शुक्रवार, 24 जून 2011

अच्छे गुनाह...


उनका कहना सच साबित हुआ, हम वाकई में बच्चे निकले|
गुनाह तो बेशक किये सभी ने, कुछ के गुनाह भी अच्छे निकले||

मसीहा तुझपे था भरोसा , तू क्यूँ बन गया मूरत|
जब लुटी  आबरू अपनी, तू छुपा बैठा अपनी  सूरत||
जिन सिक्कों को दौलत समझा, वो सिक्के न सच्चे निकले,
गुनाह तो बेशक किये सभी ने, कुछ के गुनाह भी अच्छे निकले||

लो संभालो सल्तनत अपनी, तेरा सिपाही सलामत रहे,
हम तो फसादी  हैं जनम के, तेरी न कोई खिलाफत रहे|
बाती हमेशा जल के मिटी है, हम दिए भी कच्चे निकले,
गुनाह तो बेशक किये सभी ने, कुछ के गुनाह भी अच्छे निकले||

उनका कहना सच साबित हुआ, हम वाकई में बच्चे निकले|
गुनाह तो बेशक किये सभी ने, कुछ के गुनाह भी अच्छे निकले||

                                                          -- देवांशु

गुरुवार, 23 जून 2011

दोस्ती का मेंटेनेंस …


“अबे एक मिनट रुको…ज़रा सिगरेट जला लेने दो"…मोबाइल फोन को अपने कंधे और कानो के बीच दबाए हुए हमारे एक परम मित्र ने अपने किसी मित्र को बोला | मैं वहीँ खड़ा था…
अचानक से उसने लाइटर उठाया गैस ज़लाने वाला…इससे पहले की मै कुछ बोलता उन्होंने गैस जलाई और फिर जलती गैस से अपनी सिगरेट ”
अब पूरी दुनिया उनके कंट्रोल में थी…मोबाइल फोन दायें हाँथ में, सिगरेट बाएं हाँथ में| और धुएं के छल्ले हवा में | घूमते ही मै दिखा…
“यार माचिस नहीं दिख रही खतम हो गयी क्या?” मेरे जवाब की न ज़रूरत थी न ही प्रतीक्षा हुई…
“हाँ बे तो तुमसे कह रहे हैं …” मोबाइल फोन पर बात करते करते वो बहार चले गए….
“साइंटिस्ट"… मेरे दिमाग में “फंस गए रे ओबामा" के “भाईसाहब" चहल कदमी करने लगे…

मेरे को कुछ पुराने SMS याद आ गए…मसलन एक था…
पूरी रात घर से बहार रहने के बाद एक लड़का जब अपने घर पहुँचता है ..ये जानने के लिए की वो कहाँ था जब उसके पापा उसके ४ दोस्तों को कॉल करते हैं तों चारो का जवाब आता है …”मेरे यहाँ था"
अब इसके आगे की बात…
उसके पापा पांचवे दोस्त को कॉल करते हैं …जवाब कुछ ऐसा… इस बार उन्होंने बताया नही की वो घर पहुँच गया है..साथ ही अपने नंबर से फोन किया ..जवाब कुछ ऐसा “ अंकल अभी तों मेरे रूम में था..अभी कहीं निकला “
“वो घर आ गया है"
“अच्छा ..सही है…मेरे को यहाँ बैठा के घर निकल गया…पूरी रात पढ़ पढ़ के थक गए थे ..चाय पीने के लिए निकलने वाले थे..अंकल ज़रा उसको फोन दीजिए"
“ये लो बात करो"…पिता जी ने गुर्राते हुए बोला | लड़के ने फोन संभाला|
“साले ऐसे सरप्राइज तों मत दिया कर…अभी रूम से बाहर निकल और ये बता की किसके साथ था ???”
और फिर तों आप जानते ही हैं….
अभी इसी SMS  का एक और वर्ज़न आ गया है मार्केट में…
जब पिता जी ने छटवें दोस्त को कॉल किया तो आवाज़ आयी “ हाँ पापा बोलो मैं बस घर पहुँच रहा हूँ"…

