सोमवार, 30 दिसंबर 2013
फितूर !!!
रविवार, 20 अक्टूबर 2013
एक सपने का लोचा लफड़ा…
आजकल माहौल बना हुआ है | एक बाबा जी ने सपना देखा है कि टनों सोना एक महल के नीचे दबा हुआ है |और जिसका सोना है उसने सपने में आकार कहा है कि निकाल लो सारा सोना और देश की अर्थव्यवस्था को बचा लेओ |
बाबा के पक्के भक्त जो हैं वो सरकार में मंत्री हैं | वो अर्जी लेकर बड़े बड़े लोगो के पास गये | और पी डब्लू डी और दूरसंचार विभाग से खुदाई करने के मामले में बाप साबित हुए एएसआई को खुदाई करने का जिम्मा सौंप दिया गया |
३ दिन पहले खुदाई शुरू भई | अभी तक रत्ती भर सोना नहीं मिला है | पर उम्मीद का जो दिया होता है, वो लगातार जले जा रहा है , उसका तेल खतम नहीं हो रहा | और जल्दी और गहरा गड्ढा खोदने की कवायद जारी है |
बाबा के भक्तों और सरकार ने पिछले कुछ दिनों से छाये निराशावादी काले बादलों को छांटते हुए आशावादी होने की जो मिसाल गढ़ दी है, उससे पूरे देश के हौंसले बुलंद हैं | इसी घनघोर आशावाद के चक्कर में कल धोनी ने इशांत बाबू से गेंदबाजी करा दी | हार गए पर कोई बात नहीं , जीत भी जायेंगे | जैसे सोना अभी तक नहीं मिला , आगे मिल भी सकता है |
पर सोने को निकालने के चक्कर में बहुत मेहनत लग रही है | सरकार के लोग तो लगे ही हैं | मीडिया वाले भी पल पल की खबरें दे रहे हैं | सारे चैनलों ने अपने सिपेसलार भेज रखे हैं कि जाओ देखे रहो - ब्रेकिंग न्यूज़ सबसे पहले हमें ही देनी है | पर जिस तरह से अभी कुछ हाथ लगा नहीं है उससे तो यही दुआ निकलती हैं कि “भगवान् जी खुदाई में इतना सोना ज़रूर निकाल देना की खोदने गए लोगो के चाय-पानी का जुगाड़ हो जाए !!!!”
पर ऊपर वाला पता नहीं क्या लिखे बैठा है ये तो उसके ऊपर वाला ही बता सकता है , पर फिलहाल खुदाई का काम चल रहा है , जोर-शोर से |
बाबा जी, जिनको सपना आया , उनका कहना है कि अगर इतना सोना निकल आये तो देश में विकास की नदी बहा देंगे | जनता विकास की बाढ़ में बह जायेगी | पूरे देश की मौज हो जायेगी | और इतना सोना खर्च होने में भी मात्र कुछ घंटे ही लगेंगे , पर विकास फुल-फुल हो जायेगा |
बाबा जी के अलावा आजकल दो लोगो की और चर्चा है , एक हैं राहुल गाँधी और एक हैं नरेन्द्र मोदी | दोनों को भावी प्रधानमंत्री बताया जा रहा है | दोनों के धुआंधार समर्थक हैं | और उन सबकी माने तो अगले चुनाव के बाद इस देश में दो प्रधानमंत्री होंगे | एक लच्छे दार बातें करते हैं , एक बातों में गच्चा खा जाते हैं , पिछले दिनों वैज्ञानिक बने घूम रहे थे | पर दोनों के जो समर्थक हैं मानने को तैयार ही नहीं हैं | सोचो अगर बाबा जी को सपने में सोने की बजाय राहुल गांधी प्रधानमंत्री बने दिख जाते और वो ये सपना वो सबको बता देते तो ??? मोदी वाले भड़क जाते , धर्म के तो वो सब वैसे ही ठेकेदार हैं | बाबा को बे-धरम कर दिया जाता | राहुल वाले बाबा की जय-जयकार कर देते |मजा तब भी आता अगर बाबा को सपने में मोदी प्रधानमंत्री बनते दिख जाते | सरकार खुदाई की टीम भेजती बाबा की कुटिया उखाड़ फेंकने के लिए | और मोदी वाले तो आश्रम बना डालते बाबा का, सुबह शाम जय बाबा , जय बाबा होता |
