मंगलवार, 24 जनवरी 2017

ऑन डिमांड , रोमांटिक बात !!!

आने वाली २६ जनवरी को अपनी शादी के दो साल हो जायेंगे । इसलिए ये दुशाला पोस्ट । डिमांड मैडम की है । उन्होंने अपनी शादी के बारे में २ पोस्टें लिखीं ( , ) जो अंग्रेजी में थीं इसलिए  समझ नहीं आईं अपने  । पर  मैडम का कहना है की कुछ ज्यादा नहीं तो कमसकम उनका जवाब ही लिख दो , मेरे बारे में कुछ ना भी लिखो तो भी । तो बस इसीलिए पेश-ए -खिदमत है , ऑन डिमांड रोमांटिक बातों से भरी पोस्ट । 
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दीवाली अच्छा त्यौहार है । धूमधाम से मनाया जाता है । सब लोग एक दूसरे के घर जाते हैं , मेवे और मिठाई देते हैं । पर कभी कभी किसी को मिठाई देना कितना महंगा पड़ जाता है ये कोई इस अदना से इंसान से पूछे । २०१३ की दीवाली पर पापा के एक बहुत पुराने दोस्त के घर गए । "मिठाई वाला" के यहाँ से मिठाई लेकर । मिठाई और जेस्चर दोनों आंटी को पसंद आ गए,  कुछ ज्यादा ही  । और उसके बाद सब हिस्ट्री है । फैक्ट  ये है  की आंटी मैडम की मौसी हैं । तो मजमून ये हुआ  हज़रात "मिठाई बाँटें पर ज़रा संभल कर।" 

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मेरा अमरीका आने का टिकेट हो चुका था । शुक्रवार की रात निकलना था । उसके ठीक पहले वाले संडे को मैडम से मिलने का फरमान हुआ । गए । बातें हुईं । वापस आ गए और निकल भी लिए अमरीका । और फिर डेढ़ साल में गिनती के १०-१२ मेसेज की अदलाबदली हुई वो भी शुरआती १० दोनों में । उसके बाद लंबी ख़ामोशी । ये तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी थी । हम भी लग गए दुनिया भर के कामों में । 

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फिर गज़ब बोरियत का शिकार होकर २०१४ के आखिर में एक फ्रेंड से मिलने कोलम्बस गए । वहीँ एक दिन माता श्री ने फ़ोन पर बताया की हमें बांधे जाने की सुगबुगाहट चल रही है । इस बार इंडिया जाने का टिकेट हो रखा था । चले गए । उसके बाद भी सबकुछ हिस्ट्री ही है । 

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मैडम ने अपना सायरी वाला ब्लॉग देखा । यहीं पर एक्सपेकटेशन गलत सेट हो गयीं । बोली मेरे लिए भी सायरी लिखो । उन्हें आईडिया नहीं था की वो तो अपना नकली चेहरा है ।असली तो यहाँ है । लेकिन आप हज़रात की शादी अगर हो रखी है तो आपको मुआलूम तो होगा ही की पत्नी को सीधे ना नहीं कहना चाहिए । इसलिए कुछ रोमांटिक टाइप बातें कह डालीं हमने बीते दो सालों में । जैसे :

एक बार उन्होंने पूछा की कभी मैं तुम्हारे सपनों में आती हूँ ? हमने जवाब दिया तुमने कभी मुझे आधी रात में बदहवास सा घूमते देखा है ?
पता जाने मैडम क्यों नाराज़ हो गयीं । जबकि मेरे कहने का मल्लब था की सपनों में तुम ही आती हो और मैं सुकून की नींद सोता हूँ । 

खैर, एक मर्तबा मैडम ने पूछा की क्या तुम मेरे बिना रह सकते हो ? मैंने कहा ना बिलकुल नहीं , जब भगवान् मुझे स्वर्ग देगा तो मैं उसे छोड़ के तुम्हारे पास आ जाऊंगा । वो बोलीं क्यों ? मैंने कहा मैं अकेला वहां क्या करूंगा ।

फिर नाराज़गी !!!

