मंगलवार, 31 जनवरी 2012

बस एक दिन….

              ( इस कहानी के सभी पात्र कमीने और घटनाएँ सच्ची हैं)
सीन-१

( १९ अप्रैल २००६, शाम का वक्त, मैं अपने रूममेट आशीष के साथ एक डिस्कशन में)
मैं : कल आखिरी दिन है यार कॉलेज का, कुछ करना चाहिए…
आशीष (आँखों में एक चमक आयी उनकी) : कल हंगामा काटते हैं, सब लोग एक सा रंग पहनते हैं, ड्रेस कोड..क्या कहते हो ?
मैं : डन, नीला रंग रखें?
आशीष : कूल, पक्का , लाओ अपना फोन दो सबको मेसेज करते हैं|
मैं: मेरा क्यूँ? तुम अपने से करो मैं अपने से करता हूँ|
आशीष : अबे तुम्हारे सेल से करेंगे तो वजन बढ़ जायेगा, पढ़ाकू इमेज है तुम्हारी | एक बार मेसेज मार्केट में आ गया तो अपने आप फॉरवर्ड होगा | वैसे भी तुम्हारे १५०० में १००० तो बेकार ही जाते हैं |

और इसके बाद एक बड़ा “सेंटी" सा मेसेज लिखा गया कि “कल हमारा आखिरी दिन है कॉलेज का , बहुत बढ़िया गुजरे पिछले ४ साल, कल सेलिब्रेट करते हैं , सब लोग नीले रंग में कॉलेज आओ |” मेसेज को १५-२० लोगो में फॉरवर्ड कर दिया हम तीनों ने क्यूंकि तब तक कौशिक बाबू भी डिसकशन का हिस्सा बन गए थे|

हमें लगा कि कुछ लोगो तक जायेगा मेसेज , वैसे भी रात  हो रही है क्या पता किसी तक ना भी पहुंचे| जो लोग अपने अपने घरों में रहते हैं वो तो बिलकुल नहीं जान पाएंगे | पर जो भी हो हम तो नीले रंग में ही जायेंगे |

पर होता वही है जो सोचा ना हो, हमारा लिखा-भेजा मेसेज हमारे पास ही घूम घूम के आने लगा | मुझे अब भी याद है कि आखिरी मेसेज कुछ रात में २ बजे आया था | हट (जो कोलेज का नोटिस बोर्ड थी) वहाँ भी हलचल मच गयी |  पर डाउट अभी भी था कि कितने आयेंगे ड्रेस कोड में, कई सारे छोटे छोटे ग्रुप थे हमारी क्लास में, कहीं कोई ये ना बोल दे कि नीले के अलावा कोई भी रंग पहनो”|

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सीन २
 
( २० अप्रैल २००६, सुबह का समय, कोई ८ बजे होंगे , हमारे चौथे रूममेट जो हमारे साथ रहते नहीं थे पर पाए हमेशा जाते थे “मानस" ने घर में इंटर किया )

मानस (अपने दायें हाथ कि उंगली को नाक पे रखने के बाद उसे अपनी ही दायीं आँख के सामने से ऊपर ले जाते हुए ) : यार के डी (कौशिक दास), कोई नीली शर्ट हो तो दो यार, आज तो नीला ही पहनेंगे | हम सब चौंक गए दुनिया में मानस ही ऐसा बन्दा लगता था जो किसी भी बात पे सेंटी नहीं हो सकता और वही इतना तैयार था आज के लिए |

खैर उनको शर्ट दी गयी | फिर हम सब चल दिए कॉलेज | यकीन नहीं हो रहा था , जो भी हमें हमारी क्लास का मिला , सबने नीली ड्रेस पहन रखी थी | माहौल ही नीला हो गया | क्लास में हर कोई नीले रंग में|

तभी इंट्री हुई हमारे बड़े मालिक, अर्पित निगम कानपूर वाले, की | जनाब हमारे काफी अच्छे दोस्तों में शुमार हैं | लाल उनका पसंदीदा रंग है | डार्क लाल रंग की शर्ट में दाखिल हुए क्लास में | बहाना “यार मुझे लाल ड्रेस पहनने का मेसेज आया था" | फिर नजर उनकी गयी खुद उनके रूममेट राजीव पे जिन्होंने नीला पहना हुआ था | “मर्जी है , लाल पहन लिया तो पहन लिया” मालिक ने बोला | ये उनका पहला कारनामा नहीं था | ४ साल से वो ऐसी हरकतें हर हफ्ते बिना नागा करते ही रहते थे |

क्लास शुरू हुई , टीचर भी आये और साथ में पीछे से एक आवाज़ , “अब आखिरी दिन भी पढेंगे क्या???” | मैं खड़ा हुआ और टीचर से बोल दिया “भाई माफ करो बहुत तुमने पढ़ा लिया चार साल अब बस , आज का दिन हमारा” (हाँ हाँ मुझे याद है मैं ही था)

बस उसके बाद रोल नंबर का पहली बार पालन हुआ , सब एक एक करके आते गए , अपने बारे में बताते गए , मैं एंकर का काम कर रहा था , तो कुछ लोगो को मेरी तारीफ़ भी करनी पड़ी | कुछ अंग्रेजी में बोले , कुछ हिन्दी में | कुछ ने पहले दिन की बात की तो कुछ ने आने वाली लाइफ की | फोटो का सिलसिला चल रहा था बदस्तूर |
Photu(205)

पूरे कॉलेज में धमा चौकड़ी मचाई | हुल्लड़ काटा |  लाइब्रेरी में जाके fire extinguisher उखाड़ डाला | हल्ला मचाया | एच ओ डी से डांट भी खाई |  कैंटीन भी गए, भूचाल आ गया वहाँ पे | लोग डरे हुए थे कि हुआ क्या है? पर जोश कम नहीं हो रहा था | मैदान पे गए गो़ल पोस्ट पे लटक गए | 

धीरे धीरे शाम हुई , पूरा दिन ज़बरदस्त बीता |  शाम को फोटो कलेक्ट किये गए | ऑरकुट कम्युनिटीज़ पे जाके बहुत पोस्ट किये गए | और पढाई शुरू हो गयी , एग्ज़ाम आ गए थे सर पे |

