शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

अनभिज्ञ…

“तो आल सेट" कहते हुए रिषी ने कागज अपनी डेस्क पर रखे और उसकी तरफ घूम गया|
“या ..आलमोस्ट” सारिका ने जवाब दिया |
“गुड…बट तुम्हारी कैब तो निकल गयी होगी" घड़ी की तरफ देखते हुए रिषी बोला|
“हाँ..सोंचा आखिरी दिन है गुडगाँव में..आज मेट्रो से जाती हूँ"
“ओ हाँ..योर लास्ट वर्किंग डे विध अस"
“हम्म…बट यू नो आज बड़ी अजीब सी फीलिंग है…घर जाने का मन नहीं कर रहा"
“होता है" रिषी ने मुस्कुराते हुए बोला और अपनी कंप्यूटर स्क्रीन की तरफ  मुड़ गया|
२-३ मिनट सन्नाटे के बाद वो फिर बोला…
“इफ यू डोंट माइंड ..कैन आई ड्रॉप यू टू मेट्रो स्टेशन” रिषी ने बोला…
“नहीं चली जाउंगी..”
“ओके..वैसे अगर घर जल्दी जाने का मन ना हो तो यू कैन ज्वाइन मी…थोड़ी देर घूमेंगे एंड देन मैं तुम्हे ड्रॉप कर दूंगा”
“हम्म…बट अगर मैं तुम्हारे साथ फ्राइडे शाम को घूमूंगी तो मेरा ब्वायफ्रेंड मुझे गोली मार देगा…तुम मुझे मेट्रो तक ही छोड़ दो..”
“श्योर..देन आई कांट हेल्प इट” वो हँसने लगा…
तभी रिषी का फोन रिंग करने लगा..
“हेल्लो सर…"
".यस आई एम् इन ऑफिस…"
".बट लीविंग…."
"ओके…लेट मी सी" उसने  फोन रख दिया और फिर अपनी स्क्रीन की तरफ घूम गया|
“क्या हुआ" सारिका ने पूंछा
“थोड़ा सा काम आ गया है गिव मी टेन मिनट..आई विल  ड्रॉप यू आफ्टर दैट”
“कोई नहीं तुम काम कर लो…मै वैसे भी देर से निकालूंगी…भीड़ भी कम हो जायेगी मेट्रो में"
रिषी अपने काम में डूब गया और उसने कोई भी जवाब नहीं दिया| आधा घंटा बीत जाने पे सारिका ने ही बोला..
“तो अब तुम मुझे मेट्रो तक भी नहीं छोड़ोगे”
“क्यूँ"
“मेरा ब्वायफ्रेंड जो है" उसने हँसते हुए बोला…
“नहीं यार..बस हो ही गया ये…यू नो टेन मिनटस् आर नेवर टेन मिनटस् और वैसे भी मेरी गर्लफ्रेंड है ” उसने हँसते हुए जवाब दिया…और फिर फोन पे किसी से बात करने लगा…
“इट्स डन सर..हैव अ गुड वीकेंड..बाय" उसने फोन रख दिया…
“चलो ..अगर मन हो तो" रिषी ने बोला|
“हाँ चलो"
दोनों अपने बैग लेकर पार्किंग में पहुंचे..रिषी ने अपनी कार अनलाक की..कार में बैठते ही सारिका ने बोला..
“सही है बॉस आते ही कार शार”
“हाँ यार..बड़ा मन था अपनी कार का..२ महीने पहले से बुक करवा रखी थी”
“गुड है" सारिका ने बोला
“वैसे हमारी फोर्मल हाय हेल्लो ही हुई है…बाकी बाय बोलने में स्टेशन आ जायेगा….अगर थोड़ा टाइम हो तो घूम के चलें ..ठीक से बाय बोल लूँगा" रिषी ने कहा कार बाहर निकालते हुए
“ठीक है" सारिका ने कहा…
कार सड़क पे आ गयी..बारिश गिरने लगी थी धीरे-धीरे….रिषी एक-एक करके सड़के बदलता रहा और दोनों आपस में बातें करते रहे…
“तो फिर कब से ज्वाइन करनी है नयी कंपनी" रिषी ने पूंछा
“दो वीक का ब्रेक ले रही हूँ..पांच साल कब बीत गए पता ही नहीं चला…थोड़ा टाइम घर वालों को भी दिया जाये"
“सही है..कितना टाइम बिताया यहाँ…ओह्ह सॉरी मै तुम्हारी फेयरवेल पार्टी में नहीं आया" रिषी ने बोला
“तो कम से कम बाय बाय मेल ही पढ़ लेते"
“सॉरी..मनडे पढूंगा…पक्का"
“५ साल ..पूरा करियर यहीं का है"
“तभी..यू वर नोस्टेलिजिक"रिषी बोला…
“हाँ …एनी वे…मौसम अच्छा है एफएम ऑन करते हैं"..कहते कहते उसने एफएम ऑन कर दिया..गाना चल रहा था “रिमझिम गिरे सावन"
“सुलग सुलग जाये मन" सारिका ने गुन गुनाया
“लाइक शोर्ट सर्किट" रिषी बोला
“हाउ फनी" सरिता ने उखड के कहा…
“सीसीडी चलें ..इतने अच्छे मौसम में काफी तो बनती है"
“कहीं चाय पीते हैं…सड़क के किनारे..”
