बुधवार, 30 दिसंबर 2020

दो कदम आगे - तीन कदम पीछे

 “अरी कौन साला विस नहीं किया” एक कड़कती सी आवाज़ ने नींद से बोझिल हो चुकी आँखों को झकझोर दिया ।

सवेरे के साढ़े तीन बज रहे थे और पिछले साढ़े चार घंटे से जारी रैगिंग अपनी आज की सभा के आख़िरी चरण में पहुँच चुकी थी । मसला ये था कि किसी एक जूनियर ने किसी एक सीनियर को विश नहीं किया था । विश मतलब सीनियर दिखते ही हर जूनियर  को अपनी कमर को एक समकोण यानी ९० डिग्री पर झुकाना और एक विशेष प्रकार से “सलाम” करना होता । और ऐसा ना करने पर दंड संहिता में अलग अलग दंडों का प्रावधान था । संहिता कहीं थी नहीं वो बात अलग है । 

पर आज किसी ने ये मिस कर दिया था और शिव के साथ उसके सारे बैचमेट की क्लास लगी हुई थी । 

“जिसने नहीं किया हो वो आगे आए , वरना साला सबको २ घंटा एक्स्ट्रा यहीं खड़ा रहना पड़ेगा” फिर से वही कड़क आवाज़ गूंजी ।

रैगिंग का ये पाँचवाँ दिन था । अब तक आदत तो पड़ चुकी थी पर फिर भी कभी कभी रोना निकल जाता था , सब मजबूत नहीं हुए थे । शिव को अचानक याद आया कि आज जब दोपहर को वो पानी भरने गया था तब दोनों हाथ में बॉटल होने की वजह से एक सीनियर को विश नहीं कर पाया था । उसने हाथ खड़ा कर दिया की मैंने विश नहीं किया है । 

बस , फिर क्या बाक़ियों को जाने दिया गया और उसे रोक लिया गया । क़रीबन १०-१५ सीनियर्स होंगे ।

“अच्छा तो तू था” एक आवाज़ आयी ।

“नाम पता है कि किस सीनियर को विश नहीं किया” दूसरी आवाज़ आयी । 

“सर , चेहरा नहीं देख पाया , सर झुका हुआ था” शिव बोला ।

“अबे , चप्पल तो देखी होगी ना , उससे पहचान” एक और आवाज़ आयी ।

“चप्पल से?” शिव ने पूछा ।

“हाँ , चप्पल से , कल तक सब सीनियर्स की चप्पल याद कर लो , ये असाइनमेंट है तुम्हारा” उन्हीं में से कोई एक बोला । 

“चल अब जा , कल से विश करना ना भूल जाना” एक और आवाज़ आयी ।

शिव चल दिया । थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि ऐसा लगा कोई पीछे पीछे आ रहा है । रुककर विश किया ।

“साला रहने दे , सबको विस किया कर” ये वही पहले वाले सीनियर की आवाज़ थी ।

“जी सर” शिव बोला ।

“मेरा रूम पता है ?”

“नहीं”

“तो चप्पल याद करने से पहले सारे सीनियर का रूम नम्बर पता कर” 

“जी”

“और जब मेरा पता चल जाए तो रूम पर आ जाना , ड्राफ़्टर और किताबें पड़ी हैं , ले जाना । नयी मत लेना । कैल्क्युलेटर के अलावा कुछ भी मत ख़रीदना , समझा”

“जी सर”

“और साला पूरे जूनियर में दसियों लड़का लोग सब विस नहीं नहीं किया होगा , तुम साला अकेला काहे ऐक्सेप्ट कर लिया”

“जी , मैंने ही विश नहीं किया था ,  सब मेरी वजह से खड़े रहते”

“अरे महान आत्मा , ये रैगिंग है , कोई पुण्य काम नहीं जो इत्ता सच्चा बन रहा है , जब तक बच सकता है बच”

शिव को पहली बार अपनेपन की फ़ीलिंग आयी । उसने सर उठाकर कहा : जी सर।

“साला ज़्यादा कमफरटेबल होनी की ज़रूरत नहीं , आँख नीचे” सीनियर ने डाँट दिया । शिव ने फिर सर नीचे कर लिया ।

“अऊर , गर्लफ़्रेंड है”

“नहीं सर”

“नहीं है तो बना ले , हाँ बस रैगिंग तक किसी के साथ घूमता या बात करता दिख गया तो ख़ैर नहीं , अब जा पाँच बज रहा है , नौ बजे लेक्चर में पहुँचना है , भाग और पीछे वाले रास्ते से मत जाना उधर कोई और पकड़ लेगा”

****

पूरे दो साल तैयारी के बाद इंजीनियरिंग में हो गया था शिव का । दिल्ली से सटे नॉएडा में था कॉलेज । घरवाले आए थे छोड़ने । तब कई सीनियर्स मिले थे जो ऐसे बात कर रहे थे कि उनसे अच्छा कोई नहीं पर सबके जाते ही टूट पड़े । सुबह नाश्ते से शाम की चाय तक कॉलेज , फिर हॉस्टल । ६ बजे से रैगिंग का पहला दौर और डिनर के बाद ११ बजे से दूसरा । डिनर और ११ बजे का टाइम घर वालों से बात करने के लिए था । ११ बजे से सुबह ४-५ बजे तक असेम्बली मतलब रैगिंग की क्लास । 

