मंगलवार, 19 मार्च 2013

ज़हरखुरानी के २ साल !!!

इन दिनों अपने “कट्टा कानपुरी” उर्फ फुरसतिया जी फेसबुक पर अपने असलहों ( स्टेट्स अपडेटस) के साथ छाये हुए हैं | पिछले साल उनकी एक पोस्ट पढ़ी थी जिसमे उन्होंने “कट्टा कानपुरी” के प्रादुर्भाव के बारे में बताया था | पर लिंक कहीं खो गया हमसे | फुरसतिया जी को हम ऑनलाइन धर दबोचे, कि लिंक देओ हमें पढ़ने का मन है | उन्होंने हमें लिंक्स  दिए | हमने पढ़े | वो पोस्ट फुरसतिया जी ने अपने ब्लोगिंग में ७ साल पूरे होने पर लिखी थी | हमने अपनी पहली पोस्ट को देखा तो पाया , २ साल तो हमें भी हो गए | हम बताये अनूप जी को तो वो बोले इस पर पोस्ट लिख मारो, “दुशाला" पोस्ट  | आइडिया हमें भी बढ़िया लगा |

 

वैसे देखें तो दो साल में दो चीज़ें बड़ी कोंसटेंट रहीं | पहला हमारे कंटेंट का लेवल ( पहली बात तो ज्यादातर रहा नहीं, और जो रहा उसका लेवल इतना गिरा हुआ था कि उससे ज्यादा क्या गिरता), और दूसरा हमारा परिचय ( अबाउट मी सेक्शन), २ साल से दिखा रहा है “फिर कभी लिखूंगा आज तो बस इतना ही कि कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ...”|

 

तो सोचा कि इस बार कुछ अपने बारे में लिखा जाए:

 

बचपन में पढ़ाई लैम्प-लालटेन के भरोसे की ( इसलिए नहीं कि बड़े होकर महान बनना था, बल्कि इसलिए कि लाईट नहीं आती है हमारे शहर में शाम के बाद) | मैथ्स और फिजिक्स , पसंदीदा सब्जेक्ट थे | पढ़ने का शौक था पर वो कोर्स की किताब मिलते ही उसे खत्म कर देने तक ही सीमित था | कक्षा ९ में पहली बार प्रेमचंद्र की कहानी “मन्त्र" पढ़ी , उससे पहले भी एक पढ़ी थी उनकी कहानी, पर “मन्त्र" ने बहुत इम्प्रेस किया | उनकी और भी कहानियां पढीं | फिर दसवीं में हिंदी के टीचर, जो खुद भी कविता लिखते थे, उनके संपर्क में आया , और पहली देशभक्ति की कविता लिखी | सेंटी कवितायेँ लिखने का चस्का “आनंद" फिल्म की “मौत तू एक कविता है”  नज़्म सुनकर लगा | गुलज़ार के बारे में तो तब इतना पता नहीं था, पर जगजीत सिंह सुनने की उम्र आ गयी थी | फिर रस्किन की कहानियां पढीं | उनकी कहानियों में जो परिवेश दिखता था वो मुझे अपने शहर से थोड़ा बाहर निकलते ही पड़ने वाले जंगलों सा लगता | डायरी लिखने की भी आदत पड़ गयी जब इंजीनियरिंग एंट्रेंस की तैयारी के लिए देहरादून में था|  ये सिलसिला कॉलेज में भी जारी रहा |  जॉब ज्वाइन करने के बाद भी पढ़ने का स्कोप कम ही रहा और लिखना भी कम ही हो गया ( इन्फैक्ट कुछो नहीं लिखे) |

 

ब्लॉग की दुनिया में पंकज बाबू हमें लेकर आये | हालांकि पंकज हमारे ही शहर से हैं, पर उनसे पहली मुलाक़ात कोलकाता में हुई | फिर वो मुंबई चले गए और मैं बंगलोर | पंकज के दो कॉलेज फ्रेंड मेरे साथ मेरे ही प्रोजेक्ट में थे | उनमें से एक पवन बाबू से पता चला कि पंकज साहब भी कॉलेज के पहले से  लिखते आये थे | उनकी एक डायरी थी जिसे कॉलेज में “ज़हर की पोटली"  कहा जाता और पंकज जैसे ही उसे लेकर आते बोला जाता “आओ डसो" | इसलिए हम अपनी डायरी की बात दबा ले गए | फिर पंकज बाबू कभी कभी कुछ फेसबुक पर शेयर करते और हम चाह कर भी तारीफ़ ना कर पाते क्यूंकि “लखीमपुर में सब कविता लिखते हैं का???' जैसे उदगार मिलने का डर था ( जो बाद में मिला) |कॉलेज में जब कोई बहुत बेसुरा गाता था तो उससे कहते थे कि “यार बहुत अच्छा गाते हो, स्टेज पर ट्राई करो” | फिर वो पूछता कि क्या बहुत अच्छा गा रहा हूँ ? हम जवाब देते नहीं यार, वो अकेले मैं कितना मारूंगा तुम्हें और लोग भी होने चाहिए ना  | गुडगाँव में जब पंकज के साथ शिफ्ट हुए तो पंकज ने भी कहा “ब्लॉग पर लिखो बे”  जब पंकज को अपनी डायरी से कुछ सुनाया | कुछ कुच्छ बेसुरा गाने वाले सी फीलिंग आ गयी | जब ब्लॉग लिखा तो पंकज के उन्ही दोस्त का कहना था कि पंकज ने हमें भी डस लिया |

