“टिंग टोंग"….दरवाज़े की घंटी बजी…वो दौड़ती हुई अपने कमरे से निकली…और भाग के दरवाज़ा खोला..बाहर वो खड़ा था…
“तुम आ गए हो नूर आ गया है"…स्वागत कुछ शायराना हो गया
“चलो फिर तीनो बैठ के पिक्चर देखते हैं" …वो बोला …
“पी जे…और तुमसे कोई क्या एक्सपेक्ट कर सकता है" ..उसने चिढते हुए कहा…
“अंदर आने को नहीं बोलोगी'…
“अगर नहीं कहूँगी तों क्या नहीं आओगे"…
“शायद नहीं"
“तो फिर मत आओ"
“कौन है बेटा" अंदर से उसके पापा की आवाज़ आयी …
“कोई है जो आया तो है…पर आना नहीं चाहता"…
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“कभी-कभी लगता है कि ये जो जिंदगी है ना, किसी कंपनी के नोटिस पीरिअड की तरह होती है…पैदा होते ही आप रिजाइन कर देते हो और सिर्फ रिलीज़ डेट का वेट करते रहते हो..अंतर है तो बस इतना कि कंपनी का नोटिस पीरिअड खत्म होने के बाद दूसरी कंपनी में जाते हैं और जिंदगी के बाद पाता नहीं कहाँ…कुछ लोग होते हैं तो इसे एन्जॉय करते हैं..और बाकी बस परेशान होते रहते हैं…."
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राजेश की जिंदगी में कुछ नया बहुत कम हो रहा था आजकल…जोइनिंग का वेट बहुत खराब होता है…जान निकाल लेता है…पिता सरकारी ऑफिस में बाबू..माँ एक गृहिणी..अकेली संतान…
शहर पहाड़ों का था और बहुत बड़ा नहीं था | राजेश को पेंटिंग का काफी शौक था …अकसर चला जाता था वादियों में कुछ बनाने, खुश रहता था…
एक दिन कहीं से घूम के लौट रहा था, हाथ में कुछ पोस्टर थे | सामने से किसी ने उसे जोर की टक्कर मारी…वो गिरते गिरते बचा…वो पलट के कुछ बोलता इससे पहले ही किसी लडकी की आवाज़ आयी…”देख के नहीं चल सकते"
और वो देखता रह गया…खुले बाल, सुन्दर चेहरा, नशीली आँखें, और होठों के पास एक छोटा सा तिल…
वो कुछ भी नहीं बोल सका..लडकी के हाथ में कुछ बुक्स थीं…वो गिर पडी थीं उसने उन्हें संभाला…और वहाँ से चली गयी….
राजेश को अभी भी होश नहीं आ पाया था…वो एक टक उसे देखता रहा फिर आगे बढ़ने लगा…अचानक उसे ज़मीन पे पड़ा एक कागज दिखा…जो शायद उस लडकी की किताबों से गिरा था…उसने उसे उठा लिया..पर पढ़ पाने की हिम्मत नहीं थी…उसे सब घूर घूर के देख रहे थे….वो घर की ओर चल दिया…..
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“मां मेरी जोइनिंग आ गयी है….५ अगस्त बंगलोर….” उसने घर में घुसते ही बोला…
“चल बढ़िया है..चाय बनाऊं??”…
“नहीं पापा को आ जाने दो..साथ में पियेंगे…”
“ठीक है …मैं पड़ोस में जा रही हूँ ज़रा …”
“ठीक है…”
वो भागते हुए अपने कमरे में पहुंचा…पिछले कई दिनों से बड़ा परेशान सा था…कई बार उस कागज के टुकड़े को पढ़ चुका था…पर कुछ समझ नहीं पाया था…वो सुईसाइड नोट था…जिसमे आज से ४ दिन पहले किसी ने मरने की बात कही थी…उसने पुलिस को भी बता दिया था…
कुछ दूरी पर एक आदमी ने कूद के जान देने कि कोशिश की थी पर उसे बचा लिया गया था…और ये कागज तो लडकी के पास से मिला था और उसी ने मरने कि बात भी बोली थी शायद …तो ये लैटर उस आदमी का नहीं था…
वो अक्सर उस सड़क से बार बार गुज़रा पर वो लडकी उसे दुबारा नहीं दिखी…
उसने एक बार फिर कागज पढना शुरू किया…
डिअर पापा एंड ममा, मुझे आप लोगो से कोई शिकायत नहीं है…पर मुझे लगता है कि मै इस दुनिया पे बोझ सी हूँ…आप लोग मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे..मै बन ना सकी..यकीन मानिये मैंने कोशिश की थी…पर नहीं बन सकी…जीना बेकार सा लगने लगा है…मै मरना चाहती हूँ….और वही करने जा रही हूँ… स्वीटी. |
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राजेश ने अपनी कम्पनी से रिजाइन कर दिया था…पूरे पांच साल से तो था यहाँ…कहीं और काम करने का मन कर रहा था…
अपने ऑफिस की पेडस्टल को वो खाली करने लगा…जब से इस कंपनी में है इसी डेस्क पे वो बैठता आया है…पता नहीं कब कब के कागज निकल रहे थे…कुछ पुराने रीमबर्समेंट के पेपर, कुछ मेंडेट्री पर बेकाम के सर्टीफिकेशन, कुछ बोरिंग काल्स को सुनते सुनते बनाये गए टेढ़े मेढे से स्केच….कुछ कागज जिनमे “राजेश” ३०-४० बार अलग अलग तरीके से लिखा है…
वो एक एक कर उनको पढता और फिर फाड़ के डस्टबिन में डालता जाता…तभी उसके हाथ वो चिट्ठी लग गयी…वो इसे अक्सर पढता था….स्वीटी नाम की जितनी भी लडकियां उसे फेसबुक या ऑरकुट पे मिली थी सबको फ्रेंड रेकुएस्ट भेज चुका था…कुछ का जवाब भी आ गया था…कहीं वो उनमे से एक तो नहीं जिनका जवाब नहीं आया था….
