रविवार, 16 सितंबर 2012

लीविंग होम…एंड हेडिंग टुवर्ड्स द “लाइफ"

“पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय | ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय |”  -- संत कबीर

इस दोहे को हम सब कभी न कभी पढ़ चुके हैं, अर्थ भी समझते हैं |  प्रेम जीवन जीने की एक विधा है और जिसने इस विधा को जान लिया उसे किसी और ज्ञान की ज़रूरत नहीं है |

प्रेम की कोई परिधि नहीं | ये विशाल-अनंत आकाश की तरह है |  किसी चीज़ को पाने का जूनून भी एक तरह का लगाव है, प्यार है | कभी कभी इंसान को वो पाने के लिए सारी हदें पार कर देनी होती हैं | और जो ऐसा कर देते हैं वो संत कबीर के दोहे को चरितार्थ कर देते हैं और इसका मतलब दुनिया को समझा सकते हैं |

लीविंग होम" जयदीप वर्मा द्वारा निर्मित और निर्देशित फिल्म है, जो ऐसे ही कुछ जुनूनी लड़कों ( हाँ मैं लड़के ही कहूँगा) की कहानी है | ८० के दशक में ( मेरे पैदा होने के आस-पास ही ), जब देश एक वित्तीय संकट से गुजर रहा था ( ऐसा मैंने सिर्फ पढ़ा ही नहीं है, घरवालों से सुनता भी आया हूँ)  और हर कोई अपने करियर, जॉब, प्रोफेशन को लेकर सजग और जागरूक हो रहा था | पढ़ाई-लिखाई एक मात्र जरिया थी, आगे बढ़ने का | उस समय कुछ लड़कों ने संगीत को अपना जूनून बनाया | इसके रस्ते पर चले | नए साथी मिले, पुराने साथ छोड़ते भी गए | मुसीबतें आयीं, उनका मुकाबला भी किया | कभी सब कुछ खत्म होता सा लगा | पर हौंसला नहीं टूटने दिया | आखिरकार उन्हें वो मक़ाम मिला | दुनिया ने सराहा | सम्मान दिया |

लीविंग होम" उसी बैंड “इन्डियन ओशियन" की कहानी है | उनके कुछ चुनिन्दा गानों का इवोल्यूशन , बैंड के मेम्बर्स की जिंदगी , उनका बीता कल, उनकी इंस्पिरेश, उनकी खासियत हर चीज़ के बारीकी को एक मोतियों की माला में पिरोकर पेश की गयी एक अनूठी रचना है “लीविंग होम"|

संगीत और सिनेमा दोनों की समझ मुझमे कम ही है, पर इतना ज़रूर जान पाया हूँ दो बार फिल्म देखकर की इन दोनों में ईमानदारी की बहुत ज़रूरत है | “इन्डियन ओशियन" का संगीत और “लीविंग होम" दोनों में ये बात झलकती है |

फिल्म पूरी तरह आपको बाँध के रखती है, और बैंड के मेम्बर्स के साथ आपको जोड़ती चलती है | साथ में उनके चुनिन्दा कंपोजिशंस को आपके सामने लाकर रख देती है |  यकीन मानिए अगर आपने वो गाने पहले न भी सुने हों तो भी आप उन्हें गुनगुनाने के लिए मजबूर हो ही जाओगे | एक अलग समां बंध जाता है | साथ में हैं बैंड के कुछ लाइव पर्फोर्मेंसेज़, मेम्बर्स और उनके परिवार वालों के इंटरव्यूज़, जाने माने गायकों, गीतकारों, संगीतकारों की बातें | खासकर पीयूष मिश्र को सुनना बहुत अच्छा लगा | “बंदे" गीत, जो धार्मिक उन्माद की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है और सौहार्द की बात करता है,  के बारे में वो कहते हैं “इस तरह की बात कहने के लिए एक बदतमीज़ गीतकार और संगीतकार की ज़रूरत है” |

दृश्यों के साथ चलते हुए जो वन लाइनर्स हैं वो इन्फोर्मेशन भी रख रहे हैं साथ ही उसमे एक स्मार्टनेस है जो आपको गुदगुदाती है | फिल्म के सभी किरदारों को एक आजादी दी गयी है , जिसमे वो अपनी बात कहने से ज्यादा आपसे बात करते हुए पाए जाते हैं | आप उनको आसानी से रिलेट कर सकते हो | दिल्ली की सड़कों की रिकॉर्डिंग देखने लायक हैं और काफी तो उन जगहों की हैं जहाँ से यहाँ आने वाले लोग अक्सर गुज़रते रहते हैं |

बैंड के बारे में ज्यादा लिखने से अच्छा आपको फिल्म देखना सजेस्ट करूँगा |  मुझे तबला वादक अशीम और बॉस गिटारिस्ट राहुल राम का बेबाकी से अपनी बातें रखना बहुत पसंद आया | लीड गिटारिस्ट सुस्मित का सिम्पल एंड सोबर नेचर काबिले तारीफ़ है | ड्रमर अमित ने जीवन का फलसफा कुछ यूँ बयां किया जो उन्होंने अपनी माँ से सीखा था :

"Only those people have disappointments who have the appointments with future"

चारों के जूनून को देखकर मुझे कबीर याद आये, क्यूंकि इन्होने अपने प्यार ( संगीत) को समझा और उसी को जीने की कोशिश भी की | कबीर की ही एक रचना “झीनी" को बैंड ने अपने एक कम्पोजीशन में गाया भी है |

बाकी फिल्म बहुत अच्छी लगी मुझे | दो बार देख चुका हूँ, कुछ दिनों बाद फिर देखूँगा | रेकेमेंड करूँगा की आप भी देखें | इस तरह के अलग विषयों फ़िल्में अपने यहाँ कम ही बनती हैं | “लीविंग होम" जैसी तो मैंने ये पहली फिल्म ही देखी है | ये एक अनोखा शिल्प है जिसके लिए जयदीप वर्मा और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र है |

आशा है ये फिल्म आपको जीवन में एक नयी सोच लाएगी और एक “रियल फील गुड" फैकटर से सराबोर कर देगी |

जाते-जाते “इंडियन ओशियन” के मेरे दो पसंदीदा कम्पोजीशन :

-- देवांशु

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