मुझे समझ नहीं आ रहा कि इस बात की शुरुआत कैसे करूँ । बचपन के कुछ किस्सों से करता हूँ । यकीन मानिए मुझे नहीं याद मेरा वो कौन सा दोस्त था पर उसने कुछ ऐसी बातें बताई थीं जो पिछले कुछ दिनों से खासी परेशान कर रही हैं । बातें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से सम्बंधित थीं । मसलन कि नेता जी जिंदा हैं और वो तीसरे विश्वयुद्ध के वक़्त आयेंगे या मेरे दोस्त के दादाजी ने कुछ सालों पहले नेपाल सीमा पर स्थित किसी गाँव में उन्हें देखा था । नेताजी उन्हीं के यहाँ एक रात रुके थे । या नेताजी किसी साधू के भेष में रह रहे हैं ।
ये तो नहीं कह सकता कि ये सब सही रहा होगा पर बीते कुछ दिनों में जिस तरह नेताजी से सम्बंधित फाइलों को अवर्गीकृत किया जा रहा है जिससे पहले की सारी सरकारें बचती आयीं थी , ना जाने क्यूँ ऊपर उस बताई दोस्तकी बातें रोमांचित कर रही हैं ।
१९४५ में बोस के मारे जाने की बात हम सबने किताबों में बचपन से पढ़ी थी । और बहुत हद तक मुझे इसपर यकीन सा था । बाकी उनके लौट के आने की उम्मीद मुझे हर हिन्दुस्तानी की वही उम्मीद लगती थी जो हर अन्याय को ये कहकर सह लेता है कि उसका मसीहा आएगा उसे बचाने , कभी तो अन्धेरा छटेगा । इसी उम्मीद में अक्सर वो खुद कुछ नहीं करता ।
पर मुख़र्जी कमीशन की रिपोर्ट , जिसे सरकार ने खारिज कर दिया था , उसके बाद से लगा था कि कुछ तो ऐसा है जो सबसे छुपा है वरना सुप्रीम कोर्ट का कोई एक्स चीफ जस्टिस ऐसा अपनी रिपोर्ट में ये नहीं लिखेगा कि सुभाष की मौत के कोई साक्ष्य हिन्दुस्तान की सरकार के पास नहीं हैं । पर सही बताऊँ इसके आगे नहीं सोचा कभी ।
पिछले साल से फाइलों के अवर्गीकरण को लेकर बने माहौल ने इस बारे में जानने और समझने के लिए विवश किया । फिर बीते दिनों जब न्यूयॉर्क में देव कुमार भाई से मुलाक़ात हुई तो अनुज धर के बारे में पता चला । फ़ीनिक्स वापस आकर एक दिन श्रीमती जी ने अनुज के कई जगह दिए गए व्याखानों को दिखाया । अनुज की ही किताब "व्हाट हैपेंड टू नेताजी" पढ़ी । अनुज ने काफी सारी घटनाओं , लोगों और उनके बयानों को लेकर संभावित बातों का एक ताना बाना बुना है जो एक बार हो सकता है आपको काल्पनिक लगे , पर कुछ ऐसे साक्ष्य वो सामने रख देते हैं कि अगर आप उनकी कही बातों पर एक बार यकीन ना भी करें पर पढाये गए इतिहास पर भरोसा नहीं रहता । कुछ वाकये हैं :
१. अवर्गीकृत की गयी फाइलों में कहा गया है कि सुभाष की मौत के कोई सीधे सबूत नहीं थे । पारस्थितिक सबूतों को देखते हुए उनकी मौत हो गयी होगी ऐसा मान लिया गया । यही हमारी किताबों में भी पढ़ाया गया । जबकि खुद गाँधी जी का बयान सामने आया जो बोस को ज़िंदा मानते थे ।
२. सुभाष के तीन रेडियो सन्देश की बात भी स्वीकार की गयी है फाइलों में जो उनकी तथाकथित मौत के बाद के हैं ।
३. १९७१ , यानी की दूसरे विश्व युद्ध के ख़त्म होने के २६ साल बाद भी भारत संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव का समर्थन करता है जिसमे इतना वक़्त गुजरने के बाद भी अगर कोई युद्ध का आरोपी मिलता है तो उसपर मुकदमा चलाने की बात स्वीकार कर ली गयी है । जबकि देखा जाए तो "आजाद हिन्द फौज" के अलावा ये बात किसी और पर लागू नहीं होती और उसके भी सुभाष के अलावा लगभग सारे सदस्यों पर मुकदमा चल चुका था ।
४. सरकारें आज़ादी के लम्बे समय बाद तक सुभाष बाबु के घर वालों की जासूसी कराती रही ।
५. इंदिरा सरकार ने नेताजी की मौत से जुडी फाइलों को ना केवल अवर्गीकृत करने से मना किया बल्कि काफी फाइलों को नष्ट भी किया । पूर्ववर्ती नेहरु सरकार के समय आज़ाद हिन्द फौज के खजाने के गायब होने की बात भी है ।
ऐसे और ना जाने कितने साक्ष्य हैं जो ये कहते हैं कि कहीं ना कहीं भारत की सरकारों को ये पता था या है कि सुभाष के साथ क्या हुआ इसके साथ कि वो १९४५ में नहीं मरे ।
