शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

लाइक - कमेंट - शेयर का घमासान !!!!

ज़माना जब से सोशल मीडिया का हुआ है , वर्चुअल वर्ल्ड पर इंसानी हरकतें एक नए दौर में पहुँच गयी हैं । हस्ती का सबूत आपकी पोस्ट को मिलने वाले कमेंट और उस पर मचने वाली भसड़ से मापा जाने लगा है । आपकी प्रोफाइल पिक पर सैकड़ों लाइक  और दर्ज़नों कमेंट ना आएं तो खुद पर शक हो जाना लाज़मी है । कुछ लोग तो ऐसा ना होने पर हिंदी डेली सोप की तरह अपने चेहरे को प्लास्टिक सर्जरी से दुरुस्त कराने की बात सोचने लगते हैं हांलाकि प्लास्टिक सर्जरी से वाकई शकल क्या इतनी बदल जाती है इसपर दुनिया को रिसर्च करने की ज़रुरत है । 

मेरा एक बचपन  का दोस्त आज से करीब २० साल पहले पासपोर्ट साइज की फोटो बनाने वाले से इसलिए भिड़ गया की उसकी शक्ल ख़राब और टेढ़ी आयी थी । फोटोग्राफर पहले भी उससे भड़का हुआ था क्यूंकि हरबार यही कहकर वो अपनी एक्स्ट्रा फोटो बनवाता था , बोल उठा की जैसी शकल है वैसी आएगी । बन्दे ने ऐसी तोड़फोड़ मचाई की फोटो स्टूडियो हफ्ते भर बंद रहा । 

खैर , वापस आते हैं । सोशल मीडिया के ज़माने में । 

बीते कुछ दिनों में सोशल मीडिया ना केवल बहुत ज़िम्मेदार हुआ है अपितु जनसेवा के कार्यों में किसी भी चुनावी बरसात में जागने वाले नेता रुपी मेढक से भी आगे निकल रहा है । 

जिस तरह कविता के आदिकाल और भक्तिकाल के बीच में एक गहरे असंतोष का पाया जाना हमारे साहित्यिक इतिहासकार बताते हैं , उसी तरह सोशल मीडिया के जागरूक होने के ठीक पहले का काल भी ऐसे ही नैराश्य से भरा पड़ा था । ज़िन्दगी कष्ट में बीत रही थी लोगों की । सोशल मीडिया ने सबसे पहले अच्छी खबरें देने का जिम्मा उठाया । 

किसी देवी , देवता, पशु पक्षियों की फोटो शॉप की गयी फोटो, मंदिर , मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च : कोई भी तस्वीर को शेयर करने से आपको गॉरंटी के साथ आजकल अच्छी खबरें मिलने लगी हैं । "इस देशभक्त " या "इस माँ" को कितने लाइक टाइप की फोटुएं धड़ाधड़ शेयर हो रही हैं । जनता का दिल कितना बड़ा है इसी से समझ आ जाता है जब वो किसी मासूम बच्चे की फोटो शेयर करके बोलते हैं की फेसबुक हर शेयर का कुछ रुपया इसके इलाज़ में खर्च करेगा । और ऐसी फोटो को जिस तरह की ज़बरदस्त कामयाबी मिलती है उससे लगता है की दुनिया में मानवता अभी बाकी है । वैसे जेब से एक फूटी कौड़ी ना खर्च करने की कंडीशन हो तो ज़माना आज भी नहीं बिगड़ा है अदरवाइज़ पूरे एक ज़माने से ज़माना बिगड़ा पड़ा है । ऐसे मासूमों का इलाज़ पता नहीं हो भी पाता है या नहीं , पर कुछ फोटो तो हर दूसरे तीसरे साल वापस शेयर हो जाती हैं । 