मोबाइल पर तब तक इंकमिंग फ़्री नहीं थी और ज़्यादातर  केवल लड़कियों के पास ही थे मोबाइल । लड़कों के हॉस्टल में गार्ड रूम में कई सारे फ़ोन थे , जिसपर घरवाले फ़ोन करके रूम नम्बर और नाम बता देते थे । फिर एक गार्ड बुलाकर लाता था फिर दुबारा फ़ोन आने पर बात होती  । कभी कभी लम्बा वेट भी करना पड़ता और इस तरह ये हंटिंग ग्राउंड था सीनियर्स के लिए । बचने के लिए सबने टाइम तय करके घर वालों को बता दिए थे ,  उसी टाइम पर जाकर बात करके , फटाफट रूम पर वापस हो लेते थे । 

एक रोज़ शिव अपने घर पर बात करके वापस आ ही रहा था की पीछे से गार्ड की आवाज़ आयी ।

“शिव , तुम्हारा फिर से फ़ोन है”

वो बूथ पर वापस गया । १५ मिनट बाद वापस से फ़ोन आया ।

“शिव” उधर से आवाज़ आयी ।

“हाँ”

“शालिनी बोल रही हूँ , कैसे हो”

“शालिनी” बोलने के बाद शिव ने इधर उधर देखा और फिर धीमी आवाज़ में बोला :

“शालिनी , मैं ठीक हूँ और तुम?”

“मैं भी ठीक हूँ, सुनो मैं दिल्ली में ही हूँ”

“पता है” शिव बोला ।

“सुनो , बहुत बातें यहाँ नहीं हो पाएँगी , सैटर्डे मैं नॉएडा आ रही हूँ , वहाँ अट्टा चौक के पास मैकडॉनल्ड है , २ बजे वहाँ मिल सकते हो” 

“मैं अभी तक हॉस्टल से नहीं निकला हूँ”

“तो क्या कभी नहीं निकलोगे, तुम्हारे यहाँ से रिक्शा मिल जाएगा , सीधा वहीं उतारेगा , आ जाना , अभी रखती हूँ ,बाय”

“बाय”

वैसे तो कुछ मिनटों की भी बात नहीं थी ये पर शायद अब तक की सबसे लम्बी बातचीत थी । शिव को लगा था कि वो कहानी वहीं ख़त्म हो चुकी थी क्यूँकि शालिनी के जाने के बाद सिवाय एक दो बार दिखने के ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था कि जिससे कुछ भी बाक़ी रहने की उम्मीद हो । पर आज उसके फ़ोन ने दिल की घंटी बजा दी थी । अब सैटर्डे का इंतेज़ार था जो वैसे तो ३ दिन बाद था पर लग रहा था की कम से कम ८-१० दिन और हैं अभी उसके आने में । 

अब ज़रा सिचूएशन को और क़रीब से देखते हैं । फ़ोन पर बात उसकी और शालिनी की हुई है पर बूथ से निकलते हुए उसे ऐसा लग रहा है कि ये बातचीत FM पर गाना सुनने की फ़रमाइश के लिए हुई है जिसे अभी अभी सबने सुना है । झुकी नज़रों के बावजूद २-४ चेहरे जो उसे दिख रहे हैं , ऐसा लग रहा है कि एक कुटिल मुस्कान से उसे देख रहे हैं । जैसे हर कोई जान गया हो कि उसके दिल में क्या चल रहा है । वो भाग के अपने रूम में पहुँचना चाह रहा है पर ऐसा लग रहा है कि क़िलोमीटरों का फ़ासला है , रास्ते में घुमाव हैं सो अलग। कहीं कोई सीनियर ना रोक ले । क्या आज रात ११ बजे की असेम्बली कैन्सल नहीं हो सकती । बारिश ही हो जाए तो बहाना मार दूँगा कि भीग गया था । 

यही सब उधेड़बुन में वो चला जा रहा था कि अचानक से हॉस्टल का मेन गेट खुला और दो पुलिस की गाड़ियाँ आकर रुकीं । कई पुलिसवाले उतरे और सीटी मार मार कर सब लड़कों को इकट्ठा करवाया । सारा खुमार टूट चुका था । पता चला कि नए आए जूनियर में कोई एक बड़े अधिकारी का सुपुत्र था जिसने रैगिंग की बात अपने घर में बता दी थी । और उस शिकायत पर ही पुलिस हॉस्टल में आयी थी । पूरी रात छानबीन के बाद अगले दिन सुबह सारे सीनियर्स को इकट्ठा कर सब-इंस्पेक्टर ने समझाते हुए कहा : बालकों , पढ़ने आए हो पढ़ाई करो , समझे । ये रैगिंग - फैगिंग में कुछ ना धरा । कम्पलेंट काफ़ी ऊपर तक हुई है पर हो सब अपने बालक , तो केवल समझाने का आदेश है , तो वही कर रहे हैं । सुना जबतक फ़्रेशर बालकन को पार्टी ना दे दोगे तब तक ये नाटक चलता रहेगा । तो इस शनिवार पार्टी वार्टी करो और मामला खतम करो ।”

सीनियर्स ने भी सहमति दिखा दी । सारे जूनियर ख़ुश पर शनिवार का नाम सुनते ही शिव की हालत ख़राब हो गयी । उसके पास तो शालिनी का नम्बर भी नहीं कि उसे बता दे कि वो नहीं आ पाएगा । बचे २ दिन उसके लिए दिक़्क़त भरे होने वाले थे । 

कहानी २ कदम बढ़कर ३ कदम पीछे जाती दिख रही थी !!

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