मंगलवार, 11 दिसंबर 2012
रोते हुए आते हैं सब !!!
बुधवार, 28 नवंबर 2012
कहानी कोफ्ते की !!!
आज सुबह माताश्री ने कल के बचे कोफ्ते के मटीरियल से फिर से कोफ्ते बनाये और हमने दबा-दबा के खाए | कोफ्ते का शेप चिकन नगेट्स की तरह दिखा…हमें लगा की कोफ्ते को अंग्रेज़ी में नगेट्स कहते होंगे, सोचा विद्वजनों से भी पूछ लिया जाए, सटा दिए फेसबुक पर :
“कोफ्ते को अंग्रेजी में का कहते हैं भाई ??? Nuggets ???”
विद्वजनों ने अपने विचार भी रखे :
अतुल जी ने इंकार कर दिया की उन्हें नहीं पता, उलटे उन्होंने “कोफ़्त" की अंग्रेजी पूछ मारी | हमें बड़ी “कोफ़्त" हुई |
आराधना जी का कहना था की नगेट्स “मुन्गौडी” को कहते हैं | दो दिन पहले ही आलू-मुन्गौडी की सब्जी खाई गयी थी | मन किया समर्थन कर दिया जाए |
मोनाली ने चैट में और शिवम् भाई ने स्टेटस पर कोफ्ते का विकी पेज शेयर कर दिया | अंग्रेजी नाम वहां भी नहीं मिला | मोनाली का ये भी कहना था की कोफ्ते को “कटलेट” या “वेजिटेबल बाल्स” कहते हैं, कुछ भी बताया जा सकता है | ४ लोगो ने इसे लाइक भी किया |
पंकज साहब का अमरीका से कहना था की “कोफ्ता आलू की तरह मसाला नहीं होता” इस लिए उसकी अंग्रेजी नहीं होती | पर मटर की तरह कोफ्ता एक सब्जी होती है इसलिए अंग्रेजी तो बनती है भाई इसकी, पंकज बाबू आप चाहे मानो या ना मानो |
गुडगाँव से सोनल जी का कहना था की वो अंग्रेजी तब बतायेंगी जब हम उन्हें कोफ्ते खिलाएंगे |
इन्ही बातों के बीच में पंकज और सोनल जी के बीच हुए वार्तालाप से ये भी पता चला की बिंगो को अंग्रेज़ी में “ओ तेरी" कहते हैं |
मोनाली की ही तरह शिखा जी का लन्दन से ये कहना था की इसे “बाल्स" कह सकते हैं | हमने उन्हें चैट पर पूछा “कोफ्ते बोले तो बाल्स , बाल्स बोले तो गेंद, माने की कोफ्ते से क्रिकेट खेला जा सकता है |”
उन्होंने बोला , हाँ और वैसे भी हमारी टीम यही तो खेल रही है आजकल |
आइडिया बढ़िया लगा हमें , कोफ्ते से क्रिकेट | भाईसाहब | सोचो कमेंट्री कैसी होती :
- ज़हीर खान को नया कोफ्ता सौंपा गया है | एक लम्बे रन-अप के साथ वो कोफ्ता लेकर चले | साईट-स्क्रीन में कुछ प्रॉब्लम | अम्पायर ने उन्हें कोफ्ता फेंकने से रोका | ( ऐसा लगता अम्पायर को कोफ्ता पसंद है और वो खा जाने के मूड में है)
- जैसे जैसे कोफ्ता पुराना होता जायेगा, वो घूमेगा |
- प्रज्ञान ओझा ने बहुत बढ़िया कोफ्ता फेंका | (इतना बढ़िया कोफ्ता था तो फेंका क्यूँ??? }
अब तो कमेंट्री भी हिंदी में आ रही है टीवी पर | इस तरह की कमेंट्री और भी मजेदार लगती | सिद्धू पाजी बोलते : “कोफ्ता हवा में उछल कर इतना ऊपर गया गुरु की ऊपर बैठी एयर-होस्टेस की प्लेट में गिरा, और उसने अपने हाथों से वापस फेंका, खटैक”
अरुण लाल कहते “जी हाँ मनिंदर, मुझे भी समझ नहीं आता धोनी इस समय नया कोफ्ता क्यूँ नहीं ले रहे हैं, पुराना इस्तेमाल करते हुए ८० ओवर से ज्यादा हो गए हैं”
कुछ शब्दों के मीनिंग कैसे हो जाते :
नो बाल : नही कोफ्ता
वैलिड बाल : हाँ!!! कोफ्ता!!!