एक और ट्रेंड है । फलाना नंबर फोटो पर लिखें और जादू देखें । ये बहुत बढ़िया है । मैंने देखा एक किसी अत्यंत खूबसूरत बाला ,  जिसने आवश्यकता से कुछ ही ज्यादा कपड़े पहने हुए थे , की फोटो पर धधड़ ततड़ कमेंट हो रहे थे । मौजू था कमेंट में ५ लिखें और जादू देखें । कमेंट करने वाले ना जाने कितने युवाजन , जिन्हे ५ तक की गिनती भी सुनाने में १० डस्टर की मार पड़ती थी , इस उम्मीद में की अभी ये फोटो हैरी पॉटर के चलायमान फोटो में परिवर्तित होगी और कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जिससे उनके आदि काल से पिपासु नैन तृप्त हो जाएंगे , ५ फिर ५ और उसके बाद एक और ५ लिखे जा रहे थे । कुछ सदाचार का ठेका ले चुके लोग भी थे , उनका मानना था की ५ लिखते ही ये लड़की किसी भरपूर कपड़े पहने हुए  सुन्दर बालिका में तब्दील हो जायेगी , और वो ये कह कह के लोगों को शेयर कर सकेंगे कि देखो ये होती है सुंदरता । और ये भी ठोक देंगे की अगर कपड़े उतारना ही आधुनिकता होती तो "फलाना" आजकल सबसे आधुनिक होते । 

खैर , ५ लिखने वालों को क्या मिलता है वो तो वही जाने । हाँ किसी और फोटो में वे ७ या ९ लिखते फिर दिख जाते हैं । या तो ५ से कुछ हुआ नहीं या उनको पूरी उम्मीद है जब ५ से इतना हुआ तो ७ और ९ से और क्या क्या हो सकता है । 

इस बीच लोगों ने ऐसा आरोप भी लगाया है कि सोशल मीडिया देश के लिए कुछ नहीं कर रहा । सोशल मीडिया के कर्णधारों से ये नहीं सहा गया । उन लोगों ने अगले चुनावों से लेकर बड़े से बड़े आतंकवादी का फैसला चुटकी बजाते कर दिया । आप इनको अगली बार प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं । हाँ के लिए लाइक और ना के लिए कमेंट करें । और सहमत हों तो शेयर करें । ऐसी फोटो पर भी लाखों कमेंट और लाइक  । हज़ारों शेयर भी । और एक भारत का चुनाव आयोग है , इत्ते पैसे खर्च करता है । 

ऐसे ही एक आतंकवादी की फोटो पर एडिट करके जूता बना दिया और , और बोला लाइक  = ५ जूते , कमेंट = १० जूते और शेयर = १५ जूते । टोटल ३२. ४ हज़ार लाइक , १६ हज़ार कमेंट और ९ हज़ार शेयर , कुल मिलाकर : 26835000 ( पढ़ के बताओ तो जाने ) जूते जनाब को बैठे ठाले पड़ गए । इतने जूते पड़ने के बाद इंसान का जो भी हश्र हो , मुझे अपनी सरकार पर बड़ा तरस आया कि फालतू में पड़ोसी मुल्क की सरकार को सबूत पर सबूत दिए जा रही है । मामला यूं निपटाना था ना  ।

इसी तरह के ना जाने कितनी समस्याएं कमेंट-लाइक-शेयर के फलदायी तूफ़ान ने यों ( चुटकी बजाते हुए ) बोले तो यों ( फिर से चुटकी बजाते हुए ) हासिल की हैं । भविष्य में युद्ध इसी टाइप से लड़े जा सकते हैं । जो एक साइड का समर्थन करते हैं वो लाइक करें और जो दूसरी साइड को वो कमेंट करें । और जो केवल मजा लेना चाहते हैं वो शेयर करें । पता चलता सबसे ज्यादा शेयर उत्तर प्रदेश से आ रहे हैं । यहाँ के लोगों का तो काम ही मजा लेना है । ऐसे घमासानों  में ना जाने कितने घायल होकर पोस्ट करना बंद कर देते हैं । कई लापता की भांति गायब हो जाते हैं या उनकी प्रोफाइल फेसबुक ब्लॉक कर देता है छिछोरी हरकतों के चलते । 

The world has confused itself so much that for the simplest solution which is at hand, it's going for a longer route. बोले तो बगल में छोरा और शहर में हालाडोला । 

बाकी यही सब चल रहा है आजकल , आगे भी चलता रहेगा ।  सर्दी है ही वो बात अलग है  । वैसे आपका क्या मानना है ? ये जो बकवास मैंने ऊपर लिखी है वो कैसी है : अपनी राय देने के लिए कमेंट ( सहमत) , लाइक ( पूर्णतया सहमत)  और शेयर ( माइंड ब्लोइंग टाइप ) कर सकते हैं । 

फिर मिलेंगे !!!

आप सबको क्रिसमस की बधाई ।

नमस्ते !!!