सिगरेट ज़लाने की इसी बात से मुझे याद वो सख्स आया जो पूरी रात सिगरेट ज़लाने के लिए माचिस ढूँढता रहा … और आखिर में जलती मोमबत्ती बुझा के सो गया…काश वो गैस ज़लाने वाला लाइटर ढूँढता… चलो  better luck next time…

लड़का, उसके पापा और दोस्त…गैर फ़िल्मी दुनिया (कभी कभी फिल्मों का भी ..याद है वो आवाज़ “बर्बाद हैं सबके सब"..) का ऐसा “हेट” ट्राइंगल है जिसमे दो लोग आपस में एक दूसरे से भडके रहते हैं (पापा और दोस्त) और क़ुरबानी देने को एक ही मजबूर होता है (पर क़ुरबानी होती नहीं न…लव  ट्राइंगल थोड़े ही है)

खैर मोमबत्ती से याद वो सख्स भी आया जो रात में उठ के मोमबत्ती जला के ये चेक कर रहा था की उसके दोस्त ने कमरे की लाइट्स बंद कर दी की नहीं"….

दोस्ती पे एक ताज़ा ताज़ा SMS पंकज उपाध्याय की जानिब से …
रोते हुए बच्चे से उसके पापा ने पूंछा “ बोलो बेटा , मै तुम्हारा दोस्त हूँ, मुझे बताओ क्यूँ रो रहे हो?
बच्चा “ क्या बताऊँ यार..ज्यादा होर्लिक्स मांग लिया तो तेरी आईटम ने पेल दिया"

अपने मुल्क में अगर दोस्ती मशहूर है तों वो या तों है “जय-वीरू" की (अरे हाँ भईया वही शोले वाले) या फिर “संता-बंता” की
एक बार बंता ने पूंछ ही लिया संता से “ अबे तेरा मेरा रिश्ता है तों है क्या?”
संता “ बेसन और पकोडे का"
बंता “ कैसे"
संता “ जब बेसन सनता है तों पकोडा बनता है”
क्या परिभाषा है..कान से आंसूं आ गए…

पेपर के टाइम पे घर में बैठे हुए लडके से पापा ने पूंछा “ पेपर देने क्यूँ नहीं गए"
“पेपर आउट ऑफ कोर्स आया है'
“पर तुम्हे कैसे पता"
“दोस्त लोग ४ दिन पहले ही दे गए थे”
मुसीबत पडने पे दोस्त ही दोस्त के काम आता है….

ऊपर लिखी ज्यादातर बातें मुझे किसी न किसी ने SMS  ही की हैं…ये दोस्त होते ही बड़े अजीब हैं…आप जो भी एक्सपेक्ट करोगे…वो कुछ और ही लेकर आ जायेंगे…
SMS तो एक ऐसा जरिया बन गया है…जो हमेशा दोस्तों की तरह  कुछ भी अनेक्स्पेक्टेड सा लेकर आ जाता है…
कभी इंडिया की जीत पे गालियों भरी खुशी मनाता हुआ, किसी दोस्त की सगाई की अफवाह उडाता हुआ…कुछ भी हो आपको अपने दोस्तों के करीब ही रखता है (और आपको मजबूर करता है की आप अपना मोबाइल अपने करीब रखें…किसी और के हाथ पड़ गया तो फिर तो खैर….)
ऐसे ही जुड़े रहिये अपने दोस्तों से … दोस्ती ऐसा ही कुछ मेंटेनेंस मांगती है…
                                                                     -- (दोस्तों के द्वारा भेजे गए SMSs से साभार)