डेड बाल : मर्तुला कोफ्ता
वाइड बाल : चौड़ा कोफ्ता
बाल टेम्परिंग : कोफ्ते के साथ छेड़-छाड़ बोले तो “ईव-टीजिंग”
इंग्लैंड टीम के कप्तान का नाम भी तब ठीक लगता “कुक" | “कुक ने अगला ओवर फेंकने के लिए स्वान को कोफ्ता थमाया ( और स्वान कोफ्ता खा गया ) |
शाहिद अफरीदी को कोफ्ते खाने के चक्कर में दो मैचों का प्रतिबन्ध झेलना पड़ता |
ना केवल क्रिकेट , बल्कि और भी खेलों में कोफ्तों का इंतज़ाम रहता | फुटबाल के कोफ्ते बड़े बड़े होते | लातिआये भी जाते | स्नूकर के कोफ्ते रंग-बिरंगे होते | टेनिस के कोफ्ते स्पोंजी होते |
वैसे अगर कोफ्तो को गेंद बोलते तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता | “लौकी की गेंद” , “मलाई की गेंद" | ठीक ही रहता |
क्रिकेट से ध्यान आया कि अपनी टीम की हालत काफी पतली हो गयी | इंग्लैण्ड ने घर पर आके हमें धोया है | हमारी टीम के लिए पिच घूम रही थी (ऐसा तो १०-१२ पेग के बाद होता है ), और अँगरेज़ टीम के “कोफ्ते" घूम रहे थे | सारा खेल घूमने का है |
क्रिकेट के भगवान कहलाने वाले सांसद सचिन तेंदुलकर साहब भी आजकल सवालों के कटघरे में है | उनकी फॉर्म चली गयी है | लोगो का कहना है की रेफ्लेक्सेस भी काम नहीं कर रहे हैं | उन्हें अब रिटायर हो जाना चाहिए | ऐसा ही कुछ पोंटिंग साहब के लिए भी कहा जा रहा है जिनकी नाक में दम साउथ अफ्रीका के “कोफ्ता"बाजों ने कर रखा है |
खैर वो सब बड़े लोग हैं, अपने हिसाब से देखेंगे, हमारी थोड़े ही सुनेंगे |
इस बीच खबर ये भी आयी है की अपने अनूप शुक्ला जी जिन्हें फुरसतिया के नाम से जाना जाता है ने क्रिकेट का बल्ला थाम लिया | अरे बा-कायदा फोटो भी लगा दी उन्होंने | उनसे परमीशन लेकर यहाँ चिपका दे रहे हैं , आप भी देखो :
यहाँ दो बातें गौर करने वाली हैं | एक तो अनूप जी ने सचिन को खुल के “चैलेंजिया" दिया है | की अब हम मैदान में आ गए हैं , फॉर्म संभालो वर्ना प्रोपर रिप्लेसमेंट रेडी है | हम ये बात बोले तो अनूप जी लाइक कर के चले गए कुछ बोले नहीं |
और दूसरी बात ये है की भारतीय टीम की जीत के लिए एक नया तरीका भी बता दिया है इस फोटो में , ४ स्टम्प्स का विकेट | शायद अब तो हमारे “कोफ्ते" विकेट पर लग जाएँ |
हमारे कैप्टन कूल को इस सुपर कूल तरकीब की तरफ ध्यान देना चाहिए | शायद जीत जाएँ |
बस यही सब चल रहा है आजकल | बाकी सब भी चलता रहेगा , अब हम भी चलते हैं | खाना-वाना खा लिया जाए |
आप भी मौज करते रहिये ….
नमस्ते !!!!
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012
राम भरोसे की चाय भरोसे !!!!