उसने वो कागज अपने बैग में रख लिया….
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“मिस्टर राजेश यू हैव बीन सेलेक्टेड बाई अवर टेक पैनल"….बाहर वेट करते हुए बैठे राजेश से एक आदमी ने बोला…
“देन व्हाट इज द नेक्स्ट प्रोसेस" राजेश ने पूंछा |
“अवर एच आर जेनेर्लिस्ट विल टॉक टू यू"….और उसने उसे दूसरी तरफ जाने का इशारा किया…
इस समय वो एक बरामदेनुमा एक कमरे में था…चारों ओर पारदर्शी कमरे थे…एक कमरे में एक लडकी बैठी हुई थी…चेहरा उसका बालों से ढका हुआ था…हलके नीले रंग की साड़ी…कुछ लिख रही थी…
“ये सारी खूबसूरत लडकियां एच आर में कहाँ से आ जाती हैं" उसने मन ही मन सोचा…
करीब १० मिनट बाद वो बाहर आयी…
“मिस्टर राजेश" कहते हुए उसने सर घुमाया…राजेश के पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गयी…वही चेहरा…मन में आया बोल दे “स्वीटी????”
“अनु हेअर..लेट्स हैव अवर डिस्कसन " वो हाथ मिलाते हुए बोली…वो ठिठक कर रुक गया ..उससे हाथ बड़ी मुश्किल से मिलाया गया…वो उसके पीछे पीछे चल दिया…
बातचीत कुछ आधे घंटे चली….चलते चलते आखिरी सवाल पूंछा उसने “ सो मिस्टर राजेश यू बिलोंग्स टू व्हिच सिटी?”..
“अल्मोड़ा"
“कूल…आई हैव बीन देअर..नाईस प्लेस"…
उसका मन और पक्का हो गया .. मन किया पूंछ ही ले….पर पता नही क्यूँ वो फिर रुक गया…
“यू कैन वेट आउटसाइड…मीनव्हाइल आई विल शेयर माय फीडबैक एंड देन यू कैन गो फॉर नेक्स्ट राउंड”
उसे कुछ सुनायी नहीं दे रहा था…वो बाहर जाकर बैठ तो गया पर वो उसे ही देखता रहा…और कोई दूसरा कैंडिडेट नहीं था…वो उसे लगातार घूरे जा रहा था..थोड़ी देर बाद वो बाहर आयी|
“लगता है थोड़ा टाइम लगेगा…वान्ना हैव ए कप ऑफ कॉफी ?” उसने बोला…
“श्योर" राजेश में मुह से अचानक निकल गया…
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“अच्छी जगह है ना जहाँ तुम्हारा घर है" …अनु बोली…
“हाँ" वो उसे बस घूरे जा रहा था…
“कुछ साल पहले वहाँ गयी थी…पहाड़ियां मुझे अच्छी लगती हैं…”
“हर किसी को लगती हैं…कुछ को लाइफ दिखती है…कुछ वहाँ से मरने की कोशिश करते हैं" ये उसकी एक और कोशिश थी कुछ और पता करने की…
"हाँ यार…इन्फैक्ट मैंने मरने का प्लान बना लिया था"….वो बोली…
अब उसके दिमाग में कोई कन्फ्यूजन नहीं रहा…
“स्वीटी" उसके मुह से निकल गया…
“तुम कैसे जानते हो ये नाम?”
