गुरुवार, 23 जून 2011

दोस्ती का मेंटेनेंस …


“अबे एक मिनट रुको…ज़रा सिगरेट जला लेने दो"…मोबाइल फोन को अपने कंधे और कानो के बीच दबाए हुए हमारे एक परम मित्र ने अपने किसी मित्र को बोला | मैं वहीँ खड़ा था…
अचानक से उसने लाइटर उठाया गैस ज़लाने वाला…इससे पहले की मै कुछ बोलता उन्होंने गैस जलाई और फिर जलती गैस से अपनी सिगरेट ”
अब पूरी दुनिया उनके कंट्रोल में थी…मोबाइल फोन दायें हाँथ में, सिगरेट बाएं हाँथ में| और धुएं के छल्ले हवा में | घूमते ही मै दिखा…
“यार माचिस नहीं दिख रही खतम हो गयी क्या?” मेरे जवाब की न ज़रूरत थी न ही प्रतीक्षा हुई…
“हाँ बे तो तुमसे कह रहे हैं …” मोबाइल फोन पर बात करते करते वो बहार चले गए….
“साइंटिस्ट"… मेरे दिमाग में “फंस गए रे ओबामा" के “भाईसाहब" चहल कदमी करने लगे…

मेरे को कुछ पुराने SMS याद आ गए…मसलन एक था…
पूरी रात घर से बहार रहने के बाद एक लड़का जब अपने घर पहुँचता है ..ये जानने के लिए की वो कहाँ था जब उसके पापा उसके ४ दोस्तों को कॉल करते हैं तों चारो का जवाब आता है …”मेरे यहाँ था"
अब इसके आगे की बात…
उसके पापा पांचवे दोस्त को कॉल करते हैं …जवाब कुछ ऐसा… इस बार उन्होंने बताया नही की वो घर पहुँच गया है..साथ ही अपने नंबर से फोन किया ..जवाब कुछ ऐसा “ अंकल अभी तों मेरे रूम में था..अभी कहीं निकला “
“वो घर आ गया है"
“अच्छा ..सही है…मेरे को यहाँ बैठा के घर निकल गया…पूरी रात पढ़ पढ़ के थक गए थे ..चाय पीने के लिए निकलने वाले थे..अंकल ज़रा उसको फोन दीजिए"
“ये लो बात करो"…पिता जी ने गुर्राते हुए बोला | लड़के ने फोन संभाला|
“साले ऐसे सरप्राइज तों मत दिया कर…अभी रूम से बाहर निकल और ये बता की किसके साथ था ???”
और फिर तों आप जानते ही हैं….
अभी इसी SMS  का एक और वर्ज़न आ गया है मार्केट में…
जब पिता जी ने छटवें दोस्त को कॉल किया तो आवाज़ आयी “ हाँ पापा बोलो मैं बस घर पहुँच रहा हूँ"…

सिगरेट ज़लाने की इसी बात से मुझे याद वो सख्स आया जो पूरी रात सिगरेट ज़लाने के लिए माचिस ढूँढता रहा … और आखिर में जलती मोमबत्ती बुझा के सो गया…काश वो गैस ज़लाने वाला लाइटर ढूँढता… चलो  better luck next time…

लड़का, उसके पापा और दोस्त…गैर फ़िल्मी दुनिया (कभी कभी फिल्मों का भी ..याद है वो आवाज़ “बर्बाद हैं सबके सब"..) का ऐसा “हेट” ट्राइंगल है जिसमे दो लोग आपस में एक दूसरे से भडके रहते हैं (पापा और दोस्त) और क़ुरबानी देने को एक ही मजबूर होता है (पर क़ुरबानी होती नहीं न…लव  ट्राइंगल थोड़े ही है)

खैर मोमबत्ती से याद वो सख्स भी आया जो रात में उठ के मोमबत्ती जला के ये चेक कर रहा था की उसके दोस्त ने कमरे की लाइट्स बंद कर दी की नहीं"….

दोस्ती पे एक ताज़ा ताज़ा SMS पंकज उपाध्याय की जानिब से …
रोते हुए बच्चे से उसके पापा ने पूंछा “ बोलो बेटा , मै तुम्हारा दोस्त हूँ, मुझे बताओ क्यूँ रो रहे हो?
बच्चा “ क्या बताऊँ यार..ज्यादा होर्लिक्स मांग लिया तो तेरी आईटम ने पेल दिया"

अपने मुल्क में अगर दोस्ती मशहूर है तों वो या तों है “जय-वीरू" की (अरे हाँ भईया वही शोले वाले) या फिर “संता-बंता” की
एक बार बंता ने पूंछ ही लिया संता से “ अबे तेरा मेरा रिश्ता है तों है क्या?”
संता “ बेसन और पकोडे का"
बंता “ कैसे"
संता “ जब बेसन सनता है तों पकोडा बनता है”
क्या परिभाषा है..कान से आंसूं आ गए…

पेपर के टाइम पे घर में बैठे हुए लडके से पापा ने पूंछा “ पेपर देने क्यूँ नहीं गए"
“पेपर आउट ऑफ कोर्स आया है'
“पर तुम्हे कैसे पता"
“दोस्त लोग ४ दिन पहले ही दे गए थे”
मुसीबत पडने पे दोस्त ही दोस्त के काम आता है….

ऊपर लिखी ज्यादातर बातें मुझे किसी न किसी ने SMS  ही की हैं…ये दोस्त होते ही बड़े अजीब हैं…आप जो भी एक्सपेक्ट करोगे…वो कुछ और ही लेकर आ जायेंगे…
SMS तो एक ऐसा जरिया बन गया है…जो हमेशा दोस्तों की तरह  कुछ भी अनेक्स्पेक्टेड सा लेकर आ जाता है…
कभी इंडिया की जीत पे गालियों भरी खुशी मनाता हुआ, किसी दोस्त की सगाई की अफवाह उडाता हुआ…कुछ भी हो आपको अपने दोस्तों के करीब ही रखता है (और आपको मजबूर करता है की आप अपना मोबाइल अपने करीब रखें…किसी और के हाथ पड़ गया तो फिर तो खैर….)
ऐसे ही जुड़े रहिये अपने दोस्तों से … दोस्ती ऐसा ही कुछ मेंटेनेंस मांगती है…
                                                                     -- (दोस्तों के द्वारा भेजे गए SMSs से साभार)

3 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच आज के इस भागदौड़ भरे जीवन में एसएमएस ही दोस्तों के टच में रहने का एकमात्र जरिया है।

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  2. बहुत दिनों पहले मेरे पोस्ट पर तुमने इसका लिंक दिया था. आज अपना ब्लॉग देख रही थी और लिंक पकडकर यहाँ आ गई. लड़कों की दोस्ती होती बड़ी मज़ेदार है. मेरा भाई मेरे मोहल्ले से कुछ दूर रहता है. शनि बाज़ार को मेरे मोहल्ले में सब्जी खरीदने आया था, तो मुझसे मिलने चला आया. अपने दोस्त से बोला "तू चल मैं दी से मिलकर आता हूँ." दोस्त वहाँ से खिसका नहीं, तब सोनू को समझ में आया कि कमबख्त सब्जी का झोला अकेले इतनी दूर पैदल नहीं ले जाने वाला. तो उसे बीस का नोट देना पड़ा रिक्शे के लिए. सोनू मुझे ये बात बता रहा था और साथ ही ये भी बोला कि "देखना दीदी कमीना जाएगा पैदल ही. वो पैसे बचाकर कोल्डड्रिंक पिएगा" :)

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