पर इस सबके बीच बाबा और सरकार की बड़ी छीछालेदर हो गयी | जनता ने मजे ले लिए | कि बाबा पूरे देश से मौज ले रहे हैं और सरकार भी पगला गयी है | सरकार ने तो पल्ला झाड़ लिया ये कहके कि बकायदा रिपोर्ट ली गयी है कि वहाँ कोई मेटल है जो लोहे के अलावा कुछ और है तभी खुदाई हो रही है , भले चाहे बाद में ताम्बे के बर्तन निकालें | पर बाबा जी और उनके चेले नहीं मान रहे | वो कह रहे हैं पक्का , २४ कैरेट सोना निकलेगा वो भी १००० टन | लोगो का तो ये भी कहना है कि बाबा अपनी पब्लिसिटी के लिए ऐसा कर रहे हैं | पर हमें ऐसा नहीं लगता | पब्लिसिटी करनी होती तो बाबा किलो दो किलो की बात करते और खुद से रखवा के खुदाई करवा के निकलवा देते , वाह वाही हो जाती | १००० टन बड़ी बात है | बाबा ये रिस्क नहीं लेंगे |
आश्चर्य इस बात पर भी है कि अमरीका से इस बारे में कोई खबर नहीं आयी | हो सकता है कि वो लोग इस बार दूसरी स्ट्रेटेजी लगा रहे हों | दूसरी तरफ से जल्दी जल्दी खोदें और हमसे पहले सोने तक पहुँच जाएँ | दुनिया गोल जो ठहरी | सरकार को खुदाई तेज़ी से करवानी होगी , ढिलाई से काम नहीं चलेगा | हो सकता है खोदते खोदते दोनों तरफ के मजदूर पृथ्वी के गर्भ में कहीं मिल जाएँ तो चाय पानी का जुगाड़ भी रखना चाहिए , दोनों एक दूसरे के मेहमान होंगे |
एक पुरानी कहावत है कि गाँव बसा नहीं लुटेरे आ गए | इसी कहावत के चलते के लोगो ने सोने पर मालिकाना हक जाता दिया है | राजा के सारे नाती-पोते निकल आये हैं | सब दावा कर रहे हैं | गाँव की बाकी जनता भी अपना हिस्सा मांग रही है | अगर सोना मिल गया तो बाँटने की कार्यवाही भी मौजदार रहेगी | न्यूज़ चैनलों को तैयार रहना चाहिए |
पर अगर सोना नहीं मिला तो ? सबकी बड़ी किरकिरी हो जायेगी | सरकार तो जांच आयोग बना के निकल लेगी | बाबा को जवाब देना पड़ेगा | वैसे एक आईडिया है , बाबा कह दें कि मिट्टी भी तो सोना है , टनों निकली है ले जाओ सब लोग थोड़ी थोड़ी | बाकी विधि विधान वाला फोर्मुला तो है ही , कुछ लफड़ा लोचा हो गया टाइप | या ये बता दें कि एक और सपना आया और जिस तरह से देह के लोगो ने बाबा का मजाक बनाया है उससे राजा क्रोधित हो गए और अपना सोना किसी और महल में शिफ्ट कर दिया है | सिर्फ बाबा को ही इसका पता है | और बाबा का मूड नहीं है बताने का | या थोड़ा फुटेज लेकर बताएँगे |
और खुदाई करते करते मान लो एक नया शहर मिल गया | सैकड़ों - हजारों साल पुराना शहर | शायद किसी उल्का पिंड या ज्वालामुखी के गिरने से नष्ट हुआ था | जो जहाँ जिस हालत में था वैसे ही खत्म हो गया | रह गयीं तो सिर्फ लाशें | सोती हुई लाशें | हजारों टन लाशें | यही हो हजारों टन "सोने" का राज़ | ये भी हो सकता है |
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ये जो राजा थे इनकी सल्तनत बहुत बड़ी नहीं थी इसलिए इतना सोना होना लोजिकल तो नहीं लगता | पर हो सकता है राजा की रानी किसी बड़े देश कि हों दहेज में मिला हो | दहेज की चीज़ों को सरकार और इनकम टैक्स वालों की नज़रों से बचाकर पूरे जग में शान से दिखाने की कला में तो हम हिन्दुस्तानी पुराने एक्सपर्ट हैं | क्या पता ये माजरा हो |
पर चाहे कुछ भी हो , १००० टन सोने को छुपाने के लिए जितना बड़ा गड्ढा खोदना पड़ा होगा वो भी जब अँगरेज़ सेना ने आक्रमण कर रखा था, बड़े माद्दे की बात है | वो भी तब जब औजार भी फावड़ा कुदाल रहे होंगे | १००० टन सोना मिलने पर उन खोदने वालों के घर वालों को ढूंढ कर मोटा इनाम दिया जाना चाहिए |
अब सोना मिलता है या नहीं ये तो वक्त बताएगा | फिलहाल माहौल बना हुआ है | दावों और मौज के दौर चल रहे हैं | मजा आ रहा | आप भी मजे लेते रहिये | हम भी चलते हैं , रात के खाने का प्रबंध करने में माता श्री की सहयता करने की कोशिश की जाए | फिर रात होने वाली है, फिर कोई सपना देखेगा, फिर बवाल कटेगा | हम आपसे फिर मिलेंगे |