*****
सीन ३

जून २००६ की कोई दोपहर, केतन , मेरे भाई के सबसे अज़ीज़ दोस्तों में से एक ,  उसी के घर में हम सब बैठे हुए थे , मैं अपनी ज्वाइनिंग का वेट कर रहा था उन दिनों | केतन बहुत खुराफाती किस्म के इंसान हैं, पता नहीं क्या क्या धाँसू टाइप बना के रखे थे अपने कंप्यूटर पे |  वहीं मनिपाल मेडिकल इंस्टिट्यूट का एड देखा , जिसमे समर ऑफ सिक्सटी नाइन का हिंदी वर्जन मिला | गाना सुनते सुनते पूरा कॉलेज नहीं , बस वही एक दिन याद आया | तय किया कि कल उसका एक विडियो बना डालूँगा | अगले दिन केतन की हेल्प से पूरे २ घंटे से कुछ ज्यादा टाइम में बन गया विडियो , और सेव हो गया सी डी में |

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सीन ४

२९  जनवरी २०१२, मैं सुबह सोकर उठा और तुरंत फेसबुक पहुंचा , बड़े मालिक का मेसेज पड़ा हुआ था , “वो विडियो मेल कर दो कॉलेज वाला" | सोचा केवल मालिक को क्यूँ सभी से शेयर किया जाए | कर दिया | उसके बाद तो बस मजा आ गया, काफ़ी पुराने दोस्त उस विडियो से वापस कनेक्ट हो गए | 

सबसे इंटरेस्टिंग कमेन्ट आया डीके (देवेन्द्र कुमार) का , उनका कहना था कि ये मैंने उनसे कभी शेयर क्यूँ नहीं किया | दरसल डीके और मैं एग्ज़ाम में आगे पीछे बैठते थे , रोल नंबर के साथी | पर कॉलेज के बाद हम दोनों कुल ३-४ बार मिले और ज्यादा बात भी फोन पे या ऑरकुट पे और अब फेसबुक पे होती है | यकीन नहीं होता ४ साल के सबसे अच्छे दोस्तों में था और ६ साल कॉलेज खतम होने को आये पूरे ६ बार भी नहीं मिले| कोई नहीं डी के “दिज़” वन “इज” ओनली फार यू बडी | हम सबके प्यारे “टाम क्रूज”…..


और जाते जाते …..

बड़ी सेल्फ ओब्सेस्ड टाइप की पोस्ट लिख मारी है, ठीक अपने चारों तरफ| दरसल उस एक दिन हम सब अपने हीरो थे , जो कुछ घट रहा था , हमारे चारों ओर घट रहा था, कोई और भी लिखेगा तो यूँ ही लिखेगा  | यकीन नहीं होता ६ साल लगभग गुजर गए हैं | बहुतों की शादी हो गयी, कुछ की होने वाली है , कुछ वेटिंग में हैं |
“कुछ कॉलेज के बाद कभी नहीं मिले, कुछ कई बार मिले, कुछ ज़िंदगी के साथ चल रहे हैं और कुछ के बिना ज़िंदगी अधूरी है |”
खुद की लिखी कुछ पंक्तियाँ भी छाप दूंगा (अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा)
कल का सूरज अपना होगा,
पूरा हर आँखों का सपना होगा,
हर कोई याद करेगा कल,
ये तेरे पल, ये मेरे पल ||

ज़िंदगी के ये पल,
हमें मिले थे कल,
अब यादें रहेंगी बस इनकी,
ये तेरे पल, ये मेरे पल ||

(ये कविता मैंने उसी दिन के लिए लिखी थी, अपनी टर्न आने पे पढ़ी भी थी, मेरी वो नोटबुक खो गयी जिसमे ये मैंने लिखी थी, कल विडियो देख के इतनी याद आ गयी फिर से)
दोस्त कमीने ही होते हैं | कभी हम कमीने निकलते हैं कभी वो कमीने | पर किसी ने सही कहा है रौनक भी इन्ही से होती है…. Missing all of you….
-- देवांशु

शनिवार, 21 जनवरी 2012

अथ श्री "कार" महात्म्य!!!

जैसे बिना इज्ज़त, बे-इज्ज़त, बिना गैरत, बे-गैरत, वैसे ही बिना कार, इंसान बे-कार | एक  बड़े पहुंचे हुए कवि हुए हैं , काका हाथरसी, उन्होंने बड़े पते की बात बताई है:
काका दाढ़ी राखिये, बिनु दाढ़ी सब सून|
ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून|
व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा,
इसी को रख के प्रगति कर गए संत विनोबा|
कह काका जैसे नारी सोहे साड़ी से,
उसी भांति नर कि शोभा होती दाढ़ी से …

काका पुराने ख्यालों के थे, यू नो दीज ओल्ड फैशन्ड पीपल | पर आज का जमाना नया है | आज दाढ़ी-वाढी कुछ नहीं, कार से शोभा बढ़ती है | जित्ती बड़ी कार उत्ती बड़ी हैसियत | नैनो होने पे आपकी हैसियत भी नैनो  (10−9) हो जाती है |  आजकल तो स्कूटर वाले भी कार बना रहे हैं, हमारा बजाज का ज़माना गया !!!!

कार खरीदने के साथ-साथ उसे चलाना आना बहुत ज़रूरी है| कार चलाने के लिए लाइसेंस लेना होता है | लाइसेंस लेना बड़ी मेहनत का काम है | और मेहनत से बचने के लिए कार होती है |

कार कुछ लोगो का चुनाव निशान भी होती है | इसीलिए लोग कार को कवर पहना के रखते हैं | कुछ विद्वानों का मानना है कि मूर्तियों को ढकने का “आइडिया" , पार्किंग में ढक के रखी कार देख के आया होगा| “कार" से देश को चलाने वाले बड़े बड़े फैसले लिए जाते हैं |

कार पेट्रोल से भी चलती है और डीज़ल से भी | कोई भेदभाव, मनमुटाव नहीं | इस तरह हर किसी का तेल चूस लेने के कारण कार सामाजिक समरसता का प्रतीक है |

कार, दहेज जैसी कुप्रथा की विनाशक भी है | दहेज लेना सामाजिक बुराई है, इसको खतम करने का काम कोई नहीं कर पाया, बड़े-बड़े तोपची भी नहीं, कार ने झट कर दिया | आजकल लोग दहेज नहीं लेते, कार लेते हैं |

कार कई रंगों में आती है, लाल, नीली, हरी, पीली, काली, सफ़ेद | महंगाई और आर्थिक मंदी के चलते लोगो की  जिंदगी में जो रंग बरकरार हैं, वो कार के चलते ही तो हैं | तभी तो ३० रुपये किलो आटा महंगा है, १ लाख की कार सस्ती | और जी क्या रंग लोगे आप लाइफ में |

