सोमवार, 1 जुलाई 2019

नाम में कुछ तो रखा है !!! ( इश्क वाली कहानी भाग -२ )

कहने को तो बड़े लोग कह गए हैं की नाम में कुछ रखा नहीं , पर नाम जाने बिना काम चलता भी कहाँ है | जैसे चेहरा पहचानने से ज़्यादा अंतर भेदने के काम आता है, कुछ कुछ वैसा ही नाम के साथ है | नाम ऐसी बला है जो है तो आपकी पर उसका उपयोग सबसे ज्यादा दूसरे करते हैं , जैसे रिक्शेवाले का रिक्शा हो : होता रिक्शेवाले का है पर बैठते और लोग ही हैं |

इसलिए नाम की महिमा अपरम्पार न भी हो तो अपार तो है ही...

तो , अब तक की कहानी में ( मने भूमिका की भी भूमिका में ) आपने जाना कालोनी , घर और हमारे अब तक के तीन पात्रों के बारे में | अब चूँकि ये तीनों काफी दूर तक जायेंगे तो इनके नाम भी पता होने ज़रूरी हैं | चीज़ों का आईडिया रहेगा |

नायकों को नाम देना उतना ही मुश्किल काम है मेरे लिए जितना कोई एक कहानी कह पाना | इसलिए नाम अप्रसांगिक लगें तो गलती मेरी होगी |

ये कहना मुश्किल है की तीनों में कहानी का मुख्य पात्र कौन सा है इसलिए परिचय एक बार फिर कालोनी के भूगोल के आधार पर कराने की कोशिश कर रहा हूँ |

दो दोस्तों के घर की दीवारें कॉमन नहीं हैं पर कोने कॉमन हैं | उसमे से एक का नाम शिव और एक का नाम शेखर  है |शेखर  को घर में शेखू  भी कहते हैं | शिव के पिताजी शहर के नामचीन दवाइयों के सप्लयार हैं | शेखर  का अपना घरेलू व्यापार है, घरों के रख रखाव के सामान का | तीसरे दोस्त रवि का घर भौगोलिक रूप से डिस्कनेक्टेड है बाकी दोनों से | शिव और रवि की गली एक है पर घर डायगोनली अपोजिट | रवि के बगल वाला घर शिव के घर के ठीक सामने है और अभी तक "तालायमान" है |

शेखू छत फांद कर अक्सर शिव के घर आ जाता है और चूँकि शिव की पढाई का कमरा ऊपर ही है , इसलिए अक्सर वहीँ पाया जाता है | शेखू  का पढ़ाई से नाता बहुत दूर के फूफा के पड़ोसी जैसा है | शिव को पढाई में इंटरेस्ट है या नहीं, इस पर विद्वानों में मतभेद है , क्यूंकि वो उनके साथ भी रहता है जिनको पढाई में इंटरेस्ट है ( जैसे रवि) और उनके साथ भी , जिनको इससे कुछ लेना देना नहीं है ( जैसे अपना शेखू ) | शिव अपने  ऊपर डॉक्टर या इंजिनियर बनने  का सामाजिक दबाव महसूस करता है , और चूंकि अब वो  नौवीं में आ गया  हैं इसलिए अत्यधित ऊंचाई ज्यादा दबाव डाल  रही है |

बात जहाँ तक रवि  की है , तो उसका मामला क्लियर है , उसे न डॉक्टर बनना है और ना इंजिनियर , क्यूंकि पिताजी डॉक्टर  हैं और माँ इंजिनियर रह  चुकी  हैं | वो आर्मी में जाना  चाहता है , पढ़ने का शौक है उसे |

कहानी पढ़ाई पर आकर अटक गयी , इसलिये थोड़ा भटका जाए |

शिव के मामा , जो कहीं बाहर सेटल हो गए हैं , गर्मियों की छुट्टियों में  उसके लिए वीडियो गेम लेकर आये , पर उस पर एकक्षत्र  साम्राज्य शेखू का है , खासकर मारिओ  और डकहंट  पर उसका हाथ काफी साफ है |  रवि को टैंक और टेनिस पसंद है | शिव मोरल सपोर्ट देने में विश्वास रखता है |