तब तक के लिए सोना मत, सोने पर नज़र रखना |
-- देवांशु
P.S. : पिछले दिनों हमारा जन्मदिन बीता | बी टेक के पासिंग मार्क्स बोले तो ३० नंबर ( साल ) जुगाड़ लिए | मजा आया | आप सब की “हैप्पी-बड्डे-टू-यू" ने माहौल बना दिया | आप सबका खूब सारा थैंक यू |
शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013
The “Talented” Culprit Since 1992
Someone has well said “People always want to see not the rise of great man but actually the fall”. Agree. Write something against the greatest (most popular) possible person in your book and your book will become a best-seller. So I thought why not fly the kite in the blowing wind.
The sweetest target I found from current affairs is none other than Mr. Sachin Ramesh Tendulkar (My MS word was saying that there were spelling mistakes in the last two word which I have written, don’t worry MS, I have added them in to dictionary). According to me, he is a real culprit. Let me prove that ( Believe me I am very good at that ).
OK, let’s start with Mr. Abdul Qadir, one of the greatest spinners which Pakistan has ever produced. He was the first person to see the demon in the hardly 5ft tall little kid. Curly hair, height little longer than the stump, power in mind and the same name “Power “on the bat, this kid at that time hit 4 sixes in a single over in one of the exhibition match between the two teams. And as the wheel of time rotated, world saw many more victims likes of Mr. Shane Warne, for whom this little kid became the nightmare. We are lucky enough to be born as an Indian otherwise we couldn’t have watched and enjoyed him at the same time.
Another set of people belongs, for whom he is a culprit, are from his home country and more importantly from his own team. Everyone knows about the one time record partnership between two batsmen at the school level. My Mr. Culprit along with his “Jai-Veeru” partner Mr. Vinod G. Kambali, kept on batting even their Guru Mr. Acharekar, a Dronacharya Awardee, kept on asking them to declare the inning. And these two guys never looked at him. The victim is not Mr. Acharekar but Mr. Amol Mazumdar ( the highest run getter in the Ranji Trophy ) was on the bench with pads on. He never became a international player though he made 260* on his debut in first class. Not only Mr. Mazumdar, many more to count. He is a dangerous culprit. Isn’t he??
As per my analysis, the next bunch of victims again the bowlers who indirectly got one of the worst possible hammering from the batsmen likes of Viru Sehwag and UV Singh. These two claims that they are the biggest fan of the son of Marathi Novelist Mr. Ramesh Tendulkar. Neither me nor Mr. Stuart Broad can forget the evening in “Safari” when he was hit for 6 sixes in a single over of UV. Sachin, who once wanted to be a fast bowler and joined the MRF Pace foundation as well, became the culprit for so many bowlers not only directly but indirectly also in such cases.
