गुरुवार, 19 जुलाई 2012

मैं, वो जो नहीं था….

समय : सुबह के ३ बजकर १४ मिनट
मैं अपने घर की छत पर बैठा हूँ | सामने सड़क एकदम साफ़ दिख रही है | कोई चहल पहल नहीं है | एक पुलिस की वैन खड़ी है सड़क के किनारे | कुछ पुलिस वाले कुछ नाप रहे हैं , साथ में खड़ा एक दूसरा पुलिस वाला एक नोटबुक में सब लिखता जा रहा है | सड़क पर गुजरने वाली इक्का-दुक्का गाड़ियां आस पास से गुजर तो रही हैं, पर शायद पुलिस की वजह से रुक नहीं रही हैं |
****
समय : सुबह के कोई २ बजे
मैं अपने घर की छत पर बैठा हूँ | सामने सड़क एकदम साफ़ दिख रही है |  शायद कोई मर गया है | एक औरत मरने वाले के सर के पास रो-रो कर बिखरी जा रही है | कुछ लोग उसे संभाले हुए हैं | एक एम्बुलेंस भी खड़ी है पास में , कुछ पुलिस वाले भी | अभी एम्बुलेंस से एक स्ट्रेचर लेकर दो सफ़ेद कपडे पहने लोग निकले हैं, सर पर सफ़ेद टोपी भी है | उन्होंने  लाश को उठाकर एम्बुलेंस में डाल दिया है | वो औरत भी एम्बुलेंस में बैठ गयी है | एम्बुलेंस जा रही है|
****
समय : रात के कुछ साढ़े १२ बजे के आस पास
मैं अपने घर की छत पर बैठा हूँ | सामने सड़क एकदम साफ़ दिख रही है |  एक लड़का, जिसकी उम्र कुछ २५ से ३० साल के बीच होगी , सड़क पर तड़प रहा है |  सर से शायद खून बह रहा है | कराह रहा है | हाथ उठ रहे हैं और गिर जा रहे हैं | सड़क पर और कोई भी नहीं है | मुझे शायद एम्बुलेंस को बुलाना चाहिए | पर….
****
समय : रात के ठीक सवा १२ बजे
मैं अपने घर की छत पर बैठा हूँ | सामने सड़क एकदम साफ़ दिख रही है | एकदम खाली है सड़क |  एक बाइक आती सी दिख रही है | आराम से चला रहा है उसे एक लड़का | तभी पीछे से एक तेज़ी से आता हुआ ट्रक उसे टक्कर मार देता है | बाइक मेरे सामने ऊपर हवा में गयी है | लड़के को लेकर नीचे गिरती है | मैं ट्रक का नंबर नोट कर सकता हूँ | पर….
----
.....दरअसल मैं खुद से डर रहा  था...और इसी डर ने उस रात मेरी जान ले ली...मैंने खुद को ही खत्म कर लिया...फिर अगले दिन मुझे खुद को खत्म करने के इलज़ाम में ताउम्र तड़पने की कैद-ए-बामुशक्कत सुनायी गयी...तब से ही सब मुझे तड़पता देख रहे हैं पर मैं खुद को जिंदा नहीं पाता…
--देवांशु

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

मेलोंकॉली


शहर के कोने में कुछ सीढियां दिखती थी, ऊपर की ओर जाती हुई | और इसी से लगता था जगह कहीं बहुत गहराई में है |  कुछ सुराख़ थे वहाँ, जिन से धुंधला सा उजाला आता रहता | उसी से जिंदगी चलती शहर की |

एक छोर पर एक कारखाना था, जहाँ इंसानी जिस्म तैयार किये जाते |  जान ठूंस दी जाती उनके अंदर | ठीक उसके आगे एक बड़ा सा कमरा था | उस कमरे में पोथी रखी हुई थी | पोथी से पानी रिसता रहता | स्वाद में कड़वा | पीते ही आँखों की रोशनी कम हो जाती | पर उसे पीना निहायत ज़रूरी | ना पीने पर कमरे के पीछे बने आग के कुंड में फेंक दिया जाता लोगो को | किसी ने कभी पोथी को पलटकर नहीं देखा | सब पानी पीते रहे |

कमरे के ठीक सामने एक मैदान सा था | वहाँ लोग गोल गोल घूमते रहते | सबको कहा जाता की जो गोल न घूमा उसे कोड़े पड़ेंगे | किसी ने कोड़े नहीं खाए कभी, पर कोई भी ऐसा नहीं जो गोल ना घूमा | जिनके हाथ पैर टूटते वो मैदान के कोने में लाये जाते | उन पर औज़ार चलते, अगर वो ठीक हो जाते तो मैदान में वापस भेज दिए जाते, नहीं तो वहीँ पर बनी एक-काल कोठरी में पटक दिया जाता उन्हें | 