तीनों अपने घरवालों की नज़रों में शिव के कमरे में मिलते हैं और पढ़ते हैं , बाकी का आईडिया आप लोगों को लग गया होगा | इसके आलावा  तीनों  के मिलने की एक और ख़ुफ़िया जगह है |  और इस जगह पर मिलकर बैठने की ज़रुरत उसी लिए है जो नौवीं के लड़कों को अक्सर होती है |

अरे भावनाओं में बहकर आप भी ना जाने क्या क्या सोचने लगे | अरे लड़कों ने केवल दो कामों के लिए वो ख़ुफ़िया जगह बनायी है , एक तो पेपर में आने वाले साप्ताहिक "रंगायन" के इम्पोर्टेन्ट नोट्स इकट्ठे कर लें ( "रंगायन" का आईडिया आपको अगर नहीं है तो बता दूँ वो महिला सशक्तिकरण वाला अखबार है जिसमें  फोटो और कंटेंट दोनों में प्राथमिकता महिलाओं को दी जाती है ) | दूसरा काम है , बिजली के तारों और बल्बों से खुराफात | इसी ख़ुफ़िया जगह पर ही पिछली दीवाली तीनों को शानदार आईडिया आया था की क्यों ना पूरी कालोनी  की झालरों को आपस में जोड़कर ऐसे सिंक किया जाए की सारे झालरें एक साथ जलें  और बुझें | टेस्टिंग  भी इसी जगह की गयी | बस हाँ, पूरी कालोनी ने दिवाली दिए जलाकर मनाई , वो बात अलग है | मामला एको -फ्रेंडली  रहा |  तीनों के घरों के फ्यूज़ बल्ब यहाँ पाए जा सकते हैं जिनको दुबारा जलाकर थॉमस अल्वा एडिसन की आत्मा को ठंडक पहुंचाई जाती है और असफल होने पर , रंग बिरंगा पानी भरकर बल्बों को लटका दिया जाता है |

खैर , अब आते हैं की ये ख़ुफ़िया जगह है कहाँ | तो ये जगह है शिव के घर के ठीक सामने वाले "तालायमान" घर में | जिसकी छत रवि की छत से मिलती है और वहां पहुँचने का जरिया भी वही छत है | बिजली  का कनेक्शन भी तार के ज़रिये रवि के घर से पहुँचाया गया है |

इस जगह के खोजे जाने की भी एक छोटी सी कहानी है |  दरसल एक बार रवि और शिव ने मिलकर शेखू को चैलेन्ज दिया था की इस घर में घुसकर दिखाओ , रात में १२ बजे | शेखू जय बजरंगबली करता घुस गया, छत के रास्ते  | पीछे बाकी दोनों भी पहुँच गए | एक कमरा जो थोड़ा अलग सा पड़ता था , और  जिसकी खिड़की से केवल शिव की खिड़की दिखती थी, वो तीनो को पसंद आ गया , नाम दिया गया "प्रयोगशाला"   | बाकी जुगाड़ भी सेट कर लिए गए |

वर्तमान में ,  कमरे की दीवारों पर "रंगायन" के नोट्स चस्पा हैं | चित्रों को प्राथमिकता दी गयी है और सिर्फ उन्हीं से कमरा सुसज्जित है | लाखों के दिलों की धड़कन , "ममता कुलकर्णी" का एक बड़ा चित्र है | जिसे बीचों बीच जगह मिली है | बाकी दीवारों  पर या तो तार हैं या बल्ब |

तीनों खाना खाने के बाद अक्सर यहाँ मिलते हैं | क्यूंकि इस टाइम तीनों , ऑफिशियली पढ़ने की समय सीमा से बाहर  होते हैं |

*****
आज सुबह एक आदमी बहुत सारा पेंट और बाकी सामान खरीदने शेखू की दूकान पर आया , शेखू वहीँ था और पता कन्फर्म किया तो  रवि के घर के सामने वाला घर निकला है | कल  से काम शुरू होना है , कोई एक फैमिली शिफ्ट होने जा रही है | तीन लोग हैं , हस्बैंड - वाइफ और एक "लड़की" | कल वो लोग भी घर देखने आ  रहे हैं | 