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

निर्भया तुम मरने लायक ही हो !!!

तुम्हारा नाम ज्योति था , पर हमारे यहाँ तुम निर्भया ही हो । वही रहोगी । तुम्हे ज़बरदस्ती शहीद बनाकर पूजनीय बनाकर अपना पल्ला झाड़ लिया गया है  । ये चलता है अपने यहाँ । देखती हो ना उस बिना बाल के चश्मा लगाए ईमानदारी की प्रतिमूर्ति को , हर ऑफिस की दीवारों से लेकर नोट पर उसकी फोटो है और उन्ही फोटो के नीचे उन्ही नोटों के साथ हम ईमानदारी की मैय्यत निकाल देते हैं । हम सुधरने वाले नहीं है । तुम दिल्ली में मारी गयी , हल्ला हो भी गया । ना जाने कितनी और कहाँ मारी जाती होंगी , किसी के कान में जूं ना रेंगती होगी ।

तुम्हारे नाम को लेकर १५ तो सुझाव दिए गए । तुम्हारे माता-पिता में वो साहस है कि उन्होंने तुम्हारा नाम बता दिया । तुमको मारने वाले का नाम हम आजतक गेस करते हैं  , हम उस हद तक कायर हैं ।

तुम्हारी मौत पर सबने खूब रोटियां सेंकी थी । इंडिया गेट पर जम के बवाल कटा था । जनता, पत्रकार , नेता सब । जो धरने पर बैठ गए थे वो एक बेसिरपैर की बहस लेकर दूसरे से जवाब मांग रहे हैं । दूसरे जिनपर कानून बनाने का ज़िम्मा है , पहले के सवालों को खारिज कर रहे हैं । तुर्रा ये कि लोकसभा में तो हमने पास कर दिया राज्यसभा में बहुमत नहीं है । किसानों की ज़मीने लेने के लिए आर्डिनेंस ला सकते हैं । तुम्हारे लिए नहीं । सरकार कहीं स्वच्छंद ना हो जाए इसलिए राजयसभा में उसे अल्पमत में रहना लोकतंत्र के लिए अच्छा बताने वाले लोग ही मोमबत्ती लिए जुलूस निकाल रहे थे ।

और उस हंगामे की कवरेज करने वाला मीडिया जो घड़ों आंसू बहाये पड़ा था , किन किन बकवास पर घंटे घंटे डिबेट चला रहा है , तुम्हारे लिए १५ मिनट का बस एक स्लॉट है । उसी में खुश रहो । कल तक  थर्मामीटर लिए जगह जगह सहिष्णुता - असहिष्णुता नापने वाला यही मीडिया , पुरस्कार लौटाने वाले बुद्धिजीवी , उनका विरोध करने वाले देशभक्त सबके सरोकार आज बदले हैं । आज देशभक्ति सिर्फ किसी फिल्म का विरोध करने पर निकल रही है । बुद्धिजीविता सरकार को कोसने में । तुम्हारे लिए सबके मुंह पर ताले हैं । तुम अब TRP नहीं रहीं ना । तुम्हारे ऊपर बनी एक डॉक्यूमेंट्री को तुम्हारी खबर से ज्यादा तवज्जो दी जाती रहेगी ।

और हम "दबी-कुचली" होने का सुख लेने वाली जनता जो ये कहकर हर बात पर मट्ठा दाल देते हैं कि हम कर ही क्या सकते हैं , आज ५-७ मिनट आह ओह करेंगे । और लग जायेंगे तेरे नेता की शर्ट मुझसे ज्यादा काली है करने । और तुम बस बैठी देखना ।

कल १९ है । तीसरी जमात वाले कल कोर्ट जाने वाले हैं । सुबह होते ही तुम भुला दी जाओगी । देख लेना ।

तुम मरने लायक ही हो । 

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

पनीर मेथी मसाला

डिस्क्लेमर : ये पहली रेसिपी लिखने की कोशिश है । खाकर बेहोश होने या स्वाद अच्छा ना आने पर दी गयी गाली को मैं एक्सेप्ट नहीं करूंगा । :) :)

और रेसिपी केवल दो लोगों के लिए है । इसे पानी मिलाकर , ५-७ लोगों के लिए भी किया जा सकता है । थोड़ा नमक - मिर्च मिलाना पड़ेगा । खाने - खिलाने की ज़िम्मेदारी फिर भी आप की ही होगी ।