 

ये तो था कुछ अपने बारे में | एक पोस्ट नोर्मल टाइप का परिचय लिखने के बाद शुरुआत कविताओं से की , ज्यादातर कवितायेँ कॉलेज टाइम की लिखी हुई थी | पुराना माल ही डाले पड़े थे | फिर धीरे धीरे और लोगो को पढ़ना शुरू किया ब्लॉग पर |इस बीच हृषिकेश गए तो लौटकर रस्ते में हुई खुराफातों को लिखना चाहा | सोचा कि कविताओं से इसको मिक्स ना किया जाए | उस समय मनोहर श्याम जोशी की  "कुरु कुरु स्वाहा” रूम में पढ़ी जा रही थी | कुछ-कुछ उसी से इम्प्रेस होकर नए ब्लॉग का नाम रखा “अगड़म बगड़म स्वाहा" | शुरुआत में ऊंचा कंटेंट लिखने कि कोशिश की , पर जल्दी ही पता चल गया कि अपन का लेवल उतना है नहीं , औकात पर आ गए |

 

फिर एक बार अनूप जी ने “चिट्ठा चर्चा” पर हमारे ब्लॉग की चर्चा की, हम तो खुश हो गए | उस समय अमरीका में थे, कार ड्राईविंग सीख रहे थे, इंस्ट्रक्शन परमिट पर ही कार चलाते हुए दोस्तों को आइसक्रीम पार्टी पर ले गए | पूजा ने भी अपने ब्लॉग पर हमारे बारे में लिखकर ज़हर फैलाने के उत्साहित किये रखा | बीते दो सालों में जिंदगी ने बड़े उतार चढाव लिए , मूड बदलता रहा , और उसका असर लिखी गयी पोस्टों पर भी पड़ा | अच्छी बात ये रही कि जब अच्छा लिखा ( अगर किसी को लग गया तो, वैसे स्कोप तो कम ही रहा) तो लोगों में जम के पीठ ठोंकी, और जब औकात से भी नीचे गए तो बहुत गरियाये भी गए |

 

पर ये ब्लॉग की दुनिया है अपने आप में  बड़ी इंटरेस्टिंग | कितने लोग हैं जिनका लिखा, पढ़ा है केवल, फोन पर कभी कभी बात हुई है | बहुत कम लोगो से मिले हैं | दरअसल मेरे प्रोजेक्ट टीम भी ज्यादातर बंगलोर और पुणे में है तो इस समय  चाहे वो ऑफिस के लोग हों या ब्लॉग दुनिया के , सबसे एक वर्चुअल दुनिया में ही मिलना हो रहा है , काम भी वैसे ही होता है ,खाली टाइम भी वैसे ही बीतता है|

 

पहली बार अनूप जी को पढ़े तो हँसते हँसते पगलाय गए थे | सबसे पहले उनकी पोस्ट पढ़ी थी “शंकर जी अंग्रेजी सीख रहे है" | उस समय क्यूबिकल में आशीष भाई साथ में बैठते थे , उनको भी पढाये | दोनों फैन हो गए फुरसतिया के | फिर तो दोनों ढूंढ ढूंढ के उनकी पोस्ट पढ़ते | ऑफिस में भी काम कम था तो दोनों वहीँ पढ़ पढ़ के हंसते | पिछले दिनों अनूप जी जब दिल्ली आये तो उनसे मिलना हुआ| बड़ा अच्छा लगा | वहीं से व्हाट्स एप पर आशीष को मेसेज कर बताये अनूप जी के साथ हैं | वो भी खुश हो गये और बोले “बढ़िया है” | वहीं पर विनीत कुमार से भी मिलना हुआ | बड़े खतरनाक मनई हैं वो भी | बहुत कम टाइम के लिए शिव जी से भी मिले |

 

