९ बजता है , ५२५ देशी विदेशी वाद्ययंत्रों की जुगत भिड़ाकर बनी दिल दहला देने वाली ट्यून के साथ घोषणा होती है :
नमस्कार , देश दुनिया के तमाम लफड़े और लोचे और उनके ऊपर नयी नयी सोंचें लेकर, मैं आपका फ़लाना एंकर हाज़िर हूँ ।
८० के दशक में हीरो और विलेन के फ़ेस ओफ वाली सिचुएशन वाला म्यूज़िक : टे ड़े टे ड़े ( बिना पूछे की कौन है , भावनाओं को समझें ) । दर्शक और एंकर के बीच पहली बार आमना सामना । फिर से आवाज़ बुलंद होती है :
समाज कहाँ जा रहा है ? हमारी सोच को क्या हो गया है ? घर के बाहर , दिन के उजाले में भी अब लड़की सुरक्षित नहीं ? बाहर ही क्यूँ , घर के अंदर की ये पित्रसत्तात्मक व्यवस्था कब तक नारी का अपमान यूँ ही करती रहेगी ??? कब तक आख़िर कब तक ?? इस सब चर्चा करने के लिए हमारे साथ हैं जानी मानी महिला मोर्चा एक्सपर्ट : फलानी । भरपूर मेकअप , चमचमाते गहने के साथ एक्सपर्ट पर कैमरा जाता है , वो स्माइल देती हैं ।
“ आपका क्या कहना है “ एंकर हड़काते हुए पूछता है | मिमियाती पर सुरीली आवाज़ में जवाब : “इसका कारण पुरुष प्रधान समाज है, पुरुषों के लिए महिला सिर्फ़ एक खिलोना है और कुछ नहीं “
दिन भर आफिस में लोगों की क़चर पचर सुनकर आए दर्शक का हाँथ ये सुनकर काँपता है , म्यूट बटन के खोजकर्ता की खोज को वो सफल बनाता हैं , और सोफ़े पर टाँगें फैलाकर सपनों में खो जाता है ।
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१२ घंटे पहले का सीन , लोकेशन वही कमरा । सीन में नायक है और उसकी बीवी । सोफ़े की जगह फ़ोकस डायनिंग टेबल पर शिफ़्ट हो चुका है । नायक के बालों से पानी चू रहा है , पक्का नहाकर आया है । सभ्य कपड़े पहने हैं मतलब आफिस जा रहा है । मुखारविंद को बीवी की तरफ़ घुमता है :
“आज फिर ब्रेड, कभी पराँठे भी खिला दो”
“बीवी हूँ तुम्हारी नौकर नहीं , यही खाओ मुझे भी लेट हो रहा है , और ये कितनी देर बाथरूम में लगाते हो , फिर से फ़ोन लेकर गए थे क्या , कब सुधरोगे , सवा नौ हो रहा है , मैं कब तैयार होऊँ “
ये सोचते हुए की नौ बजकर ५ मिनट पर वो बाथरूम में दाख़िल हुआ , प्रातः करणीय सारे काम निपटाकर , नहाकर ( फ़ेसबुक पर दो चार पोस्ट पढ़कर , लाइक शेयर कर के ) वो बाहर आकर रेडी हुआ है , अब जिरह करने से बेहतर है की ब्रेड खा ले ।
वो घड़ी देख रहा है । पौने दस हो गए हैं , श्रीमती जी नहानकार्य निपटाकर रेडीनेस को टच उप दे रही हैं । उसने अपना बैग चेक कर लिया है , सब सामान है । घड़ी हाँथों में बाँधते हुए श्रीमती जी का प्रवेश :
“तुम्हारी वजह से फिर लेट”
नायक चेहरे पर ये सवाल उकेरता है कि मैंने क्या किया पर इमोशन छुपाता है क्यूँकि परसों ऑफ़िस से आकर टाई से लेकर जूते , टिफ़िन कवर से लेकर बॉक्स तक अपनी सही जगह से कुछ पौने तीन सेंटीमीटर दूर रखने की वजह से बंगाल की खाड़ी में उच्च दबाव बना था , उसकी वजह से आज लेट हुए हैं । पर कार में बैठकर कुछ और बोल जाता है ।
“आज शाम कुछ दोस्तों को खाने पर बुला लें , फ़्राइडे है अच्छा रहेगा”
उसके बाद शहर के ट्रैफ़िक का शोर ही सुनायी देता है ।
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सपनों की दुनिया टूटती है एक आवाज़ से , इस बार प्यार है आवाज़ में ।
“खाना बना दिया है , आकर सलाद काट लो , साथ में खाएँगे।”
आँख खुलने के साथ नज़र टी॰वी॰ पर जाती है । डिबेट में अब कुल ९ मेहमान दिख रहे हैं । शायद २-४ स्क्रीन स्क्रोल करने पर और दिख जाएँ । उसमें नायक को कोई इंट्रेस्ट नहीं । नायिका आकर सोफ़े पर बैठ गयी है । रिमोट हाथ से ले लिया है ये कहके की क्या देखते रहते हो पर चैनल चेंज से पहले फिर से म्यूट का बटन दबता है । कमरा मछली मंडी बन जाता है -
“तो आप मुझे बताएँगी मेरी हैसियत”
“आप अपने गिरेबान में झाँकिए”
“महिलाओं पर ज़ुल्म आपने किया है “
“मैंने ??”