इन्सी साक्ष्यों में फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा के सुभाष होने के कुछ ऐसे ठोस साक्ष्य अनुज ने रखे हैं कि विश्वास होने लगता है । फिर जो सामान उनके पास से मिला है वो भी अपनी कहानी कहता है ।
और इस सबके इतर ना जाने कितने लोगों के बयान हैं जिसमे एक भीमराव आंबेडकर भी हैं , जो १९४७ में अंग्रेजों के भारत छोड़ने में सबसे बड़ा कारण सुभाष को मानते हैं ना कि महात्मा गांधी को । मन मानने को तैयार नहीं होता कि सुभाष १९४५ में मरे थे । पहले प्रधानमंत्री नेहरु को लेकर सवाल उठते हैं वो अलग ।
इसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ कि लगता है हम अपनी आज़ादी के बहुत बड़े हीरो से अनभिज्ञ रहे हैं , साथ ही शायद जो एक आइडेंटिटी क्राइसिस हम सबमे घर कर गया है , उसका भी कारण नेताजी कि फाइलों में दफन है ।
पर ऐसा नहीं है कि अनुज ये कहते हैं कि अंतिम सत्य वही है जो वो कह रहे हैं । मांग सिर्फ इतनी है कि जांच होनी चाहिए वो भी निष्पक्ष । सारी फाइलें अवर्गीकृत होनी चाहिए । जिससे सच क्या है , सामने आ सके ।
लोग इसे कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई भी बता रहे हैं । मुझे ये अपने देश के महानायक को न्याय दिलाने की लड़ाई लगती है । इसलिए भी कि अगर वो १९४५ में नहीं मरे तो वो कहाँ गए और उनके साथ क्या हुआ या १९४५ में अगर वो मर गए तो ऐसा लोगों का कौन सा फायदा है जिसके लिए उन्हें तथाकथित तौर पर ज़िंदा होना बताया गया । बीती कांग्रेस सरकारों का रोल संदिग्ध लगता है पर उतनी ही जिम्मेदार नॉन-कांग्रेसी सरकारे भी रही हैं । अभी की केंद्र की भाजपा और बंगाल कि तृणमूल कांग्रेस ने फाइलें अवर्गीकृत की हैं जिससे उम्मीद बंधी है ।
दलगत राजनीति से हटकर भी इस गुत्थी को सुलझाना ही होगा ताकि या तो अगर वो ज़िंदा रहे फिर भी बाहर नहीं आये , उसके क्या कारण रहे और कौन दोषी है । और अगर वो मर गए तो उनके ज़िंदा होने की बातों पर पूर्ण विराम लगे ।
जो भी हो , कुछ होना ज़रूर चाहिए । हम बहुत सी बातों पर सड़कों पर उतर आते हैं , सरकार से डिमांड करते हैं । इस मामले में हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे । मुझे ये तो नहीं लगता सड़क पर उतर जाने का यही समय है पर हाँ इतना ज़रूर है कि हमारी ये डिमांड ज़रूर होनी चाहिए और किसी भी माध्यम से सम्बंधित लोगों तक ये आवाज़ पहुंचानी ही होगी । एक बार फिर , मांग सिर्फ इतनी है कि जांच होनी चाहिए वो भी निष्पक्ष । सारी फाइलें अवर्गीकृत होनी चाहिए ।
पर ये भी ज़रूरी नहीं कि आप सिर्फ मेरे कहने पर कुछ करें । आपके रिफरेन्स के लिए कुछ लिंक दे रहा हूँ :
१. नेता जी से सम्बंधित अवर्गीकृत फाइलें भारत सरकार की नेशनल आर्काइव की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं : http://netajipapers.gov.in/
२. गुमनामी बाबा से सम्बंधित बहुत सारी रिपोर्ट्स कई मुख्य समाचार पत्रों में बीते कई दिनों में छपे हैं ।
३. अनुज धर की किताबों "India's Biggest Cover Up" और "What happened to Netaji" में भी एक पक्ष मिलेगा । अनुज धर और missionnetaji.org के बाकी लोग भी इससे सम्बंधित जानकारी ट्विटर पर साझा करते रहते हैं ।
एक बार फिर, आप अपनी कोई भी सोच बनाने के से पहले इन सबको ज़रूर पढ़ें । ये कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है । कांग्रेस : सुभाष, नेहरू या गांधी जी से भी बहुत पुरानी है । भाजपा के अपने सरोकार हैं । इसलिए सोच हमारी अपनी ही होनी चाहिए ।
पर हाँ अगर आपको लगे कि इस मुहिम से जुड़ना चाहिए तो ज़रूर जुड़िये । आप से जुड़े लोगों में इसके लिए जागरूकता लाइये । सोशल नेटवर्क्स पर इसकी चर्चा कीजिये । जिससे लोगों को हौंसला मिले और सरकार तक इसकी आवाज़ भी पहुंचे ।
इस उम्मीद के साथ कि हम सबकी मेहनत रंग लाएगी और जो भी नेताजी का सच है जल्दी ही हमारे सामने होगा , इस बात की समाप्ति यहीं पर ।
- जय हिन्द !!!!