कार से लोग पहचाने भी जाते हैं | “एम्बेसडर" नेता जी की सवारी है | दिखते ही दिल से सम्मान जाग जाता है | “मारुती ओमनी" किडनैपर्स की पसंदीदा है |

“कार एक खोज" के मिशन पे आजकल हमारे आशीष भाई भी निकले हुए हैं | उनका कहना है कि नौकरी और छोकरी से ज्यादा मुश्किल है कार ढूँढना | बात दरसल ये है कि यहाँ पे कार की हिस्ट्री वैसे ही ट्रैक होती है जैसे अपने यहाँ कैरेक्टर की | ज़माना एक दम उल्टा है, अपने यहाँ कैरेक्टर का एक्सीडेंट नहीं पचता, यहाँ कार का | बड़ी दुविधा है कार भी बचाओ कैरेक्टर भी |

कार दो प्र”कार” की होती हैं: सस्ती कार और महंगी कार |  इनके बीच का जो अंतर है वो बैंक बैलेंस से डिसाइड होता है | कोई कार किसी के लिए सस्ती होती है तो वही कार किसी के लिए महंगी | कार का सस्ता या महंगा लगना आपके स्टेटस को रिप्रजेंट कर देता है, फटाफट|

कुछ लोगो के पास अपनी कार होती है, कुछ लोग कार किराये पे भी लाते हैं | अपनी कार की सेवा पालतू जानवरों के जैसे की जाती है जबकि किराये की कार को ट्रीटमेंट गली के सो काल्ड आवारा कुत्तों वाला मिलता है | हर कोई बेरहमी से किराये की कार को दौड़ाता है, वो सबके काम आती है , पर जिंदा वो रहमो करम पे ही रहती है |  अपनी कार का नाम भी होता है और रूतबा भी
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मुझे लगता है कि कारें भी शो-रूम में जाने से पहले  बाटलीवाला, पेगवाला टाइप किसी ज्योतिषी को अपने टायर दिखा के भविष्य पूंछती होंगी कि बाबा बताओ मैं पर्सनल प्रोपर्टी बनूंगी या किराये की ? बाबा उन्हें यज्ञ , हवन, माला, अंगूठी टाइप चीजों का आइडिया देते होंगे | कहते होंगे नाम में १०-१२ ई , १५-२० ए घुसेड़ लो , मनचाहा मालिक या मालकिन मिलेगी | हफ्ते में किसी एक दिन अपने अपने इष्ट देव के मंदिर भी जाते होंगी ये सब कार|

मम्मी कार अपनी बेटी कार से कहती होगी “बेटी १६ रविवार का फास्ट रखो, बिना डीज़ल पेट्रोल, हो सके तो हवा भी अवाइड करो, मनचाहा मालिक मिलेगा"| कुछ मनचली कार भी होती होंगी जो किसी की नहीं सुनती होंगी | पूरे कार-समाज को उनसे परेशान रहने की एक्टिंग करनी पड़ती होगी|

दादी कार अपनी पोती कार को आशीर्वाद देती होगी “नज़र ना लग जाये, ऊपर वाला तुझे किसी फिल्म स्टार की कार बनाये, तेरी फोटो खिचे, लोग तुझपे फूल बरसाएं" | वहीं जब दो कारों में लड़ाई होती होगी तो एक कार दूसरी कार से कहती होगी “भगवान करे तू किसी सॉफ्टवेयर इंजिनियर के हाथ पड़े, अपने मैनेजर का गुस्सा तुझपे निकाले आके वो

खैर कार तो कार है | इसकी महिमा अपरम्पार है | लोगो को इससे डर भी लगता है | मसलन किसी मंत्री संत्री से बोल दीजिए “सर“कार” चली गयी” अपनी कुर्सी से गिर पड़ेगा| धड़ाम ....
--देवांशु

शनिवार, 7 जनवरी 2012

वो “सात” दिन : मुख्य अंश और एक “एक्सक्लूजिव” साक्षात्कार…


आप साहबान ने बहुत से महापुरुषों, लेखकों, खिलाडियों की डायरियां पढीं होंगी |  उससे उनके जीवन का “आइडिया" लगता है |  जिस तरह से किसी “सिस्टम” को बनाने की दो “अप्रोच” होती हैं ..”बॉटम अप” और “टॉप डाउन" ..उसी तरह डायरी लिखने की भी यही दो अप्रोच होती हैं…

बॉटम अप अप्रोच में कोई भी इंसान पहले जिंदगी से फाईट करता है, रोज आके उन “फाईट सीन" को डायरी के सुपुर्द करता है | फिर एक दिन वो  महान बन जाता है |  उसकी डायरी तलाशी जाती है | फिर उस डायरी को छापा जाता है | लोग उसे हाथों हाथ खरीद लेते हैं, ड्राइंग रूम में सजाते हैं, किताबों के कलेक्शन में रखते हैं|


टॉप डाउन अप्रोच में आदमी सबसे पहले “फेमस" होता है,  फिर वो डायरी खरीदता है, फिर अपने “संघर्ष" के दिन याद करके उसमे डालता जाता है |  डायरी खरीदने से लिखने तक काफी लोग उनके आगे पीछे लगे रहते हैं| लिखते ही धर के छपती है किताब| बाकी सब ऊपर वाली अप्रोच के मुताबिक होता है|

कुछ सालों पहले तक डायरियां झमाझम बिकती थीं | फिर अचानक से महापुरुषों की बाढ़ आ गयी| साथ में डायरियां भी काफी आ गयी मार्केट में| जनता तो उतनी ही रही | सप्लाई बढ़ गयी डिमांड कम हो गयी | 

काफी लोगो की डायरियां फिर भी  खूब बिकीं, असली थी और “ये पब्लिक है सब जानती है"| खैर वो लोग तो खुश रहे |

कुछ लोग जो “जेनुइन” थे पर बढ़िया मार्केटिंग ना होने के चक्कर में उनकी डायरी नहीं बिकीं | पर वो संतोष कर गए | “संतोषं परमं सुखम” | इसको उन्होंने चरितार्थ किया|  कुछ लोगो की कीमत संसार को बहुत बाद में पता चलती है|

पर “महापुरुषों" की इसी बाढ़ में कुछ ऐसे भी थे, जिन्हें लगा की वो महापुरुष तो हैं पर जनता को पता नहीं हैं |  वो भी डायरी लिख मारे | ऐसे लोगो की डायरी की पब्लिसिटी तगड़े से की जाती है | जैसे कुछ हिस्से छपने से पहले लीक किये जाते हैं, किसी विवादास्पद घटना (जो कम से कम १० साल से ३० साल पुरानी हो, लोगो को धुंधली याद हो बस ) पे उनके “हटके" विचार लिखे होते हैं|  किसी बड़ी हस्ती को पानी पी पी के गाली दे देते हैं |  अपने पुराने किसी लफड़े-राड़े के बारे में बताया जाता है|  किसी और के संबंधों के बारे में भी लिख देते हैं|  बिक ही जाती है किताब इसके बाद |


