शनिवार, 21 जनवरी 2012

अथ श्री "कार" महात्म्य!!!

जैसे बिना इज्ज़त, बे-इज्ज़त, बिना गैरत, बे-गैरत, वैसे ही बिना कार, इंसान बे-कार | एक  बड़े पहुंचे हुए कवि हुए हैं , काका हाथरसी, उन्होंने बड़े पते की बात बताई है:
काका दाढ़ी राखिये, बिनु दाढ़ी सब सून|
ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून|
व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा,
इसी को रख के प्रगति कर गए संत विनोबा|
कह काका जैसे नारी सोहे साड़ी से,
उसी भांति नर कि शोभा होती दाढ़ी से …

काका पुराने ख्यालों के थे, यू नो दीज ओल्ड फैशन्ड पीपल | पर आज का जमाना नया है | आज दाढ़ी-वाढी कुछ नहीं, कार से शोभा बढ़ती है | जित्ती बड़ी कार उत्ती बड़ी हैसियत | नैनो होने पे आपकी हैसियत भी नैनो  (10−9) हो जाती है |  आजकल तो स्कूटर वाले भी कार बना रहे हैं, हमारा बजाज का ज़माना गया !!!!

कार खरीदने के साथ-साथ उसे चलाना आना बहुत ज़रूरी है| कार चलाने के लिए लाइसेंस लेना होता है | लाइसेंस लेना बड़ी मेहनत का काम है | और मेहनत से बचने के लिए कार होती है |

कार कुछ लोगो का चुनाव निशान भी होती है | इसीलिए लोग कार को कवर पहना के रखते हैं | कुछ विद्वानों का मानना है कि मूर्तियों को ढकने का “आइडिया" , पार्किंग में ढक के रखी कार देख के आया होगा| “कार" से देश को चलाने वाले बड़े बड़े फैसले लिए जाते हैं |

कार पेट्रोल से भी चलती है और डीज़ल से भी | कोई भेदभाव, मनमुटाव नहीं | इस तरह हर किसी का तेल चूस लेने के कारण कार सामाजिक समरसता का प्रतीक है |

कार, दहेज जैसी कुप्रथा की विनाशक भी है | दहेज लेना सामाजिक बुराई है, इसको खतम करने का काम कोई नहीं कर पाया, बड़े-बड़े तोपची भी नहीं, कार ने झट कर दिया | आजकल लोग दहेज नहीं लेते, कार लेते हैं |

कार कई रंगों में आती है, लाल, नीली, हरी, पीली, काली, सफ़ेद | महंगाई और आर्थिक मंदी के चलते लोगो की  जिंदगी में जो रंग बरकरार हैं, वो कार के चलते ही तो हैं | तभी तो ३० रुपये किलो आटा महंगा है, १ लाख की कार सस्ती | और जी क्या रंग लोगे आप लाइफ में |

कार से लोग पहचाने भी जाते हैं | “एम्बेसडर" नेता जी की सवारी है | दिखते ही दिल से सम्मान जाग जाता है | “मारुती ओमनी" किडनैपर्स की पसंदीदा है |

“कार एक खोज" के मिशन पे आजकल हमारे आशीष भाई भी निकले हुए हैं | उनका कहना है कि नौकरी और छोकरी से ज्यादा मुश्किल है कार ढूँढना | बात दरसल ये है कि यहाँ पे कार की हिस्ट्री वैसे ही ट्रैक होती है जैसे अपने यहाँ कैरेक्टर की | ज़माना एक दम उल्टा है, अपने यहाँ कैरेक्टर का एक्सीडेंट नहीं पचता, यहाँ कार का | बड़ी दुविधा है कार भी बचाओ कैरेक्टर भी |

कार दो प्र”कार” की होती हैं: सस्ती कार और महंगी कार |  इनके बीच का जो अंतर है वो बैंक बैलेंस से डिसाइड होता है | कोई कार किसी के लिए सस्ती होती है तो वही कार किसी के लिए महंगी | कार का सस्ता या महंगा लगना आपके स्टेटस को रिप्रजेंट कर देता है, फटाफट|

कुछ लोगो के पास अपनी कार होती है, कुछ लोग कार किराये पे भी लाते हैं | अपनी कार की सेवा पालतू जानवरों के जैसे की जाती है जबकि किराये की कार को ट्रीटमेंट गली के सो काल्ड आवारा कुत्तों वाला मिलता है | हर कोई बेरहमी से किराये की कार को दौड़ाता है, वो सबके काम आती है , पर जिंदा वो रहमो करम पे ही रहती है |  अपनी कार का नाम भी होता है और रूतबा भी
image

