बुधवार, 18 अप्रैल 2012

सखी वे मुझसे लड़ के जाते…


वो क्या है कि हमारे पार आइडियाज़ की बिलकुल कमी नहीं है, भले ही हों सब एक से एक घटिया!!! एक घटिया आइडिया भी किसी की लाइफ की वाट लगा सकता है !!!

पर क्या है कि पिछले दिनों से आइडियाज़ भी आमरण अनशन पे बैठ गए हैं | बोल रहे हैं अगर तुमने हमारा “सदुपयोग” बंद ना किया तो हम बागी बन जायेंगे | हम भी ठहरे मोटी चमड़ी के इंसान | हमने कहा कि नहीं सुधरेंगे तो का कर लोगे बे  ? तो बोले कि हम किसी और के दिमाग में चले जायेंगे | हमने कहा “जी हाँ, ऐसे कैसे जा पाओगे , आइडियाज़ तो दिमाग में आते हैं, और लोगो के दिल से दिल मिलते हैं, दिमाग से दिमाग जुड़े सुना है भला कभी ?

पर इससे पहले कि हम खुश होते, आइडियाज़ के लीडर ने कहा “इन्सेप्शन" देखी है, लोग सपने बाँट लेते हैं, तुम आइडिया की बात कर रहे हो, तार फिट करेंगे और कूद के पहुँच जायेगे | हेड-फोन ने हमें बाहर से समर्थन देने कि घोषणा भी कर दी है पहले ही | हम डर गए | यहाँ तो आइडियाज़ के पास भी आइडियाज़ हैं | हमने सारे आइडियाज़ को बोला  शांत बैठो तुम सब लोग, अप्रैल आ गया है , मई-जून में गर्मियों की छुट्टी में घुमाने ले जायेंगे, शिमला, समझे | अभी शांति है  फिलहाल !!!

हाँ तो आइडिया अभी नहीं है हमारे पास (शांति के पास हैं) , लेकिन फिर भी लिखे बिना मन नहीं मान रहा | तो हमने आइडियाज़ चुराने का प्लान बनाया (इंस्पायर हो गए) | पहले प्रशांत को पकड़े, फिर अनूप जी को | एक-एक पोस्ट लिख मारे | कुछ और सोच ही रहे थे कि दो बातें हो गयी :

१. एक तो हमपे आरोप लग गया कि हम महिलाओं के साथ अन्याय कर दिए क्यूंकि “गुंडागर्दी" में उनको शामिल ना किये !!!

२. और  “बज़ एक्सपोर्ट" पे पता चला कि लोगो को लड़ना-झगड़ना नहीं आता है |

अब ये कोइंसीडेंट था कि दोनों बातें पूजा की तरफ से आयीं| हाँ हाँ वही लहरें वाली | कल झगड़ने के मूड में थी | लहरों कि जगह ज्वर-भाटा आया हुआ था | :)

हम बचपन से लड़ने-झगड़ने और पिटने में एक्सपर्ट रहे हैं | एक दम टाप क्लास | एक बार हम अपने एक दोस्त की चुगलखोरी के कारण टीचर से बहुत मार खाए,  स्कूल के बाहर दोस्त को सूत दिए और भाग खड़े हुए | छोटा भाई भी साथ ही था, वो छोटा था, भाग नहीं पाया, मेरे दोस्त ने उसे मारा | फिर हम भाई को बचाने गए | तो दोस्त को हमने पीटा | जब दोस्त चला गया तो छोटे भाई ने हमें पीटा कि तुम्हारे चक्कर में हम पिट गए | घर आके भाई ने मम्मी से शिकायत की | इस बार हम पिटने से बचने की खुशी मना ही रहे थे कि मेरे दोस्त की माताश्री, हमारी माताश्री से लड़ने आ गयी कि आपके दोनों लड़कों ने मिलके हमारे लड़के को पीटा | पूरे मोहल्ले ने मेरी माताश्री का समर्थन किया तो घर के बाहर  बात ठंडी हो गयी पर शाम तक पापा को पता चल गयी | अब पापाजी ने  हमको धर के कूटा | छोटी बहन काफ़ी छोटी थी | बस वही बची जिसने हमें ना तो मारा ना डांटा |

तो हमने सोचा कि अपने अनुभव को सबसे बांटते हैं | लड़ाई करने के तरीकों को हमने “डाकूमेंट" करने की ठान ली |लड़ाई के तरीके समझने से पहले लड़ाई के टाइप समझने कि ज़रूरत है |

