हाँ हाँ इसी सोमवार हम पहुँच गए अपने देश…अपने वतन.."ये जो देस है तेरा स्वदेस है तेरा" टाइप गाना गाते !!!
जब गए थे तब लपूझन्ना टाइप ब्लॉगर थे, हैं अभी भी लपूझन्ना , बस कांफिडेंस बढ़ गया है | तो तुरंतै सोचे की एक ठो पोस्ट चिपकाई जाये | कंटेंट ढूँढने के लिए इधर उधर हाथ पाँव मारे | सोचा देश-भक्ति पर कुछ लिखा जाये | फिर सोचा ये लिखा जाये की हमारा देश कितना महान है | यहाँ और वहाँ की “सोसायटी" में क्या फरक है इसपे भी लिखने का सोचा | और तभी बत्ती गुल हो गयी | और हम भरी गर्मी में बिना पंखा, पसीने में नहाये “ये जो देस है मेरा स्वदेस है मेरा" गाते हुए कमर सीधी करने बिस्तर पर लुढ़क लिए | बत्ती महारानी लागातार आती जाती रहीं और हमें बल्ब के बार बार जलने और बुझने से आभास हो गया की अपने यहाँ अल्टरनेटिंग करंट (AC) आती है | अमरीका में तो लगता था कि केवल डायरेक्ट करंट (DC) आता है | नो चेंज एट आल |
हाँ तो जैसे पहुंचे !!!!
पंकज बाबू एकदम वेट कर रहे थे| जैसे ही हम कार से निकले बोले “मालिक!!! राजकपूर
लग रहे हो” | हमने कहा "अबे ऋतिक बोलो"| पर तबतक हमें बैकग्राउंड नहीं पता थी | हुआ यूँ कि जब हम चले वहाँ से तो हमारे परम मित्रों
आशीष भाई और
दीपक भाई ने हमारी फोटो, जो उन्होंने एअरपोर्ट पर खीची थी,
फेसबुक पर डाल दी और हम थे २४ घंटे आफ लाइन | इसी बीच हमको फेसबुक पर राजकपूर बोल दिया गया | अब बगल में लगी फोटू देखिये | (इस फोटो में ये देखने कि कोशिश है टिकट तो ले लिया है पर जाना कहाँ है)
जैसे ही घर में घुसे पंकज मालिक ने माजा पिलाई और फिर बोले “मालिक!!! बड़े दिन हुए तुम्हारे हाथों कि चाय पिए हुए"| फिर हमने चाय बनाई | सुबह के साढ़े ५ बज रहे थे | (ये लाइन स्पेशली
प्रशांत बाबू के लिए है)| चाय के साथ साथ गिटार बजाया गया | ६ बज गया | पंकज बाबू फिर बोले "मालिक!!! सुबह सुबह दौड़ना अच्छी बात है"| सामान खोला, जूते निकाले और चल दिए मैदान पर ४ चक्कर में सांस फूल गयी | पंकज मालिक ६ चक्कर लगा लिए | फिर घर आये तो भूख लग आयी | मैगी बनाई, खाए |
फिर हमने छेड़ दिया "मालिक!!! आजकल लिख नहीं रहे, क्या बात है" | मालिक तो एकदम सेंटी हो गए "क्या बताएं मालिक, काम बहुत है, टाइम है नहीं" | और इसी टाइप के १५-२० रेडीमेड बहाने उन्होंने चिपका दिए | असली कहानी हमें कुछ औरे लग रही है | खुलासा जल्दी होगा |
ये घर पुरातत्व विभाग को दिया जा सकता है !!!!