खैर!!!! मुद्दा ये नहीं है, आज मैं आपको एक महापुरुष की डायरी के कुछ अंश बताता हूँ, पूरी डायरी आपको जब भी मौका लगे पढ़ लेना |

महापुरुष किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं | एक ज़माने में साधारण से इंसान थे , नलके बनाने का काम करते थे, पाइप फिट करते थे , फिर एक दिन उन्होंने एक महल में कैद एक राजकुमारी को आज़ाद कराया | उनकी ये “प्रेम कहानी” गली मोहल्लों तक में फेमस हुई | उसके बाद से ये भी  काफी “फेमस" हुए | जी हाँ सही पहचाना मैं बात कर रहा हूँ हर दिल अज़ीज़ “मारियो" भाई की , जिन्हें हम “सुपर मारियो" के नाम से भी जानते हैं|mario-1890

उनकी डायरी उन दिनो  की है जब वे राजकुमारी ढूंढ रहे थे, अपने संघर्षों और अनुभवों को उन्होंने कलमबद्ध किया है इस कृति में… नाम है “दोज सेवेन डेज़" , उसका हिंदी रूपान्तरण भी छपा है “वो सात दिन"…

पहले दिन के बारे में वो लिखते हैं…

“शुरुआत करते हुए बड़ा डर लगा , ना जाने कहाँ होगी राजकुमारी , पता नहीं कैसे हाल में होगी| पर भगवान का नाम लेकर शुरुआत कर दी है | शुरुआत में ही एक बिलौटा सामने  से आता दिखा , डर के मारे मैं उछल पड़ा, मेरा सर दीवार से टकराया उससे एक मशरूम निकला, मैंने लपक के उसे खाया, लगा जैसे ताकत बढ़ गयी, बिलौटे से डट के मुकाबला किया"

आगे उन्होंने पाइप में छुपे एक खतरनाक पौधे का वर्णन किया है

“देखने में तो साधारण पाइप दिख रहा था, मैं उसपे चढ खड़ा हुआ , पर उसके अंदर एक छुपा हुआ कटखैया पौधा था, भला हो मशरूम का वरना जान से मरहूम होना पड़ता, लेकिन तभी दिमाग की घंटी बजी की अगर ये नीचे जा रहा है तो नीचे कुछ ना कुछ होगा ही, नीचे गया तो देखा सिक्के ही सिक्के फैले हैं, चूंकि मेरी मशरूमी ताकत तो पौधा खा चुका था इसलिए मैं ज्यादा जोर लगा के उछला , सिक्के बटोरे और आगे बढ़ चला”

एक विशेष फूल के बारे में बताते हुए वो लिखते हैं…

“रस्ते में कुछ अजीब तरफ के फूल मिले, वो कुछ-कुछ सूरजमुखी जैसे लगते थे, उनको मैंने खा तो लिया पर लगा कहीं उल्टी ना हो जाए मेरे को, पर देखा तो मेरे अंदर से गोलियाँ निकल रही थीं…”

पहले दिन के चार पहरों में हर पहर में उन्होंने कोई ना कोई “झंडा" फतह किया, आगे के रस्ते भी मिलते गए, चौथे पहर आके वो एक महल में पहुँच गए | उसके बाहर एक ड्रैगन भाई खड़े थे उनसे मुक्का-लात हुई| किसी तरह आगे बढे| महल में पहुंचे वहाँ उनके नाम एक संदेश रखा हुआ था कि बहुत-बहुत शुक्रिया यहाँ आने के लिए लेकिन राजकुमारी किसी और महल में हैं | उनका दिल टूट गया…

“हताशा बढ़ गयी  सन्देश पढ़ के, जीवन कोरा भ्रम लगने लगा है | रात वहीँ गुजर करने का मन बनाया है , शुक्र है अपना ए एम रेडियो साथ रख लिया था | उसे चलाया तो विविधभारती स्टेशन लग गया , उसपे हवामहल प्रोग्राम आ रहा था, अंदाज़ा लगाया की रात के साढ़े आठ बजे होंगे|”

दूसरे दिन से लेकर सातवें दिन की डायरी का हाल चाल लगभग एक सा दिखता है, कठिनाइयाँ उनके जीवन का हिस्सा बनती सी दिखती हैं, हर रोज के चौथे पहर बाद वो अपनी डायरी लिखते रहे| दूसरे दिन के चौथे हिस्से का वर्णन उन्होंने कुछ यूं किया है…

“मुझे दो दिन से ये चौथा हिस्सा पार करना बड़ा मुश्किल लग रहा है, एक तो अँधेरा होने लगता है और ठीक महल के दरवाजे पे खड़ा ड्रैगन, साथ में कल-कल कर बहती नदी का पुल, बड़ा मुश्किल हो जाता है| शुक्र है की फ्लड लाईट लगी हुई हैं और बत्ती बराबर आ रही  है| पर महल के अंदर अँधेरा सा है| मुझे मोहम्मद रफ़ी का गाना याद आता है “चराग दिल का जलाओ, बहुत अँधेरा है”, महल के अंदर मै उसी  चरागे में सोने जा रहा हूँ, इस उम्मीद में की कल तो मुझे राजकुमारी मिल जायेगी|”

तीसरा दिन भी ऐसे ही बीत जाता हुआ दिखा है | चौथे दिन के हिस्से ऐसे दिख पड़े हैं…

“तंग आ गया हूँ मैं, इन बिलौटों, बतखों से लड़ते हुए, रोज का वही लफड़ा, कहाँ तक लडूं इस जालिम दुनिया, बेरहम समाज से, कोई इंसान भी तो सामने नहीं आता, जानवर भेजे पे भेजे जा रहा है, कुछ एक बार में मर रहे हैं, कुछ दो बार में, कुछ को खाई में फेंकना पड़ रहा है, इतने पाप करने पड़ रहे हैं| पाप का घड़ा भरने को है, पता नहीं राजकुमारी से मिलने से पहले फूट ना जाए| यमराज की भी टेंशन बराबर बनी रहती है|”