सामग्री : 

१. १०० ग्राम पनीर ।
२. २५० ग्राम हरी मेथी ।
३. २ मझले साइज के प्याज़ ।
४. ४ मझले साइज के टमाटर ।
५. ५ ग्राम अदरख ।
६. ३-४ फांक लहसुन ।
७. आधा कप क्रीम ।
८. गरम मसाला ।
९ . नमक टेस्टानुसार ।
१० . पिसी लाल मिर्च औकातानुसार ।
११. कुकिंग आयल ।
१२. २ चम्मच जीरा ।


बनाने की विधि : 

आसान ही है । बैचलर्स के लिए इसे थोड़ा बहुत ट्वीक करके भी बताये जाने की कोशिश रहेगी ।

सबसे पहले करी बनाने का जुगाड़ करते हैं ।

इसके २ तरीके हैं ।

एक : मिक्सी में प्याज़, टमाटर, लहसुन और अदरख को पीस लो । पाने जितना काम डालना पड़े उतना बढ़िया । बैचलर्स के लिए बेस्ट रहता है ये तरीका ।

दूसरा  : प्याज़ , टमाटर , लहसुन और अदरख को बारीक काटकर रख लें । एक पैन में आयल डालें । चूल्हा जलाना कतई ना भूलें । जब तेल गर्म हो जाए , तो एक चम्मच जीरा डालकर उसे चटकने दें । फिर इसमें बारीक कटा हुआ लहसुन और अदरख  डालें और लहसुन के हल्का  हल्का भूरा होने पर  प्याज़ डालकर ढक दें ताकि प्याज़ गलने लगे । थोड़ा नमक भी डाल सकते हैं इससे प्याज़ जल्दी गलेगा , ऐसा कुछ विद्वानों का मानना है । जब प्याज़ हलकी सी गलने लगे तो टमाटर डालकर मिश्रण को ढक दें । मिश्रण को धीमी आंच पर पकने दें  । इस काम को फटाफट करने के लिए मिश्रण को प्रेशर कुकर में भी पकाया जा सकता है । १-२ सीटी से काम चल जायेगा । सारा मिश्रण घुल मिल जाना चाहिए ।

अब मेथी का मोर्चा सँभालते हैं ।

मेथी पत्त्यिों को अच्छी तरह धोकर काट लें । पैन में हल्का तेल डालकर गर्म करें । फिर हल्का जीरा डालकर चटकाएं और मेथी पत्तियां डाल दें । किचन में हल्का धुंआ खुशबू  भरने दें इससे माहौल बनता है हाँ | अगर घर में स्मोक डिटेक्टर है तो ध्यान रखें , वर्ना लेने के देने पड़ जायेंगे और माहौल फायर ब्रिगेड बनाएगी ।

थोड़ी देर में  पत्तियां पानी छोड़ने लगेंगी और डाली गयी क्वांटिटी का लगभग एक चौथाई दिखेंगी । अब इसमें ऊपर तैयार की गयी करी डालें । नमक , मिर्च और स्वादानुसार गरम मसाला मिलाएं । मिश्रण को हल्की आंच पर चलाते रहें । थोड़ी देर में मिश्रण से तेल अलग होता सा दिखेगा ।  आधा से एक कप पानी मिला लें । ताकि ग्रेवी बन जाए ।

अब इसमें क्रीम मिला दें (अगर क्रीम नहीं है तो एक कप दूध को पैन में गाढ़ा कर के हाफ कप बना लें और ठंडा करके काम चलाया जा सकता है ) । थोड़ा सा और पकाएं मिश्रण को ।

पनीर-मेथी-मसाले की मसालेदार फोटो !!!
अब इसमें पनीर के आड़े टेढ़े जैसे भी पीस काट पाएं,काटकर डाल  दें । पनीर को हल्का भूना भी जा सकता है डालने से पहले ।


५ मिनट ढक  कर पकने दें ।

और जैसा तमाम रेसिपी बुक में लिखा होता है "गरमागरम परोसें" ।  :) :) :)

ऊपर का डिस्क्लेमर ज़रूर पढ़ लें , बनानें से पहले :) :) :)

नमस्ते !!!


-- देवांशु 




गुरुवार, 30 जुलाई 2015

भारतीय ....

