सोमवार, 28 अप्रैल 2014

मौजकाल का भौकाल !!!

ये भारतीय राजनीति का "मौजकाल" है | हर कोई एक दूसरे से मौज ले रहा है |

एक साहब हैं, कहते हैं ५६ इंच का सीना चाहिए देश चलाने के लिए | राजू श्रीवास्तव ज्यादा याद आते हैं , उनके मुताबिक "टाइटेनिक" के हीरो कोई हीरो नहीं हैं काहे की हीरो जो होता तो चौड़े सीने पे बाम्बू रख के टाइटेनिक को बचा लेता |  तो चौड़े सीने वाले हीरो हैं | मगरमच्छ को पकड़ के क्लास में ले जा चुके हैं | शूरवीर हैं | फिलहाल तो अच्छे दिन आने वाले हैं देखते हैं क्या होता है | ये बाकी लोगों से बहुत मौज ले रहे हैं आजकल  |

दूसरे जनाब हैं "कांट डांस" वाले | ये ज़माने भर को मौज दे रहे हैं | किसी ने कहा की युवाओं का ज़माना है | ये दिल से लगा गए | अपनी उमर से कम उमर की बात करने लगे | बस गाड़ी थोड़ी ज्यादा पीछे ले गए | टॉफी, गुब्बारे की बात करने लगे | गिनती भूल गए | "भिन्न" और "अनुपात" भूल गए | गणित गड़बड़ है इनकी | जब मुंह खोलते हैं , मौज दे बैठते हैं | जनता भी लगता है चाहती हैं की ये मुंह खोलते रहें |  इनको जिस बात पर लग रहा होता है की ये मौज ले रहे हैं दूसरे से, मिनट भर बाद पता चलता है की इनसे ही ज्यादा मौज ले ली गयी |  मुझे लगता है इनका भाषण लिखने वाला इनसे सबसे ज्यादा मौज ले रहा है |

तीसरे हैं "सीरियस जोक" महानुभाव | इनके हिसाब से हर वो इंसान भ्रष्ट और बिका हुआ है जो इनके खिलाफ बोलता है ( भले ही उस इंसान की आदत हर किसी के खिलाफ बोलने की हो) | इसलिए इनसे मौज लेने वाला फंस जाता है | सबसे बड़ी मौज इनकी ये है की ये सबको कैरेक्टर सर्टिफिकेट देते रहते हैं | जों इनके साथ है वो अगर गालियाँ भी दे तो ये महाशय ये कहके निकल लेते हैं की भड़ास निकाल रहा था बस गलत शब्द बोल गया , अब भड़ास निकालना भी गलत है क्या | ये बिना जनता से पूछे कुच्छो नहीं करते | ईमानदार हैं | पर उससे बड़े स्टंट मैन हैं | इनसे जितनी मौज ली जा सकती है उससे कम ली जा रही है |

और भी बहुत सारे हैं | एक हैं जो खुद बोलने में इतनी गलतियाँ करते हैं पर कहते हैं "युवाओं" से गलतियाँ हो जाती हैं | इनको भी किसी ने समझा दिया है युवाओं का ज़माना है , उनके फेवर में बोलो | इनकी हर काम में टांग अड़ा देने की आदत है और यू टर्न तो ये संकरी गली में भी ले लेते हैं | इन्होने राष्ट्रपति चुनाव में बहुत मौज दी | पहले बोले की एक को समर्थन करेंगे , फिर दूसरे को कर दिया | जब वोट देने की बात आयी तो पहले, पहले को वोट दिया फिर काट के दूसरे को वोट दिया | वैसे इनको वोट देकर आप बाकी किसी और से नहीं खुद से ही मौज ले सकते हैं |

एक मोहतरमा भी हैं | उनके हिसाब से सारी समस्याओं का हल है की राष्ट्रपति शासन लगा दो अगर वो मुख्यमंत्री ना हों तो |

और भी बहुत हैं , कहाँ तक बताएं | जाने दीजिये ना |

हमें पता है ये सब कचरा पढ़ने के बाद आप हमसे बहुत मौज लेने वाले हैं | लीजिये , सब मौज ले रहे हैं , आप भी लीजिए | अब मौज लेने पर कोई टैक्स थोड़े ना लगता है |

है की नहीं ???

-- देवांशु

( पहली लाइन अनूप जी की एक पोस्ट से प्रेरित बोले तो चुराई हुई Smile )

रविवार, 13 अप्रैल 2014

बधाई हो गुलज़ार साहब !!!


पूरी-पूरी रात तन्हाईयाँ काटते हुए जब मन बोझिल सा हो जाता है तो एक आवाज़ आती है की "रात भर सर्द हवा चलती रही रात भर हमने अलाव तापा" | लगता है जैसे कोई अपनी बात बहुत करीब से कह रहा है |

की जब बरसते पानी में बैठ चाय की चुस्कियों के साथ सुनते हैं "देर तक बैठे हुए दोनों ने बारिश देखी" |

या रहीमदास जी के कहे दोहे से इतर सोचते हुए एक जुलाहे से रिश्ते बचाने की कवायद कोई सुझाता है "जब कोई  तागा ख़त्म हुआ या टूट गया" |

या है कोई जो खुदा से कह सकता है की "पूरे का पूरे आकाश घुमाकर अब तुम देखो बाज़ी"|


जो "मौत को नज़्म" कहता है | मरने के बाद "रोशन खामोशी के वाले कमरे" में जाना चाहता है क्यूंकि "मकां की दूसरी मंजिल पर अब कोई नहीं रहता" |

या फिर जब सिनेमा की बात आती है तो उसने पीढियां देख डाली हैं | अनेक किस्से हैं , "कल तुम टाइम्स ऑफ़ इंडिया की कटिंग ले आओगे तो क्या मैं उस पर भी धुन बनाऊंगा" सुनने के बाद एक कालजयी गीत बनता है "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है" | या सिर्फ एक लाइन "चप्पा-चप्पा चरखा चले" पर पूरी फिल्म का संगीत बन जाता है | मेरे जैसे ना जाने कितने लोगो का बचपन “चड्ढी पहन के फूल खिला है”  देख-सुन के बीता है | जो आइटम नंबर भी लिखता है तो उसमे "किवाम की खुशबू" डाल देता है | "जय हो” पर पूरी दुनिया झूम उठती है | और जो चुटकी लेने पर भी नहीं चूकता "बाद मुद्दत के मिली हो तुम, ये जो थोड़ा सा भर गयी हो तुम , ये वज़न तुम पर अच्छा लगता है "

कुछ ऐसा ही है वो शख्श , ना जाने कितनी पीढियां , हर पीढी के ना जाने कितने शायर , ढेरों पढ़ने-लिखने और सुनने वाले , उससे  इंस्पायर हुए हैं | एक "कैफियत" हुआ करती थी | अब "गुल्ज़ारियत" भी होती है | "त्रिवेणी" लेकर वो ही आये हैं "कल का अखबार था, पढ़ भी लिया रख भी दिया" |

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हमेशा इंसान ही सम्मानित नहीं होते पुरस्कार पाकर, कुछ पुरस्कार इस बात से भी सम्मानित हो जाते हैं की वो किसे दिए जा रहे हैं |

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गुलज़ार साहब, आपको दादा साहब फाल्के पुरस्कार की बहुत बहुत बधाई !!!!