गुरुवार, 9 जून 2011

कहानी

कहानी…अगर सोंचे तो कहानी किसी न किसी की जिंदगी में होने वाली वो घटना है जिसे वो किसी को बता सकता है…वो घटना जिसे वो किसी को नहीं बताता कभी कहानी के रूप में आ ही नहीं सकती…
तो क्या जो  कहानी लिखी जाती हैं…वो किसी न किसी कि जिंदगी में हुई हों ऐसा ज़रूरी है क्या?
मसलन…आज की ही बात  …बात हुई कुत्ते वाली कहानी की ..एक कुत्ता जो अपने मुह में रोटी दबा के कहीं जा रहा था…रस्ते में उसे नदी मिली..नदी में अपनी परछाई देख के वो उसपे भोंकने लगा कि उसे दूसरी रोटी भी मिल जाये..और उसकी अपनी रोटी भी गिर गयी…इस कहानी से शिक्षा मिलाती है कि लालच करना गन्दी बात है…
सवाल? ? सवाल वो होता है कि जो आपके दिमाग में तब आये जब आपको कुछ समझ न आये…खराब सवाल वो होता है  जिसका जवाब सामने वाले को न पता हो…सिर्फ सवाल वो होता है जिसका जवाब सामने वाला  आसानी से दे दे और बढ़िया सवाल वो जिसकी वो तैयारी कर के आया हो…कुल मिला के सवाल कि कोटि पूंछने वाले पे नहीं बताने वाले पे निर्भर है…
हाँ तों कहानी का सवाल….कुत्ता रोटी ले के कहाँ जा रहा था? और वो जा ही क्यूँ रहा था..कहीं बैठ के रोटी खाता आराम से? उसने ये बात किसे और कब बताई?? या कोई था जो उस “सेलिब्रिटी" कुत्ते के पीछे भाग रहा था..जैसे कुछ लोग आज “फेमस" लोगो के पीछे भागा करते हैं..
कुत्ता…कुत्ता बहुत वफादार होता है…वफादार होना गाली होती है…जैसे गधा…गधा बहुत सीधा होता है…सीधा होना भी गाली होती है…सीधा और वफादार होना वैसा ही है जैसे कुत्ते और गधे का  “हाइब्रिड" होना..
ठीक…तो कुत्ते की कहानी का सवाल…वो वहीँ का वहीँ है…कुत्ते ने रोटी क्यूँ नहीं खायी?…अरे भाई खा लेता तो कहानी कैसे बनती? फिर से एक सवाल..इस बार कहानी पे ही सवाल….
नदी…एक आइना है…जो एक जगह से शुरू होती है और दूसरी जगह पे खतम हो जाती है…पर हर कदम पे आने जाने वाले को आईने कि तरह सच्चाई बताती रहती है…कम से कम पाप तो धो ही देती है…और हम नदी को ही गन्दा कर देते हैं…
रोटी…वो तो हर किसी को खानी है…किसी को वातानुकूलित घर में और किसी को खुले आसमान के नीचे…किसी को रोटी के साथ सब्जी भी है तों किसी को सिर्फ रोटी…किसी किसी को तो कुछ भी नहीं…
एक बार फिर…रोटी लिए हुए कुत्ते कि कहानी जिसमे नदी है…फिर सवाल.. कि अब ये क्या है? यही तों जिंदगी है प्यारे…ध्यान से सोचो …क्या ऐसा नहीं लगता कि उस कुत्ते को भूक नहीं थी? अगर होती तो वो रोटी खा नहीं लेता? जबकि नदी भी उसे बता रही थी कि तुम्हारे पास रोटी है..जिंदगी भी ऐसी ही कहानी है…जो है नहीं वो चाहिए..और जो नहीं है…उसके पीछे जो है उसे भी खो देना…
कभी सोचता हूँ कि मैं भी तो वही कुत्ता हूँ…जो पास में है वो दिखता नहीं…और अगर नदी देखता हूँ तों दूसरों के पास भी वही दिखता है जो मेरे पास है फिर भी लगता है मेरे पास ही कुछ नहीं है…
इंसान थोडा चालाक हो गया है…अब अपनी रोटी साइड में रख के नदी पे भौंकता है…पर जब देखता है कि सामने वाले के पास भी रोटी नहीं है तों बोलता है “रेसेशन" आ गया है…
अक्सर ऐसा लगता है कि बचपन कि इन्ही छोटी छोटी कहानी को तब ही समझ लेते तो जिंदगी आज  कितनी सुकून भरी होती…पर फिर एक सवाल उठता है कि क्या हम वाकई इतने नासमझ थे? पर आज तों समझदार होने का दम भरते हैं फिर भी इस कहानी की सीख नहीं समझ पा रहे….और पूंछ रहे हैं तों केवल सवाल…नदी..रोटी..कुता….और कहानी…
                                                                                                  -- देवांशु