घड़ी देखी तो ऑफिस का टाइम हो गया था | अपनी मनोदशा फेसबुक पर डाली और तैयार होने निकल लिए | सोने का प्रोग्राम ऑफिस तक मुल्तवी कर दिया |
ऑफिस पहुचे तो देखा भर भर के काम था | फिर लगा की सो ही लेना चाहिए था | काम में लग गये | बड़ी नींद आ रही थी इसलिए दिन भर चाय पी पी कर काम किया | फिर लगा की अपने यहाँ कितने सारे काम तो चाय भरोसे चलते हैं | एक चाय वाले को जनता हूँ उसका नाम है “राम भरोसे” | मन में ख्याल आया “राम भरोसे की चाय भरोसे” ही सारा काम चल रहा है | लाइन मारू लगी | सोचे जब दबंग-२ आ सकती है तो काहे नहीं , कालजयी कविता पार्ट -२ लिखी जाए | तो बस लो झेलो ( अब आ गए हो तो पढ़ ही लो) :
Disclaimer : ये कविता पूर्णतया तुकबंदी का काम है और अगर इसमे किसी लाइन का कोई मतलब निकल आये तो इसे मात्र एक संयोग कहा जायेगा |
अरे बस बस !!! अब गरिआओ नहीं | इतनी ही लिखी है | बाकी फिर कभी सुनायेंगे | अभी चलते हैं | कुछ काम कर लिया जाए |
तब तक मौका मिले तो आप भी “नैपियाते" रहिये | :) :) :)
नमस्ते
शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012
हैप्पी बड्डे टू मी !!!!
इससे पहले कि कोई और ये सौभाग्य छीनता, रात के १२ बजते ही हमने सबसे पहले खुद को बड्डे विश करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की सोची, पर एस एम एस भेज के एक परम मित्र ये बाज़ी मार ले गए | लेकिन कभी-कभी बाज़ी हारने में भी सुख ही मिलता है, वैसा ही हुआ | हमारे रूम-मेट साहब को भी शायद आईडिया नहीं था कि इस महापुरुष का आज ही जन्मदिन है, वो कुछ देर पहले ही सोने खिसक लिए थे !!!!
पर काफी देर तक जब किसी का फ़ोन नहीं आया तो लगा कि जनता अपना टाइम ले रही है | फिर थोड़ी देर और हुई तो हमसे ना रहा गया, भला बिना बधाई के भी कोई जन्मदिन होता है भला, लोगो को हम खुदई फोन लगा दिए | काफी देर बातचीत भी किये| खून पिए, बधाई भी मिल गयी साथ में :) :)
सुबह उठे तो सबसे पहले एक शर्ट निकालकर "इस्त्री" की | तब समझ में आया कि इसे "इस्त्री" क्यूँ कहते हैं | इसी टाइम किसी "स्त्री" की कमी काफी महसूस होती है | :) :)
सबसे पहले हम माताश्री को फोन किये | उन्होंने आशीर्वाद दिया तो हम खुश हो गए | फिर काफी लोगो से बात हुई, फोने पर | बाद में फेसबुक पर बधाई सन्देश देखे | हमारे एक स्कूल के समय के दोस्त ने हमें बड्डे का केक फेसबुक पर भेज दिया | उन्हें शायद हमारी उम्र का कुछ खास आईडिया नहीं होगा | केक में उम्र की मोब्बती में उन्होंने २ लगा दिया और बाकी फोटो को एडिट कर हटा दिया | दोस्त!!! इस बार तो तुम सही निकले, पर अगली बार ये ट्राई किया तो गलत साबित होगे :) :)
ऑफिस में एक दिन पहले ही टीम मीटिंग में बता दिया गया था कि महाशय कल जन्मदिन मना रहे हैं, हम सुबह से डरे सहमे बैठे रहे , पर कोई पार्टी के लिए भी नहीं आया | फिर लंच पर गए तो क्यूबिकल के साथी ने एक फाइव-स्टार चॉकलेट गिफ्ट की , हम तो सुपर-स्टार हो गए |
हमारे एक घने दोस्त हैं, हम सब उन्हें बड़े मालिक बोलते हैं, उनकी बेटर-हाफ ने हमें बोला कि घर आ जाओ यहीं बड्डे मनाते हैं तुम्हारा | पर काम के कारण जाना संभव ना हो सका | तभी बड़े मालिक ने फोन किया और इस तरह एक्टिंग करने लगे कि घर में किसी काम कि वजह से पार्टी आज संभव नहीं है | पर ये भी पूंछ लिया कि शाम को कहीं जा तो नहीं रहे हो | हम समझ गए हम कहीं याएं या न जाएँ पर ये ज़रूर आने वाले हैं, हम तैयार हो गए कि आज रात तो हुड़दंग हो कर ही रहेगी |