My allegation finds next set of evidence from the home country players of this master blaster. There are two ways in which he has harmed. Firstly, because of his status, sometime he praises the bowler from the opponent side and that bowler becomes headache for rest of the Indian team. One such incident I remember when India was playing against Sri Lanka in Australia, after taking a single on the yorker length delivery from “Slinga” Mallinga, when Sachin reached at non-striker end, he praises the bowler for such a nice delivery and next ball, Gauti was bowled out. What a culprit is he? Second way, which is again due to his status, in which he has destroyed the players likes of Rohit Sharma. Some players got the appreciation from Mr. Tendulakar, in the beginning and couldn’t carry out the expectation in future. Hope they will understand how this person has groomed up in the career. I am writing this to prove my point that he is a culprit as I am also a fan Gauti and Rohit…
And finally the victims of this Master act is a complete generation whom people like me and you belong. We have “Utilized” so much of our time in watching Cricket and the reason for that always been HE. If he is playing then to watch him otherwise to watch how India will perform in absence of him. My mom always says, If I wouldn’t have wasted so much time in watching cricket ( As I used to watch complete match, then the news to see how Doordarshan is going to praise him and then again the highlights which used to be broadcasted during late night hours ),I would have become IITian . But whatever I am today, I am lucky enough to be alive in an arena when this master blaster has brutally and ruthlessly has tore the bowling attack of opponents, apart.
Anyway, whatever “Saakshya” (the Sanskrit word for evidence) I have given here to prove him a culprit, I , as many other cricket followers, worship him. I can stop all my important work to watch him completing 200* against Proteas and can jump over it when Ravi Shastri declares “First man on the planet to reach there and he is superman from India..take a bow master”..
Just because of this “Talented” gem of India, I am dedicatedly watching and following this magical game of cricket since 1992, and he remains a “Culprit “ since then…and if there is any sin related for him being the culprit …. I am ready to take that on my name……
--Devanshu
( Since yesterday I am having a strange feeling, the test cricket, the format which I enjoyed the most how will it be when Sachin will not be there. )
मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013
ट्युज॒डेज विध मोरी : ए बुक टू चेरिश !!!
“Have I ever told you about the tension of opposite” he says. The tension of opposite ? “life is a series of pulls back and forth. You want to do one thing, but you are bound to do something else. Something hurts you, yet you know it shouldn’t. You take certain thing for granted, even when you know you should never take anything for granted. “A tension of opposite like a pull on a rubber band. And most of us lives somewhere in the middle.” Sounds like a wrestling match, I say. “A wrestling match” He laughs. “Yes, you could describe life that way.” So which side wins, I ask? “Which side wins?” He smiles at me, the crinkled eyes, the crooked teeth. “Love wins, Love always wins.” |
सोमवार, 19 अगस्त 2013
१५ अगस्त का तोड़ू-फोड़ू दिन !!!
गप्प-गोष्ठी पार्ट-२ शुरू हुआ | बीच बीच में फोटो खीच के सोनल फेसबुक पर डालती रहीं | ऐसे ही टाइप की एक मीटिंग लास्ट इयर भी भई रही | हम पहले ही बोले थे सोनल को की किसी और को भी बुला लेना वरना लगेगा की लास्ट इयर की डाल दिहिन हैं फोटो | पर अनु जी ने ना आकर हमें बचा लिया | लेकिन परशांत बाबू यही कमेन्ट कर दिए ( इंगेजमेंट के बाद इंसान काफी प्रेडिक्टेबल हो जाता है ) | उनसे भी निपटा गया |
सही बताएं तो भूल गए हैं की कौन कौन सी बात पर और कित्ता हँसे | पर हँसे बहुत | फिर ये हुआ की कॉफ़ी पी जाए | हमने कहा हम बना देते हैं | काफ़ी बनाई तो शर्त ये रखी गयी की पियेंगे तब , जब तुम ट्रे में सजा के लाओगे | हम बहुत सीधे वाले बच्चे हैं , फटाफट मान गए | पर शिखा जी ने तुरंत फोटो खींच ली | और सोनल ने फेसबुक पर डाल दी | जनता भी ना !!!!
