पिछले दिनों हम बीमार पड़े…अरे हाँ वाकई में बीमार पड़े, एक दम धाँसू टाइप बीमार | पूरा बदन भट्टी की तरह गरमा गया | खुद ही आइडिया लगा लिए कि १०४ से कम क्या होगा | वैसे १०४ का आंकड़ा है बड़ा “ज़बर”| सुनते ही लोगो की “खटिया खड़ी और बिस्तरा गुल हो जाता है” |
बचपन में बीमार पड़ना बड़ा सुकून भरा होता था | ना सुबह उठके कोई नहाने को कहता, ना स्कूल जाने का बवाल , ना पढ़ने का टेंशन | कोई लफड़ा-लोचा ही नहीं लाइफ में | मम्मी देखभाल भी एकदम बढ़िया करती, छोटे भाई-बहन से भी दवाई का बहाना बना के चाय-पानी मंगाते रहते!!!!पर अब ज़माना बदल गया है | मम्मी-पापा इंडिया में है| उनको तो बता भी नहीं सकते, बता दो तो माता श्री घबड़ा जाती हैं, उन्ही को बुखार आ जाये ऐसी हालत में तो |
हाँ तो बीमार पड़े, किसी से कुछ ना बोले | चुप-चाप चादर ताने सोते रहे | २-४ दोस्तों का फोन-फान आया उन्हें भी बता दिए “थोड़ा वीक फील कर रहे हैं बाद में कालियाते हैं" |
रूम-मेट्स ताड़ गए कि हम बीमारी का बहाना बनाकर लंबा सोने के चक्कर में हैं, फटाफट धाँसू सा सूप बना के गटकवा दिया, हालत थोड़ी दुरुस्त हुई | नींद बढ़िया आयी | शाम को “आशीष” अपनी धर्म-पत्नी के साथ आये| साथ में नीम्बू की शिकंजी भी एक नयी “बोतल" में बैठ के आ गयी | शिकंजी निपटा डाली | ताश भी खेला | “नयी बोतल" हमने बड़े “एहसान" के साथ अपने पास रख ली | तबियत हो गयी “टनाटन” | और निष्कर्ष ये निकला “पहले ताश खेल लेते तो दिनभर बीमार रहने से तो बच जाते” |
खैर कोई नहीं | रात हुई | बीमारी से उठते ही हम किचेन में जा धमके | रूम-मेट्स खाना बना रहे थे और मसाले के साथ आलू भून रहे थे | मन में एक आइडिया आया कि आलू कोई मसाला तो नहीं होता| फिर इसे काहे मसाले में मिक्स किया जाये |
हम किचेन से भाग के अपनी डायरी उठा लिए | इतनी धाँसू लाइन मिलते ही एक “कालजयी" कविता लिखने की शुरुआत कर दी | और जैसा कि आपको पता ही है कि हम सारी पोस्ट बेकार में लिखते हैं | एक मात्र उद्देश्य होता है कि लोगो का खून पिया जाये, तो हम ये अपनी कविता भी आपको पढने पर मजबूर कर रहे हैं| कविता के बोल वही हैं, “मटर एक सब्जी होती है , आलू कोई मसाला नहीं होता" | (मटर हमारी पसंदीदा है , हर सब्जी में घुसेड़ देने का स्कोप देखते रहते हैं, कविता में भी मौका देख के घुसेड़ दे रहे हैं, आखिर स्वाद का मामला है) .. हाँ तो सुनिए “कालजयी" कविता… और कविता कि हर लाइन का एक उद्देश्य भी है वो भी बताये बिना हम नहीं मानेंगे…
सबसे पहले घोटाला-फ़ोटाला के लिए :
क्यूँ गरियाते हो अपनी “करेंट" “गवर्मेंट”को, किस सरकार में घोटाला नहीं होता |
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (वाह वाह)
शोपिंग मॉल की शौपिंग से परेशान पति-देव की करुण आवाज़ में:
क्यूँ जाती हो लुटने शोपिंग मॉल में , पैसे बचाने में कोई गड़बड़-झाला नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (फिर से वाह वाह)
और जो लोग कोई काम करने से पहले बहुत सोचते हैं, कि सही क्या है गलत क्या , उनके लिए:
फूंको कम, कदम रखो ज्यादा, छुपा हुआ हर कहीं गहरा नाला नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (वाह वाह वाह वाह)
और जो लोग इस बात से खुश हैं कि मेरे यहाँ बिल ना भरने कि वजह से बत्ती गुल है | बिजली की कटौती हुई तो हम सब बराबर होंगे, उनके लिए :