शाम को हम पंकज, वही हमारे रूम-मेट, को ऑफिस से सीधे चाय की टपरी पर बुला लिए | वो हाथ में एक थैला लेकर आ रहे थे, हम मन ही मन खुश हुए की चलो इन्हें पता चल गया, हमारे लिए गिफ्ट लेकर आये हैं | मिलते ही बोले “लो मालिक, तुम्हारे लिए” | हमने कन्फर्म करने के लिए पूछा “अरे ये किसलिए?” | वो उवाचे “अरे यार कुछ गिफ्ट कूपन पड़े थे, सोचा कुछ खरीद लिया जाये, छेने और बिस्कुट हैं |” हमने कहा धत्त तेरे की | फिर हमने उन्हें कहा चलो यार आज कहीं बाहर खाते हैं, शानदार डिनर किया जाये | वो तब भी नहीं पूछे कि काहे बे, कौन ख़ुशी ??
तभी हमारे एक और दोस्त का फोन आया, उनसे बात करते टाइम , पंकज बाबु कुछ ताड़ गए | “मालिक कुछ ख़ास है क्या, आज ?” | “फेसबुक पर जाओगे नहीं और ना याददाश्त को भी तुम्हारी याद है कि लास्ट टाइम कब ठीक से चली थी?” हमने कहा | “अरे मालिक , हमें लग रहा था , तुम लिब्रन हो, होना तो बड्डे इधर ही चाहिए, कोई नहीं देखो तुम्हारे लिए छेने तो ले ही आये हैं|” उन्होंने माहौल संभालने की कोशिश की | फिसल पड़े तो हर गंगे|
खाना खा के घर पहुंचे ही थे कि बड़े मालिक का फोन आ गया “हरियाणा डेरी” पर खड़े हैं तुम्हारे सेक्टर की , फटाफट आ जाओ” | उनको लेने गए | साथ में तीन और दोस्त आ गए थे | सबके लिए खाना खरीदा गया | फिर छत पर गए | वहाँ पार्टी का जुगाड़ किया गया | केक काटा , वो भी ठीक १२ बजे के बाद | मालिक का कहना था “यार बड्डे तो पूरा वीक चलता है, कोई नहीं"| केक खाए जाने से ज्यादा मूह पर लपेटे जाने की प्रथा है | हमारा मेक-अप कायदे से किया गया |
फिर सुबह ४ बजे तक गप्प-गोष्ठी चलती रही | गाने भी सुने गए खूब सारे | खाना खाया गया | मालिक ने बहुत सारा ज्ञान दिया | डेली सोप्स की खिल्ली उड़ाई बड़े मालिक और हमारे दूसरे शादी-शुदा मित्र ने | इससे समझ में आया कि ये भी “स्त्री-इफेक्ट" है | :) :)
*****
बचपन में पापा,मम्मी, भाई और बहन के साथ मंदिर जाकर मनाते थे ये दिन | घर पर मम्मी मेरी पसंद की कोई चीज़ बनाती थी | बड़ा मजा आता | घर से बाहर निकले हुए भी १० साल से भी ऊपर का वक़्त हो गया | तबसे कभी मनाया ये दिन, कभी नहीं भी मनाया | पर हर बार सबसे बात करके मन लेते थे ये दिन |
पापा जी के जाने के बाद ये पहला जन्मदिन था | थोड़ा सा मन उदास सा था पर लगा कि उदास रहना शायद उन्हें भी ना पसंद आता | तो और ख़ुशी ख़ुशी मनाया ये दिन | लगभग सारे दोस्तों, फैमिली के लोगो से बातें की | शाम तक आते-आते मन एक बार फिर खुश हो उठा | दरसअल ज़िंदगी बड़ी उठा-पटक करती रहती है | गए दिनों और भी बहुत सारी बातें चलती रही लाइफ में | इस बार बात करते समय दोस्तों से उन बातों का गाहे-बगाहे ज़िक्र आता रहा | बहुत सी बातें सुनी-समझी-जानी | जो सबसे महत्वपूर्ण बात समझ आये वो कुछ यूँ थी :
“जिन्दगी में जिद और लक्ष्य दोनों ज़रूरी हैं, पर जब लक्ष्य न मिलता दिख रहा हो तो हौंसला मत छोड़ना और जब जिद ना पूरी हो रही हो तो दिल मत तोड़ना”
बात बहुत सोलिड टाइप लगी | फेसबुक पर शेयर भी कर दिए |
कुल मिलाके एक बढ़िया बड्डे बीता |
और हाँ अमिताभ बच्चन साहब को हम बड्डे विश नहीं कर पाए , का करते दिन भर फोन जो बिजी रहा | कोई बात नहीं बिग बी “बेटर लक नेक्स्ट टाइम” | :) :) :)
नमस्ते !!!!
