"बेटा आपके प्लान्स क्या हैं ?" एक बेरुआबदार सा चेहरा , जिसपर मूंछें शायद उगाई ही इसीलिए गयीं थीं कि रुआब ना सही , रुआब की एक झलक तो दिख ही जाए |
पर शिव को कहाँ कुछ याद की उसे आगे क्या करना है , वो तो उन आँखों में खोने की कोशिश कर रहा था , जो उसके सामने थीं | इतना लम्बा इंतज़ार जो किया था , इतनी हसरतें , इतने अरमान !!!!
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तीनों को जबसे पता चला था कि पूरा परिवार घर की सफाई के बहाने घर देखने भी आ रहा है , पूरे परिवार को देखने की उन तीनों की हसरत और बढ़ गयी थी , जिसका कारण पहले बताया जा चुका है |
स्कूटर के रुकने की आवाज़ के साथ ही शिव और शेखू भागकर छज्जे पर पहुंचे | नीचे देखा | हेलमेट लगाए , एक अंकल टाइप आदमी ड्राइवर की सीट पर विराजमान थे | और पीछे की सीट पर जो था वो ना तो उनकी पत्नी और ना ही बेटी लग रहा था | शेखू पहचान गया कि ये तो वही है जो दूकान से पेंट का सामान ले गया | स्कूटर चालक ने जिस रुतबे से सामने वाले घर का ताला खोला , उससे उनके मालिक होने का शक , यकीन में तब्दील हो गया |
मतलब "वो" अभी भी नही आयी | शिव उदास हुआ जो उसका बनता था पर शेखू दनदनाता हुआ नीचे गया , और पीछे रिक्शे पर आये सामान को उतरवाने लगा | शिव ये ऊपर से देख रहा था | जब शेखू की पीठ सामने वाले घर के मालिक ने थपथपाई , शिव को उस मैच में हार जाने की फीलिंग आ गयी जो अभी शुरू भी नहीं हुआ था |
वो अपने कमरे में जाकर बैठ गया , थोड़ी देर में शेखू भी आ गया |
"ये क्या था ?" शिव ने उखड़ते हुए पूछा।
"कुछ नहीं , होने वाली भाभी के पिताजी को पटा रहे थे" एकदम बेपरवाही सा जवाब देते हुए शेखू आगे बोला :
"तुम्हे क्या लगा ? तुम्हारा पत्ता काट दूंगा , नहीं बे , कह दिया वो तेरी सेटिंग है , तेरी ही रहेगी "
"देखा तो है नहीं अभी तक" शिव ने अपना दुखड़ा रोया।
"अच्छा , देखा है नहीं और मुझे उसके पापा से मिलने से भी रोक रहे हो , सही है बे तुम्हारा। खैर ये बताओ शाम की महफ़िल में रवि आ रहा है या नहीं " . शेखू ने वीडियो गेम टटोलते हुए पूछा।
"आता होगा, तुम बैठो मैं कुछ खाने का लेकर आता हूँ " कहकर शिव नीचे गया और वापस खाने और रवि दोनों के साथ आया। थोड़ी देर और गप्पें चलीं। रवि और शेखू गेम में लगे थे और बीच बीच में शिव की टांग खिंचाई चालू थी।
ये सब में कब शाम हो गयी , पता ही नहीं चला। शेखू को घर वापस आने का फरमान हो गया था वो चला गया । रवि कुछ देर और रुकने वाला था। शाम को अक्सर लोग शिव पापा से मिलने आते थे , वो ऊपर ही रहता । उस दिन भी इसी सबका दौर चल रहा था कि अचानक से उसकी मम्मी ने नीचे आने को कहा। वो ऐसे ही चला गया। कमरे में वही स्कूटर चालक बैठे थे जिनका सामने वाला घर है (ये हमारे नायकों ने दोपहर में सिद्ध कर लिया था)। इस बार पूरे परिवार साथ आये थे।
"ये है शिव और ये हैं वर्मा जी , सामने के घर में रहेंगे। ये सुधा आंटी और ये उनकी बेटी शालिनी। " शिव की मम्मी ने एक सांस में परिचय करवा दिया और फिर अपनी बातों में लग गयीं। बातों के दौरान डायलॉग क्या साझा हुए , उस पर ना जाते हुए , उनका सारांश समझ लेते हैं।