खुश मत हो कि मेरे यहाँ बत्ती गुल है, बिन ढिबरी शाम तुम्हारे यहाँ भी उजाला नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (केवल वाह वाह)
अब एक सटायर:
गरीब कभी कौर को “बाईट” नहीं कहते, अमीरों का कौर कभी “निवाला” नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (सटायर कन्फ्यूज है, नो वाह वाह)
सब बोलते हैं दीवाली में आजकल मजा नहीं आता, कारण यहाँ है :
होली जो मनाते खुशी के रंग से , तो दिवाली में किसी का दिवाला नहीं होता |
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (वाह वाह रिटर्न्स)
सारे कवि जो हैं चाँद को प्यार का सूचक मनाते हैं, सूरज को पूंछ ही नहीं रहा:
सूरज को चाहे बिलकुल ना पूंछो, चाँद में बिन उसके उजाला नहीं होता |
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (सुभान-अल्लाह)
और अपनी इसी “कालजयी" कविता के बारे में:
ये कविता पढ़ना माना एक जुर्म है, पर इस जुर्म में किसी का मुंह काला नहीं होता | (डोंट वरी)
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (हाय बस जान ही ले लो अब तो )
****
हाँ तो ये तो थी हमारी “कालजयी” कविता | आप तो बोलोगे नहीं इसीलिए खुद ही वाह वाह कर लिए | कविता को कालजयी नाम देने का आइडिया हमें अपने पसंदीदा लेखक अनूप शुक्ला जी की एक पोस्ट से आया | कविता लिखने के बाद हमने अपने २-४ ब्लॉगर दोस्तों को ऑनलाइन पकड़ा और विडियो चैट में उन्हें इसका काव्यपाठ भी सुनाया, अपनी “मधुर" आवाज़ में | नाम ना बताने कि शर्त पे उन सबने इस कविता की बहुत तारीफ़ की, और हमें पोस्ट करने के लिए प्रेरित भी किया |
देखा जाये तो लाइन बड़ी मौजू टाइप है “आलू कोई मसाला नहीं होता” , आप भी मेरी तरह कोई एक शानदार कविता लिख सकते हो…हमें ज़रूर सुनाना |
बचपन में बीमार पड़ना बड़ा सुकून भरा होता था | ना सुबह उठके कोई नहाने को कहता, ना स्कूल जाने का बवाल , ना पढ़ने का टेंशन | कोई लफड़ा-लोचा ही नहीं लाइफ में | मम्मी देखभाल भी एकदम बढ़िया करती, छोटे भाई-बहन से भी दवाई का बहाना बना के चाय-पानी मंगाते रहते!!!!पर अब ज़माना बदल गया है | मम्मी-पापा इंडिया में है| उनको तो बता भी नहीं सकते, बता दो तो माता श्री घबड़ा जाती हैं, उन्ही को बुखार आ जाये ऐसी हालत में तो |
हाँ तो बीमार पड़े, किसी से कुछ ना बोले | चुप-चाप चादर ताने सोते रहे | २-४ दोस्तों का फोन-फान आया उन्हें भी बता दिए “थोड़ा वीक फील कर रहे हैं बाद में कालियाते हैं" |
रूम-मेट्स ताड़ गए कि हम बीमारी का बहाना बनाकर लंबा सोने के चक्कर में हैं, फटाफट धाँसू सा सूप बना के गटकवा दिया, हालत थोड़ी दुरुस्त हुई | नींद बढ़िया आयी | शाम को “आशीष” अपनी धर्म-पत्नी के साथ आये| साथ में नीम्बू की शिकंजी भी एक नयी “बोतल" में बैठ के आ गयी | शिकंजी निपटा डाली | ताश भी खेला | “नयी बोतल" हमने बड़े “एहसान" के साथ अपने पास रख ली | तबियत हो गयी “टनाटन” | और निष्कर्ष ये निकला “पहले ताश खेल लेते तो दिनभर बीमार रहने से तो बच जाते” |
खैर कोई नहीं | रात हुई | बीमारी से उठते ही हम किचेन में जा धमके | रूम-मेट्स खाना बना रहे थे और मसाले के साथ आलू भून रहे थे | मन में एक आइडिया आया कि आलू कोई मसाला तो नहीं होता| फिर इसे काहे मसाले में मिक्स किया जाये |