मनस्ते !!!!
सोमवार, 5 अगस्त 2013
लिफाफे में सादा कागज़ निकलने से हड़कंप
शनिवार, 27 जुलाई 2013
बस ऐसे ही…
दरवाज़ा पटकने से पहले आवाज़ आयी “आप ही लोग जाओ" |
“तुम" कहते हुए वो घूमी |
“हाँ” |
“यहाँ क्या कर रहे हो, और ऐसे कूद के क्यूँ आ रहे हो, दरवाज़े से आते, कोई देख लेगा तो आफत आ जायेगी, और आज तो”
“सुनो"
“क्या है"
“मैं ये कह रहा था" कहते कहते लड़का उसके पास चला गया |
“कुछ मत कहो”
“सुनो तो"
“क्या है!!!!” कहते हुए लड़की उसकी तरफ घूमी, इस बार आंसू ना थमे, ना छुपे |
“कुछ नहीं" कहते हुए लड़के ने उसे बाहों में भर लिया | दिविशा फूट-फूट कर रोने लगी | थोड़ी देर बाद जब वो उससे अलग हुई तो हुए तो डरते हुए लड़के ने बोला ..
“सुनो, तुम बहुत खूबसूरत हो”
“डफर, बस यही बोलोगे”
“आई लव यू दिविशा"
“आई लव यू सुमित" |
इस बार दोनों की आँखों में आंसू थे |
“कोई देर नहीं हुई, तुम इस लड़के को मना करो, मैं सबसे बात कर लूँगा"
“लड़का इतना तो पसंद आ गया है इन लोगो को, उसने भी शायद हाँ कर दी है, अब मुश्किल है"
“भाग चलें अभी"
“नहीं"
कोई नीचे से ऊपर आ रहा था | दिविशा डर गयी | उसकी मम्मी उसे नीचे बुलाने आयी थी | सुमित को वहाँ देखकर वो चौंक गयी |
“बेटा तुम , इतने दिनों बाद, कब आये , पता ही नहीं चला”
“हमेशा की तरह चोर दरवाजे से आंटी, पता कैसे चलता” उसने हँसने की कोशिश की |
“अभी भी नहीं सुधरे तुम, चलो अच्छा है, डिनर करके जाना, आज स्पेशल क्या है वो तो तुम्हें पता ही होगा”
“जी" कहने में उसने सारा जोर लगा दिया |
“अच्छा चलो अब नीचे तुम लोग, वो लोग आते ही होंगे , तुम्हारे मम्मी पापा भी आ रहे होंगे सुमित" |
“जी"
दोनों उनके पीछे जीने से उतरने लगे | आगे की सारी बातें आँखों से हो रही थी | ड्राइंग रूम से अब हँसने की आवाजें आने लगी थी | दिविशा की माँ एक बार फिर अंदर आयी और उसे बाहर ले जाने लगीं | उदासी का रंग गहरा भी हुआ और छिटक कर सुमित पर भी जा गिरा | वो उनके पीछे चल पड़ा और ड्राइंग रूम के दरवाजे पर पड़े परदे के ठीक पीछे रुक गया |
शनिवार, 20 जुलाई 2013
यूँ ही, ऐसे ही !!!