उनके रोज़ रोज़ के एक सवाल पर मैं कालजयी कविता लिखने के फ़िराक़ में हूँ , मुखड़ा है :

"बड़ा बुरा ज़माना है , पहले ये बताओ खाने में क्या खाना है ?"

आप अंतरा सुझाओ तो आगे लिखा जाए ।

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बीते साल मैडम को सरप्राइज देने का प्लान बनाया २६ जनवरी को । परम मित्र आशीष की धर्म पत्नी प्रोफेशनल केक मेकर हैं । वो इंडिया में थीं उस वक़्त । अगर उन्हें डॉक्टर माना जाए तो आशीष भाई की हैसियत कम्पाउण्डर से कम नहीं थी । रिश्ता हमारा भी मरीज़ का था । अपने यहाँ ५ दिन डॉक्टर के पास बैठने वाला भी खुद को डॉक्टर समझता फिर आशीष भाई तो पूरे कंपाउंडर थे । २५ तारीख को ऑफिस से हम ३ बजे ही निकलकर डिस्पेंसरी ( आशीष भाई के घर ) पहुँच गए । केक बनाने के विडियो ढूंढें गए । फाइनली कैरेट केक पर बात पक्की हुई । २ बार तो विडियो चलाकर केक बनाने की एक्टिंग सीखी गयी । फिर असलहा जुगाड़ा गया , और केक बनाना शुरू किया गया ।

५ बजे मैडम का पहला SMS आया "कहाँ हो ?" । हमने रिप्लाई किया "काम से आशीष के यहाँ हैं " ।

६ बजे फिर : "कब तक आओगे ?" । हमने रिप्लाई किया "आधे घण्टे में पहुँचते हैं ।

७ बजे : "खाना बना दिया है , बाहर मेज पर रखा है । खा लेना ।" इसके बारे में आशीष भाई की एक्सपर्ट एडवाइस थी "डरो नहीं, इसकी आदत डाल लो" । हमने जवाब नहीं दिया ।

७:३० बजे : "कार में सोने का मन ना हो तो जल्दी आ जाओ" । मैंने आशीष भाई को बोला देखो ऐसा है गुरु तुम एक्सपर्ट हो भले ही , अपनी तो पहली "गिरहसाल" है । सरप्राइज के चक्कर में कहीं सर ही ना रिस्क में आ जाए इसलिए  मैं निकलता हूँ । आइसिंग का काम तुम संभाल लेना । और अपन कट लिए ।

घर पहुंचे तो घर कोपभवन बना हुआ था । खाना वादानुसार मेज पर था । मैडम सोने चली गयीं थीं । ठण्ड तगड़ी  थी और कम्युनिटी में कंस्ट्रक्शन चल रहा था इसलिए पार्किंग की काफी दिक्कत थी । सरप्राइज पार्टी के लिए जिन दोस्तों को बुलाया था उनके लिए पार्किंग रोकनी थी । जुगाड़ किया गया ।

१२ बजे सब आये । मैडम जो भयंकर गुस्से में थीं , उठ गयीं । काफी सरप्राइज हुईं । मामला सुलट गया । आशीष भाई मंद मंद मुस्किया रहे थे देख देखकर ।

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पर ऐसा नहीं हैं की केवल हम ही सरप्राइज करते रहे । श्रीमती जी ने भी हमारी बर्थडे पर हमको गिफ्ट देकर सरप्राइज किया । वो बात अलग है  उन्होंने गिफ्ट हमारे कार्ड से ही खरीदा था जिसका अलर्ट हमें आ गया था । और सब कुछ जानते हुए ३ दिन तक कुछ ना जानने और फिर सरप्राइज होने की एक्टिंग करनी पड़ी । 