शेखु का दिल लड़की सुनकर उछला तो है | पर "प्रयोगशाला" की सफाई ज्यादा ज़रूरी है | बेज्जती ख़राब होने का डर  है | 

दोपहर में ही रवि और शिव को इत्तिला कर दी गयी |  शाम को सफाई के लिए के लिए और प्रयोगशाला को अंतिम विदाई देने के लिए इकठ्ठा हुआ गया |  उस  वक़्त ना किसी को आना था , ना किसी को जाना | पर पता नहीं किस बात की हड़बड़ी मचाई गयी | सारे तार रवि के घर में , बल्ब उसी घर की छत पर फेंक दिए | नोट्स नोचकर पिछली  गली में फेंके गए | सारी  दीवारें साफ़ करके जब सेना रवि के  घर में राहत की सांस ले ही  थी , की तभी कॉमन ख़याल आया की ममता कुलकर्णी तो वहीँ रह गयीं |  अब लाइट बची नहीं थी नहीं तो अँधेरे में टटोलते टटोलते , ममता कुलकर्णी को भी उतारा गया और वापस कमरे में पहुँच कर रियलाइज़ हुआ की उनके कुछ विशेष "हिस्से" वहीँ कमरे में रह गए | पर अब वापस जाना किसी को ज़रूरी नहीं लगा | 

****

तीनों वापस छत  पर आ बैठे |  
शेखू  बोला " हो ना हो यहाँ अपने शिव की सेटिंग हो जाएगी " | 
"कैसे" आवाज़ में अजब सी असहिष्णुता थी और आवाज़ रवि की थी | 
"अबे मेरा अंदाज़ा है " शेखू बोले | 
"देखते हैं" रवि की आवाज़ में इसबार थोड़ी आह थी | 


ये हाल तब था , जबकि कड़की "है" के आलावा और कुछ पता भी नहीं था | उस घर के दरवाज़े पर लटके कुए ताले पर प्रेशर बहुत ज्यादा ही बढ़ चुका था | 

शेखू ने "किस" शब्द पर जोर देते हुए ये गाना गाया और शिव ब्लश करने लगा... 





शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

साध्वी प्रज्ञा पर काफ़ी सवालों के जवाब तो लिब्रल्स को भी देने हैं

साध्वी प्रज्ञा , असीमानंद और कर्नल पुरोहित : सबके केस में जितने जवाब हैं उससे कहीं ज़्यादा सवाल । मसलन :

१. जब समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के चलते अमरीका पाकिस्तानी आतंकवादियों पर बैन लगा रहा था तब भारतीय एजेंसियों ने उस तरफ़ ध्यान क्यूँ नहीं दिया ?

२. शहीद हेमंत करकरे का नाम दो बार आता है : एक तो मुंबई हमले के दौरान और दूसरा साध्वी प्रज्ञा के मामले में । एक तीसरी जगह भी उनका नाम आता है : दिग्विजय सिंह स्वीकारते हैं कि करकरे उनको फ़ोन करते रहते थे और चल रहे केस के बारे में बातें होती थीं । जहाँ तक मुझे याद है दिग्विजय सिंह किसी ऐसे मंत्रालय में नहीं थे की पुलिस का कोई भी अधिकारी उनको रिपोर्ट करे , तो फिर इस कम्यूनिकेशन का क्या मतलब था ?

३. विकिलीक्स के मुताबिक़ राहुल गांधी ने “धर्म विशेष के आतंकवाद” की बात अमेरिकी राजदूत से की थी । मुंबई हमले के निशाने पर भारतीयों के बाद कोई था तो अमरीकी और इज़रायली । अमेरिका में क़ैद हेडली भी अपने बयान में मुंबई हमले के आतंकवादियों के हाथों में कलावे बँधवाने की बात क़बूलता है । इसके क्या मायने लगाए जाएँ ?