हम किचेन से भाग के अपनी डायरी उठा लिए | इतनी धाँसू लाइन मिलते ही एक “कालजयी" कविता लिखने की शुरुआत कर दी | और जैसा कि आपको पता ही है कि हम सारी पोस्ट बेकार में लिखते हैं | एक मात्र उद्देश्य होता है कि लोगो का खून पिया जाये, तो हम ये अपनी कविता भी आपको पढने पर मजबूर कर रहे हैं| कविता के बोल वही हैं, “मटर एक सब्जी होती है , आलू कोई मसाला नहीं होता" | (मटर हमारी पसंदीदा है , हर सब्जी में घुसेड़ देने का स्कोप देखते रहते हैं, कविता में भी मौका देख के घुसेड़ दे रहे हैं, आखिर स्वाद का मामला है) .. हाँ तो सुनिए “कालजयी" कविता… और कविता कि हर लाइन का एक उद्देश्य भी है वो भी बताये बिना हम नहीं मानेंगे…
सबसे पहले घोटाला-फ़ोटाला के लिए :
क्यूँ गरियाते हो अपनी “करेंट" “गवर्मेंट”को, किस सरकार में घोटाला नहीं होता |
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (वाह वाह)
शोपिंग मॉल की शौपिंग से परेशान पति-देव की करुण आवाज़ में:
क्यूँ जाती हो लुटने शोपिंग मॉल में , पैसे बचाने में कोई गड़बड़-झाला नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (फिर से वाह वाह)
और जो लोग कोई काम करने से पहले बहुत सोचते हैं, कि सही क्या है गलत क्या , उनके लिए:
फूंको कम, कदम रखो ज्यादा, छुपा हुआ हर कहीं गहरा नाला नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (वाह वाह वाह वाह)
और जो लोग इस बात से खुश हैं कि मेरे यहाँ बिल ना भरने कि वजह से बत्ती गुल है | बिजली की कटौती हुई तो हम सब बराबर होंगे, उनके लिए :
खुश मत हो कि मेरे यहाँ बत्ती गुल है, बिन ढिबरी शाम तुम्हारे यहाँ भी उजाला नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (केवल वाह वाह)
अब एक सटायर:
गरीब कभी कौर को “बाईट” नहीं कहते, अमीरों का कौर कभी “निवाला” नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (सटायर कन्फ्यूज है, नो वाह वाह)
सब बोलते हैं दीवाली में आजकल मजा नहीं आता, कारण यहाँ है :
होली जो मनाते खुशी के रंग से , तो दिवाली में किसी का दिवाला नहीं होता |
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (वाह वाह रिटर्न्स)
सारे कवि जो हैं चाँद को प्यार का सूचक मनाते हैं, सूरज को पूंछ ही नहीं रहा:
सूरज को चाहे बिलकुल ना पूंछो, चाँद में बिन उसके उजाला नहीं होता |
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (सुभान-अल्लाह)
और अपनी इसी “कालजयी" कविता के बारे में:
ये कविता पढ़ना माना एक जुर्म है, पर इस जुर्म में किसी का मुंह काला नहीं होता | (डोंट वरी)
मटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (हाय बस जान ही ले लो अब तो )
****
हाँ तो ये तो थी हमारी “कालजयी” कविता | आप तो बोलोगे नहीं इसीलिए खुद ही वाह वाह कर लिए | कविता को कालजयी नाम देने का आइडिया हमें अपने पसंदीदा लेखक अनूप शुक्ला जी की एक पोस्ट से आया | कविता लिखने के बाद हमने अपने २-४ ब्लॉगर दोस्तों को ऑनलाइन पकड़ा और विडियो चैट में उन्हें इसका काव्यपाठ भी सुनाया, अपनी “मधुर" आवाज़ में | नाम ना बताने कि शर्त पे उन सबने इस कविता की बहुत तारीफ़ की, और हमें पोस्ट करने के लिए प्रेरित भी किया |
देखा जाये तो लाइन बड़ी मौजू टाइप है “आलू कोई मसाला नहीं होता” , आप भी मेरी तरह कोई एक शानदार कविता लिख सकते हो…हमें ज़रूर सुनाना |
मैंने इस कविता को राग-मल्हार में गाया, लोगों की आँखों से आंसुओं की बारिश हो गयी | वैसे आप क्या कहते हो की किस राग में इसे गाना चाहिए!!!!
