रविवार, 21 जून 2020

जीरे के मुँह में ऊँट

थोड़ा हॉलीवुड , थोड़ा उसमें प्रॉपगैंडा मिलाकर एक फ़िल्म का माल मसौदा तैयार किया गया  प्लान ये था रही सही कसर कोंट्रोवरसी के तड़के से पूरी कर लेंगे  producer को झाँसा दिया गया की चिंता नक्को , ऐसी जगह शूट करेंगे की शूटिंग का खर्चा बिलकुल कम  
पर बड़े सितारे होंगे , बजट बढ़ जाएगा
ना ना , जो ज़्यादा बड़े सितारे हैं उनको एक producer बना देंगे , जो थोड़े कम बड़े हैं , उनका मेकप ऐसा कर देंगे कि पता ही ना चले की यही  हैं या कोई और , चार सीन कराएँगे , बाक़ी बॉडी डबल से
हंगामा हो जाएगा , फ़िल्म फँसेगी
हाँ , फ़्री में कोंट्रोवरसी मिलेगी

पूरी स्कीम समझा के तबेले में शूटिंग शुरू हुई  ऐक्टर्ज़ को बोल दिया गया फ़िल्म में रीऐलिटी टच के लिए डायलोग लिखे नहीं गए हैं , सीन में आप होते तो कैसे बोलते , बस बोलते जाओ  

और नाच-गाना
अरे नहीं , intellectual पिच्चर है , गाने ना रखकर पब्लिक को बताएँगे , बनाए थे पर थीम से नहीं जुड़ रहे तो हटा दिए , भाव बढ़ेगा “

फ़िल्म रेडी हुई  बनायी ही कम थी , ज़्यादा एडिट नहीं करनी पड़ी  फ़र्स्ट कट दिखाया गया  

Producer को काटो तो खून नहीं  रो पड़ा  क्या है ये , इसे तो कोई देखेगा नहीं  

Director मुसकिया दिए  दो नाम लेकर आवाज़ दिए  एक मोटा कुर्ता और बेतरतीबी से उजाड़े गए बालों के साथ झोला धारी अधेड़उम्र के साथ एक गॉगल-टीशर्ट-लैप्टॉप धारी कूल डूड का प्रवेश  दोनों दिग और दिगंत टाइप 

ये कौन - Producer  पूछे 

कुर्ताधारी की ओर देखते हुए director बोले  ये सीन समीक्षक हैं 

सीन समीक्षक , फ़िल्म समीक्षक सुने थे , ये कौन बला ?”

अरे आप समझे नहीं  ये इक्का दुक्का सीन की ऐसी समीक्षा लिखेंगे और इतने ऐंगल से लिखेंगे की आप सोच में पड़ जाओगे की येपिच्चर में है भी क्या ?

ये करेंगे कैसे ये ? Producer फिर पूछे  

डिप्रेशन और डूअल पर्सनालिटी डिसॉर्डर दोनों है इन्हें , तीन ऐंगल तो यही हो गए , डिप्रेशन वाला उच्च्कोटि का रिव्यू माना जाएगा “ 

और फ़ीस - प्रडूसर पूछे 

अरे बिलकुल नहीं  इनके साथ पढ़ने वाले लोग ..”

Producer चौंके - ये पढ़ रहे हैं अभी भी ???

Director बोले - हाँ , अभी तो पढ़ाई का दूसरा साल ही है , अभी तो PHD बाक़ी हैवो छोड़िये , इनके साथी बराती कोई ना कोई मोर्चाखोले बैठे होंगे किसी मुद्दे पर  कोई मुद्दा नहीं होगा तो कोई मुद्दा क्यूँ नहीं है , यही मुद्दा हो जाएगा  बस हमें उसमें अपनी स्टारकास्ट  को भेजना होगा 

Producer दूसरे नमूने की तरफ़ देखते हुए बोले - जे कौन??

ये ऑनलाइन सब मामला देखेंगे  इसके साथी इंटर्व्यू कर लेंगे  फ़ीस थोड़ी है पर बजट में मैनिज हो जाएगी 

ओके  producer बोले 

दोनों काम पर लग गए 

तभी एक कमनीय काया वाली बाला और एक छरहरे बदन वाले बदन वाले लड़के का प्रवेश  

अब ये कौन - producer बोले 

अरे फ़िल्म में दो चार सीन डालना है की नहीं

ज़रूरत है , नायिका को स्ट्रोंग इंडिपेंडेंट दिखाना है तो उसको थोड़ा अड्वान्स दिखाना पड़ेगा , तो ये सीन डाले जाएँगे “

स्कोप है

एक दो का है , बाक़ी जब सेंसर के पास जाएगा तो वो काटेंगे , तो थोड़ा और बवाल मचेगा “

वो सीन भी सूट होकर घुसेड़ दिए गए पिच्चर में 

फ़िल्म बन्ने से पहले ही रिव्यू देखकर producer भौचक्के रह गए  ऑनलाइन टीज़र , प्रीव्यू की बाढ़  चारों तरफ़ बवाल  दो चार वैसेवाले सीन भी ट्रेलर का हिस्सा  और धमाका 

सेंसर बोर्ड ने थोड़ी आँख दिखायी  और बवाल  

फिर मटर पनीर को खाने के मेनू में ना केवल शामिल करने बल्कि दुबारा माँगने पर मना ना करने को लेकर स्टूडेंट union के मोर्चे मेंफ़िल्म  हीरो चले गए  दर भयंकर बवाल  

Producer ने सांकेतिक मटर पनीर दावत दे दी 

अंततः फ़िल्म रिलीज़ हुई  समझ तो किसी को नहीं आयी  कुछ को बोल दिया गया की एक बार में नहीं आएगी , दुबारा देखो  वोदेख आए  

कुछ को बोला गया की कल्ट क्लासिक है , समझने की कोशिश करो  वो समझ गए 

जिन्होंने कूड़ा कहा , उन्हें टेस्टलेस कह दिया गया  

इन सब बवाल में दो हफ़्ते निकले  पिक्चर के पैसे निकाल लिए गए  दो चार अवार्ड जुगाड़ लिए गए और फ़िल्म के TV राइट्स बेचकर मुनाफ़ा  कमा लिया गया 

जैसे उनके दिन बहुरे , वैसे सबके दिन बहुरें !!!