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वैसे शादी के बाद बहुत कुछ बदल जाता है । रोमांटिक वाली बात है कि ज़िन्दगी में रंगों की रेंज बढ़ जाती है । जैसे कुंवारों के  जीवन में रंग होते हैं , शादी के बाद शेड्स भी जुड़ जाते हैं । लाल से : डार्क लाल , ऑफ बीट लाल , ब्रिक लाल , गाजरी लाल , सिंदूरी लाल आदि आदि । मसलन मैंने एक दिन पूछा "मैडम , मेरा नीला वाला बैग कहाँ है " । जवाब मिला "वो नीला नहीं , बैंगनी है "।

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बाकी ऐसे ही चलती हैं जिंदगी । बहुत लोग अपने पार्टनर के बारे में बहुत कुछ लिखते हैं , मैडम ने भी हमारे बारे में लिखा है । हमें लगता है जब कोई आपके बीते हुए कल , आज और आने वाले कल : तीनों को अपना समझे तो लाइफ बड़ी कलरफुल हो जाती है , सारे शेड्स के साथ । 

अउर है का ज़िन्दगी में !!!!

(नीचे की फोटो कोलाज है जो दीवार पर मैडम ने हमारी घूमी हुई जगहों का बनाया है , मल्लब घुम्मक्कड़ी काफी हुई है )

Image may contain: indoor

सोमवार, 16 जनवरी 2017

बाकी बहुत कुछ रहता है !!!

बस का सफर मुझे पसंद नहीं था , और रात का तो बिलकुल भी पसंद नहीं । पर नौकरी वाले शहर पहुँचने को अक्सर वही एक ज़रिया बचता । खासकर त्योहारों पर क्योंकि आखिरी वक़्त तक मालूम ना होता की कब जाना है और कब आना है । जब कभी स्लीपर बस मिल जाती तो देर रात तक कुछ पढता रहता और फिर सो जाता , सुबह ८ बजे बस ठहरती आखिरी मंजिल पर , बस वही अपनी मंजिल भी होती ।

उस रोज़ भी बस का वेट कर रहा था । साथ हमेशा की तरह केवल बैग-पैक था । दीवाली के बाद की हलकी ठण्ड थी । बस ठीक वक़्त पर आयी थी और मैं चढ़ कर सीट पर बैग रख दरवाज़े तक वापस आया था पानी लेने । सामने एक कार आकर रुकी  , कार से अपनी बाहों में एक छोटे से बच्चे को लिए एक औरत को उतरते देखा जो बस की तरफ ही आ गयी थी । 

उस चेहरे से पहचान पुरानी थी । मैं नीचे उतर गया और बच्चे को अपने हाथ  लेकर उसे बस पर चढ़ने में मदद की  । मैं उसके लिए भी पानी लेकर वापस आया  । मेरे सामने वाली बर्थ उसी की थी । बच्चा ,जो पहले से सो रहा था उसने उसे लिटा दिया था । मैंने पानी दिया तो बोली :

"थैंक्स , अच्छा हुआ तुम मिल गए , ये इस बार नहीं आ पाए और मुझे वापस भी अकेले जाना पड़ रहा है"

मैंने मुस्कुरा के जवाब दिया "कोई ज़रुरत हो तो बोल देना मैं सामने की  बर्थ पर ही हूँ" ।  मैं कुछ और बोलना चाहता भी नहीं था । अपनी बर्थ पर लेट गया । बस अभी चली नहीं थी । 

"आज चाय नहीं पिलाओगे क्या ?" उसने नीचे से खड़े खड़े ही पूछा । वो सामान लगा रही थी बर्थ पर । 

"तुम्हे पीनी हो तो ला देता हूँ ?"

"तुम नहीं पियोगे क्या ?"

"नहीं , मैं चाय नहीं पीता"

"कबसे " उसने पूछा । मैंने जवाब नहीं दिया और जाकर उसके लिए चाय ले आया । नीचे की बैठने वाली सीटों पर अभी  कोई आया नहीं था । दोनों वहीँ बैठ गए । बात उसी ने फिर से शुरू की । 

"सोचा नहीं था तुमसे यूँ मिलना होगा कभी "

"मैंने भी नहीं"