लड़ाई कईयों टाइप की होती है | बच्चे आपस में अक्सर लड़ते हैं | जवान लोगो की आँखें लड़ जाती हैं | थोड़ा और बड़ा होने पर लोग दिमाग लड़ाने पर लग जाते हैं | एक उम्र के बाद लोग जबान लड़ाने पे "बिलीव" करने लगते हैं | मतलब लड़ाई का दिया भी जिंदगी के दिए के आस-पास ही बुझता है |  कुछ लोग तो जाने के बाद भी लड़ने के लिए काफी “मटीरियल" छोड़ जाते हैं| :)

हाँ!!! तो लड़ना एक रासायनिक अभिक्रिया है | क्रिया है तो कर्म भी है, कर्म है तो कर्ता भी है | (और ये लाइन फालतू की है)| तो होता ऐसे है कि शरीर में जब एक विशेष प्रकार के हार्मोन्स ज्यादा बनने लगते हैं ,तो दिमाग में “केमिकल लोचा" हो जाता है | यही लोचा आपको लफड़े करने पर मजबूर करता है | लफड़ों के चलते लड़ाई होती है | (साइंटिस्ट)

कभी-कभी ऐसा नहीं भी होता, मन में खयाल आता है कि चलो बड़े दिन हुए, किसी से लड़ाई कर डालें | वैसे भी किसी का नाम याद करना हो तो उससे लड़ाई कर लो, कायदे से , ता-उम्र उसका क्या, उसके खानदान का नाम नहीं भूलोगे | प्यार में इतनी पावर नहीं होती है , जितनी लड़ाई में होती है | ईसई टाइप कि लड़ाई के हम स्टेप आपको बताने जा रहे हैं ( ये सारे स्टेप एक्सपर्ट द्वारा लिखे गए हैं  २-३ और एक्सपर्ट्स के “आब्ज़र्वेशन" के साथ, बच्चे इसका प्रयोग करते समय बड़ों के साथ रहें, और हाँ जिससे आप प्यार करते हैं, उनपे ये नुस्खे भरपूर चलायें, लड़ाई प्यार में “कैटालिस्ट” का काम करती है) :

१. सबसे पहले तो एक अदद इंसान, जो पुरुष या महिला कोई भी हो सकता  है, को पकडें जिससे आपकी “कॉफी” (पे) बात होती हो |

२. फिर उससे अचानक से बात करना बंद कर दें| इग्नोर-शिग्नोर भी कर सकते हैं |

३. पहले उसे लगेगा कि आप बिज़ी हैं | यहाँ पे ये जिम्मेदारी आपकी है कि आप इंश्योर करें कि उसे पता चल जाये की आप बिलकुल बिज़ी नहीं हैं|

४. अब ये पता करें कि उसे क्या पसंद नहीं है | जैसे कोई गाना, कोई हीरो-हिरोइन, कोई मूवी| इसी टाइप का कुछ | जब भी बात करें तो थोड़ी देर के लिए बात करें, और उसी “नापसंद" चीज़ के बारे में बात करें|

५. जब वो बोले कि उसे ये पसंद नहीं है ये सब तो बोल दो “बड़े/बड़ी अजीब हो , तुम्हें ये नहीं पसंद"|


६. फिर वो भड़क के आपसे बात नहीं करेगा/करेगी , आप भी मत मानो, काल करो, पिंग करो | फिर पूछो तुम्हें क्यूँ नहीं पसंद |

७. ऐसा तब तक करो जब तक वो भड़क ना जाये |

और जब भड़क जायेगा/जायेगी  तो दो बातें होंगी : या तो वो आपसे लड़ाई कर लेगा/लेगी , आप अपने “ना-पाक" इरादों में कामयाब हो जाओगे | नहीं तो आपका खुद ही मन नहीं करेगा आगे लड़ने का | दोनों ही केस में ऊपर वर्णित ७ सूत्री कार्यक्रम सफल रहेगा |

वैसे लड़ाई झगड़ा अच्छी बात नहीं है | इंसान सबसे ज्यादा उसी से झगड़ता है जिसे सबसे ज्यादा प्यार करता है | रहीम दास जी ने भी कहा है

रहिमन धागा प्रेम का , मत तोडो चटकाय,
टूटे फिर, फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय ||


इसलिए  लड़ो, पर थोड़ा संभल के :) :)
(हाय राम !!! इतनी सीरियस बात )