बुधवार, 17 जुलाई 2013
डीज़ल-पेट्रोल
अभी थोड़ी देर पहले बी एस पाब्ला जी के फेसबुक स्टेटस पर एक रिलेटिव स्टडी पढी :
“भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार जब आई तो
1 मार्च 1998 को पेट्रोल 23.94, डीज़ल 9.87 और गैस 136 रूपए की थी जबकि बीजेपी सरकार जाते समय 16 नवंबर 2004 को पेट्रोल 37.84, डीज़ल 26.28, गैस 281 की दर से उपलब्ध हो रहा था
मतलब, 6 वर्षों में पेट्रोल में 60%, डीज़ल में 165%, गैस में 106% की वृद्धि की गई
जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो
16 नवंबर 2004 को पेट्रोल 37.84, डीज़ल 26.28, गैस 281 की दर से बिक रहा था और 6 वर्षों बाद जून 2010 को पेट्रोल 51, डीज़ल 40, गैस 345 की दर बाज़ार में था
मतलब, इन 6 वर्षों में पेट्रोल में 34%, डीज़ल में 52%, गैस में 22% की वृद्धि हुई
(मैं किसी राजनैतिक विचारधारा/ दल का समर्थक नहीं, लेकिन हो-हल्ला और हवा हवाई बातें करने वाले खुद जान लें वास्तविकता क्योंकि दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुयों की कीमतें बढ़ना तय है चाहे सरकार कोई भी हो) "
वैसे मुझे भी किसी दल से ज्यादा लेना देना नहीं है लेकिन एक कैलकुलेशन करने का मन कर गया :
मार्च १९९८
कच्चे तेल की कीमत : १२.७५ डॉलर प्रति बैरल
एक्सचेंज रेट : ४२ रुपये प्रति डॉलर
कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : १२.७५*४२ = ५३५.५
नवम्बर २००४
कच्चे तेल की कीमत : ४४.३० डॉलर प्रति बैरल
एक्सचेंज रेट : ४५ रुपये प्रति डॉलर
कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : ४४.३*४५ = १९९३.५
जून २०१०
कच्चे तेल की कीमत : ६७.१२ डॉलर प्रति बैरल
एक्सचेंज रेट : ४६.५६ रुपये प्रति डॉलर
कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : ६७.१२*४६.५६ = ३१२५.१
अगर तुलनात्मक स्टडी की जाए तो १९९८-२००४ के ६ वर्षों में कच्चे तेल की कीमत २७२.२६% बढ़ गयी जबकि तेल के दामों में वृद्धि पेट्रोल में ६०% और डीज़ल में १६५% |
वहीँ २००४-२०१० के कार्यकाल में बाजार मूल्य ५६.७६% की दर से बढ़ गया | और उसके मुकाबले पेट्रोल में ३४% और डीज़ल में ५२% |
यहाँ पर ये भी देखना ज़रूरी है की परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों का असर भी नकारात्मक प्रभाव भारतीय व्यवस्था पर पड़ रहा था | और अभी तो मार्केट बाहर के निवेश के लिए पूरी तरह से खुला है |
तो जहाँ तक मुझे लगता है की ये वर्तमान सरकार का फेल्योर ही कहा जायेगा , पुरानी सरकार के मुकाबले |
गैस की कीमतों की कहानी तो गैस निष्कर्षण के बेसिन के बन्दर बाँट से समझी जा सकती है | मात्र १० प्रतिशत बेसिन खोलकर सप्लाई को कम किया गया और बढ़ती डिमांड के आगे रेट ऊपर जाने लगे | और उसे काउंटर करने के लिए दाम बढ़ाये गए और फिर कैश-ट्रान्सफर की धुआंधार स्कीम आ गयी |
****
मोदी या किसी और की तारीफ़ ना करते हुए, मुझे ये सरकार आर्थिक मामलों पर फिसड्डी नज़र आ रही है | धर्म-जाति अपनी जगह है (और मुझे उनसे कोई वास्ता भी नहीं है) ,पर कम से कम आर्थिक मामलों के चलते मुझे इस सरकार को दुबारा सत्ता में देखने का कोई मन नहीं है |
बाकी सबकी अपनी अपनी एनालिसिस होती है |
आंकड़ों के सूत्र :
एक्सचेंज रेट हिस्ट्री: http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/56465.pdf , http://www.exchangerates.org.uk/USD-INR-30_06_2010-exchange-rate-history.html
क्रूड आयल प्राइस हिस्ट्री : http://www.ioga.com/Special/crudeoil_Hist.htm
-- देवांशु
शनिवार, 13 जुलाई 2013
चीर-फाड़ , पोसमार्टम !!!!
