शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

जिंदगी रिज़्यूम्ड…

मुंबई बम धमाकों के बाद एक बार फिर से कवायद शुरू हो गयी है ये प्रूफ करने की कि मुंबई कभी थमती नहीं ..मुंबई कभी रुकती नहीं..Local-Trains-925006607-7339245-1_Pointillism_2सभी समाचार चैनलों पर लगातार यही बात…कोई बता रहा है कि कैसे लोकल में भीड़ वैसी है तो कोई बम धमाकों की जगह  के पास बने स्कूल में जाके बच्चों की उपस्थिति की जानकारी दे रहा है…
कुछ ने तो हद्द ही पार कर दी है…लोगो के घरों में घुस गए हैं…”इस दर्द का अंत नहीं" के शीर्षक से भी समाचार हैं…बीच में कुछ व्यापारिक बाध्यताओ के चलते ..कोमर्सिअल ब्रेक …हो रहा भारत निर्माण का नारा भी आ जाता है (यकीनन) …कभी हेल्थ इंश्योरेंश लेने कि बात होती है ( जिंदगी का भरोसा नहीं है)…और कुछ कह रहे हैं कि कूड़े कचरे, पैंट इत्यादि से बचने के लिए अपना लक पहन के चलो....(बम से भी बचायेगी क्या ??? )
कुछ नेता भी गए हैं मौका-ए-वारदात पर , अपने (घड़ियाली) आंसूं बहा के आये हैं…किसी ने बोला है सरकार कि गलती है…कोई कह रहा है कि ९९% तो बचा ले गए …एक हो गया…(९९ का ब्यौरा??? )
प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि अमन और शांति कि ऐसी मिसाल कायम करें मुम्बईवासी कि जिसे दुनिया माने (बदहज़मी तक ??)…किसी ने सही कहा था वाकई में इस देश कि आज़ादी भीगती (अगस्त) और गणतंत्र ठिठुरता (जनवरी) है…
अब जो होना है वो तो हो चुका..लेट्स रेज्यूम द “जिंदगी"…आखिर जिंदगी न मिलेगी दुबारा…बड़े जोशीले लगते थे ये शब्द कभी…पर आज लगता है कि कोई जूते मार के भूलने को कह रहा है…पर पंचशील को बनाने वाला और क्या कहेगा…

“हलके हो ३१ महीने बाद जो आये हो,

ज़रा जल्दी आया करो,

देर अच्छी नहीं लगती हमें… "

मैं कभी मुंबई नहीं गया…पर कई को जानता हूँ जो वहाँ रहे हैं ..उनके दिल में बसता है ये शहर…नहीं मालूम इसपे बार बार हमला क्यूँ होता है…मजबूरी को हौसले का नाम देने वालों को अब तो सोचना होगा कि

“क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो “

अगर मुंबई क्षमा कर रही है तो कहीं कोई गरल दब तो नहीं रहा…और कौन जाने उसका क्या परिणाम होगा…
मकसद कुछ भी हो इन हरकतों का …हासिल कुछ भी नहीं होगा…दुनिया को तो उसने ही रंग बिरंगी बनाई है..इसके रंगों को खतम करना भी तो उसी की तौहीन है…
जिंदगी थोड़ी रिज़्यूम अपनी भी हुई है, हफ्ते भर बाद एक बार फिर वही ढर्रे पर चल पड़ी है…
आज बस ऐसे ही लिखने का मन बन गया था..जो भी आया मन में लिख दिया…किसी का मन दुखाने का कोई इरादा नहीं है…
जाते जाते देल्ही-६ से अमिताभ जी की आवाज़ में कुछ शब्द..
 

भगवान सभी मरने वालों कि आत्मा को शांति दे…हिम्मत दे घायलों को जो जूझ रहे हैं अपनी चोटों से … सभी के घरवालों को इससे लडने कि क्षमता …और सद्बुद्धि दे इन नेताओं को कि अब तो ये कुछ करें (आपस में लडने के अलावा)….

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