बोलो बोलो टेल टेल….
(फोटो में दिखाए गए पकोड़ो में आलू भी है, इसलिए उसे बे-फालतू ना समझा जाये )
--देवांशु
ha ha ha... ho ho ho... hi hi hi .... :P
जवाब देंहटाएंलगता है दिल खोल के हँसे हो :) :) :)
हटाएंओसे ई आलू को मसाला घोषित करने का आईडिया बहुत जबरजस्त है... हम लोग तो यहाँ बंगलौर में होस्टल में नारियल को हर जगह घुसेड़ा हुए देखते हैं... यहाँ का मेनू डिसाईड करने वाले को भी तुम्हारी ही तरह मटर की जगह नारियल से प्यार रहा होगा... ऐसी कालजयी कविताओं के क्या कहने, आप यूँ ही कवितायें लिखते लिखते एक दिन कालजयी कवि बन जायेंगे ऐसी ग़लतफ़हमी में हम भी घिरे बैठे हैं....
जवाब देंहटाएंयार बंगलौर की बात करो ही न, नारियल तेल, फिल्टर कॉफी, फलाना-सागर, ढिकाना-सागर |
हटाएंजल्दी ही आना है वाहन फिर से शायद :(
हाँ तो और नहीं तो क्या... सागर किनारे सर दर्द हमारे.... :(
हटाएंसागर किनारे, दिल दुत्कारे!!!
हटाएंना ना ना ना रे , ना रे ना रे !!! :) :) :)
लिखते तो हम सब है जहरीले पर कोई तुम सा जहर वाला नहीं होता
जवाब देंहटाएंमटर एक सब्जी होती है आलू कोई मसाला नहीं होता
(वाह वाह!)
ऐसा सब पोस्ट लिख उख के लोग को थोक में बीमार करने का बीड़ा उठाये हो...उसपर ऐसा फोटो उटो साट दिए हो...अब हमारा भी मन कर रहा है आलू के पकोडे खाने का..कोई हमको बना के खिलाता काश!
पकोड़े इतने खूबसूरत नहीं बनते, गर हम जैसा कोई तलने वाला नहीं होता..
हटाएंमटर एक सब्जी होती है आलू कोई मसाला नहीं होता ( वाह वाह रि-लोडेड)
सिर्फ ज़हर वाला नहीं खून पीने वाला भी बोल पूजा....
हटाएंदेवांशु-- बस करो! कित्ता खून पियोगे जनता का?
जनता को एनीमिया हो जायेगा!!
डॉ पूजा की डॉ दोस्त स्मृति, इन्हें सब पता होता है की किस को कौन सा रोग हुआ है, चाँद को जुकाम से लेकर जनता को एनीमिया तक , सारा लेखा जोखा है इनके पास :) :) :)
हटाएंआप वकील की जगह अगर डाक्टर होती तो कई क्लिनिक्स में पड़ा ताला नहीं होता ,
मटर एक सब्जी होती है आलू कोई मसाला नहीं होता | :) :) :) :)
:)
हटाएंपकोड़े की तस्वीर अच्छी है, कविता उससे भी अच्छी है।
जवाब देंहटाएंकवि आहत (बालहंस वाले) की याद आ गयी!
:) :) :)
हटाएंआशीष जी पकोड़े भी धाँसू थे, उनको खा के पढाई-लिखाई वाली पोस्ट लिखी थी :) :) :)
Bach me hum hadd aalsi the to sochte the ye baal kyu hote hain.. tel lagao, roz kanghi karo, shampoo karo.. lekin Kavishreshtha Devanshu aaj aapke kaaran humari aankhein khul gayin.. baal itni bakwaas padhne k baad nonchne aur kheenchne k lie hote hain.. kyuki tumhe kheench k ek tamacha jadna to zara mushkil h....