यहाँ तक आते आते राजकुमारी से मिलने की बेताबी भी साफ़ झलकने लगी…

“तुम पता नहीं कैसी होगी, दिखती कैसी होगी, क्या तुम मुझे देखते ही मुझसे प्यार करने लगोगी? तुम्हारे लिए कोई भेंट भी तो नहीं ला पाया, जल्दी में था और सोमवार को दुकाने भी कम खुलती हैं, उसपर भारत-पकिस्तान का मैच चल रहा था, जनता खाना तो खा नहीं रही थी, दुकान क्या खोलती | उम्मीद है की तुम मुझे माफ कर दोगी | मेरे सच्चे प्यार को ही तोहफा समझना | तुमसे मिलने की बेकरारी बढती जा रही है |”

पांचवे दिन मुश्किलों के और बढ़ जाने की बात लिखी है उन्होंने|  छटा दिन भी ऐसे ही बीता | दो दिन से गोलियों , बंदरों का भी मुकाबला करने की बात लिखी है| सातवें दिन के एंड में वो लिखते हैं…

“मेरे सब्र का बाँध टूट गया है, ऐसी कौन सी मुश्किल है जो मैंने नहीं झेली | ऊपर वाला मेरे सब्र का इम्तेहान ले रहा है | सब्र का फल मीठा होता है और ज्यादा मीठा खाने से  डाइबिटीज़  रोग हो जाता है | इसलिए ज्यादा ये मिठाई नहीं खाऊंगा | एक-दो दिन और देखता हूँ नहीं तो फिर किसी मैट्रीमोनी साईट पे अपनी प्रोफाइल बना दूंगा, किसी से भी शादी कर लूँगा| राजकुमारी से प्यार महंगा ना पड़ जाए"

यहीं पे किताब खतम होती है | किताब के अंत में प्रकाशक का एक नोट है..

“इस तरह मुश्किलों से जूझते हुए मारियो ने अपनी राजकुमारी को पा लिया, आप भी मेरे साथ उन दोनों के उज्जवल भविष्य की कामना करें, पुस्तक पढ़ने पर बधाई और अगर आपने ये किताब खरीद के पढ़ी है तो शुक्रिया भी|”

****

किताब पढ़े हुए मुझे काफी टाइम हो गया, कुछ सवालात थे , मैंने प्रकाशक से संपर्क करने की कोशिश की तो वहाँ से कोई जवाब नहीं आया | फिर एक दिन एक शौपिंग मॉल में घूमते हुए (उछलते हुए पढ़ें) मारियो खुद ही दिख गए…मैंने नमस्ते की तो मुझे एक बार में पहचान गए | हमने कॉफी के लिए आमंत्रित किया तो वो मान गए| इस मौके पे मैंने कुछ सवाल दागे| वो यहाँ हैं:

मैं: नमस्ते मारियो जी, कैसे हैं, आज यहाँ मॉल में क्या कर रहे हैं?
मारियो जी : नमस्ते , बढ़िया हैं एकदम, आज जरा सोचा की मैडम को थोड़ी शौपिंग करा दी जाये , इसलिए आ गए|

मैं: अच्छा, ये तो बढ़िया सोचा आपने, इसी बहाने मुलाकात भी हो गयी|
मारियो जी : दरसल पिछले ३-४ महीने से बहाने बना रहे थे, कभी कोई त्यौहार का बहाना, कभी इंडिया की हार का बहाना, शौपिंग “अवाइड" कर रहे थे, पर आज मैडम बोलीं की अगर शौपिंग नहीं कराओगे तो खाना पानी बंद |  अब “रेसेशन" के टाइम में मैडम से पंगा कौन ले | कड़की चल रही है | तो सोचा की शौपिंग करा देते हैं, शायद सस्ती पड़े |

मैं (हँसते हुए) : शौपिंग और सस्ती?
मारियो :  अरे नहीं, अब आप तो घर के आदमी हो आपसे क्या छुपाना, मैंने उन्हें अपना क्रेडिट कार्ड दिया है, उसकी लिमिट ही इतनी कम रखी है, कितना भी करो शौपिंग पैसा तो उतना ही जायेगा जितना हम चाहेंगे |

मैं : मान गए आपको, मैंने आपकी डायरी “वो सात दिन" पढ़ी है ?
मारियो (चौंकते हुए) : आपने पढ़ी????

मैं : जी हाँ, आप मेरे हीरो रहे हैं, इंस्पिरेशन, कुछ सवाल है पूंछना चाहूँगा?
मारियो :  दागो

मैं :  आपको राजकुमारी को ढूँढने में आठ दिन लगे, पर कहानी केवल सात दिन की, ऐसा क्यूँ?
मारियो : अब आप की शादी तो हुई नहीं है अभी तक | आप नहीं समझोगे |  यार वो आठवे दिन ही पकड़ के शादी हो गयी | पूरी रात मेहमान लोगो ने खिला खिला के मार डाला | दूसरे दिन से घर में अपने झगड़े शुरू | जहाँ दो बर्तन होते हैं खनकते ही हैं| बस इन्ही बर्तनों को संभालने में जिंदगी कट रही है | डायरी कहाँ से लिखें ? आखिरी का नोट भी किसी और से लिखवाना पड़ा प्रकाशक को|

मैं: ओह तो ये बात है , अच्छा ये बताइए पहले दिन तो आपने बताया आप रेडियो सुन रहे थे, उसके बाद नहीं सुना क्या, उसकी बात कहीं और नहीं की आपने ?
मारियो : “ कैसे सुनते, उसी रात हमने फरमाइशी गीतों का प्रोग्राम लगाया, फरमाइश करने वालों के नाम सुनते सुनते आ गयी हमें नींद, जब जागे तब तक सेल का सत्यानाश हो चुका था| रेडियो पहले महल में ही तोड़ना पड़ा|

मैं : तोड़ना क्यूँ?
मारियो : अरे वही जैसे जंग में लोग गोली खतम हो जाने पे अपनी बन्दूक तोड़ देते हैं|

मैं : हम्म | आप तो जापान के रहने वाले हैं , फिर आकाशवाणी कैसे सुनते हैं?
मारियो : असल में मेरी माँ भारतीय मूल की हैं, उन्हें हिंदी गाने बड़े पसंद हैं, वहीं से आदत पड़ी|  और अब तो हिन्दुस्तान में रह भी रहे हैं, जापान में तो बड़े भूकंप आते हैं इसलिए | किशोर कुमार मेरे फेवरेट हैं|

