपन हमेशा कष्टप्रद रहा है!:)
जवाब देंहटाएंहाँ बस अंतर इतना है कि महान लोगो को दुनिया कष्ट देती है और, और हमारे टाइप के महान लोग दुनिया से कष्ट लेते रहते हैं खुद से ही :) :) |
हटाएंऔर ये तो फिर महान बनने की कसौटी थी, खरे तो उतरना ही था, बाकी चित्रकारी तो हमारी धाँसू है ये हम जानते हैं :) :) :)
Wah re mere LAL..... Chha Gaye to tum to...Mere aaj tak kabhhi bhi art me 17 se jyad amarks nahi aye kyunki mujhe hamesha passing mark diye jate the out of 50....
जवाब देंहटाएंकाफी "कलाकार" आदमी हो तुम तो मियां डीके :)
हटाएंजियोमेटरी छोड़ और कभी ना बना पाये कोई फोटू। ऐसे देश भक्त थे कि दो रुपये का सिक्का देख कर भी भारत के नक्शे में हमेशा अगल-बगल के देश को भी जोड़ लाते थे :) हमने कहा कि सर नक्शा गलत है तो क्या हुआ... जो जगहें दिखानी थी वो तो सही है। टूटी सर ने कहा था... बेटा कैसे मान ले? नक्शा सही करें तो तुम्हारे मैगनीज की खान बंगाल की खाड़ी में चली जाती है :P
जवाब देंहटाएंऔर बायलोजी में कभी दिल तो ठीक से बन ही नहीं पाया... फूल-पत्ती, मिओसिस, माइटोसिस कुछ नहीं बना पाते थे... नहीं तो शायद गलती से बायलोजी भी पढ़ लिए होते :)
चित्रकारी का तो अनपढ़ कहते हुए भी शर्म आती है :) हमसे किसी ने कहा कि कुछ भी स्केच कर के भेजो... हम सोच में पड गए कि जिंदगी में कभी कुछ बनाया क्या ! इंजीनियरिंग ड्राइंग याद आया आखिरी... अब क्या बनाते... एसीम्प्टोट बना के भेज दिये :) कहो तो स्कैन कर के डालें !