बुधवार, 17 जुलाई 2013

डीज़ल-पेट्रोल

अभी थोड़ी देर पहले बी एस पाब्ला जी के फेसबुक स्टेटस पर एक रिलेटिव स्टडी पढी :

“भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार जब आई तो
1 मार्च 1998 को पेट्रोल 23.94, डीज़ल 9.87 और गैस 136 रूपए की थी जबकि बीजेपी सरकार जाते समय 16 नवंबर 2004 को पेट्रोल 37.84, डीज़ल 26.28, गैस 281 की दर से उपलब्ध हो रहा था

मतलब, 6 वर्षों में पेट्रोल में 60%, डीज़ल में 165%, गैस में 106% की वृद्धि की गई

जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो
16 नवंबर 2004 को पेट्रोल 37.84, डीज़ल 26.28, गैस 281 की दर से बिक रहा था और 6 वर्षों बाद जून 2010 को पेट्रोल 51, डीज़ल 40, गैस 345 की दर बाज़ार में था

मतलब, इन 6 वर्षों में पेट्रोल में 34%, डीज़ल में 52%, गैस में 22% की वृद्धि हुई

(मैं किसी राजनैतिक विचारधारा/ दल का समर्थक नहीं, लेकिन हो-हल्ला और हवा हवाई बातें करने वाले खुद जान लें वास्तविकता क्योंकि दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुयों की कीमतें बढ़ना तय है चाहे सरकार कोई भी हो) "

 

 

वैसे मुझे भी किसी दल से ज्यादा लेना देना नहीं है लेकिन एक कैलकुलेशन करने का मन कर गया :

मार्च १९९८

कच्चे तेल की कीमत : १२.७५ डॉलर प्रति बैरल

एक्सचेंज रेट : ४२ रुपये प्रति डॉलर

कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : १२.७५*४२ = ५३५.५

 

नवम्बर २००४ 

कच्चे तेल की कीमत : ४४.३० डॉलर प्रति बैरल

एक्सचेंज रेट : ४५  रुपये प्रति डॉलर

कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : ४४.३*४५ = १९९३.५

 

जून २०१०

कच्चे तेल की कीमत : ६७.१२ डॉलर प्रति बैरल

एक्सचेंज रेट : ४६.५६  रुपये प्रति डॉलर

कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : ६७.१२*४६.५६ = ३१२५.१

 

अगर तुलनात्मक स्टडी की जाए तो १९९८-२००४ के ६ वर्षों में कच्चे तेल की कीमत २७२.२६% बढ़ गयी जबकि तेल के दामों में वृद्धि पेट्रोल में ६०% और डीज़ल में १६५% |

वहीँ २००४-२०१० के कार्यकाल में बाजार मूल्य ५६.७६% की दर से बढ़ गया | और उसके मुकाबले पेट्रोल में ३४%  और डीज़ल में ५२% |

यहाँ पर ये भी देखना ज़रूरी है की परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों का असर भी नकारात्मक प्रभाव भारतीय व्यवस्था पर पड़ रहा था | और अभी तो मार्केट बाहर के निवेश के लिए पूरी तरह से खुला है |

तो जहाँ तक मुझे लगता है की ये वर्तमान सरकार का फेल्योर ही कहा जायेगा , पुरानी सरकार के मुकाबले |

गैस की कीमतों की कहानी तो गैस निष्कर्षण के बेसिन के बन्दर बाँट से समझी जा सकती है | मात्र १० प्रतिशत बेसिन खोलकर सप्लाई को कम किया गया और बढ़ती डिमांड के आगे रेट ऊपर जाने लगे | और उसे काउंटर करने के लिए दाम बढ़ाये गए और फिर कैश-ट्रान्सफर की धुआंधार स्कीम आ गयी |

****

मोदी या किसी और की तारीफ़ ना करते हुए, मुझे ये सरकार आर्थिक मामलों पर फिसड्डी नज़र आ रही है |  धर्म-जाति अपनी जगह है (और मुझे उनसे कोई वास्ता भी नहीं है) ,पर  कम से कम आर्थिक मामलों के चलते मुझे इस सरकार को दुबारा सत्ता में देखने का कोई मन नहीं है |

बाकी सबकी अपनी अपनी एनालिसिस होती है |

आंकड़ों के सूत्र :

एक्सचेंज रेट हिस्ट्री:  http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/56465.pdf , http://www.exchangerates.org.uk/USD-INR-30_06_2010-exchange-rate-history.html

क्रूड आयल प्राइस हिस्ट्री : http://www.ioga.com/Special/crudeoil_Hist.htm

-- देवांशु

7 टिप्‍पणियां:

  1. चलो तुम्हारी स्टडी भी हमने वहां पहुंचा दी है..

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  2. आँकड़ों को पूर्णता में देखना आवश्यक है, नहीं तो तुलना बेमानी लगती है। सुगठित तथ्य।

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  3. आपकी अर्थशास्त्र की रूचि प्रभावित करती है

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  4. गड़बड़ कहाँ?

    अगर कच्चे तेल की कीमतों के चश्मे से फिनिश्ड प्रोडक्ट की कीमत देखने लगें मुश्किल नहीं होगी ?

    आज अगर गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 170 रूपए/ क्विंटल है तो चीनी की कीमत 3800 रूपए/ क्विंटल है
    अगर गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य 13.50 रूपए/ किलो है तो पैकेज्ड आटा 30 रूपए/ किलो मिलता है

    ऐसे ही अगर आज 108 डॉलर है एक बैरल के तो यह हुए 6400 रूपए 120 लीटर के, मतलब 53 रूपये/ लीटर

    लेकिन बाज़ार में पेट्रोल है 70 से ऊपर
    और ऐसा हर सरकार के समय होता है
    फिर गड़बड़ कहाँ?

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    1. गड़बड़ ऐसे हुई है ...

      केस १ : अगर गन्ने का समर्थन मूल्य १७० से बढ़कर ३४० कर दिया जाए और चीनी की कीमत ३८०० से बढ़कर ५००० तक पहुंचे , मतलब १०० प्रतिशत गन्ने का मूल्य बढ़ने के बाद शक्कर के दाम करीबन ३१% बढ़ जाएँ |

      केस २ : अगर गन्ने का समर्थन मूल्य १७० से बढ़कर २५५ पहुंचे और चीनी की कीमत ४७५० जा पहुंचे , मतलब ५०% समर्थन मूल्य के सामने करीब २५% चीनी की कीमत का बढ़ जाना |

      यही गड़बड़ है कच्चे माल को खरीदने की लागत जिस दर से बढ़ रही है उससे कहीं ज्यादा दर से आप उसका फिनिश्ड प्रोडक्ट का सेलिंग प्राइस बढ़ा रहे हो | मतलब की सरकार "ज्यादा" मुनाफाखोर हो गयी है | ( अगेन , मैं इस सरकार की बुराई कर रहा हूँ इसका मतलब ये नहीं की पिछली सरकार की तरफदारी कर रहा हूँ ) |

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