मैं : वो तो हर प्यार करने वाले के फेवरेट हैं, प्यार की बात करते हैं, आपको कैसे प्यार हुआ राजकुमारी से?
मारियो : ये भी अंदर की बात है, सिचुएशन मरता क्या ना करता वाली थी, हालत अपनी पतली थी, कई बड़े घर की लड़कियों पे चांस मारा, सब जगह से दुत्कारे गए| फिर महल में बंद राजकुमारी का पता चला, बस|

मैं : तब तो दिन मजे में कट रहे होंगे अब ?
मारियो : अजी ख़ाक कट रहे मजे में, मुद्दे की बात तो किसी को पता नहीं है, इनका नाम केवल राजकुमारी निकला, और महल एक खंडहर | इन्हें कोई छिपाया नहीं गया था, एक बार पड़ोसी के बगीचे से अमरुद चुरा के भागी तो खंडहर में कहीं खो गयी| ऊपर से ये न्यूज़ चैनल वाले, गड्ढे में गिरने से लेकर महल में खोने तक की न्यूज़ ऐसे दिखाते हैं और सरकार भी भर भर  के पैसे लुटाती है , इन्ही सब लफड़ों में पड़ गए| जैसे इन्हें ढूँढा, जनता वाह-वाही करती आ गयी, एक-दो मंत्री-संत्री भी आये, होटल वालों ने अपनी तरफ से रियायती दर पे डिनर करवाया| नेताओं ने लंबी चौड़ी घोषणाएँ कर दी | तब से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहा हूँ उन्हीं पैसों के लिए | उन आठ दिनों में जिन जानवरों से सामना हुआ वो अच्छे लगने लगे हैं| जो जमा पूंजी थी और जो सिक्के उन गुफाओं में मिले वो होटल वाले ले गए | जो बचे वो नेता लोग अपनी पार्टी के चंदे के रूप में उठा ले गए | फिर से नलका बना के, टोंटी लगा के काम चला रहे हैं| वो तो कहो इस लाइन में ठीक ठीक पैसा मिल जाता है तो ज़िंदगी चल रही है|

मैं (इससे पहले की वो हमसे ना पूंछ लें की कैसी हालत है तुम्हारी, हम तपाक से बोल पड़े): आजकल हर किसी की हालत पतली है|
मारियो : सही कह रहे हैं|

मैं : अच्छा आपका एक भाई का , लूगी, वो कहाँ है आजकल?
मारियो :  ये सब अफवाह है, मेरा इस नाम का कोई भाई नहीं है और ना ही मैं इस नाम के किसी इंसान को जानता हूँ | मैंने पहले ही इस बाबत एक इश्तेहार अखबार में छपवाया है कि इस नाम के किसी व्यक्ति से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है|

इसी बीच वो थोड़ा हडबड़ाते हुए दिखे | राजकुमारी जी ने उन्हें हाथ से अपनी शॉप के अंदर आने का इशारा किया |  वो ऐसे दौड़े की जैसे उन्हें पता ही ना हो कि क्या हो रहा है| हमने भी नज़रों से उनका पीछा किया|

वो क्रेडिट कार्ड को मुंह से फूंकते, कपड़े से साफ़ करते दिख रहे थे…….
****
और जाते जाते मारियो साहब के जीवन पे बनी एक डॉक्यूमेंट्री आपको दिखा देते हैं…
सुपर मारियो : एक अनूठी प्रेम-संघर्ष-कथा

नमस्ते!!!!!

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

प्यार, इश्क, मोहब्बत और लफड़े…

जहाँ प्यार है, वहाँ इश्क है, जहाँ इश्क है वहाँ मोहब्बत है, और जहाँ ये तीनो है (बराबर मात्रा में), वहाँ लफड़े हैं | जैसे बिन बादल बारिश नहीं होती वैसे बिना लफड़े-बवंडर के प्यार नहीं होता|
दुनिया में सभी लोग, कभी ना कभी “पहला” प्यार करते हैं, कुछ पहला प्यार एक बार करते हैं, कुछ कई बार करते हैं|पर प्यार पहला ही रहता है | इस बाबत आदरणीय राहुल जी का बयान देख लीजिए ..

“हम जीते एक बार हैं, मरते एक बार हैं और प्यार भी एक बार होता है”|

(बस यहाँ प्यार से पहले अगर “हर किसी से" लगा देते तो बयान का दायरा बढ़ जाता, काफी “ग्लोबल” हो जाता | खैर कोई नहीं| जब हम समझ लिए तो बाकी भी समझ गए होंगे|)

प्यार, इश्क, मोहब्बत| ये सब उस उड़ती हुई चिड़िया के वो पर हैं, जिनको गिनने की कोशिश हर इंसान ज़िंदगी में कभी ना कभी तो करता है, कुछ “सक्सेसफुल" रहते हैं, बाकी दूसरी चिड़िया “टारगेट" करते हैं|

प्यार हो जाना बड़ी आम बात है, ज्यादातर लड़कों को अपनी इंग्लिश वाली और लड़कियों को मैथ्स वाले टीचर से पहला प्यार हो जाता है|  ये प्यार साल दर साल बढ़ता रहता है| और ज्यादातर लोग इसे बहुत जल्दी भूल जाते हैं| और ये सबको  तब याद आता है जब वो “ट्रुथ & डेयर” खेलते हैं| Who was your first crush?

लाइफ का दूसरा इम्पोर्टेंट प्यार, हमें अपने साथ पढ़ने वाले किसी बंदे या बंदी से होता है, जिसे "क्लासमेट" कहते हैं |  इस मामले में की गयी एक रिसर्च के बाद कुछ तथ्य सामने आये हैं :
  • लाइफ का ये प्यार , ज्यादातर एकतरफ़ा होता है|
  • सुंदरता बांटने में भगवान ज्यादा पक्षपात नहीं करते, हर उम्र के लोगो के वर्ग में कुछ सुन्दर (सभ्य, सुशील भी पढ़ें) लोग होते हैं | एसी “सुन्दर" कन्याओं के मोहल्ले का चक्कर हर दूसरा लड़का , सुबह शाम लगाता रहता है| और ऐसे ही “हैंडसम" लड़कों के नाम काफी लड़कियों की नोटबुक के पीछे के पन्नों में पाए जाते हैं|
  • इसके अलावा बाकी जनता सपोर्टिंग रोल में होते हुए भी अपने आप को मुख्य नायक या नायिका समझती रहती है|
  • इस तरह के इश्क ज्यादातर क्लास में, ट्यूशन में , समोसे की दुकानों में परवान चढते हैं, और इनकी परिणति गिफ्ट्स की दुकानों में हो जाती है|
इस तरह के बहुत तथ्य हैं, जगह की कमी के कारण नहीं लिख पा रहे हैं|

