मंगलवार, 31 जनवरी 2012

बस एक दिन….

              ( इस कहानी के सभी पात्र कमीने और घटनाएँ सच्ची हैं)
सीन-१

( १९ अप्रैल २००६, शाम का वक्त, मैं अपने रूममेट आशीष के साथ एक डिस्कशन में)
मैं : कल आखिरी दिन है यार कॉलेज का, कुछ करना चाहिए…
आशीष (आँखों में एक चमक आयी उनकी) : कल हंगामा काटते हैं, सब लोग एक सा रंग पहनते हैं, ड्रेस कोड..क्या कहते हो ?
मैं : डन, नीला रंग रखें?
आशीष : कूल, पक्का , लाओ अपना फोन दो सबको मेसेज करते हैं|
मैं: मेरा क्यूँ? तुम अपने से करो मैं अपने से करता हूँ|
आशीष : अबे तुम्हारे सेल से करेंगे तो वजन बढ़ जायेगा, पढ़ाकू इमेज है तुम्हारी | एक बार मेसेज मार्केट में आ गया तो अपने आप फॉरवर्ड होगा | वैसे भी तुम्हारे १५०० में १००० तो बेकार ही जाते हैं |

और इसके बाद एक बड़ा “सेंटी" सा मेसेज लिखा गया कि “कल हमारा आखिरी दिन है कॉलेज का , बहुत बढ़िया गुजरे पिछले ४ साल, कल सेलिब्रेट करते हैं , सब लोग नीले रंग में कॉलेज आओ |” मेसेज को १५-२० लोगो में फॉरवर्ड कर दिया हम तीनों ने क्यूंकि तब तक कौशिक बाबू भी डिसकशन का हिस्सा बन गए थे|

हमें लगा कि कुछ लोगो तक जायेगा मेसेज , वैसे भी रात  हो रही है क्या पता किसी तक ना भी पहुंचे| जो लोग अपने अपने घरों में रहते हैं वो तो बिलकुल नहीं जान पाएंगे | पर जो भी हो हम तो नीले रंग में ही जायेंगे |

पर होता वही है जो सोचा ना हो, हमारा लिखा-भेजा मेसेज हमारे पास ही घूम घूम के आने लगा | मुझे अब भी याद है कि आखिरी मेसेज कुछ रात में २ बजे आया था | हट (जो कोलेज का नोटिस बोर्ड थी) वहाँ भी हलचल मच गयी |  पर डाउट अभी भी था कि कितने आयेंगे ड्रेस कोड में, कई सारे छोटे छोटे ग्रुप थे हमारी क्लास में, कहीं कोई ये ना बोल दे कि नीले के अलावा कोई भी रंग पहनो”|

****
सीन २
 
( २० अप्रैल २००६, सुबह का समय, कोई ८ बजे होंगे , हमारे चौथे रूममेट जो हमारे साथ रहते नहीं थे पर पाए हमेशा जाते थे “मानस" ने घर में इंटर किया )

मानस (अपने दायें हाथ कि उंगली को नाक पे रखने के बाद उसे अपनी ही दायीं आँख के सामने से ऊपर ले जाते हुए ) : यार के डी (कौशिक दास), कोई नीली शर्ट हो तो दो यार, आज तो नीला ही पहनेंगे | हम सब चौंक गए दुनिया में मानस ही ऐसा बन्दा लगता था जो किसी भी बात पे सेंटी नहीं हो सकता और वही इतना तैयार था आज के लिए |

खैर उनको शर्ट दी गयी | फिर हम सब चल दिए कॉलेज | यकीन नहीं हो रहा था , जो भी हमें हमारी क्लास का मिला , सबने नीली ड्रेस पहन रखी थी | माहौल ही नीला हो गया | क्लास में हर कोई नीले रंग में|

तभी इंट्री हुई हमारे बड़े मालिक, अर्पित निगम कानपूर वाले, की | जनाब हमारे काफी अच्छे दोस्तों में शुमार हैं | लाल उनका पसंदीदा रंग है | डार्क लाल रंग की शर्ट में दाखिल हुए क्लास में | बहाना “यार मुझे लाल ड्रेस पहनने का मेसेज आया था" | फिर नजर उनकी गयी खुद उनके रूममेट राजीव पे जिन्होंने नीला पहना हुआ था | “मर्जी है , लाल पहन लिया तो पहन लिया” मालिक ने बोला | ये उनका पहला कारनामा नहीं था | ४ साल से वो ऐसी हरकतें हर हफ्ते बिना नागा करते ही रहते थे |

क्लास शुरू हुई , टीचर भी आये और साथ में पीछे से एक आवाज़ , “अब आखिरी दिन भी पढेंगे क्या???” | मैं खड़ा हुआ और टीचर से बोल दिया “भाई माफ करो बहुत तुमने पढ़ा लिया चार साल अब बस , आज का दिन हमारा” (हाँ हाँ मुझे याद है मैं ही था)