वैसे पोस्ट में कुछ भी काम का नहीं है, ऐसे ही फालतू में लिख दिए | हाँ अगर आप ये नुस्खा अपनाने जा रहे हो तो ध्यान रहे कि अब ये पब्लिक हो गया है | सावधान रहें कहीं कोई ये आप पे ना आजमा दे | संयम से काम लें |

मन हमारा एक बार फिर कर गया कोई कालजयी कविता लिखने का | लाइन भी ढूंढ लाए | मैथिलि शरण गुप्त जी कि “सखी वे मुझ से कह के जाते” की तर्ज पे “सखी वे मुझसे लड़ के जाते" | पर आइडियाज़ तो स्ट्राइक पे हैं, तो लाइन नहीं मिल पा रही | आप कोई आइडिया दो ना !!!!

और  हाँ ये पोस्ट सभी लोगों पे बराबर लागू है , कृपया इसपे पुरुष/स्त्री  विरोधी होने का आरोप अपने रिस्क पे लगाएं !!!

नमस्ते!!!!

--देवांशु 

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

भईया हम तो तगड़ा गुंडा बनिहों!!!


हमेशा कम्पटीशन का ज़माना रहा है भाई | जहाँ देखो वहाँ कम्पटीशन | कम्पटीशन का सबसे बड़ा कारण,  “काबिल" लोगो की बहुतायत है |  कॉलेज में सीट कम है, पढाई करने वाले ज्यादा | हो गया कम्पटीशन | सबको पिटने से डर लगता है , पीटने वाले ज्यादा है, पिटाई में कम्पटीशन |

पहले लोग सभ्य हुआ करते थे, ज्यादातर लोग संत टाइप थे, संतई में कम्पटीशन था | कम्पटीशन में किसी ने कुआँ खुदवा दिया, बोले गरीबों को पानी पीने में आसानी होगी | गर्मियों में स्काउट रेलवे स्टेशन में खड़े होकर आने जाने वाली ट्रेन के यात्रियों को पानी पिलाते थे , एक को बुलाओ ४ आते थे , वहाँ भी कम्पटीशन था | कोई सराय खुलवाता, कोई अलाव जलवाता | कहते गरीबों को मदद होगी पर असल कारण “कम्पटीशन" था, महान बनने का “कम्पटीशन” |

फिर जमाना बदल गया, अब कुओं पर कब्ज़ा करने का कम्पटीशन आ गया |  धर्मशालाएं होटल बन गयी | होटल चलाने का कम्पटीशन आ गया | रेलवे स्टेशन पर पानी की टंकियों से साफ़ पानी और स्टेशन से स्काउट दोनों गायब हो गए | अब कम्पटीशन पानी बेचने का है | अलाव जलाने की लकड़ी चोरी करने का कम्पटीशन भी मार्केट में है|

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ये तो हुई सटायर लिखने की कोशिश, अब मुद्दे की बात करते हैं | पिछले दिनों अनूप जी ने गुंडा पहचानने के फायदे बताये और साथ ही गुंडों के शेयर मार्केट का आइडिया भी दे डाला | उन्ही से “चैटियाते” टाइम ये आइडिया भी आया कि अगर गुंडों का शेयर मार्केट बने तो उसका काम काज कैसे चलेगा | कई दिन से इसी पे रिसर्च किये , अब छाप रहे हैं , झेलिये …

 


ये गुंडा-गुंडा क्या है  ये गुंडा-गुंडा!!! 

गुंडा (GUNDA) शब्द का “मतबल” है Genuinely Unrated Nationality Development Activist, बोले तो “एक ऐसा तरक्की पसंद इंसान जिसे जान बूझकर बुरा बताया गया है पर वो पूरे देश के बारे में सोचता है, राष्ट्रीयता बढाता है " |

आपको क्या लगता है गुंडा बनना आसान है | आप लोगो का क्या झट से बोल दिया फलां आदमी बहुत बड़ा गुंडा है | पर गुंडा बनाने का दर्द उस माँ से पूंछो जिसका बेटा “स्ट्रगलिंग" गुंडा होता है | रोज कहीं से पिट-कुट के आता है , हल्दी-चूना मरहम-पट्टी सब करनी पड़ती है | कभी कभी तो २-४ लोग लेकर आते हैं, अकेले आ भी नहीं पाता | उनके लिए चाय बनाने का काम करने वाले उसके भाई-बहनों पे क्या बीतती होगी , कभी सोचा आपने | झट से कह दिया कि भई ये तो गुंडा है | इतना आसान नहीं है गुंडा बनना |