वर्मा जी का बड़ा मन था की वो सेना में जाएँ , पर जा ना सके। वहीँ कालेज में प्रोफेसरी कर ली। पर मूछें रखकर रोआब लाने की कोशिश करते रहे ( ऐसा कहा नहीं गया , कुछ तो नायक खुद भी समझदार है ही ) । धर्मपत्नी जी का पैशन संगीत था , भारतीय क्लासिकल। तो उसमें पढ़ाई की थी और अब बच्चों को संगीत सिखाती हैं।
पर ये सब जब बताया जा रहा था , शिव कहीं और खोया हुआ था। और वो कहाँ खोया था , ये किसी को बताने की ज़रुरत नहीं हैं। एक संगीतकार जो सबसे बेहतरीन धुन बना सकता है ,सुधा आंटी की यकीनन वो धुन शालिनी थी। चेहरे पर आकर्षण था। चश्मा लगा रखा था पर उसका काला रिम आँखों की सुंदरता बढ़ा रहा था।
"हाय शिव" की आवाज़ से वो तंद्रा टूटी जो सिर्फ शिव ही समझ सकता था। शालिनी ने उसे हाय बोला था पर उसका जवाब क्या दिया जाए , उसे समझ नहीं आ रहा था।
"शालिनी भी नाइंथ में ही है शिव" शिव के मन में विचारों ( अरमानों पढ़ें) के ज्वार-भाटे को बिना समझे शिव की मम्मी ने बताया। शिव की आवाज़ अभी भी कमरे को अंजान ही थी।
शिव मन में जो सोच रहा था उससे उसकी उम्र का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था। पर वर्मा जी ने चिर परिचित सवाल दाग दिया "बेटा आपके प्लान्स क्या हैं"
शिव के दिमाग में जो प्लान्स थे अगर वो डिटेल में बता देता तो शायद वर्मा जी आज ही घर बदलने पर सोचना शुरू कर देते। इसलिए अपनी भावनाओं को लगाम लगाते हुए शिव ने जवाब दिया :
"अंकल इंजिनियर बनने का मन है" शिव ने जवाब भले अंकल को दिया था पर नज़रें पूरी उनकी तरफ जा नहीं पाईं थीं।
"शालिनी तो डॉक्टर बनना चाहती है" अंकल की आवाज़ में बदले की भावना टाइप सुगंध आयी शिव को। मुरझा गया।
"पर टेंथ तक तो दोनों के सब्जेक्ट सेम रहेंगे" शिव के पिता जी ने जबरदस्त समर्थन जैसा माहौल दिया शिव को। वापस जान आ गयी।
उसके बाद जो बातें वहां हुईं , उसमें शिव को कुछ सुनाई नहीं दिया या शायद सुनना भी नहीं चाहा। उसकी नज़रें बार बार शालिनी पर जा रही थीं और इस हरकत ने माहौल को अटपटा बना दिया था। कुछ देर बाद शिव ने वापस अपने कमरे में जाकर शेखू को आवाज़ लगाई। रवि अभी भी वहीं था , इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गयी। घटना का सविस्तार वर्णन किया गया। सर्वसम्मति से ये मान लिया गया कि इम्प्रैशन का कचरा हो गया है, अब भगवान् के भरोसे है आगे की गाड़ी।
शिव उदास था। इस उदासी में किसे ध्यान रहता है कि उसके वीडियो गेम पर अब पूरा कब्ज़ा शेखू और रवि का हो चुका था और गलती से कभी कभी उसे खेलने का जो मौका मिल जाता था , वो पिछले तीन दिनों से नहीं आया था। इस बीच वर्मा जी घर में शिफ्ट हो गए थे। छत पर टकटकी लगाए शिव के मन में लाइन्स गूंजती थीं हर शाम :
शाम ही से, प्रेम दीपक मैं जलाऊं , फिर वही दीपक , दूँ मैं बुझाय ,
कि मीत ना मिला रे मन का !!!
शाम को दीपक मुरझा कर सो जाता था। अगले कई दिनों तक हालात ऐसे ही रहे। फिर एक दिन शिव को आवाज़ लगाकर नीचे आने को बोला मम्मी ने ।
नीचे आकर उसके पैरों से ज़मीन लगभग खिसक सी गयी । इस बार शालिनी उसी से मिलने आयी थी .....
( कहानी तो अब शुरू होगी ) ....