लाइफ का तीसरा इम्पोर्टेंट प्यार होता है कॉलेज में |  ये खतरनाक होता है |यही वो लाइफ का पहला प्यार होता है, जिसमे रातों की नींद , दिन का चैन एक साथ खो जाता है | यही प्यार पहली बार चार-दीवारी का “रूल” तोड़ता है, खुले बागों में गाना गाता है |  पहले प्रेम-पत्र भी लिखे जाते थे, आजकल ज़माना सोशल नेट्वर्किंग का है |  ये प्यार “जनम – जनम”  के साथ वाले प्यार से ठीक एक कदम पीछे वाला होता है, वो इस जीवन में “बिलीव" करता है | कवितायेँ लिखने की शुरुआ़त भी यहीं से होती है|

इसके बाद भी लाइफ में बहुत से प्यार होते रहते हैं |  मेरे एक मित्र ने अपनी पत्नी को देखते हुए कहा “हमारी तुम्हारी आपस में “अंडरस्टैंडिंग" को देखते हुए ऐसा लगता है कि अब बस ये हमारा तुम्हारा साथ साथ सातवाँ जनम ही है”|  नज़र ना लगे ऐसे प्यार को…
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अब प्यार की कहानी तो इतनी लंबी है, कहाँ तक लिखें| लफड़ों की बात करते हैं, तो जनाब ये जो लफड़े हैं ना, ये एक अकेली चीज़ हैं जो जीवन भर होने वाले प्यार में आप के साथ खड़े रहते हैं| ज्यादातर लफड़े प्यार खतम करने का काम करते हैं, प्यार के पर्यायवाची होते हुए, विलोम का काम करने लगते हैं |  उन्ही को नीचे “लिस्टिया” रहे हैं:

प्यार का सच्चा होना :  ये बात एक बार मेरे एक परम मित्र (नाम नहीं लूँगा, मना किया गया है)  के साथ एक गहन डिस्कशन के बाद निकल के आयी| एक्चुअली प्यार का कुछ ज्यादा सच्चा हो जाना उसके पूरे ना होने का मुख्य कारण है | वैसे ही जैसे सोच गहरी हो जाये तो फैसले कमज़ोर हो जाया करते हैं|  हर सच्चे प्यार करने वाले को लगता है कि उसके प्यार की खबर सामने वाले को पहुँच जायेगी , अपनेआप | कहीं उसके बताने पे सामने वाले को बुरा ना लग जाये, आखिर सच्चा प्यार है, ये तो नहीं होना चाहिए| बस इसी वक्त भैंस, जो है चली जाती है पानी में| एक इस तरफ टुकड़ों में जीते रहते हैं और उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी टुकड़ों में दूसरी तरफ जी रहा होगाआखिर प्यार सच्चा जो है |

दोस्तों का होना :  एक बार एक बात बताई थी किसी महापुरुष ने “Fastest way of communication “tell a woman” and to make it even more fast tell her not to tell anyone else” | बाकी का तो पता नहीं पर प्यार के मामले में लड़के भी इससे पीछे नहीं| अगर आप ने अपने किसी सबसे अच्छे दोस्त को बता दिया “कि देखो वो जो है ना, पीला दुपट्टा नीले सूट में, तुम्हारी भाभी है, और देखो अभी मामला नया है, अपने तक ही रखना, वक्त आने पे पार्टी होगी" | पर क्या मजाल सामने वाला मान जाये| देवर होने के सारे फ़र्ज़ निभाने शुरू :

पहला डायलोग (खुद आपसे): “भाई, भाभी तो बताया?? नहीं?? तो ये काम मैं कर दूं??, अपना लक्ष्मण और हनुमान दोनों मेरे को ही समझो"

दूसरा डायलोग (उस “दूसरे" लड़के से जो उसी लड़की पे फ़िदा है )  : “ओए लल्लू-पंजू, जो भी हो तुम , आजसे इसके आसपास दिखे तो, इतना धोयेंगे कि सर्फ़ एक्स्केल का प्रचार करने वाली सफ़ेद कमीज़ बन जाओगे , समझे, कट लो, भाभी है अपनी ”  ( लड़की को तो अभी तक नहीं पता चला आपके प्यार का, और अभी तो सीन में आप भी नहीं हैं)

तीसरा डायलोग (वो “देवर" जी अपने दोस्तों में जब आप नहीं हैं वहाँ पे) : “देख वो जो है ना, हाँ वही जिसे पटाखा बोलते थे हम सब, आज से कोई कुछ नही बोलेगा, भाभी हो गयी है अपनी, भाई का दिल आ गया है, समझे|” इसी बीच किसी ने बोला “अपन तो सब भाई हैं, कौन से भाई का दिल आया है ये तो क्लीयर करो" वो जवाब देंगे “वही साइंटिस्ट , अपना आइन्स्टाइन,  अबे उसके सामने मत बोलना, सेंटी आदमी है , बुरा मान जायेगा" | देखा उन्होंने किसी को नहीं बताया|

अब ऐसे लोग अपनी हरकतों से भी बाज़ नहीं आते, किसी दिन मान लीजिए उसी लड़की से किसी बात पे उलझ गए, काफी गालियाँ सुननी पड़ गयी उन्हें, तो लड़की को ही जवाब दे देंगे “वो तो  ***** (यहाँ पे आपका नाम भी हो सकता है) भाई का लिहाज़ कर रहे हैं, वरना तुम जैसियों को सुधारने में हमें टाइम ही कितना लगता है” | आपको इतनी इज्ज़त कब चाहिए थी भला?? आपके एक तरफ़ा प्यार का ऐसा कचूमर निकलेगा| इसके बाद आप नज़रें नहीं मिला पाओगे, छुपे छुपे घूमोगे| कालेज में टॉप भी कर लो तो भी घूर के देखा जायेगा |

एक और लफड़ा नया आ गया है मार्केट में , अब जैसे ही आपने बताया कि आपको फलां कन्या से प्यार हो गया है, तुरंत आपके दोस्त बोलेंगे “फेसबुक पे स्टेटस कमिटेड करो बे” | 


शाहरुख खान :  एक तो भाई ये शाहरुख खान,  इतना बिगाड़े हैं जनता को,  हर कोई खुद को "राज" समझता है, और एक अदद "सिमरन" की तलाश में लगा रहता है, राज को तो पिट-कुट के सिमरन मिल गयी पर असलियत में कितने लोग कुटे , सिमरन तो क्या उसकी झलक ना मिली| कुछ को तो लड़की के पिता जी ने हड़काया, कुछ को लड़कियों के भाइयों ने दौड़ाया, मोहल्ले के बाकी लड़कों ने कूटा | और इनको लगता रहा इनकी सिमरन अपनी माँ के साथ भागते हुए आएगी| पिटते-पिटते काफी देर वेट किया, और बाद में तो खुद जा भी नहीं पाए, ले जाए गए|