-- देवांशु
मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012
काश!!! कुछ छोड़ पाना आसान होता...
शुक्रवार, 21 सितंबर 2012
जुगलबंदी..बोले तो दो तीर से एक शिकार!!!!
जुगल ( हंसराज ) पर अगर अभिनय और निर्देशन करने की "बंदी" लगा दी जाये तो इसे ही "जुगलबंदी" नहीं कहते, अपितु जब दो सूरमा आपस में बैठते हैं तो उनके बीच की फ्रेंडली झड़प को जुगलबंदी कहते हैं |
जैसे दो तबलावादक अक्सर इस टाइप की झड़प करते हैं |
तबलावादक १ : "ता धिन धिन न, न धिन तिन न"
तबलावादक २: "ता धिन धिन न, न धिन तिन न, तगड़-धगड़"
तबलावादक १: "ता धिन धिन न, न धिन तिन न, तगड़-धगड़,झगड़-तगड़-पकड़, कूट-पीट-भाग"
और दर्शक वाह वाह करते हैं | जर्नली अईसे प्रोग्राम्स के बाद पार्टी रखी जाती है, जिसमे ड्रिंक्स के साथ जुगलबंदी की बातें होती हैं :
क्रिटिक १ : "यार उसने तीन ताल सही नहीं बजाई, थोड़ा भटक गया"
क्रिटिक २ : "अरे क्या बात कर रहे हैं आप जनाब , बिलकुल सही बजाई, आपने ध्यान नहीं दिया शायद"
फिर क्रिटिक २ अपने हाथ की एक उंगली, क्रिकेट अम्पायर की तरह आउट देने कि इस्टाइल में उठाता है , और लहराते हुए एक ताल को मन ही मन पढता है और बुदबुदाने की एक्टिंग करता है :
"झागड़-तागड़, धिनक तुन-तुन, तिनक धुन-धुन , ता दा धा धा धिन"
और फिर बोलता है "सही कह रहे हैं आप, एक ताल मिस कर गया वो, मान गए आपकी पकड़"
क्रिटिक २ एक कुटिल मुस्कान फरमाते हैं और मन ही मन कहते हैं "मैं न कहता था "
वो सारे तोहफे
बाँध कर पोटली में
चमकीला सा चाँद
अलसाई सी रात
धुंआ होते बादल
मचलता समंदर
गुनगुनाती हवा
इंतज़ार में घर
सब कुछ था
पर घबराया था
तुम्हे पसंद आएगा
तुमने ही तो
उकेरे थे सभी
नीले कागज़ पर
कहा था काश
सच हो जाए
देखो एक ही
फ्रेम में जड़ दी
उसने जन्नत..."
( वैसे उन्होंने ये भी बताया कि ध्यान से देखो , चिमनी से धुआं निकल रहा है, शायद सब्जी भी जल गयी होगी, पर प्राइमा-फेसी तो हमें धुआं नहीं दिखा और दूसरा कि ये कि हम ई सब टाइप की गलती नहीं करे कभी, अब जो करेगा वही जानेगा ना :) :) )
नमस्ते !!!!