मुझे लगता है कि कारें भी शो-रूम में जाने से पहले  बाटलीवाला, पेगवाला टाइप किसी ज्योतिषी को अपने टायर दिखा के भविष्य पूंछती होंगी कि बाबा बताओ मैं पर्सनल प्रोपर्टी बनूंगी या किराये की ? बाबा उन्हें यज्ञ , हवन, माला, अंगूठी टाइप चीजों का आइडिया देते होंगे | कहते होंगे नाम में १०-१२ ई , १५-२० ए घुसेड़ लो , मनचाहा मालिक या मालकिन मिलेगी | हफ्ते में किसी एक दिन अपने अपने इष्ट देव के मंदिर भी जाते होंगी ये सब कार|

मम्मी कार अपनी बेटी कार से कहती होगी “बेटी १६ रविवार का फास्ट रखो, बिना डीज़ल पेट्रोल, हो सके तो हवा भी अवाइड करो, मनचाहा मालिक मिलेगा"| कुछ मनचली कार भी होती होंगी जो किसी की नहीं सुनती होंगी | पूरे कार-समाज को उनसे परेशान रहने की एक्टिंग करनी पड़ती होगी|

दादी कार अपनी पोती कार को आशीर्वाद देती होगी “नज़र ना लग जाये, ऊपर वाला तुझे किसी फिल्म स्टार की कार बनाये, तेरी फोटो खिचे, लोग तुझपे फूल बरसाएं" | वहीं जब दो कारों में लड़ाई होती होगी तो एक कार दूसरी कार से कहती होगी “भगवान करे तू किसी सॉफ्टवेयर इंजिनियर के हाथ पड़े, अपने मैनेजर का गुस्सा तुझपे निकाले आके वो

खैर कार तो कार है | इसकी महिमा अपरम्पार है | लोगो को इससे डर भी लगता है | मसलन किसी मंत्री संत्री से बोल दीजिए “सर“कार” चली गयी” अपनी कुर्सी से गिर पड़ेगा| धड़ाम ....
--देवांशु

26 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ विद्वानों का मानना है कि मूर्तियों को ढकने का “आइडिया" , पार्किंग में ढक के रखी कार देख के आया होगा|
    क्या बात है.... उन विद्वानों की नज़र के क्या कहने...:)

    जवाब देंहटाएं
  2. गज्ज़ब भाई...बाई द वे ओमनी बचपन में हमें भी पसंद थी लेकिन इसका ये मतलब मत लगाना भाई की मैं किडनैपर हूँ :P

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लाख छुपाओ छुप ना सकेगा, राज है इतना गहरा, दिल कि बात बता देता है, असली नकली चेहरा :) :)

      हटाएं
  3. अथ श्री कार कथा....बिलकुल बे - कार नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  4. हम भी बे"कार" है जी! जब स्कूटर वाले कार बनाने की सोच रहे है तो हम भी सोच रहे है कि बेकारी से बाहर आने के लिए एक रिक्शा खरीद कर उस पर कार की बाडी लगवाई जाए ! नैनो से भी धांसू आइडीया है, पैडल वाली इको फ्रेंडली कार!

    जवाब देंहटाएं
  5. Betta hit ho g aye ho lagta h.. tabhi itni ghanghor bakwaas bhi padhi aur saraahi ja rahi h...
    waise padh to hum ne bhi li h aur apni aukaat k anuroop pasand bhi aa gayi h.. magar hai to BE-"KAAR" hi :P

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "बकवास" कहने का शुक्रिया...मुझे तो "वाहियात" जैसे शब्दों की उम्मीद थी :) :) :) ..कहाँ गायब हो फिर से एक बार ? ? ?

      हटाएं
  6. bhai maza aa gaya,hum bhi be'kar' hai.keep it up

    जवाब देंहटाएं
  7. कार की महिमा अपरम्पार है और ये पोस्ट बड़ी शानदार है...
    और अभी तक बे-कार/बे-लाइसेंस हो तो एक काम करो, उन सारी कारों से कॉन्टैक्ट करो जिन्हें इंजिनियर के हाथ पड़ने की बददुआ मिली है ;)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बस उसी तरीके को खोज रहा हूँ...जिससे ये पता चले कि किसे क्या बददुआ मिली है...(कई और भी चीज़ें हैं, वो भी पता चल जाएँगी) :) :) :)

      हटाएं
  8. kuchh hmare jaise bhi hai jo car ko le jakar thok dete hai aur car se be car ho jaate hai

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये तो बड़ा बुरा हुआ जी, कार होते हुए भी बेकार, इस एंगल से तो सोचा ही नहीं :) :) :)

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. निबंध में १०/१० पाकर हम तो गदगद हो गए...हम तो यू पी बोर्ड से हैं, वहाँ तो सही होने पर मैथ्स में भी १०/१० नहीं मिलते थे :) :)

      हटाएं
    2. ये कमेन्ट भी काफी रोचक है :)

      हटाएं
  10. रिवैलुयेशन में भी १०/१० नंबर दिये जाते हैं।

    जवाब देंहटाएं