आज सुबह से ही मन बहुत विचलित है ....कभी बहुत प्रसन्न और कभी अत्यंत पीड़ा हो रही है |

एक ओर डॉक्टर कलाम के निधन से मन दुखी है तो दूसरी ओर उनकी आत्मीयता, खुले विचारों से भरपूर व्यक्तित्व और उपलब्धियों के बारे में पढ़ कर अपने इस गौरवशाली पूर्व राष्ट्रपति
को अंतिम बार देखने आई भीड़ को देख भारत की एकता पर गर्व होता है |

आत्मीयता और प्रेम कोई बंधन,भेद नहीं देखते .......ये एक ऐसा तथ्य है जो हर हृदय स्वीकारता है .....कोई तर्क-वितर्क नहीं रह जाता |

मन दुखी एक और विचार से हो रहा है ......याकूब की फांसी पर जो नाटक टीवी पर चल रहा है.
यह जान कर बहुत संतुष्टि हुई की मैं उस देश से हूँ जहां ऐसा व्यक्ति जो स्वयं कई लोगों की मृत्यु के लिए उत्तरदायी और बंदी है उसे भी समान रूप से अपनी बात रखने और लड़ाई लड़ने का अधिकार है |

पर इस विषय पर जो समाचारों का सिलसिला चल रहा है उससे बहुत पीड़ा हुई है |

मेरा मन भी यही कहता है की फांसी किसी को भी न हो, हर व्यक्ति में सुधार और बदलाव की उम्मीद होती है ऐसा मेरा मानना है , इसे किसी समर्थन की आवश्यकता से ज्यादा आत्मीयता से देखने आवश्यकता है...पर यह नहीं समझ पायी की एक जागरूक देशवासी होने के नाते हमें यह बात धर्म के सहारे लपेट कर क्यों कहनी पड़ गयी ...और वो भी तब ही क्यों याद आती है जब किसी को ये सज़ा सुना दी गयी हो |

कानून में बदलाव लाना अगर आवश्यक है तो हम इस बात को अलग तरह से प्रस्तुत क्यों नहीं करते .....सिर्फ एक भारतीय हो कर इस बात को कहना भी बदलाव लाने के लिए बहुत होगा | अगर आप देश की क़ानून व्यवस्था पर भरोसा रखते हैं तो यह लड़ाई भी उसी भरोसे से लड़िये ...इसे लोगों में अलगाव बढाने के लिए इस्तेमाल करना निंदनीय है |

हमारे देश का संविधान हमे इसका पूरा अधिकार देता है | 

यह लिख कर किसी का समर्थन करने का मेरा ध्येय नहीं है ...परन्तु एक फांसी की सज़ा को हम कितना मनोरंजक बना सकते हैं यह देख कर मन बहुत दुखी है |
-- तनु 

बुधवार, 22 जुलाई 2015

कुत्ता ढाल और मुन्ह्नोचवा आई गवा !!!


कुत्ता ढाल के बारे में संक्षिप्त वर्णन पहले बताये रहे |  कुत्ता ढाल, जैसे की नाम से लगता है एक कुत्ते से रिलेटेड है | दरसल “साढ़े तिराहे” से जौन ( जो ) सड़क नदी “वार” ( ओर )  जात ( जाती ) है , उसमें से पहला लेफ्ट टर्न १८७७ को जाता है | 

जैसे “गली आगे मुडती है” या “गली उतरती हैं” वैसे ही ये गली इस ढाल से सीधे लुढ़कती है | ढाल है न , इहै खातिर ( इसीलिए) |  ढाल से सटा हुआ एक बिना छज्जे वाला मकान है | इसी मकान में एक कुत्ता रहता था ( बाकी लोग भी रहते थे ) जब हम पांचवी या छठी क्लास में रहे होंगे और सुदर्शन साहब की तरह साइकिल की सवारी करने की कोशिश कर रहे थे | एक थी २० इंची नीले कलर की हीरो जेट हमारे पास |  उसकी इम्पोर्टेंस तो आज की कार से भी ज्यादा है , ऊ अलग बात है |