जवाब देंहटाएंदेखो बालिका, इस तरह से बात-बात पे अपना संयम मत खोने लगो !!! अभी तो तुमने "ज़हर" देखा ही कहाँ है :) :)
हटाएंतुमसे जब भी मिलेंगे, हेलमेट पहन के मिलेंगे :) :) :)
Zehar ugalne walo ka kabhi kahin munh kaala nahi hota...
हटाएंmatar sabji hoti h, aaloo koi masaala nahi hota :P
:) :) monali badi himmat wali ladki hai...kitnon ke dil kee baat kah di
हटाएंइस पोस्ट को लिखने वाला एक्सपोज न होता, गर मोनाली सा कोई हिम्मत वाला न होता,
हटाएंमटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता | (ढिचक्याऊँ)
:D :D
हटाएंhum bhi yahaan pe AGREE add kar dete hain...
and mind it Devanshu...ye agree Monali aur Puja ke comment ke liye hai...tumhari so called "KAALJAYEE" kavita ke liye nahi
दरसल "एग्री" बहुत छोटा शब्द है स्मृति जी हमारी "कालजयी" कविता के लिए, इसके लिए कुछ "सुपर्ब" "स्प्लेंडिड" "फैब्लस" टाइप के शब्द प्रयोग कीजिये!!!! :) :) :)
हटाएंToo good. 'bite aur Nivala ' bahut sahi kaha !!
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा,
हटाएंहाँ "निवाला" कभी किसी अमीर के बारे में नहीं लिखा गया :) :)
वाह वाह...पर आलू मसाला होता है.हम तो हर चीज़ में डाल देते हैं.
जवाब देंहटाएंहमने तो कविता में भी दाल दिया :) :)
हटाएंकुछ २-४ लाइन लिखिए इतनी बढ़िया लाइन है :):):)
बस हद हो गयी :)
जवाब देंहटाएं:) :) :)
हटाएंबढ़िया जी बहुत बढ़िया .....
जवाब देंहटाएंतरस खाते है उनपर ,जिनकी ससुराल में कोई साली -साला नहीं होता
मटर एक सब्जी होती है आलू कोई मसाला नहीं होता
ये लाइन तो डेडली है :)
हटाएंहाहा.. ये साला बढ़िया था.. :) तबाही.. !!
जवाब देंहटाएंएक सटायर हम भी मारे देते हैं..
इन नेतों का भरी संसद में.. क्यूँ मुंह काला नहीं होता,
मटर एक सब्जी होती है.. आलू कोई मसाला नहीं होता !!
सही है लड़के, मस्त सटायर चिपका दिए !!!! जियो!!!
हटाएंक्या कालजयी कविता लिखी है। मन कर रहा है इससे प्रेरणा ग्रहण करके कुछ कविता सविता लिखी जाये। :)
जवाब देंहटाएंतबियत ठीक हो गयी यह अच्छी बात है।
यहां फोटो में पकौड़े से ज्यादा चटनी हसीन लग रही है। :)
ये तो चक्रीय प्रक्रिया हो जायेगी, हम तो आपसे "इंस्पायर" होते रहते हैं :) :) :)
हटाएंचटनी तो पकोड़ो की जान होती है,इसके बिना पकोड़ो का बोल-बाला नहीं होता|
मटर एक सब्जी होती है.. आलू कोई मसाला नहीं होता ||| (हाय-हाय-हाय)
तबियत एकदम "टनाटन" हो गयी है !!! :) :) :) :)
ये देखो सटा दी पोस्ट प्रेरणा लेकर जी आन लाइन कविता स्कूल
हटाएंvah vah...:)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!!!!
हटाएंइस काल जाई कविता पे तप कितने काल न्योछावर किये जा सकते हैं ... खाते खाते भी और सुनते सुनते भी ... और हाँ .... बनाते बनाते भी ..
जवाब देंहटाएंkaljaee kavita ke liye 'kaljaee' subhkamnayen......
जवाब देंहटाएंsadar.
वाह!! :)
जवाब देंहटाएंमटर एक सब्जी होती है, आलू कोई मसाला नहीं होता------------- Mast Yaar.kaha they ab tak...........
जवाब देंहटाएंwah wah es kaljaee kavita ke liye.
जवाब देंहटाएंआलु के पकोडे मेँ अगर मसाला ना डाला होता तो आलु -आलु ही रहता कोइ बवाला ना होता ।मटर एक सब्जी है आलु कोई मसाला नही होताँ।
जवाब देंहटाएं