४. जब कर्नल पुरोहित सेना की जाँच में क्लीन चिट पा गए थे तो सरकार की ऐसी कौन सी जाँच चल रही थी जो ना उन्हें छोड़ पा रही थी ना कोई आरोप हाई साबित कर पा रही थी ?

५. एक आतंकवादी की फाँसी से लेकर भारत के टुकड़े होने की बात करने वालों के मानवाधिकारों की बात करने वाला लिब्रल गैंग और राजनैतिक दल , साध्वी के अधिकारों के मामले में मिट्टी में सर क्यूँ घुसेड़ लेते हैं । सबने देखी थी उनकी दशा । कसाब के लिए बिरयानी की वकालत पर साध्वी के लिए ऐसा बर्ताव क्यूँ ?

क्या है कोई जवाब ? NIA ने साध्वी प्रज्ञा को आरोपों से बरी कर दिया है । अदालत में केस जारी है परंतु बेल उन्हें मिली हुई है । तो क्या सारा हंगामा बेल पर होने का है ? लगता तो नहीं क्यूँकि एक ओर ‘बेलगाड़ी’ पर सवार हज़ूम के तो ये लिब्रल बलैयाँ लिए नहीं थक रहे ।

लिखने की ज़रूरत नहीं है , पर सब जानते हैं की साध्वी के बहाने निशाने पर कौन है ।

२०१९ का चुनाव और मज़ेदार हो चला है !!!

मंगलवार, 26 मार्च 2019

घाटे की अर्थव्यवस्था और मिनिमम आय का झुनझुना !!!

इकोनॉमिक्स में जब बजट के  बारे में पढ़ाया जाता है तो घाटे की अर्थव्यवस्था के बारे में पढ़ाया जाता है | जिसका सार ये होता है कि  बजट बनाते वक़्त खर्चों को आय से ज्यादा दिखाया जाता है और बजट में कोशिश की जाती है की इस अंतर को कम किया जाए | इस अंतर को , जिसे घाटा कहते हैं , कम करने के दो तरीके होते हैं :

१. खर्चा घटाओ 
२. आय बढ़ाओ 

एक देश की अर्थव्यवस्था में खर्चा घटाने में सबसे कारगर तरीके जो भी होते हैं उसमें आखिर में जनता ही पिसती है , एक लोकतंत्र में ऐसे निर्णय "आत्महत्या" ही कहलाते हैं : जैसे सब्सिडी ख़त्म करना इत्यादि | इसलिए सरकारें आय बढ़ाने का काम करती हैं | आय बढ़ाने के दो स्त्रोत होते हैं :

१. टैक्स बढ़ाना 
२. नयी करेंसी छापना 

दोनों के अपने फायदे नुक्सान होते हैं | 

नयी करेंसी छपने पर रिज़र्व बैंक पर दबाव आता है , जिससे मुद्रा का अवमूल्यन होता है | विदेशी मुद्राएं मज़बूत  होती हैं | इससे वस्तुओं का आयात महंगा होता है , भारत में खासकर पेट्रोल और डीज़ल का | जो चक्रीय क्रम में महंगाई को बढ़ाता है | 

टैक्स बढ़ाने पर  ख़ास वर्ग , और भारत की बात करें तो मध्यम वर्ग पर इसका सबसे ज्यादा बोझ आता है | आमदनी पर टैक्स बढ़ता है और साथ ही वस्तुओं की खरीद पर पर भी |  बिज़नेस पर असर अलग पड़ता है | पर बाकी फैक्टर काफी हद तक काबू में रहते हैं |  इसलिए सरकारें जब घाटा कम करने का प्रयास करती हैं तो एक बैलेंस बनाने का काम करती हैं पर इसमें हमेशा टैक्स बढ़ने वाला पोरशन ज्यादा होता है | 

कुल मिलाकर जितना ज्यादा घाटा , मध्यम वर्ग पर उतना दबाव | 

अब जो खर्चे होते हैं , उसका बड़ा हिस्सा , कम से कम भारत जैसे  देशों में सब्सिडी में जाता है | इसमें सबसे ज्यादा घोटाले भी होते हैं | सब्सिडी से चीज़ें सस्ती होती हैं तो कालाबाज़ारी भी बढ़ती है | कहीं ना कहीं घोटालों और कालाबाज़ारी का ये पैसा सिस्टम से बाहर चला जाता है , जो फिर घाटे का कारक होता है | 