जब साइकल चलाते हुए इस ढाल से गुजरा जाता तो साइकिल गुज़रने की आवाज़ करती और  कुत्ता महाशय जो हमेशा सर्विलेंस ड्यूटी पर रहते थे , भयंकर गर्ज़ना और चीत्कार करते हुए छत से भागते हुए बाहर गली में आ जाते | उस घर का दरवाज़ा मानव रहित रेलवे क्रासिंग था | कोई कभी कैसे भी आ-जा सकता था | कुत्ता महाशय को कभी आने जाने की कोई दिक्कत नहीं हुई |

इसी परम महाशय “कुत्ता” महाराज की वजह से ही ढाल का नाम कुत्ता ढाल पड़ा |खैर,  इस सबसे इम्पोर्टेन्ट बात कुछ और है | 

बात उस समय की है जब अपन कॉलेज में थे और सेमेस्टर ब्रेक में घर आये हुए थे | गर्मी के दिन थे ( और रात भी ) |  अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग ना करें तो कहा जायेगा की  बिजली आती कम और जाती ज्यादा |  तब शहर में ना तो FM था , ना कंप्यूटर घर घर पहुंचे थे |  गाने, रेडियो कमेन्ट्री , समाचार सबका एक मात्र भरोसेमंद सहारा था हमारा फिलिप्स का ट्रांजिस्टर |  उसी पर विविध भारती, आल इंडिया रेडियो (लखनऊ) और उसके बाद सीधे बीबीसी  लन्दन  सुना जाता | ( अगर आप इससे अपन की ऐज का आईडिया लेने की कोशिश कर रहे हों तो बता दिया जाए ये सब सन २००० लगने के बाद की बात है ) |

जैसा की बताया गर्मी के दिन-रात थे, तो लोग ज्यादातर  अपनी अपनी छतों पर सोते थे |  रात ८ बजे के बाद घना घुप्प  अँधेरा ( सांय सांय करने वाला )| पर छतों पर हर तरफ बोलते लोगों की बातों से महफ़िल जमी रहती |

पर एक रोज़ भूचाल आ गया |

मुन्ह्नोचवा (मुंह नोच लेने वाला विचित्र प्राणी ) के आगमन की खबर पेपर में आ चुकी थी | हालंकि उनके हमार मोहल्ले में पदार्पण की कोई सूचना नहीं थी | पर उसी कुत्ता ढाल वाले मकान में रहने वाले एक शख्श ने एक दिन एलान  किया की कल उनको मुन्ह्नोचवा ने दर्शन दिए और “काट खाईस” (काट खाया)| 

मोहल्ले में हडकंप मच गया |  उस दिन से मुन्ह्नोचवा की कम से कम एक नयी बात ज़रूर पता चलती |

कटिया मास्टर गुड्डू चचा का कहना था की “सबै लोग अपने पास एक एक लट्ठ रखो, जहां आय सार रग्दाय के हौंको ( सब लोग अपने-अपने साथ एक डंडा रखो और जैसे ही उनके बीवी के भाई, मुन्ह्नोचवा जी आयें उनको दौड़ा के मारा जाए ) | 

डंडों के दाम में अचानक से बढ़ोत्तरी देखी गयी | साथ ही सर्वसम्मति से दो लोगों ने ( जिसमें राजाराम और टोका मास्टर दो ही थे ) ये फैसला भी लिया की रात भर बिजली आये ऐसी गुहार शर्मा जी से लगाई जाये | शर्मा जी का ओहदा किसी मंत्री से कम ना था | और कम हो भी क्यूँ भला , उसी रात से लाइट आने लगी | अब इसमें शर्मा जी का कितना रोल था इस पर तो जांच हो सकती है और CBI से नीचे की एजेंसी नहीं चलेगी |

खैर, सिवाय हमारे घर के, पूरे मोहल्ले में छतों पर बल्ब टंग गए | अब चूंकि राजाराम के यहाँ टोका कनेक्शन भी नहीं था और उनका घर हमारे घर से सटा हुआ था , उन्होंने ऑफिस जाते हुए हमारे पिताश्री को रोका और कहा “ निगम जी , अपनेओ छत पर एक बलब लगवाय देओ” ( श्रीमान निगम जी आप अपनी छत पर एक बल्ब लगवा दें )  | पिताश्री ने सरकारी विभाग में काम करने की अपनी सिद्धहस्तता को दर्शाया और मामला शाम तक मुल्तवी कर दिया जो अगली कई सुबहों और फिर कई और शामों के लिए मुल्तवी होता रहा |