“ओके" कहते हुए रिषी ने गाड़ी मोड दी
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गुडगाँव में सिटी सेंटर के ठीक बहार एक लंबा स्ट्रेच है ..घूमने के लिए…उसके आस पास कई रेहड़ी वाले खड़े रहते हैं…गाड़ी को पार्क करके रिषी ने चाय खरीदी और वहीँ घास के पास एक पत्थर पे दोनों बैठ गए…बारिश अभी भी गिर रही थी…
“अजीब शहर है ये..खुद में खोया हुआ…यू नो मुंबई वाली बात नहीं है" रिषी बोला
“पर अच्छा लगता है मुझे…पूरी लाइफ इसी के आस पास बीती है…” फिर सन्नाटा.थोड़ी देर बाद रिषी ने ही पूंछा
“तो क्यूँ छोड़ी कंपनी"
“ऐसे ही काफी टाइम हो गया था…पर पता है मेरी ड्रीम कंपनी थी…तभी बुरा लग रहा था..”
“होता है…बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी छोटी बातें…”
बीच में टोंकते हुए सारिका बोल पड़ी “तुम्हारे बारे में सब सही कहते हैं..हर टाइम बकवास कर सकते हो तुम…खुद से बोर नहीं हो जाते"
“शाहरुख करता है तो सही है , मै करूं तो बकवास…तुम लड़कियां भी ना"
“ओह्ह तो ये बात है…चलो नहीं कहती बकवास”
“अब ठीक है…तुम्हे मेल करूँगा…फेसबुक पे तो होगी ही तुम…”
“मेल कैसे करोगे"
“तुमने बाय बाय मेल में अपनी आईडी दी होगी ही…” रिषी को लगा उसने कोई इंटेलिजेंट जवाब दिया|
“जानती हूँ कोई रिप्लाई नहीं करेगा…वही आईडी दी है जो मै कभी कभी ही चेक करती हूँ..” सारिका ने बोला..
“सही है..फिर अपनी सही आईडी डे दे दो"
“क्या करोगे…कल से तो मैं वैसे भी कहानी ही हो जाउंगी…”
“ये भी सही है…”
और दोनों ऐसे ही चुप हो गए…काफी देर बाद रिषी ने बोला…
“सारिका !! आई थिंक तुम्हारे जाने का वीक और मेरा आने का वीक एक ही था..तुम्हारे साथ काम करता तो मजा आ जाता…”
“हाँ तुम इतने बकवास भी नहीं हो जितना लोग कहने लगे हैं" हंसी मिली हुई थी आवाज़ में…
“हम्म…वो क्या है ना मुझे चुप रहना बिलकुल पसंद नहीं…कुछ ना कुछ बोलते रहो या सुनते रहो…”
“कुल मिला के शांति पसंद नहीं है तुम्हे" सारिका ने बोला…
“ऐसा नहीं है मंदिरा बेदी काफी पसंद है मुझे” रिषी ने एक अजीब सी मुस्कान चेहरे पे खींची…
“ओह माय गोड…तुम एक दम ..” सारिका ने अपना सर पकड़ लिया..
“कोई नहीं ..पर पता नहीं क्यूँ तुम्हे सॉरी बोलने का मन कर रहा है…” रिषी बोला
“क्यूँ"
“ना मैं तुम्हारी फेयरवेल पे आया, ना गिफ्ट के पैसे ही दिए मैंने…और झूंठ भी बोला तुमसे"
“कैसा झूंठ"
“यही की मेरी गर्लफ्रेंड है"
“हम्म…कोई नहीं बड़े बड़े देशों में….” और दोनों फिर हँसने लगे…
“चलो तुम्हें घर तक छोड़ देता हूँ…अब क्या जाओगी मेट्रो में” उसने घड़ी की तरफ देखा…रात के साढ़े नौ बज रहे थे…
“काफी लेट हो गया है..चलते हैं" रिषी ने ही बोला…
“चलो…”
एक बार फिर से दोनों कार में बैठे…सारिका कुछ चुप सी थी..ख़ामोशी भरी हुई थी कार में…फिर से एफएम ऑन किया…बारिश के गाने अभी भी चल रहे थे…और काफी देर तक गाने ही चलते रहे..
“बड़ी शांत हो गयीं" रिषी ने बोला…
“ऐसे ही…कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा” सारिका ने कार से बाहर देखते हुए बोला….
“इतना अच्छा मौसम और तुम्हे अच्छा नहीं लग रहा है"…
फिर ख़ामोशी…
“तुमने मुझसे झूंठ क्यूँ बोला…” सारिका ने पूंछा
“ऐसे ही… शायद मुझे अच्छा नहीं लगा की तुम्हारा ब्वायफ्रेंड है…पर एक बात बताओ तुम्हारा ब्वायफ्रेंड तो बड़ा केयरलेस है यार..इतनी देर से तुम्हे कॉल ही नहीं किया…”
“ह्म्म्म" सारिका ने एक गहरी सांस ली…
“क्या ह्म्म्म"…बोलो ना…
“एक झूंठ मैंने भी बोला था….”सारिका ने जवाब दिया…
“व्हाट…..” रिषी ने चौंक के सारिका की ओर देखा….पर इससे पहले की वो और कुछ बोल पाता एफएम की आवाज़ को सारिका ने बहुत ज्यादा बढ़ा दिया…गाना ऊंची आवाज़ में बजने लगा…
बजता है जलतरंग, टीन की छत पे जब, मोतियों जैसा जल बरसे"….
कार भीगती रात में दौड़ी चली जा रही थी….
--देवांशु