इसको रोकने का एक कारगर उपाय "डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर" है | इसमें चीज़ें सस्ती ना करके उसकी सब्सिडी डायरेक्ट खाते में दी जाती है  | पैसे को सिस्टम में वापस लाने के लिए डेमोनीटाइजेशन जैसे कदम उठाने पड़ते हैं जिनके अपने अलग फायदे नुक्सान हैं | 

कुल मिलाकर खर्चे जितने बढ़ेंगे , नुक्सान , इकॉनमी का होगा और आखिर में देश का होगा | आज या कल पिसेंगे सभी | 

अब आते हैं चुनाव में ताज़ा ताज़ा घोषित किये गए मिनिमम आय के वादे पर | ये दो धारी तलवार ही है | जिस १२००० रुपये प्रतिमाह दिए जाने की बात हो रही है , आप खुद सोचिये देश का कितना बड़ा मज़दूर और छोटे उद्यम करने वाला वर्ग है जिसकी आय इससे कम है |  उन सबको उस वर्ग में ना भी रखें तो भी एक बहुत बड़ा वर्ग इन कामों को करने की बजाय गरीब रहना ही पसंद करेगा | नतीजा कारखाने में काम करने वाले या तो कम हो जाएंगे या उनका मानदेय बढ़ेगा | मैं मानदेय बढ़ने का पक्षधर हूँ , पर इसका दूसरा प्रभाव ये होगा की सस्ते लेबर की तलाश में कारखाने भारत से बाहर शिफ्ट होने लगेंगे | इसका उदाहरण आईटी  सेक्टर से लिया जा सकता है , आज से १५ साल पहले भारत करीब ८०% तक आईटी सेक्टर में था , अब ये संख्या करीब ५०-५२% है | 

दूसरा , घाटा बढ़ेगा क्यूंकि खर्चा बढ़ेगा , तो इसका असर कमाई करने वाले , खासकर टैक्स देने वाले वर्ग पर पड़ेगा | टैक्स बढ़ेंगे | पर टैक्स भी एक लेवल तक ही लिया जा सकता है , उसके बाद नयी करेंसी छपनी पड़ेगी , जो घूम फिर के महंगाई बढ़ाएगी | 

तीसरा , परोक्ष असर | जितनी महंगाई बढ़ेगी पैसा बैंक  निकलकर लोगों के हाथ में जाएगा , नतीजा बैंकों को सर्वाइव करने के लिए , पैसे का इंटेक बढ़ाना पड़ेगा नतीजा सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज बढ़ेगा तो लोन भी महंगे होंगे | सेविंग्स पर ब्याज बढ़ते ही निवेश बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा वो अलग | 

हो सकता है , शुरुआत में कुछ लोगों को फायदा हो , पर ऐसी योजनाएं बहुत दिन तक सरकार भी चला नहीं पाएगी या फिर उसे देश से बाहर की संस्थाओं से ऋण  लेना पड़ेगा | नतीजा फिर वही डूबती अर्थव्यवस्था | 

कुल मिलाकर फायदा किसी को नहीं होगा और नुक्सान में पूरा देश रहेगा | हाँ जिनका मकसद सिर्फ सत्ता पाना है  ,वो घोटालों तो   कभी कालाबाज़ारी से अपना रास्ता बना ही लेंगे | 

और अगर आपको ये लग रहा है की  मैं ये सब सिर्फ विरोध के लिए लिख रहा हूँ तो २००९ के चुनाव से ठीक पहले ४०,००० करोड़ रुपये की किसान ऋण माफ़ी वाले कदम के प्रभाव देख लीजियेगा | 

बाकी आखिर में लोकतंत्र है , मर्ज़ी जनता की होती है | २०१९ का चुनाव दिनोदिन अचरज भरा होता जा रहा है | प्रभु राम आपको सही नेता चुनने की शक्ति प्रदान करें !!!!