और जैसे ही सोने जाने का प्रोग्राम हुआ हमें हमारी साल भर पुरानी टूटी चप्पलें दिख गयी | जो अपनी जगह पे पिछले करीब १० महीने से वैसी पड़ी थी | पंकज मालिक का कहना है कि "वो तो कुछ दिन पहले सोफा हिलाया था तो दिख भी गयी वर्ना ये तो अंदर थी"| तुरंत घर का जायजा लिया गया | कई मसाले के डिब्बे, पुराना गैस सिलेंडर का रेगुलेटर, फ्यूज बल्ब (हाँ वही फ्यूज बलब जिसके बारे में
पहले भी बताये थे), पुराने डियो की बोतलें, शैम्पू की बोतलें जिनका दम निकाला जा चूका था , ९-१० महीने से वैसी की वैसी पड़ी थी | हमने मालिक की तरफ देखा| वो बोले "
ये रवि भी न, रोबोट की ज़िंदगी जीता था"| हम तो निरुत्तर हो गए |
खोयी हुई चीज़ों का मिलना बदस्तूर जारी है | और जिस गति से चीज़ें मिल रही हैं उससे पंकज बाबू को उम्मीद जगी है कि उनका ८ महीने पहले खोया मोबाइल भी मिल जायेगा जो उन्होंने घर में “
कहीं” रखा था |
फिर काफी देर इधर उधर की बातें हुई | एक-एक कप चाय और गटक गए | फिर हम तो निकल लिए सोने , पंकज बाबू चल दिए ऑफिस |
अगले दिन सुबह फिर देर से उठे !!!
रात में काफी देर बैठ के दुनिया जहाँ की बातें हुई | हम जानने कि कोशिश करते रहे कि पंकज बाबू क्यूँ नहीं लिख रहे हैं | पर उन्होंने नहीं बताया | गाने सुने गए | एक दूसरे की टांग खींची | और जल्दी-जल्दी रात में १२-१ बजे तक सो गए | अगले दिन उठे ८ बजे, कोई नहीं गया दौड़ने आज |
एक नाईट आउट भी हो गया !!!
अभी थोड़ी देर पहले बढ़िया हवा चल रही थी, बारिश जैसा माहौल बना हुआ था, कुत्ते भी भौंक रहे थे | हम दोनों चल दिए अपने पुराने ऑफिस के पास, चाय पीने | जैसे हमारे घर में कुछ नहीं बदला था वैसे ही ये ऑफिस के पास वाली दुकाने भी नहीं बदली थी | वैसे की वैसी और रात में २ बजे भी बदस्तूर चालू हालत में | चाय पी | पुराने ऑफिस में जाकर बाहर फोटो सेशन भी हो गया | बाद में गार्ड ने बताया फोटो लेना "अलाउड" नहीं है |
करीब ३ बजे घर पहुंचे तो पुरातत्व में रूह-आफज़ा की बोतल भी मिल गयी | अभी एक्सपायर नहीं हुई थी, ज़िंदा थी | रूह-अफज़ा के "पेग" बने | टाइमर लगा के यहाँ भी फोटो सेशन हुआ | कुछ फोटो फेसबुक पर हैं | एक जो हमें बेहतरीन लगी वो नीचे है :
इस फोटो में बाईं तरफ
पंकज उपाध्याय हैं जिनकी कुछ दाढ़ी पिछली बार बनाते हुए छूट गयी है | दायीं तरफ जो स्मार्ट और हैंडसम सा इंसान है, वो हम हैं | दोनों तरफ एक एक गिटार भी दिख रहे हैं जो शो-ऑफ के लिए रखे गए हैं|
कुल मिलाकर स्टार्टिंग के २ दिन बड़े धाँसू बीते हैं | अब आगे २-३ हाई-प्रायोरिटी काम पड़े हुए हैं | उन्हें निपटाया जाये | फिर कहानी आगे बढ़ेगी |
बाकी तो ये पब्लिक है सब जानती है !!!!
(रूम की जिस दुर्गति का जिक्र ऊपर किया गया है, उसे करने में हमारा भी विशेष सहयोग रहा था, बस उसको मेंटेन रखने का काम पंकज और
रवि बाबू ने बड़ी मेहनत से किया है, पीडी कब आ रहे हो फिर तुम )
नमस्ते!!!
--देवांशु