कोठरी में कोई दानव था शायद, वहाँ से कुछ बाहर नहीं आया कभी, सिवाय चीखों के | पर पोथी वाले कमरे के लाउड स्पीकर हमेशा उन चीखों को दबा दिया करते |

इतनी सी थी उस शहर के हर जीने वाले की ज़िंदगी |

ऐसा माना जाता था कि अगर कोई औरत-मर्द का जोड़ा एक बार उन ऊपर जाती सीढ़ियों को पार कर जाये तो शहर बदल सकता है | एक बार एक जोड़े ने कोशिश भी की, कुछ ही देर में उनके सर लुढकते हुए ज़मीन पर आ गिरे, उन्ही सीढ़ियों से | पोथी वाले कमरे से आवाज़ आयी की सीढ़ी पार करने की कोशिश अधर्म है | एक बुढिया , जिसे खींच के काल-कोठरी में ले जाया जा रहा था, उसने पूरे शहर को उस दिन अभिशाप दिया कि सबका खून काला हो जाये|

पर किसी का खून काला नहीं हुआ | हाँ, बुढिया को सारे शहर के सामने क़त्ल कर दिया गया | उस रात शहर को खाने में सोंचने की ताकत खत्म कर देने वाला अर्क, अमृत बता के पिला दिया गया | शहर को सबसे पवित्र शहर घोषित कर दिया गया | बोला गया यहाँ पैदा होने भर से ज़िंदगी के मतलब पूरे हो जाते हैं |

तबसे किसी ने एक जोड़े के सीढ़ियों उस पार जाने वाली बात भी नहीं की उस शहर में और पोथी से रिसने वाला पानी दिन-ब-दिन और कड़वा होता गया | अब वो जिस्म भी खोखला कर देता है |

****

कहते हैं सीढ़ियों के उस पार खुदा रहता है !!!!!
-- देवांशु

बुधवार, 4 जुलाई 2012

और हम पहुँच गए वतन!!!!

हाँ हाँ इसी सोमवार हम पहुँच गए अपने देश…अपने वतन.."ये जो देस है तेरा स्वदेस है तेरा" टाइप गाना गाते !!!

जब गए थे तब लपूझन्ना टाइप ब्लॉगर थे, हैं अभी भी लपूझन्ना , बस कांफिडेंस बढ़ गया है | तो तुरंतै सोचे की एक ठो पोस्ट चिपकाई जाये |  कंटेंट ढूँढने के लिए इधर उधर हाथ पाँव मारे | सोचा देश-भक्ति पर कुछ लिखा जाये | फिर सोचा ये लिखा जाये की हमारा देश कितना महान है | यहाँ और वहाँ की “सोसायटी" में क्या फरक है इसपे भी लिखने का सोचा | और तभी बत्ती गुल हो गयी | और हम भरी गर्मी में बिना पंखा, पसीने में नहाये “ये जो देस है मेरा स्वदेस है मेरा" गाते हुए कमर सीधी करने बिस्तर पर लुढ़क लिए | बत्ती महारानी लागातार आती जाती रहीं और हमें बल्ब के बार बार जलने और बुझने से आभास हो गया की अपने यहाँ अल्टरनेटिंग करंट (AC) आती है | अमरीका में तो लगता था कि केवल डायरेक्ट करंट (DC) आता है | नो चेंज एट आल |


हाँ तो जैसे पहुंचे !!!!


पंकज बाबू एकदम वेट कर रहे थे| जैसे ही हम कार से निकले बोले “मालिक!!! राजकपूर DSC00191लग रहे हो” | हमने कहा "अबे ऋतिक बोलो"| पर तबतक हमें बैकग्राउंड नहीं पता थी | हुआ यूँ कि जब हम चले वहाँ से तो हमारे परम मित्रों आशीष भाई और दीपक भाई ने हमारी  फोटो, जो उन्होंने एअरपोर्ट पर खीची थी, फेसबुक पर डाल दी और हम थे २४ घंटे आफ लाइन |  इसी बीच हमको फेसबुक पर राजकपूर बोल दिया गया | अब बगल में लगी फोटू देखिये | (इस फोटो में ये देखने कि कोशिश है टिकट तो ले लिया है पर जाना कहाँ है)


जैसे ही घर में घुसे पंकज मालिक ने माजा पिलाई और फिर बोले “मालिक!!! बड़े दिन हुए तुम्हारे हाथों कि चाय पिए हुए"| फिर हमने चाय बनाई | सुबह के साढ़े ५ बज रहे थे | (ये लाइन स्पेशली प्रशांत बाबू के लिए है)| चाय के साथ साथ गिटार बजाया गया | ६ बज गया | पंकज बाबू फिर बोले "मालिक!!! सुबह सुबह दौड़ना अच्छी बात है"| सामान खोला, जूते निकाले और चल दिए मैदान पर ४ चक्कर में सांस फूल गयी | पंकज मालिक ६ चक्कर लगा लिए | फिर घर आये तो भूख लग आयी | मैगी बनाई, खाए | 


फिर हमने छेड़ दिया "मालिक!!! आजकल लिख नहीं रहे, क्या बात है" | मालिक तो एकदम सेंटी हो गए "क्या बताएं मालिक, काम बहुत है, टाइम है नहीं" | और इसी टाइप के १५-२० रेडीमेड बहाने उन्होंने चिपका दिए | असली कहानी हमें कुछ औरे लग रही है | खुलासा जल्दी होगा |



ये घर पुरातत्व विभाग को दिया जा सकता है !!!!


