साध्वी प्रज्ञा , असीमानंद और कर्नल पुरोहित : सबके केस में जितने जवाब हैं उससे कहीं ज़्यादा सवाल । मसलन :
१. जब समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के चलते अमरीका पाकिस्तानी आतंकवादियों पर बैन लगा रहा था तब भारतीय एजेंसियों ने उस तरफ़ ध्यान क्यूँ नहीं दिया ?
२. शहीद हेमंत करकरे का नाम दो बार आता है : एक तो मुंबई हमले के दौरान और दूसरा साध्वी प्रज्ञा के मामले में । एक तीसरी जगह भी उनका नाम आता है : दिग्विजय सिंह स्वीकारते हैं कि करकरे उनको फ़ोन करते रहते थे और चल रहे केस के बारे में बातें होती थीं । जहाँ तक मुझे याद है दिग्विजय सिंह किसी ऐसे मंत्रालय में नहीं थे की पुलिस का कोई भी अधिकारी उनको रिपोर्ट करे , तो फिर इस कम्यूनिकेशन का क्या मतलब था ?
३. विकिलीक्स के मुताबिक़ राहुल गांधी ने “धर्म विशेष के आतंकवाद” की बात अमेरिकी राजदूत से की थी । मुंबई हमले के निशाने पर भारतीयों के बाद कोई था तो अमरीकी और इज़रायली । अमेरिका में क़ैद हेडली भी अपने बयान में मुंबई हमले के आतंकवादियों के हाथों में कलावे बँधवाने की बात क़बूलता है । इसके क्या मायने लगाए जाएँ ?
४. जब कर्नल पुरोहित सेना की जाँच में क्लीन चिट पा गए थे तो सरकार की ऐसी कौन सी जाँच चल रही थी जो ना उन्हें छोड़ पा रही थी ना कोई आरोप हाई साबित कर पा रही थी ?
५. एक आतंकवादी की फाँसी से लेकर भारत के टुकड़े होने की बात करने वालों के मानवाधिकारों की बात करने वाला लिब्रल गैंग और राजनैतिक दल , साध्वी के अधिकारों के मामले में मिट्टी में सर क्यूँ घुसेड़ लेते हैं । सबने देखी थी उनकी दशा । कसाब के लिए बिरयानी की वकालत पर साध्वी के लिए ऐसा बर्ताव क्यूँ ?
क्या है कोई जवाब ? NIA ने साध्वी प्रज्ञा को आरोपों से बरी कर दिया है । अदालत में केस जारी है परंतु बेल उन्हें मिली हुई है । तो क्या सारा हंगामा बेल पर होने का है ? लगता तो नहीं क्यूँकि एक ओर ‘बेलगाड़ी’ पर सवार हज़ूम के तो ये लिब्रल बलैयाँ लिए नहीं थक रहे ।
लिखने की ज़रूरत नहीं है , पर सब जानते हैं की साध्वी के बहाने निशाने पर कौन है ।
२०१९ का चुनाव और मज़ेदार हो चला है !!!
१. जब समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के चलते अमरीका पाकिस्तानी आतंकवादियों पर बैन लगा रहा था तब भारतीय एजेंसियों ने उस तरफ़ ध्यान क्यूँ नहीं दिया ?
२. शहीद हेमंत करकरे का नाम दो बार आता है : एक तो मुंबई हमले के दौरान और दूसरा साध्वी प्रज्ञा के मामले में । एक तीसरी जगह भी उनका नाम आता है : दिग्विजय सिंह स्वीकारते हैं कि करकरे उनको फ़ोन करते रहते थे और चल रहे केस के बारे में बातें होती थीं । जहाँ तक मुझे याद है दिग्विजय सिंह किसी ऐसे मंत्रालय में नहीं थे की पुलिस का कोई भी अधिकारी उनको रिपोर्ट करे , तो फिर इस कम्यूनिकेशन का क्या मतलब था ?
३. विकिलीक्स के मुताबिक़ राहुल गांधी ने “धर्म विशेष के आतंकवाद” की बात अमेरिकी राजदूत से की थी । मुंबई हमले के निशाने पर भारतीयों के बाद कोई था तो अमरीकी और इज़रायली । अमेरिका में क़ैद हेडली भी अपने बयान में मुंबई हमले के आतंकवादियों के हाथों में कलावे बँधवाने की बात क़बूलता है । इसके क्या मायने लगाए जाएँ ?
४. जब कर्नल पुरोहित सेना की जाँच में क्लीन चिट पा गए थे तो सरकार की ऐसी कौन सी जाँच चल रही थी जो ना उन्हें छोड़ पा रही थी ना कोई आरोप हाई साबित कर पा रही थी ?
५. एक आतंकवादी की फाँसी से लेकर भारत के टुकड़े होने की बात करने वालों के मानवाधिकारों की बात करने वाला लिब्रल गैंग और राजनैतिक दल , साध्वी के अधिकारों के मामले में मिट्टी में सर क्यूँ घुसेड़ लेते हैं । सबने देखी थी उनकी दशा । कसाब के लिए बिरयानी की वकालत पर साध्वी के लिए ऐसा बर्ताव क्यूँ ?
क्या है कोई जवाब ? NIA ने साध्वी प्रज्ञा को आरोपों से बरी कर दिया है । अदालत में केस जारी है परंतु बेल उन्हें मिली हुई है । तो क्या सारा हंगामा बेल पर होने का है ? लगता तो नहीं क्यूँकि एक ओर ‘बेलगाड़ी’ पर सवार हज़ूम के तो ये लिब्रल बलैयाँ लिए नहीं थक रहे ।
लिखने की ज़रूरत नहीं है , पर सब जानते हैं की साध्वी के बहाने निशाने पर कौन है ।
२०१९ का चुनाव और मज़ेदार हो चला है !!!