इसी सब “भाउक" बातों को सोचके हमें लगा कि गुंडों के लिए शेयर मार्केट का आइडिया अच्छा रहेगा  | जैसे शेयर मार्केट से इंडस्ट्री को भी फायदा है और लोगो को भी , उसी तरह से गुंडों की शेयर मार्केट से भी सबको फायदा होगा |


बेसिक कंसेप्ट

बेसिक कंसेप्ट वही है जो अनूप जी ने बताया, आप गुंडे पे अपने पैसे लगाओ कि इसको पकडे जाने की कीमत क्या लगेगी, फिर जब उसे बड़ी कीमत लग जाए तो उसे पकड़वा के सरकार के  हवाले करवा दो | सरकार से उतने पैसे लो जितना इनाम है , पकड़ने वाले को उतने दो जितनी आपने बोली लगाई थी, डिफरेन्स आपका | बस यही है बेसिक फार्मूला| 

अब देखिये बात ये है कि हर कोई तो कर नहीं सकता गुंडा-गर्दी, तो ऐसे ही काम चलेगा सबका ना |

पर अगर आप खुद ही एक गुंडे का जुगाड़ कर लीजिए तो सारा पैसा आपका | उसके जुगाड़ पे रिसर्च की गयी | उसका सार ऐसे है :

सबसे पहले एक गुंडा ढूंढिए

सबसे पहले तो आपको एक अदद ऐसा टुटपुंजिया गुंडा ढूँढना पड़ेगा जिसमे “स्कोप” हो और बाकी जनता की उसपे नज़र ना पड़ी हो | फिर उससे  कोई “कांड" करवा डालिए | पॉकेट मारना, चेन चुराना जैसे छोटे काम करने से मार्केट में उसका नाम खराब हो सकता है | फेसबुक जैसी चीज़ें आ जाने से लड़के लड़कियों के पीछे उनके मोहल्ले तक जाने का काम भी नहीं कर रहे हैं , मार-पीट का स्कोप भी कम हो गया है | महंगाई के चलते लोगो के घर में पैसा वैसे भी नहीं है तो चोरी-चकारी का मौका भी कम ही है | 

आपको कुछ नया ढूँढना होगा | जैसे धमकी दिलवाना , चौराहे पे बिना बात के हुल्लड़ कटवाना | हफ्ता वसूल करवाना | इसी टाइप  का कुछ |  ये भी सबके बस का नहीं  है | इन दैट केस, आपको अपने “गुंडे" की पब्लिसिटी “चौकस” करनी पड़ेगी, तभी बात बनेगी |  जैसे उसने अगर उसने किसी को थप्पड़ मारा तो आप हल्ला मचवा दो कि उसने किसी को मार मार के लहुलुहान कर दिया| सारा मामला “इमेज" का है |

नेक्स्ट स्टेप
 
नेक्स्ट स्टेप होगा कि आपके गुंडे को “मार्केट" में रजिस्टर करवाना पड़ेगा | आप यहाँ पे पुलिस की मदद ले सकते हैं | एक बार उसका नाम पुलिस रिकॉर्ड में आ गया तो समझ लो आपके “इन्वेस्टमेंट" ने पहली बाधा पार कर ली | अब थोड़े दिन तक मोहल्ले-मोहल्ले में हल्ला मचवा दीजिए कि “वो यहाँ देखा गया चाय पीते हुए , वो उस दुकान पे पान खा रहा था” | इससे उसकी “पब्लिक अवेयरनेस" बढ़ेगी |


दांव लगा ले , लगा ले , दांव लगा ले

गुंडई के शेयर मार्केट में गुंडे का दाम केवल एक बार लगेगा | सारे लोग दाम लगा पाएंगे | किसी गुंडे के दाम का ऊंचा होना उसके “जनता में टेरर" के समानुपाती होगा | फिर जो सबसे ज्यादा और “रीजनेबल" दाम लगायेगा | “गुंडा" उसको “अलाट" कर दिया जायेगा | अगर आपने कोई गुंडा अलाट करवा लिया तो आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जायेगी | पहले तो आपको उसे खुला छोडना पड़ेगा | जिससे वो और नाम कमा सके | फिर उसे हेल्प करनी होगी की अब वो लोगो के नाक में दम करने के साथ साथ, सरकार का भी सुख चैन छीन ले | तब जाके कहीं आपके लगाये पैसों से कुछ रिटर्न की गारंटी दिखनी शुरू होगी |