और जैसे ही सोने जाने का प्रोग्राम हुआ हमें हमारी साल भर पुरानी टूटी चप्पलें दिख गयी | जो अपनी जगह पे पिछले करीब १० महीने से वैसी पड़ी थी | पंकज मालिक का कहना है कि "वो तो कुछ दिन पहले सोफा हिलाया था तो दिख भी गयी वर्ना ये तो अंदर थी"| तुरंत घर का जायजा लिया गया | कई मसाले के डिब्बे, पुराना गैस सिलेंडर का रेगुलेटर, फ्यूज बल्ब (हाँ वही फ्यूज बलब जिसके बारे में पहले भी बताये थे), पुराने डियो की बोतलें, शैम्पू की बोतलें जिनका दम निकाला जा चूका था , ९-१० महीने से वैसी की वैसी पड़ी थी | हमने मालिक की तरफ देखा| वो बोले "ये रवि भी न, रोबोट की ज़िंदगी जीता था"| हम तो निरुत्तर हो गए | 

DSC00210DSC00212
खोयी हुई चीज़ों का मिलना बदस्तूर जारी है | और जिस गति से चीज़ें मिल रही हैं उससे पंकज बाबू को उम्मीद जगी है कि उनका ८ महीने पहले खोया मोबाइल भी मिल जायेगा जो उन्होंने घर में “कहीं” रखा था |  Smile Smile Smile


फिर काफी देर इधर उधर की बातें हुई | एक-एक कप चाय और गटक गए | फिर हम तो निकल लिए सोने , पंकज बाबू चल दिए ऑफिस |


अगले दिन सुबह फिर देर से उठे !!!

रात में काफी देर बैठ के दुनिया जहाँ की बातें हुई | हम जानने कि कोशिश करते रहे कि पंकज बाबू क्यूँ नहीं लिख रहे हैं | पर उन्होंने नहीं बताया | गाने सुने गए | एक दूसरे की टांग खींची | और जल्दी-जल्दी रात में १२-१ बजे तक सो गए | अगले दिन उठे ८ बजे, कोई नहीं गया दौड़ने आज |


 एक नाईट आउट भी हो गया !!!

अभी थोड़ी देर पहले बढ़िया हवा चल रही थी, बारिश जैसा माहौल बना हुआ था, कुत्ते भी भौंक रहे थे | हम दोनों चल दिए अपने पुराने ऑफिस के पास, चाय पीने | जैसे हमारे घर में कुछ नहीं बदला था वैसे ही ये ऑफिस के पास वाली दुकाने भी नहीं बदली थी | वैसे की वैसी और रात में २ बजे भी बदस्तूर चालू हालत में | चाय पी | पुराने ऑफिस में जाकर बाहर फोटो सेशन भी हो गया | बाद में गार्ड ने बताया फोटो लेना "अलाउड" नहीं है |

करीब ३ बजे घर पहुंचे तो पुरातत्व में रूह-आफज़ा की बोतल भी मिल गयी | अभी एक्सपायर नहीं हुई थी, ज़िंदा थी | रूह-अफज़ा के "पेग" बने | टाइमर लगा के यहाँ भी फोटो सेशन हुआ | कुछ फोटो फेसबुक पर हैं | एक जो हमें बेहतरीन लगी वो नीचे है :
DSCN0563-1
इस फोटो में बाईं तरफ पंकज उपाध्याय हैं जिनकी कुछ दाढ़ी पिछली बार बनाते हुए छूट गयी है  | दायीं तरफ जो स्मार्ट और हैंडसम सा इंसान है, वो हम हैं | दोनों तरफ एक एक गिटार भी दिख रहे हैं जो शो-ऑफ के लिए रखे गए हैं|


कुल मिलाकर स्टार्टिंग के २ दिन बड़े धाँसू बीते हैं | अब आगे २-३ हाई-प्रायोरिटी काम पड़े हुए हैं | उन्हें निपटाया जाये | फिर कहानी आगे बढ़ेगी |


बाकी तो ये पब्लिक है सब जानती है !!!!


(रूम की जिस दुर्गति का जिक्र ऊपर किया गया है, उसे करने में हमारा भी विशेष सहयोग रहा था, बस उसको मेंटेन रखने का काम पंकज और रवि बाबू ने बड़ी मेहनत से किया है, पीडी कब आ रहे हो फिर तुम ) Smile Smile Smile

नमस्ते!!!
--देवांशु