हम रेडियो कमेंट्री के ज़माने के बाद पैदा हुए | पर बिजली महारानी की असीम किरपा के चलते अक्सर रेडियो कमेंट्री से ही काम चलाना पड़ता था | गली महल्ले में उस समत भी हर कोई किरकेट एक्सपर्ट हुआ करता था |
सोमवार, 8 जुलाई 2013
तुमि तो ठेहेरे परदेसी , साथि क्या निभावोगे…
शुक्रवार, 5 जुलाई 2013
ज़िन्दगी की एक शाम और मुक़र्रर मौत का इंतज़ार
ज़िन्दगी की सबसे मुश्किल शाम है ये , मुक़र्रर वक़्त में कुछ आधे घंटे से भी कम का वक़्त रह गया है | सोच रहा हूँ क्या करूँ ? मन करता है की सारे दरवाज़े तोड़ दूं, और आज़ाद कर दूं इस रूह को | पर कायर हूँ , ये नहीं कर सकता | या रोक लूं उस नूर को आँखों से ओझल होने से , पर वो अब नहीं हो सकता , इसे मजबूरी कहूं या एक बार फिर खुद को कायर , ज्यादा फर्क नहीं है दोनों में ही |
And loneliness starts to call
Baby, don't worry, forget your sorrow
'Cause love's gonna conquer it all, all
When you're ready to go and your heart's left in doubt
Don't give up on your faith
Love comes to those who believe it
And that's the way it is
शुक्रवार, 28 जून 2013
च से बन्नच और छ से पिच्चकल्ली
छोटे भ्राता श्री
पहले अक्षर ज्ञान, तो बात ये रही की हम जाना शुरू कर दिए इस्कूल, ये साहब अभी घर में रहते थे | “हमहू बड़े हुई जाई, गाड़ी बिक्की से इस्कूल जाई” | ये उनके कुछ उदगार थे जिसमे इनके ज्ञान-पिपासु होने का संकेत सबसे पहले हमारे माताश्री और पिताश्री को मिला | इन्हें बोला गया कि दादा पढ़ता है, उसी कि किताब से तब तक पढ़ डालो , फिर जाना इस्कूल | इन्होने शब्द ज्ञान आरम्भ किया |
“च" से “बन्नच"
तो जब हमने इनको कहा कि तुम गलत पढ़ रहे हो तो इनका फीडबैक था शुरुआत में लिखा सेंटेंस , एक तुर्रे के साथ “ मम्मी ये दादा को कुछ नहीं आता, सब गलत पढ़े बैठा है, च से चम्मच कहता है, बन्नच नहीं कहता है”|
इससे कुछ दिनों पहले ही हम इनको सिखाए थे “बब्बू पता है कौन चे इच्कूल में पलते हैं , थल थथी थिथू मंदिल |”
खैर ये सब तो भाषा ज्ञान की शुरुआत थी | धीरे-धीरे इनका शब्दों का पिटारा बढ़ निकला | जब ये स्कूल जाने लगे तो एक दिन पापा जी ने श्रुतलेख (इमला) लिखवाया | शब्द बोले गए “दुर्योधन" और “चंद्रमा" | इन्होने लिखे “दउधन” और “चंडमा" | सूते गए |
फिर जब धीरे धीरे इनका ज्ञान और बढ़ा और एक दिन मम्मी टीवी पर कुछ इंग्लिश में लिखा पढ़ रही थी तो इनके मन में एक जिज्ञासा उठी और पूछ बैठे “मम्मी का आपौ पढ़ी-लिखी हो ??” | सूते गए |
पापा कभी-कभी इन्हें घुमाने नहीं ले जाते थे | एक दिन इन्होने अपना दर्द डायरी के हवाले किया :
कुछ दिनों पहले इस डायरी को ढूँढने की कवायद की गयी | डायरी तो मिल गयी, पर ये पन्ना गायब था |
खैर मुद्दा ये नहीं है | मुद्दा ये है कि इनको हमारी दादी जी से कुछ ज्यादा लगाव था | “हमहू बड़े हुई जाई , दादी का बलब लिए जाई और पान खाय के आई” | यहाँ से इनके “गुलकंड” वाले पान के प्रति असीम लगन का पता भी चला, जनता-जनार्दन को |