अब हर शाम कहीं न कहीं से एक शोर उठता “आई गवा" ( आ गया ) | मोहल्ले भर से लट्ठ पीटने की आवाज़ आती | एक दिन एक खोजी ने बताया “वहिके गलेमा एक डिस्को लाइट जईस कुछ बंधा आय” | ( उसके गले में डिस्को लाइट , मिथुन दा के फिल्म वाली , जैसा कुछ बंधा है ) | साथ में ये भी बताया गया ये यंत्र “सेल" से चलता है | 

इसके बाद लोगों ने “सेल" पर पानी के प्रभाव के कारण लट्ठ के साथ एक बाल्टी पानी रखना भी अनिवार्य कर दिया |

इस बीच “विदेशी ताकतों" के हाथ की न्यूज़ आयी | बताया गया की ये पक्षी रिमोट से चलते हैं और उनका कण्ट्रोल सूनसान इलाके में किसी कार से किया जाता है | सुनने में ये भी आया की इस चक्कर में दो कारें जला दी गयीं |खबर ये भी आई की राज्य की तत्कालीन मुख्मंत्री ने आईआईटी के “टीचरों" की एक टीम बनाई है जो इस पर रिसर्च करेगी | पता नहीं वो टीम बनी की नहीं बनी और अगर बनी तो क्या रिपोर्ट आयी | खैर |

मुन्ह्नोचवा की रेंज बढ़ रही थी | अड़ोस पड़ोस के गावों से भी खबरें आ रही थी |  “वहिके तो भैया चिपटि गवा, जान लैकेहे छोड़िस” ( किसी को पकड़ लिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक मर नहीं गया ) |  दहशत बढ़ने लगी | लोगों ने रात में घरों से निकलना छोड़ दिया |  जाते भी तो ग्रुप में | सिनेमाघरों के रात के शो ठन्डे पड़ गए | शुक्ला मास्टर ने अपने दिव्य ज्ञान का हवाला देते हुए इसे प्रकृति का प्रकोप डिक्लेअर कर दिया |

ये तो ठीक से याद नहीं की इस दहशत की तिलांजलि कैसे हुई पर एक दिन किसी ने बताया की सारे मुन्ह्नोचवा नेपाल चले गए हैं | माहौल शांत होने लगा |

एक बात ये भी हुई की बारिश शुरू हुई और टोका मास्टर गुड्डू चचा का कहना था “अब सेल कैसे चलिहे , ससुरे भाग गए” ( अब बारिश में सेल भीग गए , इसलिए उनकी बीवी के पिताजी अर्थात मुन्ह्नोचवा जी भाग गए ) |
*****
कुछ सालों बाद फिर एक खबर उड़ी थी की ३१ दिसम्बर के दिन जो सोयेगा वो पत्थर का हो जाएगा |
-देवांशु

मंगलवार, 26 मई 2015

In Continuation....November 2014 – Winters Again!!!



November 2014 – Winters Again!!!
Alright so the story picks up again from here with same characters me & my better half, you must be wondering what happened in past one year????
Really speaking it has no relevance here because we have left it there and never listened from each other in between but in between had our own “others” to attend to like “our work?”…..trying to work out things here and there in life. Pulling some strings here and there ….it’s difficult to digest but it actually went ahead like that unless one fine day I realized while speaking to my mom that I have been trying to do something like mistaken pursuing at mistaken places !
I mean you know what I mean …it is rare to get people who love you, accept you the way you are, appreciate you and are daring enough to move ahead with you and it took me almost a year to recollect myself that I missed on someone like that so easily.
I again thought of getting connected with him and it happened with me again, without a thought in mind that he might have been settled with someone in life or must have already been married by now , I reconnected & yes like I always believe that I am, I was lucky here as well ;).

December 2014 – Winters Continued!!!
We talked again this time, with no apprehension of what happened in past one year with each other, he clearly asked it has no significance as you are speaking with me on this again and if you are “in yes” with me now we shall move ahead.
It is rare to be lucky twice, and yes I was…lucky here once again.
The good part of meeting again and coming after certain realizations (may be very slow) is that you don’t take your partner for granted or you know your own shortcomings better.
 So like it is said “der aaye durust aaye”.
OK we are getting married!