“हाँ , आपके पूरे पुरुष समाज ने”
नायक ये सोच रहा है की नायिका ने चैनल बदला क्यूँ नहीं । वो वहीं बैठा रहता है !!!
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२५ साल पुरानी यादों में खो गया है नायक । डाँट वो तब भी बैग, कपड़े, जूते, मोज़े , किताब , कापी, टिफ़िन इन सब पर ही खाता था अपनी माँ से । हाल वही पिता जी का भी रहता । ऐसे ही कमरे में शाम को बैठते । साढ़े आठ का इंतज़ार रहता : शोभना जगदीश , जे वी रमण , शम्मी नारंग , गजला अमीन , सरला माहेश्वरी : समाचार पढ़ते । नायक को डाउट था कि पिताजी की फ़ेवरेट शायद शोभना जगदीश हैं क्यूँकि जिसदिन वो समाचार सुनातीं , वो हटते नहीं थे । पीछे से माँ डाँट कर थक जातीं , बाप बेटे दोनों नहीं सुधरते , फिर सब साथ में खाना खाते । नायक बरतन वापस आँगन में रखकर आता । पिताजी माँ का हाथ बँटाते उन्हें वापस धोकर रखने में । नायक कूड़ा बाहर डालके आता और सो जाता ।
टी॰वी॰ अब बंद हो चुका होता ।
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इस बार सपना टूटता है बीवी की आवाज़ से :
“तो ग़लत क्या कहा इसने “
“किसने” नायक पूछता है ।
“अरे , महिला मोर्चा वाली ने , पुरुष अन्याय तो करते रहे हैं”
“छोड़ो ना यार”
“कैसे छोड़ दूँ”
“मत छोड़ो, मैं खाना लगाता हूँ”
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नायक किचन में सलाद काट रहा है ।जब चाक़ू की धार खीरे और टमाटर को काटकर चापिंग बोर्ड पर कट कट कर रही है , बाहर कमरे में रखा टी॰वी॰ किट किट कर रहा है । आख़री सलाद का पीस काटकर फ़ाइनल कट की आवाज़ टी॰वी॰ पर चटाचट की आवाज़ में बदल रही है । नायिका भी आंदोलित है । छोड़िए छोड़िए , बैठ जाइए , मैं एंकर हूँ , मेरी बात सुनिए: जैसी आवाज़ें आ रही हैं ।
“यार चैनल बदल दो , वो कुमार का लगाओ , कुछ बताएगा “ नायक कहता है ।
“हाँ ठीक है “
चैनल बदलता है ।
“छठी बड़ी अर्थव्यवस्था के बाद ग़रीबी है , खाने को नहीं है , पहनने को नहीं , कहीं बारिश नहीं हो रही , कहीं ज़्यादा हो रही , खाने पर सवाल हैं , पहनने पर सवाल हैं , महिला भी सुरक्षित नहीं है “
कमरे से किचन तक हवा गिरेबान पकड़ कर आत्महत्या कर लो चिल्ला रही है !!!
नायक ये नहीं समझ पाता कि जब बचपन से आजतक घर में महिलाओं की चली है तो न्यूज़ में ना जाने किस पुरुष प्रधान समाज की बात हो रही है । चुटुर पुटुर झगड़ों के बाद रोज़ हँसी मज़ाक़ करके सोने के बाद अगले दिन फिर सुबह वैसे ही उठने के बाद समाज महिला पर ज़्यादती कब कर लेता है , और अगर कहीं करता भी है तो क्या टी॰वी॰ पर हंगामा काटकर ये ठीक हो जाएगा ? वैसे ही अभी दो घंटे पहले ऑफ़िस से निकला था , तब तक तो सब ठीक था , अचानक से इतनी बर्बाद कैसे हो गयी दुनिया ? जी॰डी॰पी॰ बढ़ना उसे सारे एकनोमिक्स के करियर में पहली बार इतना ख़राब किसी ने बताया है ।
आँखों के सामने २५ साल पहले के साढ़े आठ बजे के समाचार घूम जाते हैं और नायक चिल्लाता है : “ चैनल बदल दो या TV बंद कर दो “
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दोनों खाना खाते हुए मिस्टर बीन देखते हैं और सो जाते हैं । न्यूज़ चैनल पर प्राइम टाइम का प्रसारण फिर से हो रहा है , बस अब टी॰वी॰ बंद है ।
नोट : पारस्परिक रिश्तों में फ़ालतू की ख़बरों को लेकर कड़वाहट ना आने दें, ख़बरें झूठ भी निकल जाती हैं , रिश्ते दुबारा नहीं बनते ।
और हाँ एक और बात ,१९ में आएगा तो ......
समझ जाओ :) :) :)