टाइमिंग का मामला भी है

गुंडे को अलाट करवाने के बाद सरकार द्वारा उसके दाम लगाने तक , टाइमिंग का खयाल रखें | ज्यादा जल्दी ना दिखाएँ | उसको अपना काम करने दें, जिससे काफी लोग अपना काम ना कर पायें | सरकार स्टार्टिंग में ज्यादा इनाम नहीं रखेगी | २-४ बार इग्नोर करें | हाँ ये भी ध्यान रखें कि "गुंडा" पकड़ से बाहर ना हो जाए | ऐसा होने पे आपके पैसे डूबने की संभावना है | कोशिश करें कि “रेगुलर इंटरवल" पे उसके कारनामे मार्केट में आते रहे | इससे मार्केट में उसका “भौकाल” बढ़ेगा | प्राइस भी बढ़ेगा | इस मार्केट में “शोर्ट सेलिंग" से बचें | अधिक दिनों तक गुंडे को होल्ड करना आपको ज्यादा रिटर्न दे सकता है |


सरकार की भी कुछ जिम्मेदारी है

एज पर द रूल ऑफ “Regularity Authority of Gunda Share Market (RAGSM), सरकार किसी गुंडे पर उसके जनता द्वारा बोली लगाये गए पैसों से कम का इनाम नहीं रख सकती | सरकार ये भी इंश्योर करेगी कि जब कोई पकड़े गुंडे को तो उसे तय राशि (जितनी बोली लगाई गयी थी )  और जिसने बोली लगाई थी उसे इनाम का पैसा (जो सरकार ने डिसाइड किया था )पूरी तरह मिले, विध मिनिमम टैक्स|  इन केस आप ही गुंडा ढूंढते हैं , तो अपनी टैक्स लाइबिलिटी का ध्यान रखें |


खतरे का भी  ध्यान रखें

आपके इन्वेस्टमेंट को सबसे बड़ा खतरा तब हो सकता है जब कोई आपका “अलाटेड” गुंडा,  चुनाव में खड़ा हो जाए | क्यूंकि अगर वो चुनाव जीत जाता है तो उसपे कभी इनाम की राशि आएगी ही नहीं | पैसा डूब जायेगा आपका | इसलिए कोशिश करें उसे चुनाव की महक भी ना लगे | और अगर लग भी गयी तो थोड़ा पैसा और डालके उसके खिलाफ ज़हर उगलें, उसकी इमेज और  गिरवा दें , जिससे वो चुनाव ना जीत पाए | इससे आपका ज्यादा पैसा नहीं डूबेगा |

*****

ये सब तो कुछ मुख्य मुख्य बातें थी | बाकी आपको क्या बताएं , आप लोग होनहार हो | हाँ इसको पढने के बाद गुंडा बनने में भी “कम्पटीशन" आ सकता है | सोचो गुंडा भी आप,  बोली भी आप लगाओ, फिर खुद को पकड़वा दो | सारा पैसा आपका | बाहर आने में जो खर्चा पानी लगेगा वो देना पड़ेगा | वैसे भी “सरकार की योजनाओं से ज्यादा सुविधा तो जनता को  सुविधा शुल्क से हुई है”| काका हाथरसी ने भी कहा है “रिश्वत पकड़ी जाये, छूट जा रिश्वत देकर" |

खैर ये सब तो हुआ “गुंडई" पे ज्ञान | इसी को लिखते लिखते हमने एक और कालजयी कविता लिख मारी | कविता की ट्यून “सूरदास" जी से उधार ली है … गौर फरमाएं…


भईया हम तो तगड़ा गुंडा बनिहों,
लोग-बाग सब संत बड़े हैं ,अपनी अपनी जिद पे अड़े हैं |
भरी धूप है , छत भी गायब, पोथी लेकर पीछे पड़े हैं |
हम उनकी "घंटा" ना सुनिहों,
भईया हम तो तगड़ा गुंडा बनिहों |


भईया हम तो तगड़ा गुंडा बनिहों,
अपन को थोड़ी दारू पिला दे , सुन्दर सी साकी मिलवा दे |
व्हिस्की वोडका रम दिलवा दे  , थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे|
हम सीढ़ी एक ना चढिहों,
भईया हम तो तगड़ा गुंडा बनिहों |


ब्लड डोनेशन कैम्प में आने का बहुत बहुत शुक्रिया…
नमस्ते
--देवांशु