थोड़ा हॉलीवुड , थोड़ा उसमें प्रॉपगैंडा मिलाकर एक फ़िल्म का माल मसौदा तैयार किया गया । प्लान ये था रही सही कसर कोंट्रोवरसी के तड़के से पूरी कर लेंगे । producer को झाँसा दिया गया की चिंता नक्को , ऐसी जगह शूट करेंगे की शूटिंग का खर्चा बिलकुल कम ।
“पर बड़े सितारे होंगे , बजट बढ़ जाएगा”
“ना ना , जो ज़्यादा बड़े सितारे हैं उनको एक producer बना देंगे , जो थोड़े कम बड़े हैं , उनका मेकप ऐसा कर देंगे कि पता ही ना चले की यही हैं या कोई और , चार सीन कराएँगे , बाक़ी बॉडी डबल से”
“हंगामा हो जाएगा , फ़िल्म फँसेगी”
“हाँ , फ़्री में कोंट्रोवरसी मिलेगी”
पूरी स्कीम समझा के तबेले में शूटिंग शुरू हुई । ऐक्टर्ज़ को बोल दिया गया फ़िल्म में रीऐलिटी टच के लिए डायलोग लिखे नहीं गए हैं , सीन में आप होते तो कैसे बोलते , बस बोलते जाओ ।
“और नाच-गाना”
“अरे नहीं , intellectual पिच्चर है , गाने ना रखकर पब्लिक को बताएँगे , बनाए थे पर थीम से नहीं जुड़ रहे तो हटा दिए , भाव बढ़ेगा “
फ़िल्म रेडी हुई । बनायी ही कम थी , ज़्यादा एडिट नहीं करनी पड़ी । फ़र्स्ट कट दिखाया गया ।
Producer को काटो तो खून नहीं । रो पड़ा । क्या है ये , इसे तो कोई देखेगा नहीं ।
Director मुसकिया दिए । दो नाम लेकर आवाज़ दिए । एक मोटा कुर्ता और बेतरतीबी से उजाड़े गए बालों के साथ झोला धारी अधेड़उम्र के साथ एक गॉगल-टीशर्ट-लैप्टॉप धारी कूल डूड का प्रवेश । दोनों दिग और दिगंत टाइप ।
ये कौन - Producer पूछे ।
कुर्ताधारी की ओर देखते हुए director बोले । ये सीन समीक्षक हैं ।
“सीन समीक्षक , फ़िल्म समीक्षक सुने थे , ये कौन बला ?”
अरे आप समझे नहीं । ये इक्का दुक्का सीन की ऐसी समीक्षा लिखेंगे और इतने ऐंगल से लिखेंगे की आप सोच में पड़ जाओगे की येपिच्चर में है भी क्या ?
ये करेंगे कैसे ये ? Producer फिर पूछे ।
“डिप्रेशन और डूअल पर्सनालिटी डिसॉर्डर दोनों है इन्हें , तीन ऐंगल तो यही हो गए , डिप्रेशन वाला उच्च्कोटि का रिव्यू माना जाएगा “
और फ़ीस - प्रडूसर पूछे ।
अरे बिलकुल नहीं । इनके साथ पढ़ने वाले लोग ..”
Producer चौंके - ये पढ़ रहे हैं अभी भी ???
Director बोले - हाँ , अभी तो पढ़ाई का दूसरा साल ही है , अभी तो PHD बाक़ी है, वो छोड़िये , इनके साथी बराती कोई ना कोई मोर्चाखोले बैठे होंगे किसी मुद्दे पर । कोई मुद्दा नहीं होगा तो कोई मुद्दा क्यूँ नहीं है , यही मुद्दा हो जाएगा । बस हमें उसमें अपनी स्टारकास्ट को भेजना होगा ।
Producer दूसरे नमूने की तरफ़ देखते हुए बोले - जे कौन??
“ये ऑनलाइन सब मामला देखेंगे । इसके साथी इंटर्व्यू कर लेंगे । फ़ीस थोड़ी है पर बजट में मैनिज हो जाएगी ।”
ओके । producer बोले ।
दोनों काम पर लग गए ।
तभी एक कमनीय काया वाली बाला और एक छरहरे बदन वाले बदन वाले लड़के का प्रवेश ।
अब ये कौन - producer बोले ।
“अरे फ़िल्म में दो चार सीन डालना है की नहीं”
“ज़रूरत है , नायिका को स्ट्रोंग इंडिपेंडेंट दिखाना है तो उसको थोड़ा अड्वान्स दिखाना पड़ेगा , तो ये सीन डाले जाएँगे “
“स्कोप है”
“एक दो का है , बाक़ी जब सेंसर के पास जाएगा तो वो काटेंगे , तो थोड़ा और बवाल मचेगा “
वो सीन भी सूट होकर घुसेड़ दिए गए पिच्चर में ।
फ़िल्म बन्ने से पहले ही रिव्यू देखकर producer भौचक्के रह गए । ऑनलाइन टीज़र , प्रीव्यू की बाढ़ । चारों तरफ़ बवाल । दो चार वैसेवाले सीन भी ट्रेलर का हिस्सा । और धमाका ।
सेंसर बोर्ड ने थोड़ी आँख दिखायी । और बवाल ।
फिर मटर पनीर को खाने के मेनू में ना केवल शामिल करने बल्कि दुबारा माँगने पर मना ना करने को लेकर स्टूडेंट union के मोर्चे मेंफ़िल्म हीरो चले गए । दर भयंकर बवाल ।
Producer ने सांकेतिक मटर पनीर दावत दे दी ।
अंततः फ़िल्म रिलीज़ हुई । समझ तो किसी को नहीं आयी । कुछ को बोल दिया गया की एक बार में नहीं आएगी , दुबारा देखो । वोदेख आए ।
कुछ को बोला गया की कल्ट क्लासिक है , समझने की कोशिश करो । वो समझ गए ।
जिन्होंने कूड़ा कहा , उन्हें टेस्टलेस कह दिया गया ।
इन सब बवाल में दो हफ़्ते निकले । पिक्चर के पैसे निकाल लिए गए । दो चार अवार्ड जुगाड़ लिए गए और फ़िल्म के TV राइट्स बेचकर मुनाफ़ा कमा लिया गया ।
जैसे उनके दिन बहुरे , वैसे सबके दिन बहुरें !!!
नोट : फ़िल्म में गाली गलौज नहीं है पर साला कोई परस्नलि नहीं लेगा !!