उसने अपना बैग खोला और वो लैटर उसके सामने रख दिया…
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मिलने की जगह एक कॉफी हॉउस तय हुई थी…दोनों लगभग एक टाइम पे ही पहुंचे थे…बातें शुरू हुईं…
“पता है मैं इतने सालों ये सोंचती रही कि शायद वो लैटर मोम डैड को मिल गया था..पर जब मै वापस आ गयी तो वो कुछ बोले नहीं"
“बस केवल ज़रा सी बात पे तुम मरना क्यूँ चाहती थी"
“पता नहीं यार..बस ऐसे ही"
“फिर इरादा क्यूँ बदल दिया?”
“मैं मरने गयी थी…एक पहाड़ी पे बैठी …वहाँ एक आदमी आया…उसे पैसों का बहुत नुक्सान हुआ था …सड़क पर आ गया था…वो भी मरने आया था…ये सब बताते ही वो वहाँ से कूद गया…पर वो एक पेड़ मे फंस गया ..वहाँ कुछ और लोग भी थे…जिनकी मदद से उसे निकाला…थोड़ी देर में उसके घर वाले वहाँ आ गए…वो रो रहे थे…मुझे अपने मोम डैड का ख्याल आ गया…मै वहाँ से भाग के होटल पहुंची…देखा तो वो लोग मेरा ही वेट कर रहे थे…मेरे से कुछ कहा नहीं गया…”
“तुम्हे क्या लगता है कि अगर उन्हें वो लैटर मिल गया होता तो वो तुम्हे ढूँढते नहीं"
“पता नहीं यार…मैंने बहुत ढूँढा पर लैटर मुझे मिला नहीं…तो मैंने भी जिक्र नहीं किया…”
“और अब बताया उन्हें??"
“हाँ कल बताया …तुम्हारे बारे में भी बताया…तुमसे मिलना चाहते हैं"
“क्यूँ"
और वो मुस्कुरा दी…
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“टिंग टोंग"….दरवाज़े की घंटी बजी…वो दौड़ती हुई अपने कमरे से निकली…और भाग के दरवाज़ा खोला..बाहर वो खड़ा था…
“तुम आ गए हो नूर आ गया है"…स्वागत शायराना हो गया
“चलो फिर तीनो बैठ के पिक्चर देखते हैं" …वो बोला …
“पी जे…और तुमसे कोई क्या एक्सपेक्ट कर सकता है" ..उसने चिढते हुए कहा…
“अंदर आने को नहीं बोलोगी'…
“अगर नहीं कहूँगी तों क्या नहीं आओगे"…
“शायद नहीं"
“तो फिर मत आओ"
“कौन है बेटा" अंदर से उसके पापा की आवाज़ आयी …
“कोई है जो आया तो है…पर आना नहीं चाहता"…
“अंकल नमस्ते” कहता हुआ राजेश सोफे पे बैठ गया …
“आओ बेटा" किचन से निकलती हुई स्वीटी की माँ ने बोला…
“सुना तुमने पुलिस को भी खबर कर दी थी" बैठते हुए स्वीटी के पापा बोले…
“हाँ ..थोड़ा डर गया था…पर जब अगले १०-१५ दिन तक कोई खबर नहीं मिली ऐसी तो मेरे को लगा या तो मै वाकई इसे बचा नहीं सकता हूँ या सुईसाइड का आईडिया ड्रॉप हो गया है"
सब हँस ही रहे थे इस बीच वो अंदर से तैयार होकर आ गयी…
“पापा हम लोग थोड़ा बाहर घूम के आयें"…उसने बताया
****
“शादी क्यूँ नहीं की"…..स्वीटी ने पूंछा…
“पता नहीं…कभी कोई मिली नहीं शायद "…राजेश ने जवाब दिया….
“और तुमने….” राजेश ने भी पूंछ दिया…
“सेम हेअर"….और वो हंस दी
“तुम कितना कम बोलते हो ना?” अगला सवाल…
“सुना है जिनके होठों के पास तिल होता है वो कुछ ज्यादा ही बोलते हैं…” उसने घूम के उसकी तरफ देखा…
“बोलते हैं…बहुत बोलते हैं…पर दिल में कुछ नहीं रखते"….और वो दूसरी तरफ देखने लगी…
कुछ देर का सन्नाटा हुआ….जैसे दोनों अलग अलग दुनिया में हों….
“विल यू मैरी मी" राजेश ने पता नहीं क्यूँ पूंछ लिया और आँखें बंद कर ली….
“आई थिंक पहले आई लव यू बोला जा सकता था” स्वीटी का जवाब आया और दोनों काफी देर तक हँसते रहे….
राजेश कि जिंदगी और नोटिस पीरिअड दोनों रंगीन हो गए….और स्वीटी ने भी रिलीज़ डेट मांगने से मना कर दिया…..
--देवांशु