नोट : फ़िल्म में गाली गलौज नहीं है पर साला कोई परस्नलि नहीं लेगा !!


गुरुवार, 18 जून 2020

विक्रम और बेताल

महाराज विक्रम एक बार फिर से बेताल को पीठ पर लाद कर चले । शर्त ये तय हुई की अगर विक्रम ने मुँह खोला तो बेताल वापस चला जाएगा । 
बा-आदतन बेताल ने एक कहानी शुरू की , रास्ता काटने के लिए :

गाँव में पुश्तैनी ज़मीन पर चले पीढ़ियों के झगड़े के बाद मालिकाना हक़ परिवार को मिल गया । बड़ा परिवार था , घर के बुजुर्ग ने ज़िम्मा दिया पन्नालाल को घर की देखभाल का , हालाँकि घर के काफ़ी लोग ख़ुश नहीं थे पर बुजुर्ग ने कहा था सो मान गए । 

घर में कमरे बहुत थे पर छत पर जाने का रास्ता सिर्फ़ एक लकड़ी की सीढ़ी थी । लोग बोलते की सीढ़ी को पक्का करते हैं पर पन्नालाल ध्यान ना देते ।

एक दिन पड़ोसी , जिसकी दीवार घर से मिलती थी , उसने छत पर डेरा डाल दिया । कमजोर सीढ़ी के चलते परिवार के ज़्यादा लोग पहुँच भी नहीं पाए क़ब्ज़ा हटाने और जो पहुँचे उसमें से ज़्यादातर मारे गए । पंचायत हुई पर पड़ोसी पूरे हिस्से से नहीं हटा । पन्नालाल ने बताया घर आकर की छत के उस हिस्से में वैसे ही सूरज नहीं आता , अचार भी नहीं रख पाएँगे , इसलिए जाने दिया । 

उधर पड़ोसी ने घर के कुछ लोगों को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया । कुछ कमरों में पड़ोसी के पूर्वजों के चित्र आ गए । साथ ही बारिश के पानी को भी रोक कर अपनी मर्ज़ी से छोड़ने लगा जिससे आँगन में अक्सर कीचड़ भर जाता । विरोध की आवाज़ उठी पर पड़ोसी के पूर्वजों की फ़ोटो वाले कमरों से आवाज़ें आ गयीं कि पड़ोसी का तो ये हक़ बनता है । 

फिर दशकों गुजर गए । छत वापस लेने की बात उठती पर दबा दी जाती । पीढ़ियाँ गुजर गयीं इसी में । घिरी हुई छत असलियत लगने लगी । 

धीरे धीरे घर की कमान नए खून के हाथ आयी । ग़लतियों का एहसास था उसे । उसने पड़ोसी की आँख में आँख डालकर बात करनी शुरू की । इस बीच पन्नालाल के पोते , जिनके हाथ से कमान चली गयी थी , वो पड़ोसी के पूर्वजों वाले कमरे में चले गए । पड़ोसी अब उन्हें बुरा लगना बंद हो गया । 

नए खून ने सीढ़ी हटायी और उसकी जगह भरपूर चौड़ाई वाला जीना बनाया , पक्का । छत पर भी सुरक्षा का सामान इकट्ठा किया । पड़ोसी की नयी पीढ़ी को ये अच्छा कहाँ लगता । उसने हाथापाई की जिसमें दोनों तरफ़ के लोग मरे पर पहली बार परिवार वालों ने पड़ोसी को जम के कूट दिया , बहुत मारा । इतना की पड़ोसी ये भी क़बूल नहीं कर पाया की कितने हताहत हुए । 

पर वो जो एक कमरा है , अरे वही पड़ोसी के पुरखों की तस्वीर वाला , उसमें से आवाज़ें आ रही हैं कि नया खून कमजोर है । नए खून में हिम्मत नहीं है । उनका कहना है पड़ोसी की कोई गलती है ही नहीं । 

नए खून ने भी कह दिया है की पीछे नहीं हटेंगे !

ये कहकर बेताल शांत हो गया । थोड़ी देर में बोला : तो विक्रम मेरा सवाल ये है की अब नए मुखिया को आगे क्या करना चाहिए । बोल नहीं तो मैं तेरे सर के टुकड़े टुकड़े कर डालूँगा ।

विक्रम बोले : छत पर अपनी स्थिति और मज़बूत करनी चाहिए । 

बेताल बोला : और उस ख़ास कमरे वाले लोगों का क्या करना चाहिए ।

विक्रम बोले : कुछ नहीं , जो अपने परिवार का ना हुआ , पड़ोसी उसे भी बस काम रहने तक रोटी खिलाएगा । 

बेताल : मतलब कुछ भी नहीं करना चाहिए ।

विक्रम बोले : घर के बाक़ी लोग स्वतंत्र हैं उनसे दो दो हाथ करने के लिए , पर मुखिया का ध्यान सिर्फ़ छत पर होना चाहिए । 

बेताल बोला :  विक्रम मैं ख़ुश हुआ तेरी बुद्धि से , पर तू भूल गया की तुझे बोलना नहीं था । तू बोला , ले मैं चला ।