अनूप जी के अलावा प्रशांत (पीडी) और अभिषेक से भी एक -दो बार मुलाकात हुई | अभिषेक से तो पुस्तक मेले में भी मिले | पिछले साल शिखा जी भारत आयी | तो उनके साथ सोनल और अनु जी से भी मिलना हुआ | शिखा जी ने अपनी किताब “स्मृतियों में रूस" गिफ्ट की हमें, अपने आटोग्राफ के साथ | पीडी के साथ ही आराधना से भी मिलना हुआ था पिछले साल |

 

कुछ लोगो को तो फोन पर भी बहुत पकाया है , जिसमे अभिषेक बाबू और मोनाली  मेन  हैं |  बस ऐसे ही टाइम कट रहा है | ऐसे ही कटता रहे तो मजा आता रहे |

 

बाकी उधार का एक डायलोग ये भी है कि “यार अगर रूम-मेट ब्लॉगर हो तो बड़ा मुश्किल है जीना” | समझ जाओ कौन कहेगा Smile Smile Smile|

 

P.S. : पिछले दो सालों में अगर किसी से मिला या उसे फोन पर पकाया हो, और उसका नाम छूट गया हो तो इसे मेरी गलती समझा जाए | ऐसा नहीं है कि  मैं आपको भूल गया और अब नहीं पकाऊंगा, वो क्या है ना कि मिस्टेक भी गलती से एक ही बार करते हैं |

 

बाकी तो ई पब्लिक है, सबै कुछ जानती है | नीचे कुछ  फोटू हैं , खच्चाक …

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--देवांशु

14 टिप्‍पणियां:

  1. badhai do sal pure hone par, likhte rahein aur yun hi pakaate rahein kynki aapke paathkon ko, jinme ab mai bhi shamil hun, pakna accha lagta hai. shubhkamnayein...

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  2. पूरे उन्नीस दिन लेट! एक मार्च को दो साल हुये और दुसाला पोस्ट लिखी गयी उन्नीस मार्च को। ये है असल कारण देश का GDP गड़बड़ाने का। देश का युवा लेट लतीफ़ हो गया है। :)

    बाकी पोस्ट चकाचक है। सारे लिंक देखे। तुम्हारी पहली पोस्ट पर टिपिया के हिसाब भी बराबर कर दिये।

    पंकज बाबू ने तुमको ब्लॉगिंग में धकेला , अच्छा किया। लेकिन अब खुद लिखना कम कर दिया ये गड़बड़ बात। लिखने के साधन जित्ते सुलभ होते गये लिखना उत्ता दुर्लभ होता गया उनका। अमेरिका जाने के बाद तो अनपढ़ भी अपने संस्मरण लिखता है- व्हाट ए कंट्री। लेकिन पंकज बाबू उसको भी पचा गये।

    बाकी शुभकामनायें। लिखते रहो तो भ्रम बना रहा रहेगा कि कुछ अलग टाइप के हो वर्ना तो .........।

    जय हो!

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    1. पंकज बाबू के बारे में हम कुछ बोलेंगे तो वो कहेंगे की "यार अगर रूम-मेट ब्लॉगर हो तो बड़ा मुश्किल है जीना” | अभी हम कुछ ना बोलेंगे :) :) :)

      लेट तो हो गए हैं, उसके लिए माफी, लिखने के क्रम को आगे जारी रखने की कोशिश रहेगी :) :) :)

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  3. अबे, तुम मुझसे ब्लॉग लिखने से पहले से जानते हो.. भूल गए क्या? या के फिर से वो पोस्ट शेयर करूँ फेसबुक पर?

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    1. अरे हम कहाँ लिखे की तुमसे ब्लॉग लिखने के बाद ही मिले :) :)

      दुबारा मिलने कब आ रहे हो?? काफी पिलायेंगे :) :)

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    2. आ रहे हैं मई में, पता तो है ही तुम्हें. :)

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    3. लॉन्ग टर्म मेमोरी लास हो गया है बे :) :)

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    4. यादाश्त वापस लाने के उपायों का जिक्र मैंने यहाँ कर रहा है. पढो, शायद तुम्हारे काम आ सके - http://prashant7aug.blogspot.com/2009/03/blog-post_18.html

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  4. मुबारक हो मुबारक हो.
    ये बोले तो ऐसा हो गया कि पंकज ने तुम्हें डसा तो जहर अपना सब निकाल दिया अब तुम लिखो वो आराम करेंगे :):).
    बरहाल लिखते रहो, लिखते रहो.

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  5. क्या बात है -पता नहीं हम आपमें और अभिषेक ओझा जी में अक्सर कन्फ्यूज कर जाते हैं :-(

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