बस उसके बाद रोल नंबर का पहली बार पालन हुआ , सब एक एक करके आते गए , अपने बारे में बताते गए , मैं एंकर का काम कर रहा था , तो कुछ लोगो को मेरी तारीफ़ भी करनी पड़ी | कुछ अंग्रेजी में बोले , कुछ हिन्दी में | कुछ ने पहले दिन की बात की तो कुछ ने आने वाली लाइफ की | फोटो का सिलसिला चल रहा था बदस्तूर |
Photu(205)

पूरे कॉलेज में धमा चौकड़ी मचाई | हुल्लड़ काटा |  लाइब्रेरी में जाके fire extinguisher उखाड़ डाला | हल्ला मचाया | एच ओ डी से डांट भी खाई |  कैंटीन भी गए, भूचाल आ गया वहाँ पे | लोग डरे हुए थे कि हुआ क्या है? पर जोश कम नहीं हो रहा था | मैदान पे गए गो़ल पोस्ट पे लटक गए | 

धीरे धीरे शाम हुई , पूरा दिन ज़बरदस्त बीता |  शाम को फोटो कलेक्ट किये गए | ऑरकुट कम्युनिटीज़ पे जाके बहुत पोस्ट किये गए | और पढाई शुरू हो गयी , एग्ज़ाम आ गए थे सर पे |

*****
सीन ३

जून २००६ की कोई दोपहर, केतन , मेरे भाई के सबसे अज़ीज़ दोस्तों में से एक ,  उसी के घर में हम सब बैठे हुए थे , मैं अपनी ज्वाइनिंग का वेट कर रहा था उन दिनों | केतन बहुत खुराफाती किस्म के इंसान हैं, पता नहीं क्या क्या धाँसू टाइप बना के रखे थे अपने कंप्यूटर पे |  वहीं मनिपाल मेडिकल इंस्टिट्यूट का एड देखा , जिसमे समर ऑफ सिक्सटी नाइन का हिंदी वर्जन मिला | गाना सुनते सुनते पूरा कॉलेज नहीं , बस वही एक दिन याद आया | तय किया कि कल उसका एक विडियो बना डालूँगा | अगले दिन केतन की हेल्प से पूरे २ घंटे से कुछ ज्यादा टाइम में बन गया विडियो , और सेव हो गया सी डी में |

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सीन ४

२९  जनवरी २०१२, मैं सुबह सोकर उठा और तुरंत फेसबुक पहुंचा , बड़े मालिक का मेसेज पड़ा हुआ था , “वो विडियो मेल कर दो कॉलेज वाला" | सोचा केवल मालिक को क्यूँ सभी से शेयर किया जाए | कर दिया | उसके बाद तो बस मजा आ गया, काफ़ी पुराने दोस्त उस विडियो से वापस कनेक्ट हो गए | 

सबसे इंटरेस्टिंग कमेन्ट आया डीके (देवेन्द्र कुमार) का , उनका कहना था कि ये मैंने उनसे कभी शेयर क्यूँ नहीं किया | दरसल डीके और मैं एग्ज़ाम में आगे पीछे बैठते थे , रोल नंबर के साथी | पर कॉलेज के बाद हम दोनों कुल ३-४ बार मिले और ज्यादा बात भी फोन पे या ऑरकुट पे और अब फेसबुक पे होती है | यकीन नहीं होता ४ साल के सबसे अच्छे दोस्तों में था और ६ साल कॉलेज खतम होने को आये पूरे ६ बार भी नहीं मिले| कोई नहीं डी के “दिज़” वन “इज” ओनली फार यू बडी | हम सबके प्यारे “टाम क्रूज”…..


और जाते जाते …..

बड़ी सेल्फ ओब्सेस्ड टाइप की पोस्ट लिख मारी है, ठीक अपने चारों तरफ| दरसल उस एक दिन हम सब अपने हीरो थे , जो कुछ घट रहा था , हमारे चारों ओर घट रहा था, कोई और भी लिखेगा तो यूँ ही लिखेगा  | यकीन नहीं होता ६ साल लगभग गुजर गए हैं | बहुतों की शादी हो गयी, कुछ की होने वाली है , कुछ वेटिंग में हैं |
“कुछ कॉलेज के बाद कभी नहीं मिले, कुछ कई बार मिले, कुछ ज़िंदगी के साथ चल रहे हैं और कुछ के बिना ज़िंदगी अधूरी है |”
खुद की लिखी कुछ पंक्तियाँ भी छाप दूंगा (अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा)
कल का सूरज अपना होगा,
पूरा हर आँखों का सपना होगा,
हर कोई याद करेगा कल,
ये तेरे पल, ये मेरे पल ||

ज़िंदगी के ये पल,
हमें मिले थे कल,
अब यादें रहेंगी बस इनकी,
ये तेरे पल, ये मेरे पल ||

(ये कविता मैंने उसी दिन के लिए लिखी थी, अपनी टर्न आने पे पढ़ी भी थी, मेरी वो नोटबुक खो गयी जिसमे ये मैंने लिखी थी, कल विडियो देख के इतनी याद आ गयी फिर से)
दोस्त कमीने ही होते हैं | कभी हम कमीने निकलते हैं कभी वो कमीने | पर किसी ने सही कहा है रौनक भी इन्ही से होती है…. Missing all of you….
-- देवांशु

30 टिप्‍पणियां:

  1. पल ..याद आयेंगे वो पल...
    truly nostalgic post and video and song.