फिर एक दिन ये हुआ कि इनसे दादी की रसोई की चाय की पत्ती बिखर गयी | इनको लगा कि ये फिर सूते गए | ये घर से निकल लिए कि माहौल ठंडा हो जाए , फिर वापस आते हैं | काफी देर तक ये नहीं आये वापस तो माताश्री घर के बाहर ढूँढने गयीं | “पच्चासा" उस टाइम का सबसे क्रेज वाला गेम हुआ करता था | मम्मी को लगा कि ये वही खेल रहे होंगे | आवाज़ लगाई गयी | साहब का कोई अता पता नहीं |
महल्ले की एक खासियत है यहाँ हर टाइम कोई ना कोई घूमता टहलता मिल जाता है | गुड्डू उर्फ टोका मास्टर वहीँ घूम रहे थे | बोले “का बात भाभी, कहिका ढूंढ रही हउ” | “बब्बू पता नहीं कहाँ निकल गए हैं , आवाज़ लगा रहे, आ ही नहीं रहे |” शक गया कि दूसरे वाले गुड्डू और मोनू के साथ होंगे | गुड्डू (दूसरे वाले) के घर में ताला लगा था , मोनू भी घर पर नहीं थे | इस बीच राजाराम ज्ञान लेकर आ गए “यार गुड्डू अबहीं एक सार बाबा आवा रहे, भीक मांगे वाला” | इसको सुनते ही मम्मी की हालत खराब | युद्ध स्तर पर सर्च शुरू हुई | अब तक महल्ले के कुछ १५-२० लोग इकठ्ठा हो चुके थे | हर तरफ “बाबा बंटूनी”, “पिद्दी", “बब्बू" की आवाजें लग रही थीं | आधा घंटा बीत गया , बब्बू दादा कि कोई खबर नहीं |
मम्मी ने कहा कि “तुम लोग यहाँ ढूंढो, हम पुलिस में रिपोर्ट लिखा के आते हैं” | बब्बू दादा का एक खूबसूरत सा फोटो भी ढूंढ लिया गया |
इस बीच ढूँढने वालों में "दूसरे वाले गुड्डू" की अम्मा भी शामिल हो गयीं | वो किसी के यहाँ बर्तन धोने जा रहीं थीं , रास्ते में गाय ने धक्का दे दिया था तो कीचड़ में गिर गयीं थीं, अपनी धोती बदलने आयीं थी | वो उसी हालत में बब्बू दादा-सर्च अभियान में लग गयीं | इसी दौरान ये बात भी आयी की जब वो घर से निकल रही थीं तो बब्बू दादा उनसे कुछ बात कर रहे थे | अब तक मम्मी तैयार हो गयी थीं पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखवाने जाने के लिए | गुड्डू की अम्मा बोली “ भाभी हमहू चलित है तनी धोती बदल लेई” |
और जैसे ही उन्होंने घर का दरवाज़ा खोला | एक आवाज़ उठी “अरे बंटूनी तो हियाँ बैठे” | बब्बू दादा उन्ही के घर में बंद हो गए थे |
सबसे पहले तो बब्बू दादा को मम्मी-दादी ने गले लगाया, नहलाया-धुलाया ( साहब ज़मीन पर लेटे पाए गए थे ) | फिर सूते गए| हर कोई बधाई देने आने लगा : “बंटूनी मिली गए" |
बाबा बंटूनी का एक संक्षिप्त साक्षात्कार लिया गया जिसमे उन्होंने चाय की पत्ती फ़ैलाने की बात स्वीकारी | उन्होंने ये भी बताया कि जब सब लोग आवाज़ लगा रहे थे तो वो दरवाज़ों के बीच से सब देख रहे थे | कुछ लोगो ने घर के अंदर आवाज़ भी लगाई, पर ये मारे डर के बोले नहीं कि कहीं बाहर निकाल के इन्हें और ना मारा जाए |
इस घटना के बाद से दो बातें हुईं, पहली तो बब्बू दादा महल्ले में और फेमस हो गए, हर कोई इन्हें जानने लगा, एक स्टार वाला रूतबा | दूसरा हम लोगो का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया क्यूंकि घर का वही दरवाज़ा खुला रहता जिसपे या तो दादी का पहरा होता या माता श्री की पैनी निगाह |