दरअसल प्यार में “कुछ तुम सोचो, कुछ हम सोचे” की जगह “कुछ तुम बदलो, कुछ हम सुधरे” का लोजिक चलता है| पर शाहरुख भाई की इन कुछ फिल्मों पे गौर फरमाएं:
इन सारी फिल्मों में बदलने सुधरने का जिम्मा  पैरेंट्स  पे रहता है| मतलब “हम ना बदलब, सुधरिहे संसारा"
और प्यार इनके लफड़े में पड़ के बस पड़ा रह जाता है, ना “पैरेंट्स” बदलते हैं ना हम सुधरते  हैं| अब तक तो काम चल रहा था ई सब पिक्चरें देख के, पर अब इनको झेलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी हो गया है |


डर : “ना” सुनने का डर , एक तो ये ससुरा बड़ा खूंखार लफड़ा है, “वो ना कह देगी या कह देगा तो क्या होगा" | इस चक्कर में भी बहुत लफड़ा-लोचा हुआ है| ज्यादातर प्यार इसी के चलते एक तरफ़ा रह के कब्र-नशीं हो गया , सुपुर्द-ए-ख़ाक हो गया, शहर-ए-खामोशा पहुँच गया | पर ये डर युग युग से चलता आया, और आगे भी जारी रहने की भी उतनी ही संभवनाएं हैं|

एक बात बड़ी खास है इसके साथ, कित्ताओ समझा लो जनता को, कि आगे बढ़ो, क्या होगा, ना बोलेगी तो क्या होगा, कुछ नहीं होगा, फिकर नॉट| पर ना कोई ना समझा | (मैं भी नहीं )|

एक और डर है, सोसाइटी में नाम खराब होने का, जिसके बाद आप अपने घर में भी पीटे जा सकते हो, इससे डर के भी बहुत लोग डरते रहते हैं, उनको “स्प्राईट” पीनी चाहिए| “डर" के आगे “जीत" है | (घटिया डायलोग, पर झेलो)


कविता : इस नाम की कोई भी कन्या ना घबराए, मैं उनके बारे में कुछ नहीं लिखने जा रहा| दरसल ये मेरा पर्सनल लफड़ा है| कविता लिख के प्यार जताना बहुत रिस्की हो जाता है| एक कहानी सुनाऊं, सुनोगे


तो हुआ यूं की मेरे मेरे एक दोस्त फ़िदा थे एक मैडम पे, वो कवितायेँ लिखती थीं| और हम भी अपने दोस्तों में बदनाम थे तुकबंदी के लिए| मैडम की एक सहेली थी, उनपे हम फ़िदा थे | एक प्लेट ब्रेड-पकोड़े और एक कप चाय की एवज में मेरे "उन्ही" दोस्त ने मुझसे एक कविता लिखवा ली …
“हर वक्त तुम्हारा चेहरा आँखों के सामने रहता है,
एक तुम हो की कभी पास भी नहीं आतीं|
अपने दिल की धडकनों को मै समझाऊं कैसे,
इनसे तुम्हारी याद कभी दूर ही नहीं जाती||”

मित्र महोदय लेके पहुंचे कविता मैडम के पास, उनके साथ हम भी हो लिए थे की हमारा भी कल्याण हो जायेगा| अब वो अकेले तो आयेंगी नहीं| मैडम ने कविता की ओर एक नज़र देखा, और उसे अपनी “उसी" सहेली को पकड़ा के आगे बढ़ लीं | उनकी सहेली ने कविता थामी,  पढ़ी और मेरे दोस्त को बोला “इतनी अच्छी कविता, तुमने लिखी?", मेरे दोस्त का ह्रदय बहुत बड़ा था,बोले  “हाँ मैंने ही लिखी" | मैडम की सहेली ने जवाब दिया “पर वो हिंदी में कविता नहीं लिखती, इन फैक्ट उसे ठीक से हिंदी पढनी ही नहीं आती, पर काश कोई मेरे लिए ऐसी कविता लिखता" | ये कह के वो भी चली गयी| मै और मेरा दोस्त एक दूसरे को घूरते रहे| कुछ दिनों बाद पता चला, इसी कविता के चलते मेरे दोस्त की सेटिंग उनकी मैडम की सहेली से हो गयी|  पूरी कॉलेज की लाइफ वो मैडम उधर अंग्रेजी में और मै इधर हिंदी में कविता लिखते रहे…

इसलिए पहले तो कविता लिखो नहीं प्यार में, लिखो तो अपने लिए लिखो| 

“पुस्तक में लिखी विद्या, दूसरों के हाथ में गया धन और किसी और के प्यार के लिए लिखी गयी कविता, तीनो वक्त पड़ने पे कभी काम न आये हैं, ना आयेंगे"

जीवन का लक्ष्य: प्यार के बीच में ये लक्ष्य हर बार आते रहे हैं, कभी कभी ये प्यार को पाने में मदद करते हैं, वरना आम तौर पे ये खतम ही करते हैं सब कुछ..इस श्रेणी में आने वाले कुछ वाक्य निम्नलिखित हैं:
  • मैं यहाँ पढ़ने आया हूँ| (कॉलेज वालों का पसंदीदा)|
  • पहले पढ़-लिख के बड़ा आदमी बन जाऊं|
  • पहला एम नौकरी, बाद में आये छोकरी|
  • अभी पढाई का टाइम है, प्यार के लिए तो ज़िंदगी पडी है|
इस तरह के जीवन के लक्ष्यों के चलते प्यार की काफी बेकदरी हो गयी है| इनसे बचना चाहिए!!!!

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लफड़े और भी हैं|  जितने मुझे पता थे मैंने बता दिए, अब बारी आपकी, खुल के बताओ….ये सब नेक सलाहों की तरह हैं| आपके द्वारा दी गयी कोई भी एक सलाह ना जाने कितने लोगो के जीवन में उजाला ला सकती है….
“सलाह दान से करो कल्यान”

सभी को नववर्ष की शुभकामनायें!!!भगवान आपके जीवन में प्यार, इश्क, मोहब्बत की सप्लाई बनाये रखें और लफड़ों से खुद ही निपट लें….

नमस्ते!!!!