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    1. बहुत ही ज्यादा नोस्टेलिजिक है , बड़ा याद आता है कॉलेज !!!!

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  2. मज़ा आ गया पढ़ के देवांशु...तुम ऐसे लिखते हो ना तो कहर मचाते हो...मस्त पोस्ट है...एकदम चकाचक...ढिशुम ढिशुम टाइप्स...और क्या लिखें...अपने कॉलेज का लास्ट दिन याद आ गया...बहुतों को आएगा :)

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    1. लास्ट दिन था ही इतना हेवी !!!! बस गया है रगों में :)

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  3. अली हैदर का "पुरानी जींस" नहीं बजा था क्या ?

    हम लोगो ने तो कालेज के लान में वही गाया था, (किसी से कहाँ मत, आंसू भी बहाए गए थे…)

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    1. बजा था सर, पर हम लोग तो XLRI कि कुड़ियां गाने के वर्ड्स बदल के गाने में ज्यादा मशगूल थे :):)

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  4. uffff.... nostalgic type feeling se bheeg gaye hain.... idhar udhar se sentipana tapakne laga hai.. are bhai college to humara bhi khatm hua tha ek din, aur jald hi ek aur khatm hone waala hai... very much mixed feeling....

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  5. Ohoooo ... matlab k is baar is self obsessed mode me qatl hi kar daale ho.. padhi bhi to aaj h jab hadd nostalgic ho rahe hain... ye bakwaas to tumhaari chha gayi Dev baabu :)

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    1. तुम कहे नोस्टेलिजिक हुई पड़ी हो ??? :) :) :)

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    2. Are wo hamari vidaayi ki ghadiyaan paas aa rahi hain.. aur humari taiji ka emotional atyachar badhta ja raha h...

      Waise bas 1 mahina late reply kie hain.. chalega na? ;)

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  6. अब यादें रहेंगी बस इनकी,
    ये तेरे पल, ये मेरे पल ||

    .......ये सबके पल.

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    1. वाकई में अब यादें ही तो बची हैं , बाकी सब तो धीरे धीरे बिज़ी होते चले जा रहे हैं

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  7. बड़ी रौनक वाले कॉलेज के पढ़े हो यार :)

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    1. यही तो खासियत है आपकी, रौनक बहुत जल्दी ढूंढ लेते हैं :)

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  8. भाई जी , क्या शानदार संस्मरण लिखा है आपने ! इसमें एक अच्छे नाटक के बीज छिपे हुए हैं !

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  9. यार कहा से लाते हो इतना सब कुछ .................
    बहुत ही बढियां मालिक

    धन्यवाद डागर ........:)

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    1. बस मालिक ये सब तुम लोगो का किया धरा है हम तो बस लिखने भर का काम कर रहे हैं :) :) :)

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  10. बड़ी नॉस्टेलजिक पोस्ट है...हमने भी बड़ी खुराफातें की थी कॉलेज छोड़ने से पहले..
    वीडियो काफी अच्छी लगी...
    अभी जिस कॉलेज में हूँ उसे छोड़ते हुए जो खुराफातें की जा सकती हैं उनकी लिस्ट तैयार कर रही हूँ...कल ही जाकर देखती हूँ अपनी लाइब्रेरी में fire extinguisher कहाँ पर लगा है... ;-)

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    1. संभल के !!! fire extinguisher हमेशा लाइब्रेरियन की सीट के आसपास ही होता है :) :) पकड़े जाने का बड़ा रिस्क है :) :) :)

      एक काम कर सकती हो बुक्स में छुप के आग लगा सकती हो, लोग खुद से fire extinguisher निकाल लायेंगे :) :) :)

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  11. सर जी, शायद इसे पोस्ट करने के पहले आपने फेसबुक पर वो वाला विडियो डाला था, और उसे मैंने उसी वक्त देखा....गाना भी वही 'मनिपाल' वाला था जो तब आया था जब हम अपने फाइनल इअर में थे...और कस्स्सम से विडियो और आपके दोस्तों की कॉलेज की तस्वीर देख कर क्या जबरदस्त नॉस्टेलजियाये थे हम....आज वही हुआ है बस...फिर से हम नॉस्टेलजियाये हुए हैं....बड़े खतरनाक आदमी हैं सर जी आप तो :P

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    1. अभिषेक भाई, कॉलेज लाइफ की आपकी पोस्ट्स की मारक क्षमता बहुत अधिक है, हम तो सीख रहे हैं अभी गुरु :)

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  12. गदर पोस्ट है! पढ़ लिये हैं! देख लिये हैं बस अब सुनना बाकी है! :)

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    1. ग़दर तो उस दिन मच गया था सर, ये तो पुनरावृत्ति है :)

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  13. वे दिन भी कैसे थे ...वे दिन.....अपने दिन और वे भी याद आये...

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