"इतना फॉर्मल होकर बात करनी है तो रहने दो"वो बोली । 

मैं लगातार बाहर देखे जा रहा था । 

"इनफॉर्मल ज्यादा कुछ है नहीं बात करने को" मैंने जवाब दिया । 

"हम्म , पुरानी बातों को इतना भी क्या दिल से लगाना , तुम भी जानते हो जो होना था वो चुका " 

"कुछ बातों को नहीं भूला जा सकता चाहे वो कितनी भी पुरानी  क्यों ना हो जाएँ । खासकर वो जब आपको पता हो की आप बहुत कुछ होने से रोक सकते थे " मैं इसबार अंदर देख रहा था , पर उसकी ओर  नहीं । 

"कुछ चीज़ें हो जाती हैं क्योंकि उन्हें होना होता है , बाद में उनके बारे में सोचने का कोई फायदा नहीं , भूल जाओ सब"

"सब भूल सकता हूँ पर अपनी वो गलती नहीं भूल सकता , शायद उस वक़्त मुझे इतना कमज़ोर नहीं पड़ना था" पहली बार उसकी ओर देखा । उसकी आँखों में नमी ज़रूर थी । 

"छोड़ो , जाने भी दो ये सब । ताली एक हाँथ से बजती नहीं, यही मान लो । शायद थोड़ा रिलैक्स फील करो । १५ मिनट हुए हैं और एक पल के लिए भी तुम वो नहीं दिख रहे जो हुआ करते थे । " वो बोली । 

"मैं , शायद अब वैसा कभी नहीं बन सकता" । 

"बन जाओगे , वक़्त सब ठीक कर देता है " । चाय का कुल्हड़ उसने मुझे बाहर फेंकने को दिया और बोली "चलो अब मैं सो जाती हूँ , तुम भी सो जाओ "

"सुनो" मैंने कहा । 

"हाँ , बोलो " । 

"विल यू एवर बी एबल टू फॉरगिव मी " मैंने पूछा ।

"तुमसे नाराज़ रहने की भी ज्यादा कोई वजह भी तो नहीं रहती , एक चाय के तो हम कर्ज़दार भी हो गए " । कहकर वो बात जान बूझकर अधूरी छोड़ सोने चली गयी । 

मुझे पूरी रात नींद नहीं आयी । सवेरे जब बस रुकी तो उसके हस्बैंड ने उन्हें आकर रिसीव किया । उसने हमारी पहचान भी कराई , एक पुराना दोस्त बताकर । बच्चा जाग गया था और अपने पेरेंट्स के साथ खुश था । इनफैक्ट तीनों बहुत खुश थे । 

वो थोड़ी देर रुके और "कभी घर आना" कहके चले गए । 


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हमेशा सोचता था की कभी ज़िन्दगी की किताब दुबारा पलटी तो उसके नाम से सराबोर पन्ने पर आकर रुकुंगा । मेरा सबसे चहेता पन्ना होगा वो । गुज़रे एक बहुत बड़े वक़्त तक वो पन्ना टीस ही देता रहा । पर उस रोज़ उसे अपनी  ज़िन्दगी में यूँ खुश देखकर ना जाने क्या हुआ । मैं उस पन्ने पर फिर से रुकने लगा था क्योंकि किसी के ज़िन्दगी में ना होने के गम से कई गुना बड़ी ख़ुशी वो एक लम्हा रखता है जो उसके साथ गुज़रा होता है । 

बड़ा सेंटिमेंटल लगेगा पर वाकई में मैंने चाय पीनी फिर शुरू कर दी थी । 

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( एक दोस्त ने करीबन दो साल पहले अपनी ये आपबीती सुनाई थी , मुझे कुछ समझाते हुए । सोच रहा हूँ की हर चीज को डिटेल में पूछने की आदत होने के बावज़ूद मैंने ये नहीं पूछा था कि आप दोनों मिल क्यों नहीं पाए । वजह शायद ज़रूरी नहीं रहती हमेशा । प्यार की दास्ताँ भी तो बस दो लफ़्ज़ों की होती है "मिल गए" या "नहीं मिले" । इसके इतर कुछ नहीं, इसके अलावा भी कुछ नहीं । )