11th to 26th January 2015 - Chat Mangni Pat byaah!!!
Usually how arrange marriages are??? Very organized with months of preparations …loads of relatives and Dulaah - Dulhan doing separate shopping with their parents & family & how run away love marriages are ….no relatives, Courtroom Signatures with few friends and guess what if you mix the two we had marriage like that.
With all the flavors of one can see in love marriage we had to do a rush court marriage after our wedding got fixed on 11th Jan’15 & our parents were busy taking out an appropriate date for wedding as he had limited holidays away from work.  


after court marriage
Delhi room, tea break while serious wedding discussion
We got I think one of fastest court marriage possible in India …only four hours, on this very cold day of 14th January (People who live in Delhi know that makarsankranti is like one the most cold days in Delhi), with only two of his friends as witnesses, one of my cousin brother & his sister we entered Tees Hazaari court around 11am came out around 3pm as married couples.
It was quite an action-packed day as we got married not once that day but twice, Once in Arya samaaj mandir( built inside the court only to accelerate the court marriage process) and then in court room.


dating time while shopping
tired of shopping 
no more clicking please!...be serious it's shopping time :)


So people who do shopping before getting married …We did it after getting married for our final wedding that was supposed to happen with all band baja & rituals in Bhopal on 26th Jan’2015.

In all we had married each other thrice in span of fifteen days ….dated like love birds that people do (while doing shopping for final marriage together, in all that fun as it is like of runaway couples) in there months long courtships.
We all have some aspirations or images of our partners or married life, believe me or not I got all of them fulfilled with little delay from my side in those thrilled 15 days ….a spicy wedding affair from court room to Lehenga shopping, from Visa application to leaving my Delhi room behind.
As a young girl I always dreamt of typical man playing some music for me…. cooking sometimes for me, understanding some things without saying …..He does all of them effortlessly …So this is the beginning of “Our Love Story” ….and it is still going on.

I am off to make some evening tea and yes he is still playing guitar right behind me in living room …people who know him well the song is …."Aaj unse pahali mulakat hogi”.


बुधवार, 20 मई 2015

First meeting, Nov 2013



Winter evening @ Select city walk....a mall near by my place in South Delhi....the girl that's me is ready to meet another guy my parents arranged for me (with a probability I will marry him) Usual with India and our parents ...I saw him entering the mall in coat, formal shirt and jeans from one of the sides of that huge entrance plaza of the mall.... Ohhps ...I missed it you must be thinking how I recognized him? Well we saw each others pictures before and chatted over phone a bit to coordinate our "the meeting" at "the mall”. Up till than I never knew I am going to share the next half of my life with him as my "better half" ....I was a difficult one on that context up till than.... More than difficult I was unsure was I be good for any one or not :). We doubt our capabilities sometimes... And marriage thing for Hindustanis’.... Believe me not that easy one!
We met at coffee cum ice cream cafe on ground floor. I could sense little bit of nervousness in him (though don't blame him for this I used to go bit unreachable for first meetings sometimes)when we entered the cafe until we sat down and ordered coffee ....the conversation which is usual for people meeting for arrange marriages started than ....what do you like? What do you don't like? Your expectations? What not!
 Meeting lasted for about half an hour than .I felt the set hopes I had made for my marriage fulfilling ....still was disconnected ....we do behave sometimes like that....for reasons unexplainable...
I said let's leave we have talked enough and let our parents know about our decision after thinking a bit over it.
But that was not the end he said let's eat something at the food court upstairs as I am feeling hungry...probably that was a trick to make the meeting a little longer (at least what I could sense that time) still I agreed. We went upstairs food court full as usual! We ended up with pizza at Italian restaurant near food court there.....again the conversation started about his hometown.....peculiar Lakhimpur (name of his hometown) lifestyle and people there....! His passion for literature and his liking about small unknown hill stations ....far reachable...with each one having small mysterious story to it (that’s how hill stations in our country are). I didn't had anything much more to share here with my restricted mindset of "first meetings". Well this part of knowing each other ended after another hour, we left ...I mean I left for my place by auto, he left for his place by metro. I told my parents about him after reaching home...had nothing much in mind to tell them except he is a simple, sober guy with not much on demand list with him. Couldn't say completely yes by than ...dad said take your time....
His mom called dad after a day of our meeting and told him that he has said “yes” and is OK for marriage if I am also in “yes” with him…but I was not completely by than….
And guess what this take your time thing
took another year almost …actually a little more than that for me!
 In Continuation....